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Jan 25, 2011
सिर्फ 14 हजार लगाकर खड़ा कर लिया करोड़ों का बिजनेस
अगर आपसे कहा जाए की महज 14 हजार रुपए का इस्तेमाल कर के करोडों का कारोबार कीजिए तो आपको ये नामुमकिन सा लगेगा। लेकिन यह कारनामा विनीत वाजपेयी नाम के शख्स ने कर दिखाया है। सिर्फ 14,000 रुपये और दो किराये पर लिए हुए कंप्यूटर की बदौलत आज वे देश की सबसे बड़ी डिजिटल मीडिया कंपनी खड़ी कर चुके हैं। इनकी कंपनी मैग्नानॅ साल्यूशंस के ग्राहकों में भारती, महिंद्रा एंड महिंद्रा, एचसीएल, मारुति और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज जैसी कई बड़ी भारतीय कंपनियां शामिल हैं। दुनिया भर में इस कंपनी के ग्राहकों में 600 से अधिक कंपनियां शामिल हैं। वाजपेयी बताते हैं, “जब मैंने कारोबार शुरू किया था, उस समय मुझे यह बताने वाला कोई नहीं था कि क्या सही है और क्या गलत। मैंने काम करते-करते सब सीखा। कई बार मैंने ऐसी गलतियां भी कीं, जिनसे मुझे झटका लगा।” आज वाजपेयी 33 साल के हैं। 22 साल की उम्र में उन्होंने अपने कारोबार की शुरूआत की थी। वे खुद बताते हैं कि जब उन्होंने कारोबार शुरु किय था उस समय उनके पास सिर्फ 14,000 रुपये थे, जो उन्होंने गर्मी की छुटिटयों में पार्टटाइम नौकरी कर के बचाए थे। अब वाजपेयी अपने कारोबारी जीवन के इस बेहतरीन अनुभव को लेकर किताब लिखने का मन बना रहे हैं।
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G.K.,
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Oct 1, 2010
वायदा कारोबार क्या होता है?
आपने कभी किसी को कुछ देने का वादा तो किया ही होगा। यह वादा ही इस कारोबार का आधार है। मान लीजिए आपके
पास शेयर खरीदने के लिए पूरे पैसे नहीं हैं, मगर शेयर के दाम काफी नीचे चल रहे हैं। आप क्या करेंगे? आप शेयर बेचने वाले से वादा करते हैं कि कुछ पैसे अभी ले लो, बाकी कुछ दिनों बाद ले लेना। पूरा पैसा देकर, पूरे शेयर ले लूंगा। यही वादा कारोबार है।
आपने 100 शेयर खरीदे। कुल कीमत करीब 10 हजार रुपये है। आपने 10 या 15 फीसदी मार्जिन मनी शेयर बेचने वाले को दे दी। तय हुआ कि 30 दिन बाद आप बाकी रकम दे देंगे। आप जैसे ही पूरी रकम देंगे, शेयर आपके नाम हो जाएगा। इस तरह का कारोबार ही वायदा कारोबार कहलाता है। अब शेयरों के साथ उपभोक्ता वस्तुओं और अमेरिकी डॉलरों का भी वायदा कारोबार शुरू हो गया है। डॉलर का वायदा कारोबार शेयर बाजार में होता है, जबकि उपभोक्ता वस्तुओं का कमोडिटी एक्सचेंजों में।
वायदा का फायदा: पूरा पैसा न होने के बावजूद भी खरीदारी संभव है। इससे बाजार में मनी फ्लो बना रहता है, जिसे तकनीकी भाषा में लिक्विडिटी कहा जाता है। पैसे की कमी के कारण बाजार में कारोबार नहीं रुकता। प्लानिंग करने में आसानी होती है। शेयर अगर नीचे गिर रहे हैं, तो वायदा कारोबार काफी फायदेमंद होता है। आप निचले दामों पर शेयर खरीदकर बाद में बेचने की प्लानिंग कर सकते हैं। अगर आपको तीन माह बाद कारोबार या विदेश जाने के लिए डॉलर की जरूरत है, तो पहले से वायदा कारोबार के जरिए उसे बुक कर सकते हैं। उपभोक्ता वस्तुओं में भी ऐसा किया जा सकता है।
पास शेयर खरीदने के लिए पूरे पैसे नहीं हैं, मगर शेयर के दाम काफी नीचे चल रहे हैं। आप क्या करेंगे? आप शेयर बेचने वाले से वादा करते हैं कि कुछ पैसे अभी ले लो, बाकी कुछ दिनों बाद ले लेना। पूरा पैसा देकर, पूरे शेयर ले लूंगा। यही वादा कारोबार है।
आपने 100 शेयर खरीदे। कुल कीमत करीब 10 हजार रुपये है। आपने 10 या 15 फीसदी मार्जिन मनी शेयर बेचने वाले को दे दी। तय हुआ कि 30 दिन बाद आप बाकी रकम दे देंगे। आप जैसे ही पूरी रकम देंगे, शेयर आपके नाम हो जाएगा। इस तरह का कारोबार ही वायदा कारोबार कहलाता है। अब शेयरों के साथ उपभोक्ता वस्तुओं और अमेरिकी डॉलरों का भी वायदा कारोबार शुरू हो गया है। डॉलर का वायदा कारोबार शेयर बाजार में होता है, जबकि उपभोक्ता वस्तुओं का कमोडिटी एक्सचेंजों में।
वायदा का फायदा: पूरा पैसा न होने के बावजूद भी खरीदारी संभव है। इससे बाजार में मनी फ्लो बना रहता है, जिसे तकनीकी भाषा में लिक्विडिटी कहा जाता है। पैसे की कमी के कारण बाजार में कारोबार नहीं रुकता। प्लानिंग करने में आसानी होती है। शेयर अगर नीचे गिर रहे हैं, तो वायदा कारोबार काफी फायदेमंद होता है। आप निचले दामों पर शेयर खरीदकर बाद में बेचने की प्लानिंग कर सकते हैं। अगर आपको तीन माह बाद कारोबार या विदेश जाने के लिए डॉलर की जरूरत है, तो पहले से वायदा कारोबार के जरिए उसे बुक कर सकते हैं। उपभोक्ता वस्तुओं में भी ऐसा किया जा सकता है।
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लॉट क्या होता है और क्या होती है मार्जिन कॉल?
लॉट क्या होता है?
दरअसल नकद बाजार की तरह वायदा बाजार में कोई भी शेयर मनमानी संख्या में नहीं खरीदा जा सकता। एक्सचेंज यह तय करता है कि कौन सा शेयर कम से कम कितनी संख्या में खरीदा जा सकता है। इसी संख्या को लॉट कहते हैं। वायदा बाजार में कोई भी शेयर लॉट में ही खरीदा जाता है। वैसे तो इस बारे में कोई पक्का नियम नहीं है, लेकिन आम तौर पर एक लॉट शेयरों की कीमत 2 लाख रुपए के आसपास होती है। अभी हाल ही में एनएसई ने शेयरों के लॉट की समीक्षा की और लॉट में संख्या पहले के मुकाबले काफी कम की गई। इसका कारण यही था कि पिछले कुछ सालों की बढ़त के कारण एक-एक लॉट के शेयरों की कीमत 6-7 लाख रुपए तक पहुंच गई थी।
वायदा कारोबार में मार्जिन क्या होता है?
लॉट में शेयर खरीदना जाहिर है काफी महंगा होता है। इसलिए शेयर ब्रोकर अपने ग्राहकों को मार्जिन की सुविधा देते हैं। मार्जिन के तहत शेयरों की साख के लिहाज से एक खास प्रतिशत रकम निवेशक को देनी होती है, जबकि बाकी रकम ब्रोकर निवेशक को देता है। आम तौर पर निवेशकों को अलग-अलग शेयरों के लिहाज से 20-30 फीसदी मार्जिन रखना होता है, जबकि 70-80 फीसदी कर्ज ब्रोकर देता है।
लॉन्ग और शॉर्ट किसे कहते हैं?
लॉन्ग होना यानी कोई शेयर में खरीदारी करना और शॉर्ट करना यानी कोई शेयर आपके पास न हो, लेकिन ब्रोकर से कर्ज लेकर उसे बेचना।
मार्जिन कॉल क्या होती है?
मान लीजिए आपने 5,000 पर एक लॉट निफ्टी अप्रैल लॉन्ग किया। निफ्टी के एक लॉट में 50 इकाइयां होती हैं। यानी आपको पूरे लॉट के लिए 2,50,000 रुपए देने होंगे। अब आपका ब्रोकर आपको 30 फीसदी मार्जिन जमा करने को कहता है यानी आप 50 हजार रुपए जमा करते हैं। दो लाख रुपए ब्रोकर आपके पोजिशन पर आपको कर्ज देता है। अब बाजार गिरने लगा और निफ्टी अप्रैल पहुंच गया 4,000 हजार पर। यानी आपकी पोजिशन रह गई 2,00,000 रुपए की। अब यहां से अगर निफ्टी थोड़ा भी नीचे गया और आपने मार्जिन बढ़ाने से इंकार कर दिया, तो सौदा काटने के बाद भी घाटा ब्रोकर का होगा। ऐसे में जहां निफ्टी 4,100 से नीचे फिसलेगा, आपका ब्रोकर आपको तुरंत मार्जिन जमा कराने को कहेगा। अगर निफ्टी के 4,000 तक आने तक आप रकम नहीं जमा करा सके, तो वह 4,000 पहुंचते ही सौदा काट देगा ताकि उसे दिए गए कर्ज की रकम वापस मिल जाए।
दरअसल नकद बाजार की तरह वायदा बाजार में कोई भी शेयर मनमानी संख्या में नहीं खरीदा जा सकता। एक्सचेंज यह तय करता है कि कौन सा शेयर कम से कम कितनी संख्या में खरीदा जा सकता है। इसी संख्या को लॉट कहते हैं। वायदा बाजार में कोई भी शेयर लॉट में ही खरीदा जाता है। वैसे तो इस बारे में कोई पक्का नियम नहीं है, लेकिन आम तौर पर एक लॉट शेयरों की कीमत 2 लाख रुपए के आसपास होती है। अभी हाल ही में एनएसई ने शेयरों के लॉट की समीक्षा की और लॉट में संख्या पहले के मुकाबले काफी कम की गई। इसका कारण यही था कि पिछले कुछ सालों की बढ़त के कारण एक-एक लॉट के शेयरों की कीमत 6-7 लाख रुपए तक पहुंच गई थी।
वायदा कारोबार में मार्जिन क्या होता है?
लॉट में शेयर खरीदना जाहिर है काफी महंगा होता है। इसलिए शेयर ब्रोकर अपने ग्राहकों को मार्जिन की सुविधा देते हैं। मार्जिन के तहत शेयरों की साख के लिहाज से एक खास प्रतिशत रकम निवेशक को देनी होती है, जबकि बाकी रकम ब्रोकर निवेशक को देता है। आम तौर पर निवेशकों को अलग-अलग शेयरों के लिहाज से 20-30 फीसदी मार्जिन रखना होता है, जबकि 70-80 फीसदी कर्ज ब्रोकर देता है।
लॉन्ग और शॉर्ट किसे कहते हैं?
लॉन्ग होना यानी कोई शेयर में खरीदारी करना और शॉर्ट करना यानी कोई शेयर आपके पास न हो, लेकिन ब्रोकर से कर्ज लेकर उसे बेचना।
मार्जिन कॉल क्या होती है?
मान लीजिए आपने 5,000 पर एक लॉट निफ्टी अप्रैल लॉन्ग किया। निफ्टी के एक लॉट में 50 इकाइयां होती हैं। यानी आपको पूरे लॉट के लिए 2,50,000 रुपए देने होंगे। अब आपका ब्रोकर आपको 30 फीसदी मार्जिन जमा करने को कहता है यानी आप 50 हजार रुपए जमा करते हैं। दो लाख रुपए ब्रोकर आपके पोजिशन पर आपको कर्ज देता है। अब बाजार गिरने लगा और निफ्टी अप्रैल पहुंच गया 4,000 हजार पर। यानी आपकी पोजिशन रह गई 2,00,000 रुपए की। अब यहां से अगर निफ्टी थोड़ा भी नीचे गया और आपने मार्जिन बढ़ाने से इंकार कर दिया, तो सौदा काटने के बाद भी घाटा ब्रोकर का होगा। ऐसे में जहां निफ्टी 4,100 से नीचे फिसलेगा, आपका ब्रोकर आपको तुरंत मार्जिन जमा कराने को कहेगा। अगर निफ्टी के 4,000 तक आने तक आप रकम नहीं जमा करा सके, तो वह 4,000 पहुंचते ही सौदा काट देगा ताकि उसे दिए गए कर्ज की रकम वापस मिल जाए।
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बायबैक का फंडा
किसी कंपनी के अपने शेयर दोबारा खरीदने के कदम को बायबैक कहा जाता है। ऐसा कर कंपनी खुले बाजार में उपलब्ध अपने शेयरों की संख्या घटाती है। इस कदम से आय प्रति शेयर (ईपीएस) में इजाफा होने के अलावा कंपनी की संपत्ति पर मिलने वाला रिटर्न भी बढ़ता है।
इनके असर से कंपनी की बैलेंस शीट भी बेहतर होती है। निवेशक के लिए बायबैक का मतलब है, कंपनी में उसकी हिस्सेदारी बढ़ना। शेयर बायबैक करने को कभी-कभार शेयर खरीदना कहा जाता है और आम तौर पर इसे शेयर की कीमत में उछाल का संकेत माना जाता है।
कैसा होता है बायबैक?
कंपनी टेंडर ऑफर या खुले बाजार में बायबैक से अपने शेयर वापस खरीद सकती है। पहले तरीके में कंपनी शेयरों की उन संख्या से जुड़े ब्योरे के साथ टेंडर ऑफर जारी करती है जिन्हें खरीदने की उसकी योजना है और प्राइस रेंज का संकेत देती है। ऑफर को स्वीकार करने में दिलचस्पी रखने वाले निवेशक को एक आवेदन भरकर जमा कराना होता है, जिसमें इसकी जानकारी होती है कि वह कितने शेयर टेंडर करना चाहता है और वांछित कीमत क्या है।
इस फॉर्म को कंपनी के पास वापस भेजना होता है। ज्यादातर मामलों में टेंडर ऑफर बायबैक की कीमत ओपन माकेर्ट में शेयर के दाम से ज्यादा होती है। सेबी के दिशा-निर्देशों के मुताबिक अगर कंपनी आपके शेयरों को स्वीकार करती है तो उसे आपको ऑफर क्लोज होने के 15 दिन के भीतर जानकारी देनी होगी। कंपनी के समक्ष दूसरा रूट यह होगा कि वह सीधे बाजार से धीरे-धीरे शेयरों को खरीदे।
कहां से मिली जानकारी?
बायबैक से जुड़ी तमाम जानकारी स्टॉक एक्सचेंज से मिल सकती है क्योंकि कंपनियों को ऐसे प्रस्तावों के बारे में सूचित करने की जरूरत होती है।
कंपनियां क्यों चुन रही है बायबैक का रास्ता?
इसकी कई वजह हो सकती हैं। कभी-कभी कंपनियां तब बायबैक में शामिल होती हैं जब उन्हें लगता है कि बाजार में शेयरों की कीमत काफी टूट रही है। दूसरे हालात में ज्यादा नकदी का इस्तेमाल कर ऐसा किया जा सकता है। हालांकि ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिखता कि कंपनी के टेकओवर से बचने के लिए ऐसा किया गया हो।
इनके असर से कंपनी की बैलेंस शीट भी बेहतर होती है। निवेशक के लिए बायबैक का मतलब है, कंपनी में उसकी हिस्सेदारी बढ़ना। शेयर बायबैक करने को कभी-कभार शेयर खरीदना कहा जाता है और आम तौर पर इसे शेयर की कीमत में उछाल का संकेत माना जाता है।
कैसा होता है बायबैक?
कंपनी टेंडर ऑफर या खुले बाजार में बायबैक से अपने शेयर वापस खरीद सकती है। पहले तरीके में कंपनी शेयरों की उन संख्या से जुड़े ब्योरे के साथ टेंडर ऑफर जारी करती है जिन्हें खरीदने की उसकी योजना है और प्राइस रेंज का संकेत देती है। ऑफर को स्वीकार करने में दिलचस्पी रखने वाले निवेशक को एक आवेदन भरकर जमा कराना होता है, जिसमें इसकी जानकारी होती है कि वह कितने शेयर टेंडर करना चाहता है और वांछित कीमत क्या है।
इस फॉर्म को कंपनी के पास वापस भेजना होता है। ज्यादातर मामलों में टेंडर ऑफर बायबैक की कीमत ओपन माकेर्ट में शेयर के दाम से ज्यादा होती है। सेबी के दिशा-निर्देशों के मुताबिक अगर कंपनी आपके शेयरों को स्वीकार करती है तो उसे आपको ऑफर क्लोज होने के 15 दिन के भीतर जानकारी देनी होगी। कंपनी के समक्ष दूसरा रूट यह होगा कि वह सीधे बाजार से धीरे-धीरे शेयरों को खरीदे।
कहां से मिली जानकारी?
