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Jan 25, 2011
सिर्फ 14 हजार लगाकर खड़ा कर लिया करोड़ों का बिजनेस
अगर आपसे कहा जाए की महज 14 हजार रुपए का इस्तेमाल कर के करोडों का कारोबार कीजिए तो आपको ये नामुमकिन सा लगेगा। लेकिन यह कारनामा विनीत वाजपेयी नाम के शख्स ने कर दिखाया है। सिर्फ 14,000 रुपये और दो किराये पर लिए हुए कंप्यूटर की बदौलत आज वे देश की सबसे बड़ी डिजिटल मीडिया कंपनी खड़ी कर चुके हैं। इनकी कंपनी मैग्नानॅ साल्यूशंस के ग्राहकों में भारती, महिंद्रा एंड महिंद्रा, एचसीएल, मारुति और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज जैसी कई बड़ी भारतीय कंपनियां शामिल हैं। दुनिया भर में इस कंपनी के ग्राहकों में 600 से अधिक कंपनियां शामिल हैं। वाजपेयी बताते हैं, “जब मैंने कारोबार शुरू किया था, उस समय मुझे यह बताने वाला कोई नहीं था कि क्या सही है और क्या गलत। मैंने काम करते-करते सब सीखा। कई बार मैंने ऐसी गलतियां भी कीं, जिनसे मुझे झटका लगा।” आज वाजपेयी 33 साल के हैं। 22 साल की उम्र में उन्होंने अपने कारोबार की शुरूआत की थी। वे खुद बताते हैं कि जब उन्होंने कारोबार शुरु किय था उस समय उनके पास सिर्फ 14,000 रुपये थे, जो उन्होंने गर्मी की छुटिटयों में पार्टटाइम नौकरी कर के बचाए थे। अब वाजपेयी अपने कारोबारी जीवन के इस बेहतरीन अनुभव को लेकर किताब लिखने का मन बना रहे हैं।
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G.K.,
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Oct 1, 2010
वायदा कारोबार क्या होता है?
आपने कभी किसी को कुछ देने का वादा तो किया ही होगा। यह वादा ही इस कारोबार का आधार है। मान लीजिए आपके
पास शेयर खरीदने के लिए पूरे पैसे नहीं हैं, मगर शेयर के दाम काफी नीचे चल रहे हैं। आप क्या करेंगे? आप शेयर बेचने वाले से वादा करते हैं कि कुछ पैसे अभी ले लो, बाकी कुछ दिनों बाद ले लेना। पूरा पैसा देकर, पूरे शेयर ले लूंगा। यही वादा कारोबार है।
आपने 100 शेयर खरीदे। कुल कीमत करीब 10 हजार रुपये है। आपने 10 या 15 फीसदी मार्जिन मनी शेयर बेचने वाले को दे दी। तय हुआ कि 30 दिन बाद आप बाकी रकम दे देंगे। आप जैसे ही पूरी रकम देंगे, शेयर आपके नाम हो जाएगा। इस तरह का कारोबार ही वायदा कारोबार कहलाता है। अब शेयरों के साथ उपभोक्ता वस्तुओं और अमेरिकी डॉलरों का भी वायदा कारोबार शुरू हो गया है। डॉलर का वायदा कारोबार शेयर बाजार में होता है, जबकि उपभोक्ता वस्तुओं का कमोडिटी एक्सचेंजों में।
वायदा का फायदा: पूरा पैसा न होने के बावजूद भी खरीदारी संभव है। इससे बाजार में मनी फ्लो बना रहता है, जिसे तकनीकी भाषा में लिक्विडिटी कहा जाता है। पैसे की कमी के कारण बाजार में कारोबार नहीं रुकता। प्लानिंग करने में आसानी होती है। शेयर अगर नीचे गिर रहे हैं, तो वायदा कारोबार काफी फायदेमंद होता है। आप निचले दामों पर शेयर खरीदकर बाद में बेचने की प्लानिंग कर सकते हैं। अगर आपको तीन माह बाद कारोबार या विदेश जाने के लिए डॉलर की जरूरत है, तो पहले से वायदा कारोबार के जरिए उसे बुक कर सकते हैं। उपभोक्ता वस्तुओं में भी ऐसा किया जा सकता है।
