टीवी देखते रहते हैं अटल : अटलजी 2004 के बाद गिने-चुने सार्वजनिक आयोजनों में ही देखे गए हैं। तीन साल से कुछ लिखा नहीं, दो साल से कुछ बोले नहीं हैं। गजब की भाषण कला ही तो उनकी पहचान रही है पर वे अब 'मौन' हैं। पैरालिसिस ने उनकी वाणी को विराम भले ही दे दिया हो मगर वे चैतन्य हैं। इशारों में संवाद करते हैं। 20 सालों में करीब दस सर्जरी हुई हैं उनकी। डॉक्टरों की मौजूदगी में नियमित फिजियोथेरेपी के बाद ज्यादा वक्त टीवी के सामने गुजरता है। संसद की कार्यवाही देखते हैं, लेकिन सांसदों का हंगामा देख उन्हें नागवार गुजरता है। ऐसे में वह तत्काल चैनल बदलवा देते हैं। उनके सबसे करीबी सहयोगी शिवकुमार बताते हैं कि ऐसे में वे गाने सुनने लगते हैं। इंडियन आयडल जैसे कार्यक्रम उन्हें खास पसंद हैं।
50 साल से अटलजी की निजी सेवा में लगे शिव कुमार कहते हैं, 'अटलजी ने कभी व्हीलचेयर पर लोगों के सामने आना गवारा नहीं किया। वे बोल नहीं सकते पर हम उनका हर इशारा समझते हैं।' 2004 के बाद अटलजी की ख्वाहिश काश्मीर पर कुछ लिखने की जरूर रही। एनडीए जब सत्ता से बाहर हुआ तो वे मनाली में थे। वहां भी उन्होंने अपनों के बीच कहा कि अब कश्मीर पर काम करने के लिए मेरे पास वक्त रहेगा। काफी पहले श्यामाप्रसाद मुखर्जी पर उन्होंने किताब भी लिखी थी-मृत्यु या हत्या। कई बार उनके करीबियों ने बायोग्राफी पर काम करने की सलाह दी लेकिन अटलजी ने हर बार मुस्कराकर टाल दिया। वे कहते,'मेरी प्राथमिकता कश्मीर पर कुछ लिखना जरूर है।'
बतौर प्रधानमंत्री उनके मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन को याद है कि तीन साल पहले तक वे कश्मीर पर काम भी कर रहे थे। टंडन कहते हैं कि मुमकिन है कोई दस्तावेज बना भी हो। मध्यप्रदेश में भाजपा दूसरी दफा सत्ता में लौटी तो मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, अनिल माधव दवे, अनूप मिश्रा और संगठन के कुछ नेता आशीर्वाद के लिए आए। मोतीचूर के लड्डू लेकर आए। चौहान आधा लड्डू तोड़कर अटलजी को खिलाने लगे तो खानपान के शौकीन अटलजी ने उन्हें वहीं टोक दिया, 'आधा नहीं। पूरा खाऊंगा।' उन्होंने पूरा लड्डू ही खाया। तस्वीरें खिंचवाईं। सब चुनावी अपडेट देते रहे। वे मुस्कराते रहे बस। कुछ बोले नहीं। दवे याद करते हैं कि किसी के आने पर इससे पहले अटलजी हॉल में खुद चलकर आया करते थे। पहली बार हमने उन्हें पहले से कुर्सी पर बैठे हुए देखा।
मुंबई में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति आखिरी आयोजन था, जिसमें वे शरीक हुए। वे व्हील चेअर पर आए थे। सब उन्हें सुनने के लिए बेताब थे। सिर्फ एक पंक्ति का ही भाषण हुआ। यह पहला मौका था, जब उन्होंने इतना संक्षिप्त उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा था,'यह परिवर्तन का काल है।'