बायबैक से जुड़ी तमाम जानकारी स्टॉक एक्सचेंज से मिल सकती है क्योंकि कंपनियों को ऐसे प्रस्तावों के बारे में सूचित करने की जरूरत होती है।
कंपनियां क्यों चुन रही है बायबैक का रास्ता?
इसकी कई वजह हो सकती हैं। कभी-कभी कंपनियां तब बायबैक में शामिल होती हैं जब उन्हें लगता है कि बाजार में शेयरों की कीमत काफी टूट रही है। दूसरे हालात में ज्यादा नकदी का इस्तेमाल कर ऐसा किया जा सकता है। हालांकि ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिखता कि कंपनी के टेकओवर से बचने के लिए ऐसा किया गया हो।
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शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग: कैसे पहचाने तेज भागने और गिरने वाले शेयर को
मुंबई: शेयर बाजार के प्रत्येक कारोबारी सत्र के बाद कुछ शेयर सबसे अधिक चढ़ने वाले और कुछ सबसे अधिक नुकसान उठाने वालों की कतार में पहुंच जाते हैं। कोई भी व्यक्ति ऐसे शेयरों को पहले से खरीदकर लाखों रुपए कमा सकता है जो बाजार में सबसे अधिक लाभ कमाने वाले शेयरों में हों लेकिन सही समय पर उचित शेयर खरीदने के लिए आपकी किस्मत तेज होनी चाहिए। आप कारोबारी रणनीतियों आधार पर भी अच्छे और खराब शेयर पहचान सकते हैं।
ईटी आपको कुछ ऐसी ही कारोबारी रणनीतियों के बारे में जानकारी दे रहा है। लेकिन उससे पहले शेयरों की कीमतों का ट्रेंड समझना जरूरी है। यह ट्रेंड या तो कुछ दिनों तक जारी रहता है या फिर प्रत्येक दूसरे दिन बदल जाता है। शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के बारे में जानने के लिए अगला बटन पर क्लिक करें....
ये मुमकिन है: 3 महीने में 100 रुपए से बनाए जा सकते हैं 2 करोड़ रु
इन 10 शेयरों में काटी जा सकती है मलाई
बाजार की तेजी से धोखे न खा
हुत से मामलों में उतार या चढ़ाव का ट्रेंड कुछ दिनों तक चलता है। उदाहरण के लिए सुंदरम ब्रेक लाइनिंग्स दो जून, 2009 को एनएसई पर सबसे अधिक गिरने वाले शेयरों में शामिल था और अगले कुछ दिनों तक इसमें गिरावट जारी रही। यह चार जून को 165 रुपए पर बंद हुआ जबकि तीन दिन पहले इसका दाम 200 रुपए था। इसी तरह एसकेएम एग प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट 27 मई, 2009 को सबसे अधिक चढ़ने वाले शेयरों में शुमार था और इसमें तेजी 1 जून तक जारी रही। इस दिन यह 29 रुपए पर बंद हुआ।
टॉरस असेट मैनेजमेंट के एमडी आर के गुप्ता का कहना है कि ऐसे शेयरों को लंबी अवधि के नजरिए से नहीं खरीदना चाहिए। इनमें कम समय का निवेश बेहतर रहता है।...कीमत की चाल और वॉल्यूम का कैसे रखें ध्यान...
ये मुमकिन है: 3 महीने में 100 रुपए से बनाए जा सकते हैं 2 करोड़ रु
इन 10 शेयरों में काटी जा सकती है मलाई
किसी भी फैसले से पहले दो बातों- कीमत की चाल और ट्रेडिंग वॉल्यूम पर ध्यान देना चाहिए। अगर किसी शेयर का दाम ऊपर जा रहा है और इसमें कारोबार की मात्रा भी अधिक है तो यह चलन अगले कुछ दिनों तक जारी रह सकता है। इसी तरह दाम घटने और वॉल्यूम अधिक होने से कीमत और गिरने की संभावना रहती है। अगर आप किसी शेयर में ज्यादा वॉल्यूम देखते हैं तो उसमें पोजीशन ली जा सकती है। इसका मतलब है कि अगर दाम चढ़ रहा हो तो आप उसे खरीद सकते हैं।
अगर आपके पास किसी कंपनी का शेयर मौजूद है और दाम बढ़ने की वजह से आप इसमें मुनाफावसूली करना चाहते हैं तो आपको उस शेयर की वॉल्यूम पर नजर डालनी चाहिए। अगर कीमतें चढ़ने के साथ वॉल्यूम भी अधिक है तो सभी शेयर एक साथ न बेचें। आप इसमें धीरे-धीरे मुनाफावसूली कर सकते हैं। इसी तरह अगर दाम बहुत अधिक गिर रहे हैं तो आपको मूल्यांकन आकर्षक होने के बावजूद खरीदारी को लेकर जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। इसके लिए दाम और गिरने और ट्रेंड बदलने का इंतजार करना चाहिए।
हुत से मामलों में साइकल बहुत कम समय का होता है। एक कंपनी अगर आज सबसे अधिक चढ़ने वाले शेयरों में शामिल है तो अगले दिन सबसे नुकसान वाले शेयरों की सूची में आ सकती है। उदाहरण के लिए रैनबैक्सी लेबोरेटरीज का शेयर 25 मई, 2009 को 21 फीसदी चढ़ा था लेकिन अगले ही दिन इसमें आठ फीसदी की गिरावट दर्ज की गई और यह 244 रुपए पर बंद हुआ था। ऐसे मामलों से बचने के लिए स्टॉप लॉस का विकल्प रामबाण का काम करता है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सविर्सेज के सीएमडी मोतीलाल ओसवाल का कहना है, 'लगभग 90 फीसदी निवेशक स्टॉप लॉस नहीं लगाते। शेयर बाजार में वही विजेता होते हैं जो स्टॉप लॉस के विकल्प का इस्तेमाल करते हैं।'
शेयरों की कीमतों को लेकर फंडामेंटल और बाजार के असर को अलग रखना चाहिए। गुप्ता का कहना है, 'अगर कोई निवेशक कम अवधि में धन कमाना चाहता है तो उसे फंडामेंटल पर ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि फंडामेंटल के आधार पर लंबी अवधि में ही फायदा होता है।'
ईटी आपको कुछ ऐसी ही कारोबारी रणनीतियों के बारे में जानकारी दे रहा है। लेकिन उससे पहले शेयरों की कीमतों का ट्रेंड समझना जरूरी है। यह ट्रेंड या तो कुछ दिनों तक जारी रहता है या फिर प्रत्येक दूसरे दिन बदल जाता है। शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के बारे में जानने के लिए अगला बटन पर क्लिक करें....
ये मुमकिन है: 3 महीने में 100 रुपए से बनाए जा सकते हैं 2 करोड़ रु
इन 10 शेयरों में काटी जा सकती है मलाई
बाजार की तेजी से धोखे न खा
हुत से मामलों में उतार या चढ़ाव का ट्रेंड कुछ दिनों तक चलता है। उदाहरण के लिए सुंदरम ब्रेक लाइनिंग्स दो जून, 2009 को एनएसई पर सबसे अधिक गिरने वाले शेयरों में शामिल था और अगले कुछ दिनों तक इसमें गिरावट जारी रही। यह चार जून को 165 रुपए पर बंद हुआ जबकि तीन दिन पहले इसका दाम 200 रुपए था। इसी तरह एसकेएम एग प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट 27 मई, 2009 को सबसे अधिक चढ़ने वाले शेयरों में शुमार था और इसमें तेजी 1 जून तक जारी रही। इस दिन यह 29 रुपए पर बंद हुआ।
टॉरस असेट मैनेजमेंट के एमडी आर के गुप्ता का कहना है कि ऐसे शेयरों को लंबी अवधि के नजरिए से नहीं खरीदना चाहिए। इनमें कम समय का निवेश बेहतर रहता है।...कीमत की चाल और वॉल्यूम का कैसे रखें ध्यान...
ये मुमकिन है: 3 महीने में 100 रुपए से बनाए जा सकते हैं 2 करोड़ रु
इन 10 शेयरों में काटी जा सकती है मलाई
किसी भी फैसले से पहले दो बातों- कीमत की चाल और ट्रेडिंग वॉल्यूम पर ध्यान देना चाहिए। अगर किसी शेयर का दाम ऊपर जा रहा है और इसमें कारोबार की मात्रा भी अधिक है तो यह चलन अगले कुछ दिनों तक जारी रह सकता है। इसी तरह दाम घटने और वॉल्यूम अधिक होने से कीमत और गिरने की संभावना रहती है। अगर आप किसी शेयर में ज्यादा वॉल्यूम देखते हैं तो उसमें पोजीशन ली जा सकती है। इसका मतलब है कि अगर दाम चढ़ रहा हो तो आप उसे खरीद सकते हैं।
अगर आपके पास किसी कंपनी का शेयर मौजूद है और दाम बढ़ने की वजह से आप इसमें मुनाफावसूली करना चाहते हैं तो आपको उस शेयर की वॉल्यूम पर नजर डालनी चाहिए। अगर कीमतें चढ़ने के साथ वॉल्यूम भी अधिक है तो सभी शेयर एक साथ न बेचें। आप इसमें धीरे-धीरे मुनाफावसूली कर सकते हैं। इसी तरह अगर दाम बहुत अधिक गिर रहे हैं तो आपको मूल्यांकन आकर्षक होने के बावजूद खरीदारी को लेकर जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। इसके लिए दाम और गिरने और ट्रेंड बदलने का इंतजार करना चाहिए।
हुत से मामलों में साइकल बहुत कम समय का होता है। एक कंपनी अगर आज सबसे अधिक चढ़ने वाले शेयरों में शामिल है तो अगले दिन सबसे नुकसान वाले शेयरों की सूची में आ सकती है। उदाहरण के लिए रैनबैक्सी लेबोरेटरीज का शेयर 25 मई, 2009 को 21 फीसदी चढ़ा था लेकिन अगले ही दिन इसमें आठ फीसदी की गिरावट दर्ज की गई और यह 244 रुपए पर बंद हुआ था। ऐसे मामलों से बचने के लिए स्टॉप लॉस का विकल्प रामबाण का काम करता है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सविर्सेज के सीएमडी मोतीलाल ओसवाल का कहना है, 'लगभग 90 फीसदी निवेशक स्टॉप लॉस नहीं लगाते। शेयर बाजार में वही विजेता होते हैं जो स्टॉप लॉस के विकल्प का इस्तेमाल करते हैं।'
शेयरों की कीमतों को लेकर फंडामेंटल और बाजार के असर को अलग रखना चाहिए। गुप्ता का कहना है, 'अगर कोई निवेशक कम अवधि में धन कमाना चाहता है तो उसे फंडामेंटल पर ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि फंडामेंटल के आधार पर लंबी अवधि में ही फायदा होता है।'
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बीएसई पर शेयरों के कितने समूह हैं?
बीएसई पर कारोबार करने वाले शेयरों को ए, बी, टी, एस, टीएस और जेड समूहों में बांटा गया है। इनके अलावा
सिक्योरिटीज के वर्गीकरण के लिए कुछ समूह बनाए गए हैं, जिनमें एफ और जी शामिल हैं।
शेयरों को समूहों में क्यों बांटा जाता है?
आम तौर पर निवेशकों को हर शेयर के बारे पूरी जानकारी नहीं होती। उनकी मदद के लिए ही एक्सचेंज शेयरों को कुछ खास खूबियों या कमियों के आधार पर श्रेणियों में बांट देते हैं, ताकि निवेशकों को निवेश या ट्रेड करते समय उनके बारे में कुछ आधारभूत बातें समझ में आ जाएं।
समूहों में शेयरों का वर्गीकररण किस आधार पर किया जाता है?
शेयरों के वर्गीकरण के लिए उनकी बाजार पूंजी (एम कैप), ट्रेडिंग वॉल्यूम, नतीजे, इतिहास, मुनाफा, लाभांश, हिस्सेदारी और इसी तरह के कुछ मानकों का सहारा लिया जाता है। फरवरी 2008 में बीएसई ने शेयरों के वगीर्करण के लिए तय मानकों को अपडेट किया है।ए समूह के शेयरों को निवेशक और विश्लेषक सबसे भरोसेमंद मानते हैं। इस वर्ग में शामिल किए जाने के लिए जरूरी मानकों में सबसे महत्वपूर्ण बाजार पूंजीकरण है। इस समय ए समूह में कुल 216 शेयर शामिल हैं। एस समूह में बीएसई इंडोनेक्स्ट सूचकांक के शेयरों को शामिल किया गया है। इस सूचकांक का गठन बीएसई ने 7 जनवरी 2005 को किया था। एस ग्रुप में बी समूह के शेयर शामिल होते हैं और इसके अलावा 3 करोड़ रुपए से 30 करोड़ रुपए के बीच की पूंजी वाली कंपनियों, जो केवल क्षेत्रीय एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होती हैं, के शेयर भी एस का हिस्सा होते हैं।
जेड समूह में किस तरह के शेयर शामिल हैं?
जेड समूह के शेयर सबसे ज्यादा गैर भरोसेमंद होते हैं। बीएसई ने यह समूह 1999 में बनाया था। इसमें ऐसी कंपनियों के शेयरों को शामिल किया जाता है, जो सूचीबद्ध होते समय एक्सचेंज द्वारा तय नियमों का पालन करने में असफल रहती हैं। इसमें शेयरधारकों की समस्याओं के प्रति उदासीन और अपने शेयरों के डीमैटेरियलाइजेशन के लिए जरूरी प्रबंध करने में नाकाम रहने वाली कंपनियों को भी शामिल किया जाता है। जो शेयर ए, एस और जेड में शामिल नहीं होते, वे बी समूह में होते हैं। मार्च 2008 से पहले इस समूह के शेयर दो समूहों, बी1 और बी2 में बंटे थे, लेकिन अब इन्हें एक ग्रुप बना दिया गया है। टी समूह में वे शेयर होते हैं, जिन्हें ट्रेड-टू-ट्रेड आधार पर ही खरीदा-बेचा जा सकता है। टीएस समूह में उन्हें रखा गया है जो इंडोनेक्स्ट इंडेक्स में शामिल हैं और जिनमें ट्रेड-टू-ट्रेड आधार पर कारोबार होता है। एफ समूह के तहत तय आय वाले सिक्योरिटीज को रखा गया है और जी ग्रुप में सरकारी सिक्योरिटीज रखे जाते हैं।
सिक्योरिटीज के वर्गीकरण के लिए कुछ समूह बनाए गए हैं, जिनमें एफ और जी शामिल हैं।
शेयरों को समूहों में क्यों बांटा जाता है?
आम तौर पर निवेशकों को हर शेयर के बारे पूरी जानकारी नहीं होती। उनकी मदद के लिए ही एक्सचेंज शेयरों को कुछ खास खूबियों या कमियों के आधार पर श्रेणियों में बांट देते हैं, ताकि निवेशकों को निवेश या ट्रेड करते समय उनके बारे में कुछ आधारभूत बातें समझ में आ जाएं।
समूहों में शेयरों का वर्गीकररण किस आधार पर किया जाता है?
शेयरों के वर्गीकरण के लिए उनकी बाजार पूंजी (एम कैप), ट्रेडिंग वॉल्यूम, नतीजे, इतिहास, मुनाफा, लाभांश, हिस्सेदारी और इसी तरह के कुछ मानकों का सहारा लिया जाता है। फरवरी 2008 में बीएसई ने शेयरों के वगीर्करण के लिए तय मानकों को अपडेट किया है।ए समूह के शेयरों को निवेशक और विश्लेषक सबसे भरोसेमंद मानते हैं। इस वर्ग में शामिल किए जाने के लिए जरूरी मानकों में सबसे महत्वपूर्ण बाजार पूंजीकरण है। इस समय ए समूह में कुल 216 शेयर शामिल हैं। एस समूह में बीएसई इंडोनेक्स्ट सूचकांक के शेयरों को शामिल किया गया है। इस सूचकांक का गठन बीएसई ने 7 जनवरी 2005 को किया था। एस ग्रुप में बी समूह के शेयर शामिल होते हैं और इसके अलावा 3 करोड़ रुपए से 30 करोड़ रुपए के बीच की पूंजी वाली कंपनियों, जो केवल क्षेत्रीय एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होती हैं, के शेयर भी एस का हिस्सा होते हैं।
जेड समूह में किस तरह के शेयर शामिल हैं?