पास शेयर खरीदने के लिए पूरे पैसे नहीं हैं, मगर शेयर के दाम काफी नीचे चल रहे हैं। आप क्या करेंगे? आप शेयर बेचने वाले से वादा करते हैं कि कुछ पैसे अभी ले लो, बाकी कुछ दिनों बाद ले लेना। पूरा पैसा देकर, पूरे शेयर ले लूंगा। यही वादा कारोबार है।
आपने 100 शेयर खरीदे। कुल कीमत करीब 10 हजार रुपये है। आपने 10 या 15 फीसदी मार्जिन मनी शेयर बेचने वाले को दे दी। तय हुआ कि 30 दिन बाद आप बाकी रकम दे देंगे। आप जैसे ही पूरी रकम देंगे, शेयर आपके नाम हो जाएगा। इस तरह का कारोबार ही वायदा कारोबार कहलाता है। अब शेयरों के साथ उपभोक्ता वस्तुओं और अमेरिकी डॉलरों का भी वायदा कारोबार शुरू हो गया है। डॉलर का वायदा कारोबार शेयर बाजार में होता है, जबकि उपभोक्ता वस्तुओं का कमोडिटी एक्सचेंजों में।
वायदा का फायदा: पूरा पैसा न होने के बावजूद भी खरीदारी संभव है। इससे बाजार में मनी फ्लो बना रहता है, जिसे तकनीकी भाषा में लिक्विडिटी कहा जाता है। पैसे की कमी के कारण बाजार में कारोबार नहीं रुकता। प्लानिंग करने में आसानी होती है। शेयर अगर नीचे गिर रहे हैं, तो वायदा कारोबार काफी फायदेमंद होता है। आप निचले दामों पर शेयर खरीदकर बाद में बेचने की प्लानिंग कर सकते हैं। अगर आपको तीन माह बाद कारोबार या विदेश जाने के लिए डॉलर की जरूरत है, तो पहले से वायदा कारोबार के जरिए उसे बुक कर सकते हैं। उपभोक्ता वस्तुओं में भी ऐसा किया जा सकता है।
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लॉट क्या होता है और क्या होती है मार्जिन कॉल?
लॉट क्या होता है?
दरअसल नकद बाजार की तरह वायदा बाजार में कोई भी शेयर मनमानी संख्या में नहीं खरीदा जा सकता। एक्सचेंज यह तय करता है कि कौन सा शेयर कम से कम कितनी संख्या में खरीदा जा सकता है। इसी संख्या को लॉट कहते हैं। वायदा बाजार में कोई भी शेयर लॉट में ही खरीदा जाता है। वैसे तो इस बारे में कोई पक्का नियम नहीं है, लेकिन आम तौर पर एक लॉट शेयरों की कीमत 2 लाख रुपए के आसपास होती है। अभी हाल ही में एनएसई ने शेयरों के लॉट की समीक्षा की और लॉट में संख्या पहले के मुकाबले काफी कम की गई। इसका कारण यही था कि पिछले कुछ सालों की बढ़त के कारण एक-एक लॉट के शेयरों की कीमत 6-7 लाख रुपए तक पहुंच गई थी।
वायदा कारोबार में मार्जिन क्या होता है?
लॉट में शेयर खरीदना जाहिर है काफी महंगा होता है। इसलिए शेयर ब्रोकर अपने ग्राहकों को मार्जिन की सुविधा देते हैं। मार्जिन के तहत शेयरों की साख के लिहाज से एक खास प्रतिशत रकम निवेशक को देनी होती है, जबकि बाकी रकम ब्रोकर निवेशक को देता है। आम तौर पर निवेशकों को अलग-अलग शेयरों के लिहाज से 20-30 फीसदी मार्जिन रखना होता है, जबकि 70-80 फीसदी कर्ज ब्रोकर देता है।
लॉन्ग और शॉर्ट किसे कहते हैं?
