Jun 19, 2011

आईपैड एक तरह का टेबलेट कंप्यूटर है जिसे अमेरिकी कंपनी ऐप्पल ने बनाया है यह आकर में लैपटप से छोटा और स्मार्टफोन से बड़ा होता है. यह मूल रुप से ऑडियो-वीडियो मीडिया खासकर ई बुक्स वगैरह के लिए बेहतर है। उसके अलावा यह फिल्में देखने, गेम्स खेलने और वेब कंटेंट के लिए उपयोगी होता है।आईफोन और आईपॉड की तरह यह मल्टीटच डिस्पले नियंत्रित होता है। इसके पहले टेबलेट कंप्यूटरों में यह सुविधा नहीं होती थी।ऐप्पल ने पहला आईपैड 2010 में रिलीज किया था लेकिन महज 80 दिनों में उसने तीस लाख आईपैड बेच दिए थे।

जानिए क्या होती है हाइब्रिड कार

आपने कई लोगों से हाइब्रिड कार के बारे में सुना होगा लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि यह क्या होती है। हाईब्रिड टेक्नोलॉजी से मतलब दो ईधन से चलने से हाईब्रिड कारें पेट्रोल या डीजल और बैट्री की पावर से चलती है दुनिया भर में हाईब्रिड टेक्नोलॉजी को लेकर अलग अलग वाहन बनाए गए हैं इसमें डीजल-बैट्री, पेट्रोल- बेट्री से चलने वाली गाडियां होती है। अगर आपको याद हो तो काफी पहले मोपेड चला करती थी जिसमें पहले पैडल मारते थे उसके बाद वो स्टार्ट होकर चलती थी वो भी एक तरह की हाईब्रिड बाइक थी क्योंकि उसमें शरीर की ताकत और ईधन दोनो इस्तेमाल हो रहे हैं। होंडा सिविक एक हाइब्रिड कार है पैट्रोल और कार की बैट्री दोनो से चलती है ऐसी गाड़ियां ईधन की बचत ज्यादा करती हैं और इनसे प्रदूषण भी काफी कम होता है।