जेड समूह के शेयर सबसे ज्यादा गैर भरोसेमंद होते हैं। बीएसई ने यह समूह 1999 में बनाया था। इसमें ऐसी कंपनियों के शेयरों को शामिल किया जाता है, जो सूचीबद्ध होते समय एक्सचेंज द्वारा तय नियमों का पालन करने में असफल रहती हैं। इसमें शेयरधारकों की समस्याओं के प्रति उदासीन और अपने शेयरों के डीमैटेरियलाइजेशन के लिए जरूरी प्रबंध करने में नाकाम रहने वाली कंपनियों को भी शामिल किया जाता है। जो शेयर ए, एस और जेड में शामिल नहीं होते, वे बी समूह में होते हैं। मार्च 2008 से पहले इस समूह के शेयर दो समूहों, बी1 और बी2 में बंटे थे, लेकिन अब इन्हें एक ग्रुप बना दिया गया है। टी समूह में वे शेयर होते हैं, जिन्हें ट्रेड-टू-ट्रेड आधार पर ही खरीदा-बेचा जा सकता है। टीएस समूह में उन्हें रखा गया है जो इंडोनेक्स्ट इंडेक्स में शामिल हैं और जिनमें ट्रेड-टू-ट्रेड आधार पर कारोबार होता है। एफ समूह के तहत तय आय वाले सिक्योरिटीज को रखा गया है और जी ग्रुप में सरकारी सिक्योरिटीज रखे जाते हैं।
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इक्विटी निवेशकों के लिए क्यों महत्वपूर्ण होते हैं तिमाही नतीजे?
कंपनियों के तिमाही नतीजे घोषित करने का समय फिर आ गया है। इस बार जनवरी से मार्च की चौथी तिमाही का बही-खाता पेश किया जाएगा। इस वित्त वर्ष की तीन तिमाहियां बीत चुकी हैं और इस बार के नतीजे 2008-09 में मंदी के दौरान कंपनियों की आर्थिक स्थिति का लेखा-जोखा होंगे। विश्लेषक और निवेशक इनकी बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं क्योंकि कॉरपोरेट जगत पर मंदी के असर की जानकारी इनसे मिलेगी। इसके साथ ही यह भी पता चलेगा कि चुनौती के समय में प्रबंधन ने कितनी कुशलता से कारोबार को आगे बढ़ाया है।
क्या होते हैं तिमाही नतीजे?
तिमाही नतीजों के जरिए कंपनियां तीन महीनों के अपने प्रदर्शन की रिपोर्ट पेश करती हैं। स्टॉक एक्सचेंजों के साथ लिस्टिंग समझौते के तहत नतीजों की घोषणा करना कंपनियों के लिए जरूरी होता है। ये नतीजे जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में सार्वजनिक किए जाते हैं।
तिमाही आमदनी की घोषणाओं में आमतौर पर गैर ऑडिटेड वित्तीय नतीजे, तिमाही में कारोबार की स्थितियां और भविष्य में कारोबारी संभावनाओं का जिक्र होता है। आमदनी की रिपोर्ट में शुद्ध आय, प्रति शेयर आय, जारी कारोबार से आमदनी और शुद्ध बिक्री जैसी मद शामिल होती हैं। इससे कंपनी की वित्तीय स्थिति और कारोबारी माहौल को समझने में मदद मिलती है।
अगली तिमाहियों के अनुमान
कुछ कंपनियां इन नतीजों के साथ भविष्य के लिए अपने अनुमान भी जाहिर करती हैं। इन्हें गाइडेंस कहा जाता है। यह अगली तिमाही और वित्त वर्ष के लिए कारोबार के बारे में प्रबंधन का अनुमान होता है। कंपनी से वित्तीय उम्मीदें तय करने के लिए गाइडेंस हत्वपूर्ण होती है। अगर कंपनी की पिछली गाइडेंस और तिमाही नतीजे मेल खाते हैं तो इससे प्रबंधन की कुशलता का पता चलता है। अगर कंपनी के अनुमान और उसके नतीजों में बड़ा अंतर होता है तो इसका मतलब है कि प्रबंधन पर आप आगे भी ज्यादा भरोसा नहीं कर सकते। इन्हीं अनुमानों के आधार पर छोटी अवधि के निवेशक कई बार किसी कंपनी के शेयर खरीदने या बेचने का फैसला भी करते हैं।
कंपनी के प्रदर्शन का अक्स
तिमाही नतीजे कंपनी के प्रदर्शन का बड़ा संकेत देते हैं। इसी वजह से विश्लेषक और निवेशक इनका इंतजार करते हैं। आमतौर पर विश्लेषक अनुमानों के आधार पर अपनी उम्मीदें जाहिर करते हैं। इन सभी अनुमानों को मिलाकर कंपनी के प्रदर्शन को देखा जाता है। सच्चाई यह है कि आमदनी का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल होता है। कंपनी की आय को लेकर ब्रोकरेज हाउस के अनुमान हकीकत से कुछ अधिक हो सकते हैं। कंपनियों के लिए खुद भी इनकी सही भविष्यवाणी करना आसान नहीं होता।
नतीजों के सीजन के लिए निवेश की रणनीति
कंपनियों के नतीजे आने के साथ ही उनके शेयर के दाम पर भी इनका असर दिखने लगता है। अगर नतीजे उम्मीद से बेहतर रहते हैं तो शेयर की कीमत चढ़ती है लेकिन अगर ये अनुमानों से कम या करीब रहते हैं तो इनमें गिरावट भी आ सकती है। अगर किसी कंपनी के आंकड़े लगातार कई तिमाहियों तक उम्मीद से कम रहते हैं तो हो सकता है कि कंपनी समस्याओं का सामना कर रही हो। छोटी अवधि के निवेशक तिमाही नतीजों के आधार पर निवेश की रणनीति तैयार कर सकते हैं।
लंबी अवधि के निवेशक इन्हें देखकर यह अंदाजा लगा सकते हैं कि उनकी कंपनी कैसा कारोबार कर रही है। किसी शेयर को आंकने के लिए उसके पिछले नतीजों को देखना भी जरूरी होता है। अगर प्रबंधन ने वित्त वर्ष की अपनी कारोबारी योजना का खुलासा पहले ही कर दिया है तो तिमाही नतीजों से निवेशक को यह पता चलता है कि योजना किस दिशा में और कितनी गति से बढ़ रही है। निवेशकों को यह भी देखना चाहिए कि कहीं कंपनी ने आंकड़ों में कोई हेरफेर तो नहीं की है। उदाहरण के लिए कोई कंपनी मौजूदा तिमाही की आमदनी को जोड़कर उससे जुड़े खर्चों को अगली तिमाही में दिखाने के साथ अपना अधिक मुनाफा दिखाने की कोशिश कर सकती है। इसके अलावा वह अनुमानों पर पूरा उतरने के लिए तिमाही के अंत में उत्पादों को कम दाम पर भी बेच सकती है। ऐसा होने से कंपनी के वास्तविक प्रदर्शन का संकेत मिल पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
निवेशकों को तिमाही आंकड़ों की जानकारी समाचार पत्रों, बिजनेस चैनलों और कंपनी के वेबसाइट पर मिल सकती है।
क्या होते हैं तिमाही नतीजे?
तिमाही नतीजों के जरिए कंपनियां तीन महीनों के अपने प्रदर्शन की रिपोर्ट पेश करती हैं। स्टॉक एक्सचेंजों के साथ लिस्टिंग समझौते के तहत नतीजों की घोषणा करना कंपनियों के लिए जरूरी होता है। ये नतीजे जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में सार्वजनिक किए जाते हैं।
तिमाही आमदनी की घोषणाओं में आमतौर पर गैर ऑडिटेड वित्तीय नतीजे, तिमाही में कारोबार की स्थितियां और भविष्य में कारोबारी संभावनाओं का जिक्र होता है। आमदनी की रिपोर्ट में शुद्ध आय, प्रति शेयर आय, जारी कारोबार से आमदनी और शुद्ध बिक्री जैसी मद शामिल होती हैं। इससे कंपनी की वित्तीय स्थिति और कारोबारी माहौल को समझने में मदद मिलती है।
अगली तिमाहियों के अनुमान
कुछ कंपनियां इन नतीजों के साथ भविष्य के लिए अपने अनुमान भी जाहिर करती हैं। इन्हें गाइडेंस कहा जाता है। यह अगली तिमाही और वित्त वर्ष के लिए कारोबार के बारे में प्रबंधन का अनुमान होता है। कंपनी से वित्तीय उम्मीदें तय करने के लिए गाइडेंस हत्वपूर्ण होती है। अगर कंपनी की पिछली गाइडेंस और तिमाही नतीजे मेल खाते हैं तो इससे प्रबंधन की कुशलता का पता चलता है। अगर कंपनी के अनुमान और उसके नतीजों में बड़ा अंतर होता है तो इसका मतलब है कि प्रबंधन पर आप आगे भी ज्यादा भरोसा नहीं कर सकते। इन्हीं अनुमानों के आधार पर छोटी अवधि के निवेशक कई बार किसी कंपनी के शेयर खरीदने या बेचने का फैसला भी करते हैं।
कंपनी के प्रदर्शन का अक्स
तिमाही नतीजे कंपनी के प्रदर्शन का बड़ा संकेत देते हैं। इसी वजह से विश्लेषक और निवेशक इनका इंतजार करते हैं। आमतौर पर विश्लेषक अनुमानों के आधार पर अपनी उम्मीदें जाहिर करते हैं। इन सभी अनुमानों को मिलाकर कंपनी के प्रदर्शन को देखा जाता है। सच्चाई यह है कि आमदनी का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल होता है। कंपनी की आय को लेकर ब्रोकरेज हाउस के अनुमान हकीकत से कुछ अधिक हो सकते हैं। कंपनियों के लिए खुद भी इनकी सही भविष्यवाणी करना आसान नहीं होता।
नतीजों के सीजन के लिए निवेश की रणनीति
कंपनियों के नतीजे आने के साथ ही उनके शेयर के दाम पर भी इनका असर दिखने लगता है। अगर नतीजे उम्मीद से बेहतर रहते हैं तो शेयर की कीमत चढ़ती है लेकिन अगर ये अनुमानों से कम या करीब रहते हैं तो इनमें गिरावट भी आ सकती है। अगर किसी कंपनी के आंकड़े लगातार कई तिमाहियों तक उम्मीद से कम रहते हैं तो हो सकता है कि कंपनी समस्याओं का सामना कर रही हो। छोटी अवधि के निवेशक तिमाही नतीजों के आधार पर निवेश की रणनीति तैयार कर सकते हैं।
लंबी अवधि के निवेशक इन्हें देखकर यह अंदाजा लगा सकते हैं कि उनकी कंपनी कैसा कारोबार कर रही है। किसी शेयर को आंकने के लिए उसके पिछले नतीजों को देखना भी जरूरी होता है। अगर प्रबंधन ने वित्त वर्ष की अपनी कारोबारी योजना का खुलासा पहले ही कर दिया है तो तिमाही नतीजों से निवेशक को यह पता चलता है कि योजना किस दिशा में और कितनी गति से बढ़ रही है। निवेशकों को यह भी देखना चाहिए कि कहीं कंपनी ने आंकड़ों में कोई हेरफेर तो नहीं की है। उदाहरण के लिए कोई कंपनी मौजूदा तिमाही की आमदनी को जोड़कर उससे जुड़े खर्चों को अगली तिमाही में दिखाने के साथ अपना अधिक मुनाफा दिखाने की कोशिश कर सकती है। इसके अलावा वह अनुमानों पर पूरा उतरने के लिए तिमाही के अंत में उत्पादों को कम दाम पर भी बेच सकती है। ऐसा होने से कंपनी के वास्तविक प्रदर्शन का संकेत मिल पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
निवेशकों को तिमाही आंकड़ों की जानकारी समाचार पत्रों, बिजनेस चैनलों और कंपनी के वेबसाइट पर मिल सकती है।
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क्या होता है राइट्स इश्यू, शेयर विभाजन और ओपन ऑफर?
राइट्स इश्यू
राइट्स इश्यू के तहत कंपनी रकम जुटाने के लिए मौजूदा शेयरधारकों को नए शेयर जारी करती है। आम तौर पर ये शेयर डिस्काउंट (मौजूदा भाव से कम) पर दिए जाते हैं। शेयरधारकों को उनके पास पहले से मौजूद शेयरों के अनुपात में नए शेयर जारी किए जाते हैं। जैसे, अगर कोई कंपनी 2:5 में राइट्स इश्यू देने की घोषणा करती है, तो शेयरधारक को उस कंपनी के हर पांच शेयर पर दो शेयर खरीदने का अधिकार होगा। राइट्स इश्यू में जारी शेयर सूचीबद्ध होने के बाद आम शेयरों की तरह ही खरीदे-बेचे जा सकते हैं।
शेयर विभाजन
इस प्रक्रिया के तहत एक शेयर को कई शेयरों में विभाजित कर दिया जाता है, जिससे शेयरों का बाजार भाव विभाजन के अनुपात में कम हो जाता है। साथ ही उसका फेस वैल्यू भी उसी अनुपात में कम हो जाता है। जैसे 10 रुपए फेस वैल्यू वाले शेयर को कंपनी अगर 5:1 में शेयर विभाजित करने की घोषणा करती है और उसका बाजार भाव 2,000 रुपए चल रहा हो, तो एक्स स्प्लिट होने के बाद उसके शेयर का भाव लगभग 400 रुपए पर आ जाएगा और उसका फेस वैल्यू घटकर 2 रुपए हो जाएगा। आम तौर पर कंपनियां अपने शेयरों का कारोबार बढ़ाने के लिए ही शेयर विभाजन का सहारा लेती हैं।
शेयरों की पुनर्खरीद
प्रमोटर कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए दो तरीके अपनाते हैं। या तो वे खुले बाजार से धीरे-धीरे कर अपनी कंपनी के शेयर खरीदते हैं या फिर मौजूदा शेयरधारकों को एक खास भाव पर अपने शेयर प्रमोटर को बेचने को कहते हैं। दूसरी प्रक्रिया को पुनर्खरीद यानी बाय बैक कहा जाता है। बाय बैक में प्रमोटर एक खास तारीख तक शेयरधारकों को अपने शेयर बेचने का प्रस्ताव करता है। इससे कंपनी में एक ओर तो प्रमोटर की हिस्सेदारी बढ़ती है और दूसरी ओर आम जनता की हिस्सेदारी घटती है। इससे शेयर के भाव पर सकारात्मक दबाव पड़ता है। आम तौर पर बाय बैक को कंपनी के लिए काफी अच्छा माना जाता है क्योंकि इससे पता चलता है कि उसके प्रमोटरों को अपनी योजनाओं और कंपनी के भविष्य पर पूरा भरोसा है।
ओपन ऑफर
यह राइट्स इश्यू की ही तरह किसी कंपनी के लिए रकम जुटाने का एक जरिया है, जिसमें कंपनी अपने शेयरधारकों को मौजूदा बाजार भाव से कम पर शेयरों की खरीद के लिए प्रस्ताव करती है। राइट्स इश्यू से यह इस मायने में अलग होता है कि शेयरधारक राइट्स में मिले शेयरों को तुरंत बाजार में बेच सकते हैं, लेकिन ओपन ऑफर में मिले शेयरों को तुरंत नहीं बेचा जा सकता
राइट्स इश्यू के तहत कंपनी रकम जुटाने के लिए मौजूदा शेयरधारकों को नए शेयर जारी करती है। आम तौर पर ये शेयर डिस्काउंट (मौजूदा भाव से कम) पर दिए जाते हैं। शेयरधारकों को उनके पास पहले से मौजूद शेयरों के अनुपात में नए शेयर जारी किए जाते हैं। जैसे, अगर कोई कंपनी 2:5 में राइट्स इश्यू देने की घोषणा करती है, तो शेयरधारक को उस कंपनी के हर पांच शेयर पर दो शेयर खरीदने का अधिकार होगा। राइट्स इश्यू में जारी शेयर सूचीबद्ध होने के बाद आम शेयरों की तरह ही खरीदे-बेचे जा सकते हैं।
शेयर विभाजन
इस प्रक्रिया के तहत एक शेयर को कई शेयरों में विभाजित कर दिया जाता है, जिससे शेयरों का बाजार भाव विभाजन के अनुपात में कम हो जाता है। साथ ही उसका फेस वैल्यू भी उसी अनुपात में कम हो जाता है। जैसे 10 रुपए फेस वैल्यू वाले शेयर को कंपनी अगर 5:1 में शेयर विभाजित करने की घोषणा करती है और उसका बाजार भाव 2,000 रुपए चल रहा हो, तो एक्स स्प्लिट होने के बाद उसके शेयर का भाव लगभग 400 रुपए पर आ जाएगा और उसका फेस वैल्यू घटकर 2 रुपए हो जाएगा। आम तौर पर कंपनियां अपने शेयरों का कारोबार बढ़ाने के लिए ही शेयर विभाजन का सहारा लेती हैं।
शेयरों की पुनर्खरीद
प्रमोटर कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए दो तरीके अपनाते हैं। या तो वे खुले बाजार से धीरे-धीरे कर अपनी कंपनी के शेयर खरीदते हैं या फिर मौजूदा शेयरधारकों को एक खास भाव पर अपने शेयर प्रमोटर को बेचने को कहते हैं। दूसरी प्रक्रिया को पुनर्खरीद यानी बाय बैक कहा जाता है। बाय बैक में प्रमोटर एक खास तारीख तक शेयरधारकों को अपने शेयर बेचने का प्रस्ताव करता है। इससे कंपनी में एक ओर तो प्रमोटर की हिस्सेदारी बढ़ती है और दूसरी ओर आम जनता की हिस्सेदारी घटती है। इससे शेयर के भाव पर सकारात्मक दबाव पड़ता है। आम तौर पर बाय बैक को कंपनी के लिए काफी अच्छा माना जाता है क्योंकि इससे पता चलता है कि उसके प्रमोटरों को अपनी योजनाओं और कंपनी के भविष्य पर पूरा भरोसा है।
ओपन ऑफर
यह राइट्स इश्यू की ही तरह किसी कंपनी के लिए रकम जुटाने का एक जरिया है, जिसमें कंपनी अपने शेयरधारकों को मौजूदा बाजार भाव से कम पर शेयरों की खरीद के लिए प्रस्ताव करती है। राइट्स इश्यू से यह इस मायने में अलग होता है कि शेयरधारक राइट्स में मिले शेयरों को तुरंत बाजार में बेच सकते हैं, लेकिन ओपन ऑफर में मिले शेयरों को तुरंत नहीं बेचा जा सकता
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टेक्निकल एनालिसिस किस तरह होता है?