लॉन्ग होना यानी कोई शेयर में खरीदारी करना और शॉर्ट करना यानी कोई शेयर आपके पास न हो, लेकिन ब्रोकर से कर्ज लेकर उसे बेचना।
मार्जिन कॉल क्या होती है?
मान लीजिए आपने 5,000 पर एक लॉट निफ्टी अप्रैल लॉन्ग किया। निफ्टी के एक लॉट में 50 इकाइयां होती हैं। यानी आपको पूरे लॉट के लिए 2,50,000 रुपए देने होंगे। अब आपका ब्रोकर आपको 30 फीसदी मार्जिन जमा करने को कहता है यानी आप 50 हजार रुपए जमा करते हैं। दो लाख रुपए ब्रोकर आपके पोजिशन पर आपको कर्ज देता है। अब बाजार गिरने लगा और निफ्टी अप्रैल पहुंच गया 4,000 हजार पर। यानी आपकी पोजिशन रह गई 2,00,000 रुपए की। अब यहां से अगर निफ्टी थोड़ा भी नीचे गया और आपने मार्जिन बढ़ाने से इंकार कर दिया, तो सौदा काटने के बाद भी घाटा ब्रोकर का होगा। ऐसे में जहां निफ्टी 4,100 से नीचे फिसलेगा, आपका ब्रोकर आपको तुरंत मार्जिन जमा कराने को कहेगा। अगर निफ्टी के 4,000 तक आने तक आप रकम नहीं जमा करा सके, तो वह 4,000 पहुंचते ही सौदा काट देगा ताकि उसे दिए गए कर्ज की रकम वापस मिल जाए।
दरअसल नकद बाजार की तरह वायदा बाजार में कोई भी शेयर मनमानी संख्या में नहीं खरीदा जा सकता। एक्सचेंज यह तय करता है कि कौन सा शेयर कम से कम कितनी संख्या में खरीदा जा सकता है। इसी संख्या को लॉट कहते हैं। वायदा बाजार में कोई भी शेयर लॉट में ही खरीदा जाता है। वैसे तो इस बारे में कोई पक्का नियम नहीं है, लेकिन आम तौर पर एक लॉट शेयरों की कीमत 2 लाख रुपए के आसपास होती है। अभी हाल ही में एनएसई ने शेयरों के लॉट की समीक्षा की और लॉट में संख्या पहले के मुकाबले काफी कम की गई। इसका कारण यही था कि पिछले कुछ सालों की बढ़त के कारण एक-एक लॉट के शेयरों की कीमत 6-7 लाख रुपए तक पहुंच गई थी।
वायदा कारोबार में मार्जिन क्या होता है?
लॉट में शेयर खरीदना जाहिर है काफी महंगा होता है। इसलिए शेयर ब्रोकर अपने ग्राहकों को मार्जिन की सुविधा देते हैं। मार्जिन के तहत शेयरों की साख के लिहाज से एक खास प्रतिशत रकम निवेशक को देनी होती है, जबकि बाकी रकम ब्रोकर निवेशक को देता है। आम तौर पर निवेशकों को अलग-अलग शेयरों के लिहाज से 20-30 फीसदी मार्जिन रखना होता है, जबकि 70-80 फीसदी कर्ज ब्रोकर देता है।
लॉन्ग और शॉर्ट किसे कहते हैं?
लॉन्ग होना यानी कोई शेयर में खरीदारी करना और शॉर्ट करना यानी कोई शेयर आपके पास न हो, लेकिन ब्रोकर से कर्ज लेकर उसे बेचना।
मार्जिन कॉल क्या होती है?