May 8, 2011

80 अरब डॉलर खर्च कर 10 लाख लोगों से जासूसी करवाता है अमेरिका

click here विकीलीक्‍स के ताजा खुलासे से देश के सियासी गलियारे में मचे कोहराम के बीच एक बात तो साफ हो गई है कि अमेरिका भारत में स्थित अपने राजनयिकों से जासूसी करवाता रहा है। यही नहीं, अमेरिका किसी देश के आंतरिक मामलों में दखल की भी पूरी कोशिश करता है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और वहां की सेना जासूसी के इस गोरखधंधे में शामिल होती है। खुफिया मामलों के जानकारों के मुताबिक यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि अमेरिका ने पिछले साल सिविलियन और मिलिट्री जासूसी पर कितना खर्च किया है। वैसे अमेरिका के नेशनल इंटेलिजेंस के डायरेक्‍टर जेम्‍स क्‍लैपर ने बताया कि पिछले साल अमेरिका ने जासूसी के काम पर 80.1 अरब डॉलर खर्च किए। इसमें सिविल एजेंसियों पर 53.1 अरब डॉलर जबकि बाकी रकम रक्षा मंत्रालय पर खर्च की गई। जासूसी पर खर्च की जाने वाली यह रकम अमेरिका के होमलैंड सिक्‍योरिटी डिपार्टमेंट (42.6 अरब डॉलर) या विदेश मंत्रालय (48.9 अरब डॉलर) के बजट से अधिक है। इससे पहले अमेरिकी सरकार ने 1998 में खुफिया गतिविधियों पर खर्च की जाने वाली रकम (26.7 अरब डॉलर) का सार्वजनिक तौर पर खुलासा किया था।जानकारों ने नए खुलासों के आधार पर यह दावा किया है कि अमेरिकी सरकार सिविलियन इंटेलिजेंस ऑपरेशन पर हर साल 45 अरब डॉलर और रक्षा खुफिया पर 30 अरब डॉलर खर्च करती है। इस पूरे नेटवर्क में करीब दो लाख कर्मचारी जुटे हैं। 1994 में अमेरिका खुफिया गतिविधियों पर हर साल करीब 26 अरब डॉलर खर्च करता था। कैसे काम करता है अमेरिकी खुफिया तंत्र अमेरिका में आतंकवाद विरोधी, होमलैंड सिक्‍योरिटी और खुफिया से जुड़े कामों में करीब 3200 संगठन (1271 सरकारी संगठन और 1931 प्राइवेट कंपनियां) जुटी हैं। इस नेटवर्क से जुड़े 8 लाख 54 हजार लोग अमेरिका में करीब 10 हजार ठिकानों पर फैले हैं। सितम्‍बर 2001 में हुए आतंकवादी हमलों के बाद से वाशिंगटन और आसपास के इलाकों में अति गोपनीय खुफिया कार्यों के लिए 33 इमारतें तैयार की जा रही हैं या बन गई हैं। अमेरिका में साल 2001 के आखिर तक 24 संगठन बनाए गए जिनमें होमलैंड सिक्‍योरिटी का दफ्तर और फॉरेन टेररिस्‍ट एसेट ट्रैकिंग टास्‍क फोर्स शामिल हैं। 2002 में 37 और ऐसे संगठन तैयार किए गए जिनका काम व्‍यापक विनाश के हथियारों पर नजर रखना, हमले की आशंका पर नजर रखना और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के मोर्चे पर नई रणनीति तैयार करना है। इसके बाद 2004 में 36, 2005 में 26, 2006 में 31, 2007 में 32, 2008 और 2009 में 20-20 या इनसे अधिक संगठन खड़े गए। कुल मिलाकर 9/11 की घटना के बाद अमेरिका में कम से कम 263 संगठन खड़े किए गए हैं। अधिकतर सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों का काम एक जैसा ही होता है। अमेरिका के 15 शहरों फैले 51 संघीय संगठन और मिलिट्री कमान पैसे के लेन देन और आतंकवादियों के नेटवर्क पर नजर रखते हैं। जानकारों के मुताबिक विदेशी और घरेलू जासूसी से जुड़ी रिपोर्टों की संख्‍या इतनी अधिक हो जाती है कि हर साल करीब 50 हजार खुफिया रिपोर्टों को कूड़ेदान में फेंकना पड़ता है। अमेरिकी प्रशासन