टेक्निकल एनालिसिस समझने के लिए सबसे पहले चार्ट को समझने की जरूरत है। चार्ट चार तरह के होते हैं,
लाइन चार्ट, बार चार्ट, कैंडलस्टिक चार्ट और पॉइंट एंड फिगर चार्ट। इनमें बार चार्ट सबसे ज्यादा लोकप्रिय है और ज्यादातर चार्टिस्ट इसी का इस्तेमाल करते हैं।
बार कैसे तैयार होता है?
बार चार्ट में बहुत सारी लंबवत (वर्टिकल) लकीरें होती हैं, जिन्हें बार कहते हैं। इनमें हर लकीर के दोनों ओर 2 बहुत छोटी-छोटी क्षैतिज लकीरें होती हैं। एक बार में चार सूचनाएं होती हैं। बार का सबसे ऊपरी सिरा, किसी खास दिन पर शेयर का अधिकतम भाव बताता है, जबकि निचला सिरा उसी दिन शेयर के न्यूनतम भाव बताता है। बार के बाईं ओर जो क्षैतिज छोटी रेखा होती है, वह शेयर के खुलने का भाव बताती है और दाईं ओर की क्षैतिज छोटी रेखा शेयर का क्लोजिंग भाव बताती है।
बार चार्ट कैसे तैयार होता है?
दिनों को एक्स अक्ष और भाव को वाई अक्ष पर रख कर हर दिन के लिए एक बार खींचा जाता है और फिर बहुत से बार मिलकर एक चार्ट तैयार करते हैं। इस चार्ट में गिरावट वाले दिनों (यानी जब बाईं ओर की क्षैतिज रेखा ऊपर हो और दाईं ओर की नीचे) को लाल या काले रंग में दिखाया जाता है और बढ़त वाले दिनों (यानी जब बाईं ओर की क्षैतिज रेखा, दाईं के मुकाबले नीचे हो) को हरा या सफेद दिखाया जाता है।
टेक्निकल एनालिसिस में वॉल्यूम का क्या महत्व है?
वॉल्यूम यानी कारोबार किए गए शेयरों की संख्या। जैसा कि 18 जून को तकनीकी विश्लेषण की पहली कड़ी में बताया गया था कि टेक्निकल एनालिसिस दरअसल पूरे बाजार के मनोविज्ञान को पढ़ने का एक विज्ञान है। तो स्वाभाविक है कि इस मनोविज्ञान का सही निष्कर्ष केवल तभी निकाला जा सकेगा अगर ज्यादा से ज्यादा लोग भागीदारी कर रहे हों। क्योंकि कम वॉल्यूम वाले शेयरों में अक्सर कीमतों का नियंत्रण कुछ ऑपरेटरों के हाथ में होता है।
लाइन चार्ट, बार चार्ट, कैंडलस्टिक चार्ट और पॉइंट एंड फिगर चार्ट। इनमें बार चार्ट सबसे ज्यादा लोकप्रिय है और ज्यादातर चार्टिस्ट इसी का इस्तेमाल करते हैं।
बार कैसे तैयार होता है?
बार चार्ट में बहुत सारी लंबवत (वर्टिकल) लकीरें होती हैं, जिन्हें बार कहते हैं। इनमें हर लकीर के दोनों ओर 2 बहुत छोटी-छोटी क्षैतिज लकीरें होती हैं। एक बार में चार सूचनाएं होती हैं। बार का सबसे ऊपरी सिरा, किसी खास दिन पर शेयर का अधिकतम भाव बताता है, जबकि निचला सिरा उसी दिन शेयर के न्यूनतम भाव बताता है। बार के बाईं ओर जो क्षैतिज छोटी रेखा होती है, वह शेयर के खुलने का भाव बताती है और दाईं ओर की क्षैतिज छोटी रेखा शेयर का क्लोजिंग भाव बताती है।
बार चार्ट कैसे तैयार होता है?
दिनों को एक्स अक्ष और भाव को वाई अक्ष पर रख कर हर दिन के लिए एक बार खींचा जाता है और फिर बहुत से बार मिलकर एक चार्ट तैयार करते हैं। इस चार्ट में गिरावट वाले दिनों (यानी जब बाईं ओर की क्षैतिज रेखा ऊपर हो और दाईं ओर की नीचे) को लाल या काले रंग में दिखाया जाता है और बढ़त वाले दिनों (यानी जब बाईं ओर की क्षैतिज रेखा, दाईं के मुकाबले नीचे हो) को हरा या सफेद दिखाया जाता है।
टेक्निकल एनालिसिस में वॉल्यूम का क्या महत्व है?
वॉल्यूम यानी कारोबार किए गए शेयरों की संख्या। जैसा कि 18 जून को तकनीकी विश्लेषण की पहली कड़ी में बताया गया था कि टेक्निकल एनालिसिस दरअसल पूरे बाजार के मनोविज्ञान को पढ़ने का एक विज्ञान है। तो स्वाभाविक है कि इस मनोविज्ञान का सही निष्कर्ष केवल तभी निकाला जा सकेगा अगर ज्यादा से ज्यादा लोग भागीदारी कर रहे हों। क्योंकि कम वॉल्यूम वाले शेयरों में अक्सर कीमतों का नियंत्रण कुछ ऑपरेटरों के हाथ में होता है।
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शेयर के फेस वैल्यू पर इसका क्या असर होता है
बोनस के बाद कंपनी का फेस वैल्यू वही रहता है। दरअसल शेयर विभाजन यानी स्टॉक स्प्लिट और बोनस का मुख्य अंतर यही है कि बोनस में शेयर के दाम तो गिर जाते हैं, लेकिन इसके फेस वैल्यू में कोई बदलाव नहीं होता, दूसरी ओर स्प्लिट में फेस वैल्यू का भाव भी उसी अनुपात में कम हो जाता है।
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घोषणा के बाद शेयर चढ़ता क्यों है?
इसका कोई ठोस या बुनियादी कारण नहीं बताया जा सकता। एक ओर तो बोनस जारी करने वाली कंपनी के बारे में निवेशकों की यह धारणा बनती है कि कंपनी नकद रिजर्व के मामले में बहुत मजबूत है और दूसरा लाभांश के तौर पर मिलने वाली रकम दोगुनी हो जाती है। इन सबसे कंपनी के शेयरों की मांग बढ़ जाती है।
साथ ही बोनस के बाद क्योंकि कंपनी के शेयरों की कीमत उसी अनुपात में कम हो जाती है, तो उनका दैनिक कारोबार भी काफी बढ़ जाता है।
साथ ही बोनस के बाद क्योंकि कंपनी के शेयरों की कीमत उसी अनुपात में कम हो जाती है, तो उनका दैनिक कारोबार भी काफी बढ़ जाता है।
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बोनस इश्यू से शेयरधारकों को क्या फायदा होता है?
एक तरह से कुछ भी नहीं। आम धारणा है कि बोनस शेयरधारकों के लिए काफी फायदेमंद होता है, लेकिन अगर कीमत के लिहाज से देखा जाए तो इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ता। मान लें कि आपके पास 100 शेयर हैं और कंपनी ने एक पर एक शेयर के बोनस की घोषणा की तो आपके पास कुल शेयरों की संख्या बढ़कर 200 हो गई। इसी तरह अगर बाजार में कंपनी के एक करोड़ शेयर हैं तो उनकी संख्या दो करोड़ हो जाएगी। लेकिन इसी अनुपात में कंपनी की बाजार पूंजी में बढ़त नहीं हो सकती।
इसलिए एक्स-बोनस यानी बोनस शेयरों के बाजार में आने के साथ ही सैद्धांतिक रूप से शेयरों के न भाव गिरकर आधे हो जाते हैं, यह अलग बात है कि व्यवहारिक तौर पर भाव बिल्कुल आधे नहीं होते, बल्कि उसी के आस-पास होते हैं।
इसलिए एक्स-बोनस यानी बोनस शेयरों के बाजार में आने के साथ ही सैद्धांतिक रूप से शेयरों के न भाव गिरकर आधे हो जाते हैं, यह अलग बात है कि व्यवहारिक तौर पर भाव बिल्कुल आधे नहीं होते, बल्कि उसी के आस-पास होते हैं।
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बोनस इश्यू क्या होता है?
जब शेयरधारकों को अपने पास मौजूद शेयरों के एक खास अनुपात में मुफ्त शेयर मिलते हैं, तो उसे बोनस इश्यू कहते हैं। जैसे अगर कोई कंपनी 2:5 का बोनस जारी करती है तो इसका मतलब आपके पास मौजूद हर पांच शेयर पर आपको 2 मुफ्त शेयर मिलेंगे।
कंपनिया क्यों जारी करती हैं बोनस इश्यू?:
जब कंपनियों के पास नकद रिजर्व बहुत ज्यादा हो जाता है, तो कंपनियां बोनस इश्यू जारी करती हैं। इससे कंपनी डिविडेंड के तौर पर अपने शेयरधारकों को ज्यादा रकम देती है। दूसरे शब्दों में कंपनी के नकद रिजर्व का बड़ा हिस्सा कंपनी के बही-खाते से निकलकर प्रमोटर के निजी खाते में आ जाता है, क्योंकि कंपनी का सबसे बड़ा शेयरधारक अमूमन उसका प्रमोटर ही होता है।
कंपनिया क्यों जारी करती हैं बोनस इश्यू?:
जब कंपनियों के पास नकद रिजर्व बहुत ज्यादा हो जाता है, तो कंपनियां बोनस इश्यू जारी करती हैं। इससे कंपनी डिविडेंड के तौर पर अपने शेयरधारकों को ज्यादा रकम देती है। दूसरे शब्दों में कंपनी के नकद रिजर्व का बड़ा हिस्सा कंपनी के बही-खाते से निकलकर प्रमोटर के निजी खाते में आ जाता है, क्योंकि कंपनी का सबसे बड़ा शेयरधारक अमूमन उसका प्रमोटर ही होता है।
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Sep 28, 2010
iPO की राह में रिटर्न के साथ करें जोखिम की फिक्र
मुंबई : हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि बाजार की चाल के बारे
में अनुमान लगाना असंभव है। लेकिन बाजार को लेकर कुछ ऐसी चीजें हैं, जिसके बारे में आप भविष्यवाणी कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर जब भी शेयर बाजार नई ऊंचाइयां छूने के करीब पहुंचता है तो बड़ी संख्या में इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) की लंबी कतार लग जाती है।
कोल इंडिया (भारतीय शेयर बाजार का सबसे बड़ा आईपीओ होगा और इसका आकार 14,000 करोड़ रुपए का होगा) के अलावा वा टेक वाबग (वाटर मैनेजमेंट कंपनी), तिरुपति इंक्स, इरोज इंटरनेशनल, माइक्रोसेक कैपिटल जैसी कई छोटी कंपनियां पूंजी जुटाने के लिए बाजार में उतरी हैं।
इनवेस्टमेंट बैंकरों का कहना है कि आने वाले महीनों में कई और कंपनियां पूंजी जुटाने के लिए बाजार में उतर सकती हैं। आईसीआईसीआई के ईडी अनूप बागची का कहना है, 'बाजार में निवेशकों की रुचि बनी हुई है और ऐसे में पिछले काफी समय से पेंडिंग पड़े आईपीओ बाजार में आ सकते हैं।' स्त्रेई कैपिटल मार्केट्स के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर अशोक पारीख का कहना है, 'सेकेंडरी मार्केट में सुधार आ रहा है। जिन कंपनियों के प्रास्पेक्टस को सेबी की मंजूरी मिल चुकी है और जो इंतजार कर रहे हैं, वे कोल इंडिया के आईपीओ के बाजार में आने से पहले अपने हाथ आजमाएंगे।'
घरेलू शेयर बाजार ऐतिहासिक ऊंचाइयां छूने के करीब है और ऐसे में कई निवेशक इसमें अपनी किस्मत आजमाने के लिए फिर से बाजार में उतर चुके हैं। इनमें से कई निवेशकों को प्राइमरी मार्केट(आईपीओ) काफी लुभाता है। उनका मानना है कि आईपीओ एक जैकपॉट की तरह है, जिसमें आप किसी इश्यू को सब्सक्राइब करते हैं और जब कंपनी लिस्ट हो जाती है तो उसे बेच देते हैं।
इनका मानना है कि इस साधारण निवेश नीति पर दांव लगाकर ट्रेडर कुछ हफ्तों में अच्छा खासा मुनाफा बना सकते हैं। हालांकि, जल्द मुनाफा कमाने की यह रणनीति आपको महंगी भी पड़ सकती है। साल 2009 के बाद से 58 कंपनियां आईपीओ बाजार में उतरी हैं। इन 58 कंपनियों में से 22 कंपनियों के शेयर अब भी ऑफर प्राइस के नीचे ट्रेड कर रहे हैं, जबकि करीब 17 कंपनियों ने लिस्टिंग के बाद से निवेशकों को या तो कोई रिटर्न नहीं दिया है या फिर निवेशक ऐसे इश्यूज में अभी घाटे में ही चल रहे हैं।
ऐसे में आईपीओ के जरिए जल्द मोटा मुनाफा कमाने की रणनीति फ्लाप साबित होती है। हालांकि, इसी अवधि में सात आईपीओ ने निवेशकों को 100 फीसदी से ज्यादा रिटर्न दिया है। आईपीओ से रिटर्न हासिल करने के ये आंकडे़ क्या आपको कुछ सबक देते हैं? अगर हां तो वह यह है कि आईपीओ जल्द मुनाफा कमाने का जरिया नहीं हैं। अगर आप आईपीओ से पैसा बनाना चाहते हैं तो दूसरे शेयरों पर दांव लगाने की तरह इसमें भी आपको अपना होम वर्क पूरा करना होगा।
आईपीओ पर दांव लगाने से पहले आपको कंपनी की कारोबारी विश्वसनीयता और उसकी सही प्राइसिंग का अंदाजा लगाना होगा। इसके अलावा आपको यह बात भी तय करनी होगी कि आप आईपीओ से लिस्टिंग गेन हासिल करना चाहते हैं या फिर शेयर की फुल वैल्यू पाने के लिए उसे लंबी अवधि तक शेयर के रूप में होल्ड करना चाहते हैं। आईपीओ पर दांव लगाने से पहले ये बातें आपके लिए काफी मददगार साबित हो सकती हैं।
सबसे पहले आपको यह बात ध्यान में रखने की जरूरत होती है कि आईपीओ में निवेश करना किसी शेयर पर पैसा लगाने जैसा ही होता है। ऐसे में कंपनी के फंडामेंटल के बारे में जानना बहुत जरूरी है। इसमें आपको कंपनी की वित्तीय स्थिति, कंपनी किसी क्षेत्र में काम करती है, इंडस्ट्री में उसकी अहमियत क्या है, इत्यादि के बारे में जानकारी जुटानी होगी। इसके अलावा आपको कंपनी के मौजूदा प्रमोटरों और निवेशकों का भी पता होना चाहिए।
में अनुमान लगाना असंभव है। लेकिन बाजार को लेकर कुछ ऐसी चीजें हैं, जिसके बारे में आप भविष्यवाणी कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर जब भी शेयर बाजार नई ऊंचाइयां छूने के करीब पहुंचता है तो बड़ी संख्या में इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) की लंबी कतार लग जाती है।
कोल इंडिया (भारतीय शेयर बाजार का सबसे बड़ा आईपीओ होगा और इसका आकार 14,000 करोड़ रुपए का होगा) के अलावा वा टेक वाबग (वाटर मैनेजमेंट कंपनी), तिरुपति इंक्स, इरोज इंटरनेशनल, माइक्रोसेक कैपिटल जैसी कई छोटी कंपनियां पूंजी जुटाने के लिए बाजार में उतरी हैं।