मान लीजिए आपने 5,000 पर एक लॉट निफ्टी अप्रैल लॉन्ग किया। निफ्टी के एक लॉट में 50 इकाइयां होती हैं। यानी आपको पूरे लॉट के लिए 2,50,000 रुपए देने होंगे। अब आपका ब्रोकर आपको 30 फीसदी मार्जिन जमा करने को कहता है यानी आप 50 हजार रुपए जमा करते हैं। दो लाख रुपए ब्रोकर आपके पोजिशन पर आपको कर्ज देता है। अब बाजार गिरने लगा और निफ्टी अप्रैल पहुंच गया 4,000 हजार पर। यानी आपकी पोजिशन रह गई 2,00,000 रुपए की। अब यहां से अगर निफ्टी थोड़ा भी नीचे गया और आपने मार्जिन बढ़ाने से इंकार कर दिया, तो सौदा काटने के बाद भी घाटा ब्रोकर का होगा। ऐसे में जहां निफ्टी 4,100 से नीचे फिसलेगा, आपका ब्रोकर आपको तुरंत मार्जिन जमा कराने को कहेगा। अगर निफ्टी के 4,000 तक आने तक आप रकम नहीं जमा करा सके, तो वह 4,000 पहुंचते ही सौदा काट देगा ताकि उसे दिए गए कर्ज की रकम वापस मिल जाए।
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बायबैक का फंडा
किसी कंपनी के अपने शेयर दोबारा खरीदने के कदम को बायबैक कहा जाता है। ऐसा कर कंपनी खुले बाजार में उपलब्ध अपने शेयरों की संख्या घटाती है। इस कदम से आय प्रति शेयर (ईपीएस) में इजाफा होने के अलावा कंपनी की संपत्ति पर मिलने वाला रिटर्न भी बढ़ता है।
इनके असर से कंपनी की बैलेंस शीट भी बेहतर होती है। निवेशक के लिए बायबैक का मतलब है, कंपनी में उसकी हिस्सेदारी बढ़ना। शेयर बायबैक करने को कभी-कभार शेयर खरीदना कहा जाता है और आम तौर पर इसे शेयर की कीमत में उछाल का संकेत माना जाता है।
कैसा होता है बायबैक?
कंपनी टेंडर ऑफर या खुले बाजार में बायबैक से अपने शेयर वापस खरीद सकती है। पहले तरीके में कंपनी शेयरों की उन संख्या से जुड़े ब्योरे के साथ टेंडर ऑफर जारी करती है जिन्हें खरीदने की उसकी योजना है और प्राइस रेंज का संकेत देती है। ऑफर को स्वीकार करने में दिलचस्पी रखने वाले निवेशक को एक आवेदन भरकर जमा कराना होता है, जिसमें इसकी जानकारी होती है कि वह कितने शेयर टेंडर करना चाहता है और वांछित कीमत क्या है।
इस फॉर्म को कंपनी के पास वापस भेजना होता है। ज्यादातर मामलों में टेंडर ऑफर बायबैक की कीमत ओपन माकेर्ट में शेयर के दाम से ज्यादा होती है। सेबी के दिशा-निर्देशों के मुताबिक अगर कंपनी आपके शेयरों को स्वीकार करती है तो उसे आपको ऑफर क्लोज होने के 15 दिन के भीतर जानकारी देनी होगी। कंपनी के समक्ष दूसरा रूट यह होगा कि वह सीधे बाजार से धीरे-धीरे शेयरों को खरीदे।
कहां से मिली जानकारी?
बायबैक से जुड़ी तमाम जानकारी स्टॉक एक्सचेंज से मिल सकती है क्योंकि कंपनियों को ऐसे प्रस्तावों के बारे में सूचित करने की जरूरत होती है।
कंपनियां क्यों चुन रही है बायबैक का रास्ता?
इसकी कई वजह हो सकती हैं। कभी-कभी कंपनियां तब बायबैक में शामिल होती हैं जब उन्हें लगता है कि बाजार में शेयरों की कीमत काफी टूट रही है। दूसरे हालात में ज्यादा नकदी का इस्तेमाल कर ऐसा किया जा सकता है। हालांकि ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिखता कि कंपनी के टेकओवर से बचने के लिए ऐसा किया गया हो।
इनके असर से कंपनी की बैलेंस शीट भी बेहतर होती है। निवेशक के लिए बायबैक का मतलब है, कंपनी में उसकी हिस्सेदारी बढ़ना। शेयर बायबैक करने को कभी-कभार शेयर खरीदना कहा जाता है और आम तौर पर इसे शेयर की कीमत में उछाल का संकेत माना जाता है।
कैसा होता है बायबैक?