के मौजूदा और पूर्व अधिकारियों के हवाले से ‘वाशिंगटन पोस्‍ट’ लिखता है कि अमेरिका की राष्‍ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) द्वारा अपने नागरिकों की जासूसी के दौरान इकट्ठा की गई सूचनाओं तक संघीय जांच एजेंसी (एफबीआई), रक्षा खुफिया एजेंसी (डीआईए), सीआईए और होमलैंड सिक्‍योरिटी डिपार्टमेंट की भी पहुंच होती है। अमेरिकी प्रशासन की ओर से अपने ही नागरिकों की जासूसी करने की बात उस वक्‍त सामने आई जब इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स फ्रंटियर फाउंडेशन नामक संगठन के हाथ ऐसे दस्‍तावेज हाथ लगे जिससे साफ हो गया कि खुफिया एजेंट सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स के जरिये कई तरह के लोगों से दोस्‍ती कर मौजूदा हालात की जानकारी इकट्ठा करते हैं। यदि कोई आदमी इन एजेंटों के जाल में फंस कर वेबसाइट पर दोस्‍ती कर लेता है तो एजेंट यूजर से नजदीकी बढ़ाकर कई तरह की जानकारियां हासिल कर लेते हैं। भारतीय राजनयिकों की जासूसी खोजी वेबसाइट विकीलीक्स के खुलासे से भारत, अमेरिका सहित दुनिया के अधिकतर देशों में सियासी कोहराम मचा है। खुलासे से साफ हुआ है कि अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजनयिकों की जासूसी के आदेश दिए थे। संदेशों से साफ है कि अमेरिका ने इसके अलावा चीन और पाकिस्तान के राजनयिकों की जासूसी करवाई है। पिछले साल विकीलीक्‍स ने अमरीकी दूतावासों की ओर से भेजे गए जिन करीब ढाई लाख संदेशों को सार्वजनिक किया, उनमें से 3038 संदेश नई दिल्‍ली स्थित अमेरिकी दूतावास से भेजे गए हैं। विकीलीक्‍स के खुलासों के मुताबिक अमेरिका संयुक्‍त राष्‍ट्र के महासचिव बान की मून सहित यूएन नेतृत्‍व और सुरक्षा परिषद में शामिल चीन, रूस, फ्रांस व ब्रिटेन के प्रतिनिधियों की जासूसी में भी जुटा है। हालांकि विकिलीक्‍स के इस खुलासे पर अमेरिका भड़क गया। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍ता पी जे क्राउले ने कहा, ‘हमारे राजनयिकों द्वारा जुटाई गई सूचनाएं हमारी नीतियों और कार्यक्रमों को अमली जामा पहनाने में मददगार होती हैं। हमारे राजनयिक ‘डिप्‍लोमैट्स’ ही हैं जासूस नहीं।’ अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने विकीलीक्‍स की हरकत को गैरजिम्‍मेदाराना करार दिया। पेंटागन ने इन सूचनाओं की गोपनीयता बनाए रखने के लिए कड़े कदम उठाने भी शुरू कर दिए हैं। यूएन में अमेरिकी दूत सुसान राइस ने भी क्राउले की तर्ज पर अपने राजनयिकों का बचाव किया है। उन्‍होंने कहा, ‘हमारे राजनयिक भी वही करते हैं जो दुनियाभर में अन्‍य देशों के जासूस हर दिन करते हैं। इनका काम संबंधों को मजबूत बनाने, बातचीत की प्रक्रिया जारी रखने और जटिल समस्‍याओं का हल ढूंढने में मदद करना है।’ पाकिस्‍तान में दो नागरिकों की हत्‍या के आरोप में गिरफ्तार किया गया रेमंड डेविस भी अमेरिकी जासूस बताया गया। हालांकि अमेरिका ने पाकिस्तान को यह समझाने की कोशिश की कि डेविस को राजनयिक दर्जा हासिल है इसलिए उन्हें वापस अमेरिका भेजा जाना चाहिए। आपकी राय क्‍या अमेरिका के जासूसी जाल से बचना मुमकिन नहीं रह गया है या फिर सरकारें अपना हित और अमेरिकी रौब को देखते हुए घुटने टेक कर उसके जाल में फंसने के लिए तैयार रहती हैं।