इनवेस्टमेंट बैंकरों का कहना है कि आने वाले महीनों में कई और कंपनियां पूंजी जुटाने के लिए बाजार में उतर सकती हैं। आईसीआईसीआई के ईडी अनूप बागची का कहना है, 'बाजार में निवेशकों की रुचि बनी हुई है और ऐसे में पिछले काफी समय से पेंडिंग पड़े आईपीओ बाजार में आ सकते हैं।' स्त्रेई कैपिटल मार्केट्स के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर अशोक पारीख का कहना है, 'सेकेंडरी मार्केट में सुधार आ रहा है। जिन कंपनियों के प्रास्पेक्टस को सेबी की मंजूरी मिल चुकी है और जो इंतजार कर रहे हैं, वे कोल इंडिया के आईपीओ के बाजार में आने से पहले अपने हाथ आजमाएंगे।'
घरेलू शेयर बाजार ऐतिहासिक ऊंचाइयां छूने के करीब है और ऐसे में कई निवेशक इसमें अपनी किस्मत आजमाने के लिए फिर से बाजार में उतर चुके हैं। इनमें से कई निवेशकों को प्राइमरी मार्केट(आईपीओ) काफी लुभाता है। उनका मानना है कि आईपीओ एक जैकपॉट की तरह है, जिसमें आप किसी इश्यू को सब्सक्राइब करते हैं और जब कंपनी लिस्ट हो जाती है तो उसे बेच देते हैं।
इनका मानना है कि इस साधारण निवेश नीति पर दांव लगाकर ट्रेडर कुछ हफ्तों में अच्छा खासा मुनाफा बना सकते हैं। हालांकि, जल्द मुनाफा कमाने की यह रणनीति आपको महंगी भी पड़ सकती है। साल 2009 के बाद से 58 कंपनियां आईपीओ बाजार में उतरी हैं। इन 58 कंपनियों में से 22 कंपनियों के शेयर अब भी ऑफर प्राइस के नीचे ट्रेड कर रहे हैं, जबकि करीब 17 कंपनियों ने लिस्टिंग के बाद से निवेशकों को या तो कोई रिटर्न नहीं दिया है या फिर निवेशक ऐसे इश्यूज में अभी घाटे में ही चल रहे हैं।
ऐसे में आईपीओ के जरिए जल्द मोटा मुनाफा कमाने की रणनीति फ्लाप साबित होती है। हालांकि, इसी अवधि में सात आईपीओ ने निवेशकों को 100 फीसदी से ज्यादा रिटर्न दिया है। आईपीओ से रिटर्न हासिल करने के ये आंकडे़ क्या आपको कुछ सबक देते हैं? अगर हां तो वह यह है कि आईपीओ जल्द मुनाफा कमाने का जरिया नहीं हैं। अगर आप आईपीओ से पैसा बनाना चाहते हैं तो दूसरे शेयरों पर दांव लगाने की तरह इसमें भी आपको अपना होम वर्क पूरा करना होगा।
आईपीओ पर दांव लगाने से पहले आपको कंपनी की कारोबारी विश्वसनीयता और उसकी सही प्राइसिंग का अंदाजा लगाना होगा। इसके अलावा आपको यह बात भी तय करनी होगी कि आप आईपीओ से लिस्टिंग गेन हासिल करना चाहते हैं या फिर शेयर की फुल वैल्यू पाने के लिए उसे लंबी अवधि तक शेयर के रूप में होल्ड करना चाहते हैं। आईपीओ पर दांव लगाने से पहले ये बातें आपके लिए काफी मददगार साबित हो सकती हैं।
सबसे पहले आपको यह बात ध्यान में रखने की जरूरत होती है कि आईपीओ में निवेश करना किसी शेयर पर पैसा लगाने जैसा ही होता है। ऐसे में कंपनी के फंडामेंटल के बारे में जानना बहुत जरूरी है। इसमें आपको कंपनी की वित्तीय स्थिति, कंपनी किसी क्षेत्र में काम करती है, इंडस्ट्री में उसकी अहमियत क्या है, इत्यादि के बारे में जानकारी जुटानी होगी। इसके अलावा आपको कंपनी के मौजूदा प्रमोटरों और निवेशकों का भी पता होना चाहिए।
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Sep 27, 2010
मुनाफा कमाने वाले शेयरों की पहचान करने का मंत्र
संस्थागत निवेशक आम निवेशकों की
ओर से होने वाली खरीद-फरोख्त पर बड़ा असर डालते हैं, क्योंकि उनके पास ऑर्डर को सपोर्ट करने के लिए ज्यादा पैसा होता है और इससे शेयर पर पड़ने वाला प्रभाव और भी बढ़ जाता है।' वॉल स्ट्रीट के एक जाने-माने कमेंटेटर के ये शब्द इक्विटी बाजारों में संस्थागत निवेशकों की अहमियत रेखांकित करते हैं। संस्थागत निवेशक बाजार के अच्छे विश्लेषकों को आसानी से अपने साथ जोड़ लेते हैं और निवेश संबंधी शोध तक भी उनकी अच्छी पहुंच होती है। इसके चलते जब भी मल्टी-बैगर शेयर तलाशने की बारी आती है तो वे दूसरों से आगे नजर आते हैं।
इसके अलावा ज्यादातर मामलों में ये निवेशक लंबे वक्त तक अपनी पोजीशन बरकरार रखते हैं। इसलिए यह जानना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है कि संस्थागत निवेशक किन शेयरों की खरीद कर रहे हैं और कौन से शेयर उनकी प्राथमिकता सूची से बाहर हैं। छोटे निवेशकों को सर्तकता तो बरतनी चाहिए और निवेश का कोई भी फैसला करने से पहले पर्याप्त होमवर्क कर ही लेना चाहिए, लेकिन अगर वे इसके साथ संस्थागत गतिविधियों पर भी एक नजर डाल लें तो उन्हें निवेश के बुनियादी विचार की झलक मिल जाएगी।
संस्थागत निवेशक मोटे तौर पर म्यूचुअल फंड, बीमा और पेंशन प्रोवाइडर पर ध्यान केंद्रित करते हैं। बीते कुछ वर्षों से भारतीय इक्विटी में संस्थागत निवेशकों की दिलचस्पी काफी बढ़ी है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त 2010 को खत्म हुए आठ महीनों में उन्होंने 59,724 करोड़ रुपए की खरीदारी की है। यह पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 48 फीसदी ज्यादा है। आमतौर पर रिसर्च पर उनका काफी फोकस होता है और निवेश की उनकी रणनीति मध्यम से लंबी अवधि के लिए होती है।
इसका मतलब यह हुआ कि वे उन्हीं शेयरों में निवेश करते हैं जिनमें मध्यम अवधि के लिए वृद्धि की अच्छी संभावना हो। छोटा निवेशक कंपनी के भावी कारोबार से डिस्काउंटेड कैश फ्लो (डीसीएफ) जैसी निवेश की आधुनिक तकनीकों से परिचित नहीं होता। इसलिए लंबी अवधि के निवेश के लिए संस्थागत निवेशकों के निवेश के चलन पर निगाह बनाए रखना ज्यादा सरल तरीका है।
ओर से होने वाली खरीद-फरोख्त पर बड़ा असर डालते हैं, क्योंकि उनके पास ऑर्डर को सपोर्ट करने के लिए ज्यादा पैसा होता है और इससे शेयर पर पड़ने वाला प्रभाव और भी बढ़ जाता है।' वॉल स्ट्रीट के एक जाने-माने कमेंटेटर के ये शब्द इक्विटी बाजारों में संस्थागत निवेशकों की अहमियत रेखांकित करते हैं। संस्थागत निवेशक बाजार के अच्छे विश्लेषकों को आसानी से अपने साथ जोड़ लेते हैं और निवेश संबंधी शोध तक भी उनकी अच्छी पहुंच होती है। इसके चलते जब भी मल्टी-बैगर शेयर तलाशने की बारी आती है तो वे दूसरों से आगे नजर आते हैं।
इसके अलावा ज्यादातर मामलों में ये निवेशक लंबे वक्त तक अपनी पोजीशन बरकरार रखते हैं। इसलिए यह जानना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है कि संस्थागत निवेशक किन शेयरों की खरीद कर रहे हैं और कौन से शेयर उनकी प्राथमिकता सूची से बाहर हैं। छोटे निवेशकों को सर्तकता तो बरतनी चाहिए और निवेश का कोई भी फैसला करने से पहले पर्याप्त होमवर्क कर ही लेना चाहिए, लेकिन अगर वे इसके साथ संस्थागत गतिविधियों पर भी एक नजर डाल लें तो उन्हें निवेश के बुनियादी विचार की झलक मिल जाएगी।
संस्थागत निवेशक मोटे तौर पर म्यूचुअल फंड, बीमा और पेंशन प्रोवाइडर पर ध्यान केंद्रित करते हैं। बीते कुछ वर्षों से भारतीय इक्विटी में संस्थागत निवेशकों की दिलचस्पी काफी बढ़ी है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त 2010 को खत्म हुए आठ महीनों में उन्होंने 59,724 करोड़ रुपए की खरीदारी की है। यह पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 48 फीसदी ज्यादा है। आमतौर पर रिसर्च पर उनका काफी फोकस होता है और निवेश की उनकी रणनीति मध्यम से लंबी अवधि के लिए होती है।
इसका मतलब यह हुआ कि वे उन्हीं शेयरों में निवेश करते हैं जिनमें मध्यम अवधि के लिए वृद्धि की अच्छी संभावना हो। छोटा निवेशक कंपनी के भावी कारोबार से डिस्काउंटेड कैश फ्लो (डीसीएफ) जैसी निवेश की आधुनिक तकनीकों से परिचित नहीं होता। इसलिए लंबी अवधि के निवेश के लिए संस्थागत निवेशकों के निवेश के चलन पर निगाह बनाए रखना ज्यादा सरल तरीका है।
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बाजार में ये छोटी कंपनियां कर सकती हैं बड़ा कमाल
कामयाबी
छोटी हो या बड़ी, उसकी खुशी मनाने की जरूरत होती है। इसी बात पर विश्वास करते हुए ईटी इंटेलीजेंस गुप हर साल भारतीय उद्योग जगत की 100 सबसे तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की सूची जारी करता है। यह आज की तेज रफ्तार छोटी कंपनियां ही हैं, जो कल के दिग्गजों में उभरने का दमखम रखती हैं।
लेकिन इसके साथ एक चेतावनी भी आती है। निश्चित रूप से यह कहना मुश्किल है कि इंडिया इंक के इन छोटे उस्तादों में से कौन से आने वाले वक्त की ग्रां प्री में शामिल होंगे। जैसा कि कहा जाता है कि अतीत का प्रदर्शन इस बात की गारंटी नहीं होता कि भविष्य में किस तरह का प्रदर्शन रहेगा। लेकिन ऐतिहासिक चलन के आधार पर हम यह पता लगा सकते हैं कि किस तरह की कंपनियां बड़ा बनने की संभावनाएं रखती हैं।
अतीत के निरंतर ठोस प्रदर्शन की वजह से ईटीआईजी की 100 तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की हालिया सूची में शामिल खिलाड़ी इस दौड़ में अव्वल आने के मजबूत दावेदार हैं। निवेशकों को और अध्ययन करने के आधार पर सूची से बेहतरीन दिखने वाले शेयर चुनने चाहिए या फिर बाजारों में अगली पंक्ति में खड़े होने के लिए हमारे चयन के आधार पर पोर्टफोलियो तैयार करना चाहिए।
शेयर बाजार के दिग्गज
धमाकेदार वित्तीय प्रदर्शन, निवेशकों का भरोसा जीतने के लिहाज से काफी अहम चीज है। यह इस बात से साबित होता है कि 100 तेजी रफ्तार छोटी कंपनियों की ईटीआईजी की 2009 की सूची में से 77 कंपनियों ने बीते एक साल के दौरान बेंचमार्क इंडेक्स को अपने प्रदर्शन से पीछे छोड़ दिया है। इसके अलावा 27 कंपनियों के शेयर भाव इस अवधि में बढ़कर दोगुने स्तर पर पहुंच चुके हैं।
सूची की शीर्ष 10 कंपनियां शामिल कर बनाए जाने वाले पोर्टफोलियो ने निवेशकों को 59 फीसदी रिटर्न दिया होता, जबकि बाजार ने इस दौरान 21 फीसदी का मुनाफा दिया है। शीर्ष 25 कंपनियों के पोर्टफोलियो ने 61 फीसदी रिटर्न कमाया है। और इन सभी 100 कंपनियों के समान वेटेज से बना पोर्टफोलियो वैल्यू के लिहाज से आज 73 फीसदी ऊपर होता। वास्तव में यह धमाकेदार प्रदर्शन है।
नए नायक
ईटीआईजी 2010 की 100 तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की फेहरिस्त में जाइडस वेलनेस ने सभी को पीछे छोड़ दिया है। यह पिछले साल चौथे पायदान से शीर्ष स्तर तक पहुंची है। इस शेयर को कैडिला हेल्थकेयर के कंज्यूमर हेल्थकेयर कारोबार के विलय से काफी फायदा हुआ है और यह कंपनी कर्ज-मुक्त और नकदी के मामले में अमीर खिलाड़ी बनी हुई है।
हाल में सूचीबद्ध होने वाली टेकनेफैब इंजीनियरिंग दूसरे स्थान पर है, जिसका श्रेय बीते तीन साल के दौरान मुनाफे में प्रभावशाली बढ़त को जाता है। लेकिन वह कंपनी हॉकिंग कूकर्स है, जिसने सूची के शीर्ष पांच दिग्गजों में सबसे ज्यादा हैरत में डाला है। पिछले साल फेहरिस्त में 19वें पायदान तक गिरने के बाद कंपनी ने इस बार शीर्ष तीन में जगह बनाई है।
कारोबारी साल 2010 के दौरान मुनाफे में बढ़िया ग्रोथ ने कंपनी को मैन इंफ्राकंस्ट्रक्शंस, विनाती ऑगेर्निक्स और वीएसटी टिलर्स ट्रैक्टर्स के आगे पहुंचा दिया। विनाती ऑर्गेनिक्स पिछले साल के 14वें रैंक से इस साल आठवें नम्बर तक आई है, जबकि वीएसटी टिलर्स 27वें पर थी, लेकिन इस बार 12वें पायदान पर है।
हालांकि, कुछ कंपनियों ने पिछले साल की तुलना में जमीन भी खोई है। 2009 की सूची में तीसरे नम्बर पर खड़ी टाटा स्पॉन्ज आयरन इस साल 20वें पायदान तक लुढ़क गई है। इसी तरह प्राज इंडस्ट्रीज पिछले साल 10वें नम्बर पर खड़ी थी, लेकिन इस साल हैरानी में डालते हुए सूची में 83वें पायदान तक पहुंच गई है। पिछले साल टॉपर रही सुल्जर इंडिया हाल में डीलिस्ट हो गई है और इसलिए इस बार सूची में जगह बनाने में कामयाब नहीं हुई।
अन्य कंपनियों में ब्लिस जीवीएस फार्मा ने चौथे नम्बर पर सीट कब्जाते हुए सूची में बढ़िया एंट्री की है। हाल में सूचीबद्ध हुई एक अन्य कंपनी मैन इंफ्रा सीधे तौर पर सूची में दाखिल होकर पांचवें पायदान पर पहुंच गई है। अतीत में कमजोर इंटरेस्ट कवरेज रेशियो की वजह से पिछले साल सूची में शामिल होने में नाकाम रही प्लास्टिक उत्पाद बनाने वाली मयूर यूनिकोटर्स इस बार प्रतिष्ठित फेहरिस्त तक पहुंच गई है। कंपनी सूची में सातवें स्थान पर है। हाल में लिस्टेड हुई कंपनियों के बारे में और जानने के लिए ईटी इनवेस्टर्स गाइड के आगामी संस्करणों पर निगाहें बनाए रखें।
हमने कैसे तैयार की सूची?