कंपनी टेंडर ऑफर या खुले बाजार में बायबैक से अपने शेयर वापस खरीद सकती है। पहले तरीके में कंपनी शेयरों की उन संख्या से जुड़े ब्योरे के साथ टेंडर ऑफर जारी करती है जिन्हें खरीदने की उसकी योजना है और प्राइस रेंज का संकेत देती है। ऑफर को स्वीकार करने में दिलचस्पी रखने वाले निवेशक को एक आवेदन भरकर जमा कराना होता है, जिसमें इसकी जानकारी होती है कि वह कितने शेयर टेंडर करना चाहता है और वांछित कीमत क्या है।
इस फॉर्म को कंपनी के पास वापस भेजना होता है। ज्यादातर मामलों में टेंडर ऑफर बायबैक की कीमत ओपन माकेर्ट में शेयर के दाम से ज्यादा होती है। सेबी के दिशा-निर्देशों के मुताबिक अगर कंपनी आपके शेयरों को स्वीकार करती है तो उसे आपको ऑफर क्लोज होने के 15 दिन के भीतर जानकारी देनी होगी। कंपनी के समक्ष दूसरा रूट यह होगा कि वह सीधे बाजार से धीरे-धीरे शेयरों को खरीदे।
कहां से मिली जानकारी?
बायबैक से जुड़ी तमाम जानकारी स्टॉक एक्सचेंज से मिल सकती है क्योंकि कंपनियों को ऐसे प्रस्तावों के बारे में सूचित करने की जरूरत होती है।
कंपनियां क्यों चुन रही है बायबैक का रास्ता?
इसकी कई वजह हो सकती हैं। कभी-कभी कंपनियां तब बायबैक में शामिल होती हैं जब उन्हें लगता है कि बाजार में शेयरों की कीमत काफी टूट रही है। दूसरे हालात में ज्यादा नकदी का इस्तेमाल कर ऐसा किया जा सकता है। हालांकि ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिखता कि कंपनी के टेकओवर से बचने के लिए ऐसा किया गया हो।
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शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग: कैसे पहचाने तेज भागने और गिरने वाले शेयर को
मुंबई: शेयर बाजार के प्रत्येक कारोबारी सत्र के बाद कुछ शेयर सबसे अधिक चढ़ने वाले और कुछ सबसे अधिक नुकसान उठाने वालों की कतार में पहुंच जाते हैं। कोई भी व्यक्ति ऐसे शेयरों को पहले से खरीदकर लाखों रुपए कमा सकता है जो बाजार में सबसे अधिक लाभ कमाने वाले शेयरों में हों लेकिन सही समय पर उचित शेयर खरीदने के लिए आपकी किस्मत तेज होनी चाहिए। आप कारोबारी रणनीतियों आधार पर भी अच्छे और खराब शेयर पहचान सकते हैं।
ईटी आपको कुछ ऐसी ही कारोबारी रणनीतियों के बारे में जानकारी दे रहा है। लेकिन उससे पहले शेयरों की कीमतों का ट्रेंड समझना जरूरी है। यह ट्रेंड या तो कुछ दिनों तक जारी रहता है या फिर प्रत्येक दूसरे दिन बदल जाता है। शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के बारे में जानने के लिए अगला बटन पर क्लिक करें....
ये मुमकिन है: 3 महीने में 100 रुपए से बनाए जा सकते हैं 2 करोड़ रु
इन 10 शेयरों में काटी जा सकती है मलाई
बाजार की तेजी से धोखे न खा
हुत से मामलों में उतार या चढ़ाव का ट्रेंड कुछ दिनों तक चलता है। उदाहरण के लिए सुंदरम ब्रेक लाइनिंग्स दो जून, 2009 को एनएसई पर सबसे अधिक गिरने वाले शेयरों में शामिल था और अगले कुछ दिनों तक इसमें गिरावट जारी रही। यह चार जून को 165 रुपए पर बंद हुआ जबकि तीन दिन पहले इसका दाम 200 रुपए था। इसी तरह एसकेएम एग प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट 27 मई, 2009 को सबसे अधिक चढ़ने वाले शेयरों में शुमार था और इसमें तेजी 1 जून तक जारी रही। इस दिन यह 29 रुपए पर बंद हुआ।
टॉरस असेट मैनेजमेंट के एमडी आर के गुप्ता का कहना है कि ऐसे शेयरों को लंबी अवधि के नजरिए से नहीं खरीदना चाहिए। इनमें कम समय का निवेश बेहतर रहता है।...कीमत की चाल और वॉल्यूम का कैसे रखें ध्यान...