190 करोड़ की मालकिन, घर-घर बर्तन-कपड़े धोने पर मजबूर

सूरत। आज 'मदर्स डे' पर जहां एक तरफ मां की पूजा की जा रही है। वहीं कुछ ऐसी माएं भी हैं, जिन्हें उन कपूतों की वजह से ही आज दर-दर की ठोकरें खाना पड़ रही हैं, जिन्हें वे हमेशा अपने सीने से लगाए रखती थीं। ठीक इसी तरह इस मां की कहानी है, जिसे सुनते ही आपकी आंखें भर आएंगी... आभवा के जमींदार व 109 करोड़ रुपए के वारिस रोहित देसाई की पत्नी हंसाबेन का जीवन ऐशो-आराम से भरपूर था। लेकिन पति के देहांत के बाद उनकी जिंदगी जैसे बिखर सी गई। कुछ ही दिनों बाद उनकी हालत ऐसी कर दी गई कि वे आज घर-घर बर्तन व साफ करके अपना पेट पाल रही हैं। मां के साथ यह कृत्य किसी और ने नहीं, बल्कि सगे बेटे ने ही किया। हंसाबेन बताती हैं कि उनके सगे बेटे संदीप ने पहले तो उनकी सारी जायदाद अपने नाम कर ली और बाद में उन्हें घर से भी निकाल दिया। हंसाबेन आज जब अपने पुराने दिनों को याद करती हैं तो उनकी आखें आंसुओं से भर जाती हैं कि जहां एक समय उनकी एक आवाज पर कई नौकर हाजिर हो जाया करते थे, वहीं आज वे नौकरों की तरह दूसरों के घरों में बर्तन व कपड़े धोकर जीवन बसर पर मजबूर हैं। हंसाबेन कहती हैं कि संदीप ने उन्हें विश्वास में लेकर सारी जायदाद अपने नाम कर ली और जब उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाना चाही तो संदीप ने उन्हें घर से ही निकाल दिया। बेघर होने के बाद हंसाबेन के पास जीवन बसर करने के लिए कुछ भी नहीं रहा और वे दूसरे लोगों के घर के बर्तन-कपड़े धोने जैसे काम करने पर मजबूर हो गईं। लोगों के कहने पर हंसाबेन ने इसकी शिकायत फैमिली कोर्ट में भी की और कोर्ट द्वारा संदीप को यह आदेश भी दिया जा चुका है कि वह मां के भरण-पोषण का पूरा खर्च उठाए। लेकिन संदीप ने अदालत के फैसले को भी नहीं माना। पति के मित्र ने सहारा दिया... वह भी बेटे से देखा न गया बेघर किए जाने के बाद हंसाबेन को उनके पति के दोस्त नानूभाई ने सहारा दिया। हंसाबेन वहां पर लगभग छह महीने तक रहीं और उनका कहना है कि इस घर में उन्हें इतना प्यार मिला, जितना उनके सगे बेटे ने भी कभी नहीं दिया। लेकिन हंसाबेन का यह सुख भी बेटे से देखा नहीं गया और उसने एक बार नानूभाई के घर पहुंचकर नानूभाई के साथ काफी गाली-गलौच की। नानूभाई ने तो हंसाबेन से इसकी कोई शिकायत नहीं कि लेकिन हंसाबेन नहीं चाहती थीं कि फिर उनका बेटा इस घर में आकर हंगामा करे और इस घर के लोगों की शांति भंग करे। नानूभाई के बहुत रोकने पर भी वे नहीं मानीं और उन्होंने यह घर छोड़ दिया। मां को डायन कहता था... हंसाबेन ने बताया कि उनका बेटा अपने बच्चों को उनके पास नहीं आने देता था और उनसे कहता था कि दादी के पास मत जाना, उसे गंभीर बीमारी है, नहीं तो तुम भी बीमार पड़ जाओगे। इसके अलावा संदीप उन्हें डायन कहकर ही पुकारता था। ......अब समाज या कानून के डर से इस मां को उसका बेटा भले ही खाने-पीने के लिए चंद रुपए दे दे, लेकिन क्‍या उससे मां के सीने पर लगे जख्‍म भर पाएंगे? ......सवाल यह उठता है कि मां तो अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर भूखा नहीं सोने देती। अगर सोने के लिए बिस्तर न हों तो उन्हें अपने सीने से लगाकर सुलाती है। ...जब बच्चों को मां की जरूरत होती है तब वह तो अपने सारे फर्ज पूरी ईमानदारी और निस्वार्थ भाव से पूरा करती है। लेकिन जब बच्चों की बारी आती है तो वह उनकी आंखों में ही चुभने लगती है, आखिर क्यों ?