कंपनियों की सूची तैयार करने के लिए हमने कारोबारी साल 2010 के दौरान 1,000 करोड़ रुपए से कम शुद्ध बिक्री रखने वाली फर्मों को इसमें शामिल किया है। संदेहास्पद विश्वसनीयता रखने वाली छोटी कंपनियों को इसके दायरे से बाहर रखने के उद्देश्य से हमने उन कंपनियों को फेहरिस्त से बाहर कर दिया, जिनका माकेर्ट कैपिटलाइजेशन 50 करोड़ रुपए से कम है।
अंतिम सूची में ऐसी कंपनियां शामिल हैं, जो बीते तीन साल के दौरान आरओसीई 15 फीसदी से ज्यादा, बीते तीन साल में डीईआर 1.5 से कम और आईसीआर 5 से ऊपर रखने में कामयाब रही हैं। पिछले तीन साल के दौरान एकबार से ज्यादा लाभांश न देने वाली या चूकने वाली कंपनियों और एक साल से ज्यादा वक्त तक नेगेटिव ऑपरेटिंग कैश फ्लो वाले खिलाडि़यों को भी बाहर का दरवाजा दिखा दिया गया। इसके बाद हमारे पास मजबूत वित्तीय स्थिति वाली केवल 140 कंपनियां बचीं। क्योंकि हम सबसे तेज बढ़ती छोटी कंपनियों को चिन्हित करने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए हमने इन सभी कंपनियों के लिए बिक्री और मुनाफे की वेटेड औसत बढ़त दरों का आकलन किया।
सबसे ज्यादा अहमियत कारोबारी साल 2010 की ग्रोथ को दी गई। आखिरकार, तीन साल की बिक्री और मुनाफे की बढ़त और आरओसीई को 30:30:40 का वेटेज दिया गया, जिसके बाद अंतिम रैंकिंग का फैसला किया गया।
हमने ऐसी कंपनियों को भी न चुनने का फैसला किया, जिन्होंने तेज ग्रोथ तक पहुंचने के लिए अपनी बैलेंस शीट पर अतिरिक्त दबाव झेला। हमारी सूची में नकदी जुटाने में मजबूती रखने वाली, नियमित लाभांश देने वाली और बैलेंस शीट पर कर्ज का बोझ कम रखने वाली कंपनियां शामिल हैं। ये कंपनियां फंड के खर्च की तुलना में कारोबार में निवेश की गई रकम पर कहीं ज्यादा पूंजी कमाने में कामयाब हो रही हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कर्जदाताओं और इक्विटी साझेदारों को भुगतान करने के बाद भी उनके पास कारोबार में दोबारा निवेश करने के लिए रकम बची रहेगी। कम कर्ज और ज्यादा इंटरेस्ट कवरेज गाढ़े वक्त में उनका सतत प्रदर्शन सुनिश्चित करेगा।
इन कंपनियों ने सूची में जगह बनाने के लिए निरंतर बेहतरीन प्रदर्शन किया है। लेकिन याद रखिए कि हमारी 100 सबसे तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की सूची, कोई अकेला निवेश ट्रिगर नहीं है। यह निवेश से जुड़ा अध्ययन शुरू करने के लिए प्रवेश बिंदु जरूर मुहैया कराता है। इसलिए निवेश करते रहिए...
छोटी हो या बड़ी, उसकी खुशी मनाने की जरूरत होती है। इसी बात पर विश्वास करते हुए ईटी इंटेलीजेंस गुप हर साल भारतीय उद्योग जगत की 100 सबसे तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की सूची जारी करता है। यह आज की तेज रफ्तार छोटी कंपनियां ही हैं, जो कल के दिग्गजों में उभरने का दमखम रखती हैं।
लेकिन इसके साथ एक चेतावनी भी आती है। निश्चित रूप से यह कहना मुश्किल है कि इंडिया इंक के इन छोटे उस्तादों में से कौन से आने वाले वक्त की ग्रां प्री में शामिल होंगे। जैसा कि कहा जाता है कि अतीत का प्रदर्शन इस बात की गारंटी नहीं होता कि भविष्य में किस तरह का प्रदर्शन रहेगा। लेकिन ऐतिहासिक चलन के आधार पर हम यह पता लगा सकते हैं कि किस तरह की कंपनियां बड़ा बनने की संभावनाएं रखती हैं।
अतीत के निरंतर ठोस प्रदर्शन की वजह से ईटीआईजी की 100 तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की हालिया सूची में शामिल खिलाड़ी इस दौड़ में अव्वल आने के मजबूत दावेदार हैं। निवेशकों को और अध्ययन करने के आधार पर सूची से बेहतरीन दिखने वाले शेयर चुनने चाहिए या फिर बाजारों में अगली पंक्ति में खड़े होने के लिए हमारे चयन के आधार पर पोर्टफोलियो तैयार करना चाहिए।
शेयर बाजार के दिग्गज
धमाकेदार वित्तीय प्रदर्शन, निवेशकों का भरोसा जीतने के लिहाज से काफी अहम चीज है। यह इस बात से साबित होता है कि 100 तेजी रफ्तार छोटी कंपनियों की ईटीआईजी की 2009 की सूची में से 77 कंपनियों ने बीते एक साल के दौरान बेंचमार्क इंडेक्स को अपने प्रदर्शन से पीछे छोड़ दिया है। इसके अलावा 27 कंपनियों के शेयर भाव इस अवधि में बढ़कर दोगुने स्तर पर पहुंच चुके हैं।
सूची की शीर्ष 10 कंपनियां शामिल कर बनाए जाने वाले पोर्टफोलियो ने निवेशकों को 59 फीसदी रिटर्न दिया होता, जबकि बाजार ने इस दौरान 21 फीसदी का मुनाफा दिया है। शीर्ष 25 कंपनियों के पोर्टफोलियो ने 61 फीसदी रिटर्न कमाया है। और इन सभी 100 कंपनियों के समान वेटेज से बना पोर्टफोलियो वैल्यू के लिहाज से आज 73 फीसदी ऊपर होता। वास्तव में यह धमाकेदार प्रदर्शन है।
नए नायक
ईटीआईजी 2010 की 100 तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की फेहरिस्त में जाइडस वेलनेस ने सभी को पीछे छोड़ दिया है। यह पिछले साल चौथे पायदान से शीर्ष स्तर तक पहुंची है। इस शेयर को कैडिला हेल्थकेयर के कंज्यूमर हेल्थकेयर कारोबार के विलय से काफी फायदा हुआ है और यह कंपनी कर्ज-मुक्त और नकदी के मामले में अमीर खिलाड़ी बनी हुई है।
हाल में सूचीबद्ध होने वाली टेकनेफैब इंजीनियरिंग दूसरे स्थान पर है, जिसका श्रेय बीते तीन साल के दौरान मुनाफे में प्रभावशाली बढ़त को जाता है। लेकिन वह कंपनी हॉकिंग कूकर्स है, जिसने सूची के शीर्ष पांच दिग्गजों में सबसे ज्यादा हैरत में डाला है। पिछले साल फेहरिस्त में 19वें पायदान तक गिरने के बाद कंपनी ने इस बार शीर्ष तीन में जगह बनाई है।
कारोबारी साल 2010 के दौरान मुनाफे में बढ़िया ग्रोथ ने कंपनी को मैन इंफ्राकंस्ट्रक्शंस, विनाती ऑगेर्निक्स और वीएसटी टिलर्स ट्रैक्टर्स के आगे पहुंचा दिया। विनाती ऑर्गेनिक्स पिछले साल के 14वें रैंक से इस साल आठवें नम्बर तक आई है, जबकि वीएसटी टिलर्स 27वें पर थी, लेकिन इस बार 12वें पायदान पर है।
हालांकि, कुछ कंपनियों ने पिछले साल की तुलना में जमीन भी खोई है। 2009 की सूची में तीसरे नम्बर पर खड़ी टाटा स्पॉन्ज आयरन इस साल 20वें पायदान तक लुढ़क गई है। इसी तरह प्राज इंडस्ट्रीज पिछले साल 10वें नम्बर पर खड़ी थी, लेकिन इस साल हैरानी में डालते हुए सूची में 83वें पायदान तक पहुंच गई है। पिछले साल टॉपर रही सुल्जर इंडिया हाल में डीलिस्ट हो गई है और इसलिए इस बार सूची में जगह बनाने में कामयाब नहीं हुई।
अन्य कंपनियों में ब्लिस जीवीएस फार्मा ने चौथे नम्बर पर सीट कब्जाते हुए सूची में बढ़िया एंट्री की है। हाल में सूचीबद्ध हुई एक अन्य कंपनी मैन इंफ्रा सीधे तौर पर सूची में दाखिल होकर पांचवें पायदान पर पहुंच गई है। अतीत में कमजोर इंटरेस्ट कवरेज रेशियो की वजह से पिछले साल सूची में शामिल होने में नाकाम रही प्लास्टिक उत्पाद बनाने वाली मयूर यूनिकोटर्स इस बार प्रतिष्ठित फेहरिस्त तक पहुंच गई है। कंपनी सूची में सातवें स्थान पर है। हाल में लिस्टेड हुई कंपनियों के बारे में और जानने के लिए ईटी इनवेस्टर्स गाइड के आगामी संस्करणों पर निगाहें बनाए रखें।
हमने कैसे तैयार की सूची?
कंपनियों की सूची तैयार करने के लिए हमने कारोबारी साल 2010 के दौरान 1,000 करोड़ रुपए से कम शुद्ध बिक्री रखने वाली फर्मों को इसमें शामिल किया है। संदेहास्पद विश्वसनीयता रखने वाली छोटी कंपनियों को इसके दायरे से बाहर रखने के उद्देश्य से हमने उन कंपनियों को फेहरिस्त से बाहर कर दिया, जिनका माकेर्ट कैपिटलाइजेशन 50 करोड़ रुपए से कम है।
अंतिम सूची में ऐसी कंपनियां शामिल हैं, जो बीते तीन साल के दौरान आरओसीई 15 फीसदी से ज्यादा, बीते तीन साल में डीईआर 1.5 से कम और आईसीआर 5 से ऊपर रखने में कामयाब रही हैं। पिछले तीन साल के दौरान एकबार से ज्यादा लाभांश न देने वाली या चूकने वाली कंपनियों और एक साल से ज्यादा वक्त तक नेगेटिव ऑपरेटिंग कैश फ्लो वाले खिलाडि़यों को भी बाहर का दरवाजा दिखा दिया गया। इसके बाद हमारे पास मजबूत वित्तीय स्थिति वाली केवल 140 कंपनियां बचीं। क्योंकि हम सबसे तेज बढ़ती छोटी कंपनियों को चिन्हित करने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए हमने इन सभी कंपनियों के लिए बिक्री और मुनाफे की वेटेड औसत बढ़त दरों का आकलन किया।
सबसे ज्यादा अहमियत कारोबारी साल 2010 की ग्रोथ को दी गई। आखिरकार, तीन साल की बिक्री और मुनाफे की बढ़त और आरओसीई को 30:30:40 का वेटेज दिया गया, जिसके बाद अंतिम रैंकिंग का फैसला किया गया।
हमने ऐसी कंपनियों को भी न चुनने का फैसला किया, जिन्होंने तेज ग्रोथ तक पहुंचने के लिए अपनी बैलेंस शीट पर अतिरिक्त दबाव झेला। हमारी सूची में नकदी जुटाने में मजबूती रखने वाली, नियमित लाभांश देने वाली और बैलेंस शीट पर कर्ज का बोझ कम रखने वाली कंपनियां शामिल हैं। ये कंपनियां फंड के खर्च की तुलना में कारोबार में निवेश की गई रकम पर कहीं ज्यादा पूंजी कमाने में कामयाब हो रही हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कर्जदाताओं और इक्विटी साझेदारों को भुगतान करने के बाद भी उनके पास कारोबार में दोबारा निवेश करने के लिए रकम बची रहेगी। कम कर्ज और ज्यादा इंटरेस्ट कवरेज गाढ़े वक्त में उनका सतत प्रदर्शन सुनिश्चित करेगा।
इन कंपनियों ने सूची में जगह बनाने के लिए निरंतर बेहतरीन प्रदर्शन किया है। लेकिन याद रखिए कि हमारी 100 सबसे तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की सूची, कोई अकेला निवेश ट्रिगर नहीं है। यह निवेश से जुड़ा अध्ययन शुरू करने के लिए प्रवेश बिंदु जरूर मुहैया कराता है। इसलिए निवेश करते रहिए...
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1,400 करोड़ रुपए से ज्यादा में बिका दुनिया का सबसे कीमती फ्लैट
लंदन : मोनैको स्थित दुनिया के सबसे कीमती फ्लैट 20 करोड़ पाउंड में बिक्री हो गई है।
फ्लैट के मुख्य कमरे में पूर्व मालिक की रहस्यमय हत्या के बावजूद इसकी इतनी अधिक कीमत मिली है।
अखबार 'डेली मेल' के मुताबिक खाड़ी देश के एक निवेशक ने 97 सालों की लीज पर 24 करोड़ यूरो (19.9 करोड़ पाउंड) में इस फ्लैट को खरीदा है। माना जा रहा है कि यह निवेशक अरब का एक शेख है।
इस फ्लैट में एक लाइब्रेरी, स्वीमिंग पूल और सिनेमा स्क्रीन सहित सभी कुछ है। ऐसा माना जा रहा है कि संपत्ति विक्रेता क्रिश्चन और निक कैंडी को इस सौदे में कम से कम 19 लाख पाउंड का फायदा हुआ है। उन्होंने वर्ष 2000 की शुरुआत में एक ब्रिटिश महिला लिली साफ्रा से 17,500 वर्ग फीट का तीन बेडरूम वाला यह फ्लैट खरीदा था। बैंक में काम करने वाले साफ्रा के पति एडमंड की इस फ्लैट में लगी रहस्यपूर्ण आग में मौत हो गई थी। उस समय इसकी कीमत मुश्किल से एक करोड़ पाउंड थी।
फ्लैट के मुख्य कमरे में पूर्व मालिक की रहस्यमय हत्या के बावजूद इसकी इतनी अधिक कीमत मिली है।
अखबार 'डेली मेल' के मुताबिक खाड़ी देश के एक निवेशक ने 97 सालों की लीज पर 24 करोड़ यूरो (19.9 करोड़ पाउंड) में इस फ्लैट को खरीदा है। माना जा रहा है कि यह निवेशक अरब का एक शेख है।
इस फ्लैट में एक लाइब्रेरी, स्वीमिंग पूल और सिनेमा स्क्रीन सहित सभी कुछ है। ऐसा माना जा रहा है कि संपत्ति विक्रेता क्रिश्चन और निक कैंडी को इस सौदे में कम से कम 19 लाख पाउंड का फायदा हुआ है। उन्होंने वर्ष 2000 की शुरुआत में एक ब्रिटिश महिला लिली साफ्रा से 17,500 वर्ग फीट का तीन बेडरूम वाला यह फ्लैट खरीदा था। बैंक में काम करने वाले साफ्रा के पति एडमंड की इस फ्लैट में लगी रहस्यपूर्ण आग में मौत हो गई थी। उस समय इसकी कीमत मुश्किल से एक करोड़ पाउंड थी।
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Sep 3, 2010
जानिए क्या है ‘क्यूआईबी’
क्यूआईबी या क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशन बायर्स यानि वो खरीदार जिन्हे सेबी ने रेकमेंड किया है और जिनके पास पहले से ही बड़ा फंड होता है। ये खरीदार बड़े पैमाने पर शेयर्स की खरीद करते हैं। इनमें शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंक, इरडा के पास रजिस्टर्ड इंश्योरेंस कंपनियां, म्यूचुअल फंड हाउस, एफआईआई आदि शामिल हैं। ये सब सेबी द्वारा लीगल रुप से रेकमेंड किए जाते हैं
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Aug 21, 2010
अरबपतियों का INDIA....
कितनी सच्चई है? क्या सचमुच हिंदुस्तान ने इतनी सारी संपदा पैदा कर दी है और अगर की है तो किस उद्देश्य से की है?