ये मुमकिन है: 3 महीने में 100 रुपए से बनाए जा सकते हैं 2 करोड़ रु
इन 10 शेयरों में काटी जा सकती है मलाई
किसी भी फैसले से पहले दो बातों- कीमत की चाल और ट्रेडिंग वॉल्यूम पर ध्यान देना चाहिए। अगर किसी शेयर का दाम ऊपर जा रहा है और इसमें कारोबार की मात्रा भी अधिक है तो यह चलन अगले कुछ दिनों तक जारी रह सकता है। इसी तरह दाम घटने और वॉल्यूम अधिक होने से कीमत और गिरने की संभावना रहती है। अगर आप किसी शेयर में ज्यादा वॉल्यूम देखते हैं तो उसमें पोजीशन ली जा सकती है। इसका मतलब है कि अगर दाम चढ़ रहा हो तो आप उसे खरीद सकते हैं।
अगर आपके पास किसी कंपनी का शेयर मौजूद है और दाम बढ़ने की वजह से आप इसमें मुनाफावसूली करना चाहते हैं तो आपको उस शेयर की वॉल्यूम पर नजर डालनी चाहिए। अगर कीमतें चढ़ने के साथ वॉल्यूम भी अधिक है तो सभी शेयर एक साथ न बेचें। आप इसमें धीरे-धीरे मुनाफावसूली कर सकते हैं। इसी तरह अगर दाम बहुत अधिक गिर रहे हैं तो आपको मूल्यांकन आकर्षक होने के बावजूद खरीदारी को लेकर जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। इसके लिए दाम और गिरने और ट्रेंड बदलने का इंतजार करना चाहिए।
हुत से मामलों में साइकल बहुत कम समय का होता है। एक कंपनी अगर आज सबसे अधिक चढ़ने वाले शेयरों में शामिल है तो अगले दिन सबसे नुकसान वाले शेयरों की सूची में आ सकती है। उदाहरण के लिए रैनबैक्सी लेबोरेटरीज का शेयर 25 मई, 2009 को 21 फीसदी चढ़ा था लेकिन अगले ही दिन इसमें आठ फीसदी की गिरावट दर्ज की गई और यह 244 रुपए पर बंद हुआ था। ऐसे मामलों से बचने के लिए स्टॉप लॉस का विकल्प रामबाण का काम करता है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सविर्सेज के सीएमडी मोतीलाल ओसवाल का कहना है, 'लगभग 90 फीसदी निवेशक स्टॉप लॉस नहीं लगाते। शेयर बाजार में वही विजेता होते हैं जो स्टॉप लॉस के विकल्प का इस्तेमाल करते हैं।'
शेयरों की कीमतों को लेकर फंडामेंटल और बाजार के असर को अलग रखना चाहिए। गुप्ता का कहना है, 'अगर कोई निवेशक कम अवधि में धन कमाना चाहता है तो उसे फंडामेंटल पर ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि फंडामेंटल के आधार पर लंबी अवधि में ही फायदा होता है।'
ईटी आपको कुछ ऐसी ही कारोबारी रणनीतियों के बारे में जानकारी दे रहा है। लेकिन उससे पहले शेयरों की कीमतों का ट्रेंड समझना जरूरी है। यह ट्रेंड या तो कुछ दिनों तक जारी रहता है या फिर प्रत्येक दूसरे दिन बदल जाता है। शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के बारे में जानने के लिए अगला बटन पर क्लिक करें....