इंटरनेट के जरिए चल रहे हाई प्रोफाइल सेक्स रैकेट का भंडाफोड़

नई दिल्ली. दिल्ली पुलिस ने इंटरनेट के जरिए चलने वाले हाई प्रोफाइल सेक्स रैकेट का भंडाफोड़ किया है। दिल्ली क्राइम ब्रांच ने इस मामले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। उसके रैकेट में देश के अलग अलग शहरों में रहने वाली एयर होस्टेस और मॉडल्स ही नहीं, बल्कि टीवी सीरियल्स की कई जानीमानी अभिनेत्रियां और कुछ उभरती हुईं या फ्लॉप अभिनेत्रियां शामिल हैं। आरोपी जोधपुर का सुधांशु गुप्ता (32) का है। पुलिस का मानना है कि वह साइबर पिंप (दलाल) और इस रैकेट का मास्टरमाइंड था। उसने दावा किया है कि इनके क्लाइंट भी कितने हाई प्रोफाइल थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि क्लाइंट को लड़की मुहैया करवाने की एवज में उससे 1 से 10 लाख रुपये तक लिए जाते थे। डीसीपी (क्राइम ब्रांच) अशोक चांद के मुताबिक को हेड कॉन्स्टेबल अमित तोमर को सूचना मिली थी कि एक हाई प्रोफाइल सेक्स रैकेट चलाने वाला शख्स शालीमार बाग इलाके में आने वाला है। इसी सूचना के आधार पर पुलिस ने ट्रैप लगाकर सुधांशु को गिरफ्तार किया। उससे पूछताछ में कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं। एक अच्छे परिवार से ताल्लुक रखने वाले सुधांशु ने 2003 में गाजियाबाद के एक मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की थी। एक साल तक दिल्ली स्थित एक मल्टी नैशनल बैंक मंे बतौर रीजनल मैनेजर नौकरी करने के बाद उसने एक शेयर ब्रोकर कंपनी में जॉब हासिल कर लिया और फिर 2005 में वह जोधपुर चला गया। वहां उसने टूर एंड ट्रैवल्स का बिजनेस शुरू किया। डीसीपी के मुताबिक पिछले साल जब वह बिजनेस के सिलसिले में दिल्ली आया था, उसी दौरान उसकी मुलाकात एक कॉलगर्ल से हुई और दोनों ने मिलकर वेब पोर्टल के जरिए एस्कॉर्ट सर्विसेज मुहैया करवाने का प्लान बनाया। सुधांशु ने इंटरनेट पर एक वेबसाइट तैयार की और इसके जरिए उसने देशभर में अपना नेटवर्क फैलाया, जिसमें कॉलगर्ल्स के साथ साथ उसके क्लाइंट्स भी शामिल थे। इंटरनेट के जरिए ही एस्कॉर्ट सर्विस देने की इच्छुक लड़कियों को अपने रैकेट में शामिल करता था और जरूरत के मुताबिक उन्हें अलग अलग शहरों में अपने क्लाइंट्स के पास भेजता था। क्लाइंट्स भी पोर्टल के जरिए ही संपर्क करते थे और बाद में फोन पर डील फाइनल होती थी। सुधांशु का चेहरा न तो कभी किसी क्लाइंट ने देखा और न कभी वह रैकेट में शामिल लड़कियों से मिला। सारा काम बस मोबाइल और इंटरनेट के जरिए ही हो जाता था। रैकेट के लिए काम करने वाली सभी लड़कियों को एक बैंक अकाउंट नंबर दिया गया था। क्लाइंट से कैश पेमेंट लेने के बाद लड़कियां पेमेंट का 30 से 40 प्रतिशत हिस्सा खुद उस बैंक अकाउंट में जमा करवा देती थीं, जिसका नंबर सुधांशु उन्हें देता था। बाद में सुधांशु डेबिट कार्ड से रकम निकाल लेता था। बाकी रकम लड़की खुद रख लेती थी। पुलिस के मुताबिक मार्च में भोपाल पुलिस की क्राइम ब्रांच ने एमपी नगर स्थित एक होटल में छापा मारकर वेश्यावृत्ति के आरोप में दिल्ली की एक हाई प्रोफाइल लड़की को गिरफ्तार किया था। पूछताछ में लड़की ने बताया था कि वह सुधांशु के लिए काम करती है और उसी के कहने पर वह दिल्ली से फ्लाइट पकड़कर भोपाल आई थी। उसने सुधांशु द्वारा बताए गए तीन बैंक अकाउंटों में 1 लाख 48 हजार रुपये भी जमा करवाए थे। भोपाल क्राइम ब्रांच ने ये तीनों बैंक अकाउंट सीज कर दिए थे और सरगर्मी से उसे तलाश रही थी। भोपाल पुलिस की धरपकड़ के बाद सुधांशु अपने पोर्टल को बेचने की तैयारी भी कर रहा था।