ऐसा दावा है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के पहले पूरी दुनिया में डॉलर अरबपतियों के मामले में भारत रूस के बाद दूसरे नंबर पर था। अब हमारे प्रधानमंत्री के एक आर्थिक सलाहकार कहते हैं कि संभवत: हम ऐसे देश हैं, जहां ऐसे अरबपतियों की संख्या सबसे ज्यादा है।
अचानक इतने सारे अरबपति कहां से पैदा हो गए? क्या वे सॉफ्टवेअर उद्यमी हैं? नहीं। क्या वे रचनात्मक व्यवसाय से ताल्लुक रखने वाले हैं? नहीं। क्या वे मीडिया के लोग हैं? नहीं। क्या हमने गूगल, फेसबुक या ट्विटर बनाया है? नहीं। विश्व के सर्वश्रेष्ठ १क्क् ब्रांडों में कितने हमारे हैं? टाटा और संभवत: एयरटेल को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा वैश्विक ब्रांड है।
प्रतिवर्ष हम कितने नए आविष्कार और वैश्विक स्तर के पेंटेंट रजिस्टर करते हैं? आप उनकी संख्या अपनी उंगलियों पर गिन सकते हैं। फिर इतनी विपुल धन-संपदा कहां से आ गई? बिल्कुल उसी तरह, जिस तरह रूसी अरबपतियों ने अपनी संपदा का निर्माण किया। सत्ता और जोड़गांठ के कामों में लगे हुए लोगों से नजदीकियां बनाकर, उन चीजों को हथियाकर जो दरअसल हमारी और आपकी हैं। हिंदुस्तान के समस्त नए धन का अधिकांश हिस्सा संदिग्ध जमीनों, रियल इस्टेट के धंधे, गैरकानूनी खनन, सरकारी ठेकों, विशेष आर्थिक क्षेत्रों, जो कभी अस्तित्व में आ ही नहीं सके, से आ रहा है।
दरअसल उन विशेष आर्थिक क्षेत्रों को अस्तित्व में लाना मकसद था भी नहीं, बल्कि उसका मकसद गरीब किसानों और उससे भी ज्यादा गरीब आदिवासियों को विस्थापित कर राज्य से मुनाफा वसूलना था। हम दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों से मुकाबला करने के लिए 117 मंजिल वाले ऊंचे टॉवर खड़े कर रहे हैं, जबकि हमारे शहरों में पर्याप्त बिजली, पानी, पार्क, सड़कें और सार्वजनिक परिवहन की भी कोई व्यवस्था नहीं है। इन ऊंचे-ऊंचे टॉवरों के फ्लैट कौन खरीद रहा है? ये फ्लैट वे लोग खरीद रहे हैं, जो कानूनों को तोड़ते-मरोड़ते हैं, जो मंजूरी देते हैं।
जो यह मुमकिन बनाते हैं कि ये ऊंचे टॉवर खड़े किए जा सकें। ये वे लोग हैं, जो ये सुनिश्चित करते हैं कि मुझसे और आपसे पानी और बिजली छीनकर इन टॉवरों तक पहुंचाई जा सके। नेता, बाबू, बिल्डर, सत्ता के दलाल उनके इर्द-गिर्द छाए हुए हैं। यह हिंदुस्तान का सबसे शांत और सुकूनदेह नेटवर्क है। सबसे अमीर है और सबसे ज्यादा भ्रष्ट भी। नहीं, ये बात मैं नहीं कह रहा हूं। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार ने यह बात कही। कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़ा अनैतिकता और लालच का हर कांड यही बता रहा है।
600 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट में ये लोग 36,000 करोड़ रुपए निगल गए और अभी तक निगलते जा रहे हैं। इस लूट का परिमाण और इसका आकार इतना बड़ा था कि पूरी दुनिया के सामने भारत ने अपनी प्रतिष्ठा खो दी। रूस का विनाशकारी तत्व चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद यहां भी आ पहुंचा है। इसने हिंदुस्तान में सच्चे अर्थो में और बड़ी मजबूती से अपनी जड़ें जमा ली हैं। बिना कहे चुपके-चुपके निजीकरण हो रहा है। सिर्फ मुंबई के बिल्डरों को पता है कि माल को किस तरह बांटना है।
किससे लेकर किसको देना है, किस चीज के बदले में देना है। वे अपना मुंह नहीं खोल रहे हैं क्योंकि माल पाने के लिए वे खुद कतार में लगे हुए हैं और वे भलीभांति जानते हैं कि अगर कोई इसके खिलाफ गुस्सा प्रकट करेगा तो यह व्यवस्था किस तरह उससे प्रतिशोध ले सकती है। हर कोई जानता है कि जो भी कीमत चुकाने को तैयार हो, मुंबई की जमीन का एक-एक कोना उसके हाथों बिकने को तैयार है। पार्क, भिखारियों के घर, बूढ़े लोगों के आशियाने, वक्फ की संपत्ति, सारी झुग्गी-झोपड़ियां, समंदर के आसपास की वो जमीनें जहां नमक बनता है, मैंग्रूव्स (एक किस्म की झाड़ी, जो समंदर किनारे बसे शहरों में उगाई जाती है), पुरानी विरासत वाली संपत्ति, पहाड़, जंगल, समुद्र तट की जमीनें सबकुछ बिकने के लिए तैयार है। अब कुछ भी पवित्र नहीं है।
सीआरजेड (कोस्टल रेगुलेशन जोन) का भी कोई अर्थ नहीं है। सबकुछ हथियाने, कब्जा करने के लिए तैयार है। इतनी बड़ी संख्या में घर बनाए जा रहे हैं, जितने खरीदने वाले लोग भी नहीं हैं। इतने ऑफिस बन रहे हैं, जितनी शहर को कभी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। एक के बाद एक बड़ी संख्या में मॉल उग रहे हैं, जहां बिक्री कम-से-कम होती जा रही है। फिर भी कीमतें कम नहीं हो रहीं क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो मुनाफाखोरों को नुकसान होगा और आम आदमी को फायदा। और आखिर कौन चाहता है कि आम आदमी को फायदा पहुंचे?
निश्चित ही सरकार तो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती। एक समय ऐसा था, जब 64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले के कारण 400 सांसदों के साथ सरकार गिर गई थी। आज हजारों करोड़ रुपयों के घोटाले हो रहे हैं, फिर भी किसी को कोई डर नहीं है क्योंकि विपक्ष भी मुनाफे के इस धंधे में दीवार नहीं बनना चाहता। हर कोई लूट में हिस्सेदार है और जब कोई पत्रकार या आरटीआई कार्यकर्ता इसके खिलाफ खड़ा होता है तो उसका मुंह बंद करने के लिए सिर्फ भाड़े के हत्यारों या झूठे मुकदमे की जरूरत होती है।
उसका मुंह बंद हो जाएगा। आप इसे जो कहना चाहें कहें - चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद, सरकारी खजाने की लूट या सीधे-सादे शब्दों में भ्रष्टाचार। लेकिन जो सरकार में बैठे हैं, वे इसे विकास कहते हैं। लेकिन यह कैसा विकास है, जिसमें मैं देख रहा हूं कि और-और लोग बेघर होते जा रहे हैं, और-और भिखारी बढ़ते जा रहे हैं, और-और बीमार लोग हैं, जो बिना इलाज के मर रहे हैं क्योंकि इलाज के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। और-और गरीब लोग और-और दरिद्रता और अभाव की हालत में जी रहे हैं? यह कैसा विकास है कि मैं और-और आत्महत्या कर रहे किसानों के बारे में पढ़ता हूं, और-और विद्यार्थी आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि आखिर उनका भविष्य क्या है।
और-और लोग अपनी नौकरियां खोते जा रहे हैं, वे बेरोजगार हो रहे हैं। क्या हम हिंदुस्तान को और ज्यादा कुंठाओं, अपराधों और हिंसा के लिए तैयार कर रहे हैं? अगर ऐसा हुआ तो फिर हमारे इतने सारे अरबपति कहां जाएंगे? - लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार हैंकितनी सच्चई है? क्या सचमुच हिंदुस्तान ने इतनी सारी संपदा पैदा कर दी है और अगर की है तो किस उद्देश्य से की है?
ऐसा दावा है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के पहले पूरी दुनिया में डॉलर अरबपतियों के मामले में भारत रूस के बाद दूसरे नंबर पर था। अब हमारे प्रधानमंत्री के एक आर्थिक सलाहकार कहते हैं कि संभवत: हम ऐसे देश हैं, जहां ऐसे अरबपतियों की संख्या सबसे ज्यादा है।
अचानक इतने सारे अरबपति कहां से पैदा हो गए? क्या वे सॉफ्टवेअर उद्यमी हैं? नहीं। क्या वे रचनात्मक व्यवसाय से ताल्लुक रखने वाले हैं? नहीं। क्या वे मीडिया के लोग हैं? नहीं। क्या हमने गूगल, फेसबुक या ट्विटर बनाया है? नहीं। विश्व के सर्वश्रेष्ठ १क्क् ब्रांडों में कितने हमारे हैं? टाटा और संभवत: एयरटेल को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा वैश्विक ब्रांड है।
प्रतिवर्ष हम कितने नए आविष्कार और वैश्विक स्तर के पेंटेंट रजिस्टर करते हैं? आप उनकी संख्या अपनी उंगलियों पर गिन सकते हैं। फिर इतनी विपुल धन-संपदा कहां से आ गई? बिल्कुल उसी तरह, जिस तरह रूसी अरबपतियों ने अपनी संपदा का निर्माण किया। सत्ता और जोड़गांठ के कामों में लगे हुए लोगों से नजदीकियां बनाकर, उन चीजों को हथियाकर जो दरअसल हमारी और आपकी हैं। हिंदुस्तान के समस्त नए धन का अधिकांश हिस्सा संदिग्ध जमीनों, रियल इस्टेट के धंधे, गैरकानूनी खनन, सरकारी ठेकों, विशेष आर्थिक क्षेत्रों, जो कभी अस्तित्व में आ ही नहीं सके, से आ रहा है।
दरअसल उन विशेष आर्थिक क्षेत्रों को अस्तित्व में लाना मकसद था भी नहीं, बल्कि उसका मकसद गरीब किसानों और उससे भी ज्यादा गरीब आदिवासियों को विस्थापित कर राज्य से मुनाफा वसूलना था। हम दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों से मुकाबला करने के लिए 117 मंजिल वाले ऊंचे टॉवर खड़े कर रहे हैं, जबकि हमारे शहरों में पर्याप्त बिजली, पानी, पार्क, सड़कें और सार्वजनिक परिवहन की भी कोई व्यवस्था नहीं है। इन ऊंचे-ऊंचे टॉवरों के फ्लैट कौन खरीद रहा है? ये फ्लैट वे लोग खरीद रहे हैं, जो कानूनों को तोड़ते-मरोड़ते हैं, जो मंजूरी देते हैं।
जो यह मुमकिन बनाते हैं कि ये ऊंचे टॉवर खड़े किए जा सकें। ये वे लोग हैं, जो ये सुनिश्चित करते हैं कि मुझसे और आपसे पानी और बिजली छीनकर इन टॉवरों तक पहुंचाई जा सके। नेता, बाबू, बिल्डर, सत्ता के दलाल उनके इर्द-गिर्द छाए हुए हैं। यह हिंदुस्तान का सबसे शांत और सुकूनदेह नेटवर्क है। सबसे अमीर है और सबसे ज्यादा भ्रष्ट भी। नहीं, ये बात मैं नहीं कह रहा हूं। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार ने यह बात कही। कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़ा अनैतिकता और लालच का हर कांड यही बता रहा है।
600 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट में ये लोग 36,000 करोड़ रुपए निगल गए और अभी तक निगलते जा रहे हैं। इस लूट का परिमाण और इसका आकार इतना बड़ा था कि पूरी दुनिया के सामने भारत ने अपनी प्रतिष्ठा खो दी। रूस का विनाशकारी तत्व चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद यहां भी आ पहुंचा है। इसने हिंदुस्तान में सच्चे अर्थो में और बड़ी मजबूती से अपनी जड़ें जमा ली हैं। बिना कहे चुपके-चुपके निजीकरण हो रहा है। सिर्फ मुंबई के बिल्डरों को पता है कि माल को किस तरह बांटना है।
किससे लेकर किसको देना है, किस चीज के बदले में देना है। वे अपना मुंह नहीं खोल रहे हैं क्योंकि माल पाने के लिए वे खुद कतार में लगे हुए हैं और वे भलीभांति जानते हैं कि अगर कोई इसके खिलाफ गुस्सा प्रकट करेगा तो यह व्यवस्था किस तरह उससे प्रतिशोध ले सकती है। हर कोई जानता है कि जो भी कीमत चुकाने को तैयार हो, मुंबई की जमीन का एक-एक कोना उसके हाथों बिकने को तैयार है। पार्क, भिखारियों के घर, बूढ़े लोगों के आशियाने, वक्फ की संपत्ति, सारी झुग्गी-झोपड़ियां, समंदर के आसपास की वो जमीनें जहां नमक बनता है, मैंग्रूव्स (एक किस्म की झाड़ी, जो समंदर किनारे बसे शहरों में उगाई जाती है), पुरानी विरासत वाली संपत्ति, पहाड़, जंगल, समुद्र तट की जमीनें सबकुछ बिकने के लिए तैयार है। अब कुछ भी पवित्र नहीं है।
सीआरजेड (कोस्टल रेगुलेशन जोन) का भी कोई अर्थ नहीं है। सबकुछ हथियाने, कब्जा करने के लिए तैयार है। इतनी बड़ी संख्या में घर बनाए जा रहे हैं, जितने खरीदने वाले लोग भी नहीं हैं। इतने ऑफिस बन रहे हैं, जितनी शहर को कभी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। एक के बाद एक बड़ी संख्या में मॉल उग रहे हैं, जहां बिक्री कम-से-कम होती जा रही है। फिर भी कीमतें कम नहीं हो रहीं क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो मुनाफाखोरों को नुकसान होगा और आम आदमी को फायदा। और आखिर कौन चाहता है कि आम आदमी को फायदा पहुंचे?