ये मुमकिन है: 3 महीने में 100 रुपए से बनाए जा सकते हैं 2 करोड़ रु
इन 10 शेयरों में काटी जा सकती है मलाई
बाजार की तेजी से धोखे न खा
हुत से मामलों में उतार या चढ़ाव का ट्रेंड कुछ दिनों तक चलता है। उदाहरण के लिए सुंदरम ब्रेक लाइनिंग्स दो जून, 2009 को एनएसई पर सबसे अधिक गिरने वाले शेयरों में शामिल था और अगले कुछ दिनों तक इसमें गिरावट जारी रही। यह चार जून को 165 रुपए पर बंद हुआ जबकि तीन दिन पहले इसका दाम 200 रुपए था। इसी तरह एसकेएम एग प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट 27 मई, 2009 को सबसे अधिक चढ़ने वाले शेयरों में शुमार था और इसमें तेजी 1 जून तक जारी रही। इस दिन यह 29 रुपए पर बंद हुआ।
टॉरस असेट मैनेजमेंट के एमडी आर के गुप्ता का कहना है कि ऐसे शेयरों को लंबी अवधि के नजरिए से नहीं खरीदना चाहिए। इनमें कम समय का निवेश बेहतर रहता है।...कीमत की चाल और वॉल्यूम का कैसे रखें ध्यान...
ये मुमकिन है: 3 महीने में 100 रुपए से बनाए जा सकते हैं 2 करोड़ रु
इन 10 शेयरों में काटी जा सकती है मलाई
किसी भी फैसले से पहले दो बातों- कीमत की चाल और ट्रेडिंग वॉल्यूम पर ध्यान देना चाहिए। अगर किसी शेयर का दाम ऊपर जा रहा है और इसमें कारोबार की मात्रा भी अधिक है तो यह चलन अगले कुछ दिनों तक जारी रह सकता है। इसी तरह दाम घटने और वॉल्यूम अधिक होने से कीमत और गिरने की संभावना रहती है। अगर आप किसी शेयर में ज्यादा वॉल्यूम देखते हैं तो उसमें पोजीशन ली जा सकती है। इसका मतलब है कि अगर दाम चढ़ रहा हो तो आप उसे खरीद सकते हैं।
अगर आपके पास किसी कंपनी का शेयर मौजूद है और दाम बढ़ने की वजह से आप इसमें मुनाफावसूली करना चाहते हैं तो आपको उस शेयर की वॉल्यूम पर नजर डालनी चाहिए। अगर कीमतें चढ़ने के साथ वॉल्यूम भी अधिक है तो सभी शेयर एक साथ न बेचें। आप इसमें धीरे-धीरे मुनाफावसूली कर सकते हैं। इसी तरह अगर दाम बहुत अधिक गिर रहे हैं तो आपको मूल्यांकन आकर्षक होने के बावजूद खरीदारी को लेकर जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। इसके लिए दाम और गिरने और ट्रेंड बदलने का इंतजार करना चाहिए।
हुत से मामलों में साइकल बहुत कम समय का होता है। एक कंपनी अगर आज सबसे अधिक चढ़ने वाले शेयरों में शामिल है तो अगले दिन सबसे नुकसान वाले शेयरों की सूची में आ सकती है। उदाहरण के लिए रैनबैक्सी लेबोरेटरीज का शेयर 25 मई, 2009 को 21 फीसदी चढ़ा था लेकिन अगले ही दिन इसमें आठ फीसदी की गिरावट दर्ज की गई और यह 244 रुपए पर बंद हुआ था। ऐसे मामलों से बचने के लिए स्टॉप लॉस का विकल्प रामबाण का काम करता है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सविर्सेज के सीएमडी मोतीलाल ओसवाल का कहना है, 'लगभग 90 फीसदी निवेशक स्टॉप लॉस नहीं लगाते। शेयर बाजार में वही विजेता होते हैं जो स्टॉप लॉस के विकल्प का इस्तेमाल करते हैं।'
शेयरों की कीमतों को लेकर फंडामेंटल और बाजार के असर को अलग रखना चाहिए। गुप्ता का कहना है, 'अगर कोई निवेशक कम अवधि में धन कमाना चाहता है तो उसे फंडामेंटल पर ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि फंडामेंटल के आधार पर लंबी अवधि में ही फायदा होता है।'
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