निश्चित ही सरकार तो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती। एक समय ऐसा था, जब 64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले के कारण 400 सांसदों के साथ सरकार गिर गई थी। आज हजारों करोड़ रुपयों के घोटाले हो रहे हैं, फिर भी किसी को कोई डर नहीं है क्योंकि विपक्ष भी मुनाफे के इस धंधे में दीवार नहीं बनना चाहता। हर कोई लूट में हिस्सेदार है और जब कोई पत्रकार या आरटीआई कार्यकर्ता इसके खिलाफ खड़ा होता है तो उसका मुंह बंद करने के लिए सिर्फ भाड़े के हत्यारों या झूठे मुकदमे की जरूरत होती है।
उसका मुंह बंद हो जाएगा। आप इसे जो कहना चाहें कहें - चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद, सरकारी खजाने की लूट या सीधे-सादे शब्दों में भ्रष्टाचार। लेकिन जो सरकार में बैठे हैं, वे इसे विकास कहते हैं। लेकिन यह कैसा विकास है, जिसमें मैं देख रहा हूं कि और-और लोग बेघर होते जा रहे हैं, और-और भिखारी बढ़ते जा रहे हैं, और-और बीमार लोग हैं, जो बिना इलाज के मर रहे हैं क्योंकि इलाज के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। और-और गरीब लोग और-और दरिद्रता और अभाव की हालत में जी रहे हैं? यह कैसा विकास है कि मैं और-और आत्महत्या कर रहे किसानों के बारे में पढ़ता हूं, और-और विद्यार्थी आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि आखिर उनका भविष्य क्या है।
और-और लोग अपनी नौकरियां खोते जा रहे हैं, वे बेरोजगार हो रहे हैं। क्या हम हिंदुस्तान को और ज्यादा कुंठाओं, अपराधों और हिंसा के लिए तैयार कर रहे हैं? अगर ऐसा हुआ तो फिर हमारे इतने सारे अरबपति कहां जाएंगे? - लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार हैं
ऐसा दावा है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के पहले पूरी दुनिया में डॉलर अरबपतियों के मामले में भारत रूस के बाद दूसरे नंबर पर था। अब हमारे प्रधानमंत्री के एक आर्थिक सलाहकार कहते हैं कि संभवत: हम ऐसे देश हैं, जहां ऐसे अरबपतियों की संख्या सबसे ज्यादा है।
अचानक इतने सारे अरबपति कहां से पैदा हो गए? क्या वे सॉफ्टवेअर उद्यमी हैं? नहीं। क्या वे रचनात्मक व्यवसाय से ताल्लुक रखने वाले हैं? नहीं। क्या वे मीडिया के लोग हैं? नहीं। क्या हमने गूगल, फेसबुक या ट्विटर बनाया है? नहीं। विश्व के सर्वश्रेष्ठ १क्क् ब्रांडों में कितने हमारे हैं? टाटा और संभवत: एयरटेल को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा वैश्विक ब्रांड है।
प्रतिवर्ष हम कितने नए आविष्कार और वैश्विक स्तर के पेंटेंट रजिस्टर करते हैं? आप उनकी संख्या अपनी उंगलियों पर गिन सकते हैं। फिर इतनी विपुल धन-संपदा कहां से आ गई? बिल्कुल उसी तरह, जिस तरह रूसी अरबपतियों ने अपनी संपदा का निर्माण किया। सत्ता और जोड़गांठ के कामों में लगे हुए लोगों से नजदीकियां बनाकर, उन चीजों को हथियाकर जो दरअसल हमारी और आपकी हैं। हिंदुस्तान के समस्त नए धन का अधिकांश हिस्सा संदिग्ध जमीनों, रियल इस्टेट के धंधे, गैरकानूनी खनन, सरकारी ठेकों, विशेष आर्थिक क्षेत्रों, जो कभी अस्तित्व में आ ही नहीं सके, से आ रहा है।
दरअसल उन विशेष आर्थिक क्षेत्रों को अस्तित्व में लाना मकसद था भी नहीं, बल्कि उसका मकसद गरीब किसानों और उससे भी ज्यादा गरीब आदिवासियों को विस्थापित कर राज्य से मुनाफा वसूलना था। हम दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों से मुकाबला करने के लिए 117 मंजिल वाले ऊंचे टॉवर खड़े कर रहे हैं, जबकि हमारे शहरों में पर्याप्त बिजली, पानी, पार्क, सड़कें और सार्वजनिक परिवहन की भी कोई व्यवस्था नहीं है। इन ऊंचे-ऊंचे टॉवरों के फ्लैट कौन खरीद रहा है? ये फ्लैट वे लोग खरीद रहे हैं, जो कानूनों को तोड़ते-मरोड़ते हैं, जो मंजूरी देते हैं।
जो यह मुमकिन बनाते हैं कि ये ऊंचे टॉवर खड़े किए जा सकें। ये वे लोग हैं, जो ये सुनिश्चित करते हैं कि मुझसे और आपसे पानी और बिजली छीनकर इन टॉवरों तक पहुंचाई जा सके। नेता, बाबू, बिल्डर, सत्ता के दलाल उनके इर्द-गिर्द छाए हुए हैं। यह हिंदुस्तान का सबसे शांत और सुकूनदेह नेटवर्क है। सबसे अमीर है और सबसे ज्यादा भ्रष्ट भी। नहीं, ये बात मैं नहीं कह रहा हूं। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार ने यह बात कही। कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़ा अनैतिकता और लालच का हर कांड यही बता रहा है।
600 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट में ये लोग 36,000 करोड़ रुपए निगल गए और अभी तक निगलते जा रहे हैं। इस लूट का परिमाण और इसका आकार इतना बड़ा था कि पूरी दुनिया के सामने भारत ने अपनी प्रतिष्ठा खो दी। रूस का विनाशकारी तत्व चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद यहां भी आ पहुंचा है। इसने हिंदुस्तान में सच्चे अर्थो में और बड़ी मजबूती से अपनी जड़ें जमा ली हैं। बिना कहे चुपके-चुपके निजीकरण हो रहा है। सिर्फ मुंबई के बिल्डरों को पता है कि माल को किस तरह बांटना है।
किससे लेकर किसको देना है, किस चीज के बदले में देना है। वे अपना मुंह नहीं खोल रहे हैं क्योंकि माल पाने के लिए वे खुद कतार में लगे हुए हैं और वे भलीभांति जानते हैं कि अगर कोई इसके खिलाफ गुस्सा प्रकट करेगा तो यह व्यवस्था किस तरह उससे प्रतिशोध ले सकती है। हर कोई जानता है कि जो भी कीमत चुकाने को तैयार हो, मुंबई की जमीन का एक-एक कोना उसके हाथों बिकने को तैयार है। पार्क, भिखारियों के घर, बूढ़े लोगों के आशियाने, वक्फ की संपत्ति, सारी झुग्गी-झोपड़ियां, समंदर के आसपास की वो जमीनें जहां नमक बनता है, मैंग्रूव्स (एक किस्म की झाड़ी, जो समंदर किनारे बसे शहरों में उगाई जाती है), पुरानी विरासत वाली संपत्ति, पहाड़, जंगल, समुद्र तट की जमीनें सबकुछ बिकने के लिए तैयार है। अब कुछ भी पवित्र नहीं है।
सीआरजेड (कोस्टल रेगुलेशन जोन) का भी कोई अर्थ नहीं है। सबकुछ हथियाने, कब्जा करने के लिए तैयार है। इतनी बड़ी संख्या में घर बनाए जा रहे हैं, जितने खरीदने वाले लोग भी नहीं हैं। इतने ऑफिस बन रहे हैं, जितनी शहर को कभी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। एक के बाद एक बड़ी संख्या में मॉल उग रहे हैं, जहां बिक्री कम-से-कम होती जा रही है। फिर भी कीमतें कम नहीं हो रहीं क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो मुनाफाखोरों को नुकसान होगा और आम आदमी को फायदा। और आखिर कौन चाहता है कि आम आदमी को फायदा पहुंचे?
निश्चित ही सरकार तो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती। एक समय ऐसा था, जब 64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले के कारण 400 सांसदों के साथ सरकार गिर गई थी। आज हजारों करोड़ रुपयों के घोटाले हो रहे हैं, फिर भी किसी को कोई डर नहीं है क्योंकि विपक्ष भी मुनाफे के इस धंधे में दीवार नहीं बनना चाहता। हर कोई लूट में हिस्सेदार है और जब कोई पत्रकार या आरटीआई कार्यकर्ता इसके खिलाफ खड़ा होता है तो उसका मुंह बंद करने के लिए सिर्फ भाड़े के हत्यारों या झूठे मुकदमे की जरूरत होती है।
उसका मुंह बंद हो जाएगा। आप इसे जो कहना चाहें कहें - चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद, सरकारी खजाने की लूट या सीधे-सादे शब्दों में भ्रष्टाचार। लेकिन जो सरकार में बैठे हैं, वे इसे विकास कहते हैं। लेकिन यह कैसा विकास है, जिसमें मैं देख रहा हूं कि और-और लोग बेघर होते जा रहे हैं, और-और भिखारी बढ़ते जा रहे हैं, और-और बीमार लोग हैं, जो बिना इलाज के मर रहे हैं क्योंकि इलाज के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। और-और गरीब लोग और-और दरिद्रता और अभाव की हालत में जी रहे हैं? यह कैसा विकास है कि मैं और-और आत्महत्या कर रहे किसानों के बारे में पढ़ता हूं, और-और विद्यार्थी आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि आखिर उनका भविष्य क्या है।
और-और लोग अपनी नौकरियां खोते जा रहे हैं, वे बेरोजगार हो रहे हैं। क्या हम हिंदुस्तान को और ज्यादा कुंठाओं, अपराधों और हिंसा के लिए तैयार कर रहे हैं? अगर ऐसा हुआ तो फिर हमारे इतने सारे अरबपति कहां जाएंगे? - लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार हैंकितनी सच्चई है? क्या सचमुच हिंदुस्तान ने इतनी सारी संपदा पैदा कर दी है और अगर की है तो किस उद्देश्य से की है?
ऐसा दावा है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के पहले पूरी दुनिया में डॉलर अरबपतियों के मामले में भारत रूस के बाद दूसरे नंबर पर था। अब हमारे प्रधानमंत्री के एक आर्थिक सलाहकार कहते हैं कि संभवत: हम ऐसे देश हैं, जहां ऐसे अरबपतियों की संख्या सबसे ज्यादा है।
अचानक इतने सारे अरबपति कहां से पैदा हो गए? क्या वे सॉफ्टवेअर उद्यमी हैं? नहीं। क्या वे रचनात्मक व्यवसाय से ताल्लुक रखने वाले हैं? नहीं। क्या वे मीडिया के लोग हैं? नहीं। क्या हमने गूगल, फेसबुक या ट्विटर बनाया है? नहीं। विश्व के सर्वश्रेष्ठ १क्क् ब्रांडों में कितने हमारे हैं? टाटा और संभवत: एयरटेल को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा वैश्विक ब्रांड है।
प्रतिवर्ष हम कितने नए आविष्कार और वैश्विक स्तर के पेंटेंट रजिस्टर करते हैं? आप उनकी संख्या अपनी उंगलियों पर गिन सकते हैं। फिर इतनी विपुल धन-संपदा कहां से आ गई? बिल्कुल उसी तरह, जिस तरह रूसी अरबपतियों ने अपनी संपदा का निर्माण किया। सत्ता और जोड़गांठ के कामों में लगे हुए लोगों से नजदीकियां बनाकर, उन चीजों को हथियाकर जो दरअसल हमारी और आपकी हैं। हिंदुस्तान के समस्त नए धन का अधिकांश हिस्सा संदिग्ध जमीनों, रियल इस्टेट के धंधे, गैरकानूनी खनन, सरकारी ठेकों, विशेष आर्थिक क्षेत्रों, जो कभी अस्तित्व में आ ही नहीं सके, से आ रहा है।
दरअसल उन विशेष आर्थिक क्षेत्रों को अस्तित्व में लाना मकसद था भी नहीं, बल्कि उसका मकसद गरीब किसानों और उससे भी ज्यादा गरीब आदिवासियों को विस्थापित कर राज्य से मुनाफा वसूलना था। हम दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों से मुकाबला करने के लिए 117 मंजिल वाले ऊंचे टॉवर खड़े कर रहे हैं, जबकि हमारे शहरों में पर्याप्त बिजली, पानी, पार्क, सड़कें और सार्वजनिक परिवहन की भी कोई व्यवस्था नहीं है। इन ऊंचे-ऊंचे टॉवरों के फ्लैट कौन खरीद रहा है? ये फ्लैट वे लोग खरीद रहे हैं, जो कानूनों को तोड़ते-मरोड़ते हैं, जो मंजूरी देते हैं।
जो यह मुमकिन बनाते हैं कि ये ऊंचे टॉवर खड़े किए जा सकें। ये वे लोग हैं, जो ये सुनिश्चित करते हैं कि मुझसे और आपसे पानी और बिजली छीनकर इन टॉवरों तक पहुंचाई जा सके। नेता, बाबू, बिल्डर, सत्ता के दलाल उनके इर्द-गिर्द छाए हुए हैं। यह हिंदुस्तान का सबसे शांत और सुकूनदेह नेटवर्क है। सबसे अमीर है और सबसे ज्यादा भ्रष्ट भी। नहीं, ये बात मैं नहीं कह रहा हूं। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार ने यह बात कही। कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़ा अनैतिकता और लालच का हर कांड यही बता रहा है।
600 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट में ये लोग 36,000 करोड़ रुपए निगल गए और अभी तक निगलते जा रहे हैं। इस लूट का परिमाण और इसका आकार इतना बड़ा था कि पूरी दुनिया के सामने भारत ने अपनी प्रतिष्ठा खो दी। रूस का विनाशकारी तत्व चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद यहां भी आ पहुंचा है। इसने हिंदुस्तान में सच्चे अर्थो में और बड़ी मजबूती से अपनी जड़ें जमा ली हैं। बिना कहे चुपके-चुपके निजीकरण हो रहा है। सिर्फ मुंबई के बिल्डरों को पता है कि माल को किस तरह बांटना है।
किससे लेकर किसको देना है, किस चीज के बदले में देना है। वे अपना मुंह नहीं खोल रहे हैं क्योंकि माल पाने के लिए वे खुद कतार में लगे हुए हैं और वे भलीभांति जानते हैं कि अगर कोई इसके खिलाफ गुस्सा प्रकट करेगा तो यह व्यवस्था किस तरह उससे प्रतिशोध ले सकती है। हर कोई जानता है कि जो भी कीमत चुकाने को तैयार हो, मुंबई की जमीन का एक-एक कोना उसके हाथों बिकने को तैयार है। पार्क, भिखारियों के घर, बूढ़े लोगों के आशियाने, वक्फ की संपत्ति, सारी झुग्गी-झोपड़ियां, समंदर के आसपास की वो जमीनें जहां नमक बनता है, मैंग्रूव्स (एक किस्म की झाड़ी, जो समंदर किनारे बसे शहरों में उगाई जाती है), पुरानी विरासत वाली संपत्ति, पहाड़, जंगल, समुद्र तट की जमीनें सबकुछ बिकने के लिए तैयार है। अब कुछ भी पवित्र नहीं है।
सीआरजेड (कोस्टल रेगुलेशन जोन) का भी कोई अर्थ नहीं है। सबकुछ हथियाने, कब्जा करने के लिए तैयार है। इतनी बड़ी संख्या में घर बनाए जा रहे हैं, जितने खरीदने वाले लोग भी नहीं हैं। इतने ऑफिस बन रहे हैं, जितनी शहर को कभी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। एक के बाद एक बड़ी संख्या में मॉल उग रहे हैं, जहां बिक्री कम-से-कम होती जा रही है। फिर भी कीमतें कम नहीं हो रहीं क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो मुनाफाखोरों को नुकसान होगा और आम आदमी को फायदा। और आखिर कौन चाहता है कि आम आदमी को फायदा पहुंचे?
निश्चित ही सरकार तो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती। एक समय ऐसा था, जब 64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले के कारण 400 सांसदों के साथ सरकार गिर गई थी। आज हजारों करोड़ रुपयों के घोटाले हो रहे हैं, फिर भी किसी को कोई डर नहीं है क्योंकि विपक्ष भी मुनाफे के इस धंधे में दीवार नहीं बनना चाहता। हर कोई लूट में हिस्सेदार है और जब कोई पत्रकार या आरटीआई कार्यकर्ता इसके खिलाफ खड़ा होता है तो उसका मुंह बंद करने के लिए सिर्फ भाड़े के हत्यारों या झूठे मुकदमे की जरूरत होती है।
उसका मुंह बंद हो जाएगा। आप इसे जो कहना चाहें कहें - चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद, सरकारी खजाने की लूट या सीधे-सादे शब्दों में भ्रष्टाचार। लेकिन जो सरकार में बैठे हैं, वे इसे विकास कहते हैं। लेकिन यह कैसा विकास है, जिसमें मैं देख रहा हूं कि और-और लोग बेघर होते जा रहे हैं, और-और भिखारी बढ़ते जा रहे हैं, और-और बीमार लोग हैं, जो बिना इलाज के मर रहे हैं क्योंकि इलाज के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। और-और गरीब लोग और-और दरिद्रता और अभाव की हालत में जी रहे हैं? यह कैसा विकास है कि मैं और-और आत्महत्या कर रहे किसानों के बारे में पढ़ता हूं, और-और विद्यार्थी आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि आखिर उनका भविष्य क्या है।
और-और लोग अपनी नौकरियां खोते जा रहे हैं, वे बेरोजगार हो रहे हैं। क्या हम हिंदुस्तान को और ज्यादा कुंठाओं, अपराधों और हिंसा के लिए तैयार कर रहे हैं? अगर ऐसा हुआ तो फिर हमारे इतने सारे अरबपति कहां जाएंगे? - लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार हैं
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STOCK MARKET
Aug 16, 2010
टाटा समूह बना देश का सबसे बड़ा ओद्योगिक समूह
ई दिल्ली. टाटा ग्रुप का अगले चैयरमेन और रतन टाटा का उत्तराधिकारी बनने के लिए उम्मीदवार की खोज के बीच ही टाटा समूह 3 लाख 71 हजार करोड़ की मार्केट वेल्यू के साथ भारत का सबसे बड़ा ओद्योगिक समूह बन गया है। इसी के साथ ही टाटा समूह की बाजार वेल्यू अंबानी बंधुओं की कंपनियों से भी ज्यादा हो गई है।
टाटा समूह के बाद देश की सबसे बड़ी कंपनी मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज (3,21,750 करोड़ रुपए) है। रिलायंस इंडस्ट्रीज को देश की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी माना गया है। मुकेश अंबानी के बाद 1 लाख 35 हजार करोड़ रुपए मार्केट वेल्यू की अनिल अग्रवाल की स्टरलाइट ग्रप आती है। अनिल अंबानी ग्रुप 1 लाख 25 हजार करोड़ रुपए की मार्केट वेल्यू के साथ चौथे नंबर पर है। ताजा बाजार के मुतबिक सुनील मित्तल की भार्ती ग्रुप 1 लाख 20 हजार करोड़ की मार्केट वेल्यू के साथ इस सूची में पांचवे नंबर पर है।
हालाकि अगर मुकेश और अनिल अंबानी की संपत्ति को एक साथ माना जाए तो टाटा समूह दूसरे नंबर पर आ जाएगा और अंबानी बंधुओ का समूह देश का सबसे बड़ा ओद्योग समूह हो जाएगा। पिछले कुछ महीनों में अंबानी बंधुओ की बढ़ती नजदीकी से भी संकेत मिले है कि दोनो भाई फिर से एक हो सकते हैं।
इस समय दोनों अंबानी बंधुओ की मार्केट वेल्यु करीब 4 लाख 47 हजार करोड़ रुपए है जो टाटा समूह से लगभग 77 हजार करोड़ रुपए ज्यादा है।
गौरतलब है कि टाटा समूह ने देश के सबसे बड़े ओद्योगिक घराने के रूप में मुकेश अंबानी समूह का स्थान उस समय लिया है जब टाटा समूह ने रतन टाटा के उत्तराधिकारी की खोज तेज कर दी है। रतन टाटा 1991 में टाटा समूह के चैयरमेन बने थे और वो 2012 में अपने पद से रिटायर हो रहे हैं।
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