बीएसई पर कारोबार करने वाले शेयरों को ए, बी, टी, एस, टीएस और जेड समूहों में बांटा गया है। इनके अलावा
सिक्योरिटीज के वर्गीकरण के लिए कुछ समूह बनाए गए हैं, जिनमें एफ और जी शामिल हैं।
शेयरों को समूहों में क्यों बांटा जाता है?
आम तौर पर निवेशकों को हर शेयर के बारे पूरी जानकारी नहीं होती। उनकी मदद के लिए ही एक्सचेंज शेयरों को कुछ खास खूबियों या कमियों के आधार पर श्रेणियों में बांट देते हैं, ताकि निवेशकों को निवेश या ट्रेड करते समय उनके बारे में कुछ आधारभूत बातें समझ में आ जाएं।
समूहों में शेयरों का वर्गीकररण किस आधार पर किया जाता है?
शेयरों के वर्गीकरण के लिए उनकी बाजार पूंजी (एम कैप), ट्रेडिंग वॉल्यूम, नतीजे, इतिहास, मुनाफा, लाभांश, हिस्सेदारी और इसी तरह के कुछ मानकों का सहारा लिया जाता है। फरवरी 2008 में बीएसई ने शेयरों के वगीर्करण के लिए तय मानकों को अपडेट किया है।ए समूह के शेयरों को निवेशक और विश्लेषक सबसे भरोसेमंद मानते हैं। इस वर्ग में शामिल किए जाने के लिए जरूरी मानकों में सबसे महत्वपूर्ण बाजार पूंजीकरण है। इस समय ए समूह में कुल 216 शेयर शामिल हैं। एस समूह में बीएसई इंडोनेक्स्ट सूचकांक के शेयरों को शामिल किया गया है। इस सूचकांक का गठन बीएसई ने 7 जनवरी 2005 को किया था। एस ग्रुप में बी समूह के शेयर शामिल होते हैं और इसके अलावा 3 करोड़ रुपए से 30 करोड़ रुपए के बीच की पूंजी वाली कंपनियों, जो केवल क्षेत्रीय एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होती हैं, के शेयर भी एस का हिस्सा होते हैं।
जेड समूह में किस तरह के शेयर शामिल हैं?
जेड समूह के शेयर सबसे ज्यादा गैर भरोसेमंद होते हैं। बीएसई ने यह समूह 1999 में बनाया था। इसमें ऐसी कंपनियों के शेयरों को शामिल किया जाता है, जो सूचीबद्ध होते समय एक्सचेंज द्वारा तय नियमों का पालन करने में असफल रहती हैं। इसमें शेयरधारकों की समस्याओं के प्रति उदासीन और अपने शेयरों के डीमैटेरियलाइजेशन के लिए जरूरी प्रबंध करने में नाकाम रहने वाली कंपनियों को भी शामिल किया जाता है। जो शेयर ए, एस और जेड में शामिल नहीं होते, वे बी समूह में होते हैं। मार्च 2008 से पहले इस समूह के शेयर दो समूहों, बी1 और बी2 में बंटे थे, लेकिन अब इन्हें एक ग्रुप बना दिया गया है। टी समूह में वे शेयर होते हैं, जिन्हें ट्रेड-टू-ट्रेड आधार पर ही खरीदा-बेचा जा सकता है। टीएस समूह में उन्हें रखा गया है जो इंडोनेक्स्ट इंडेक्स में शामिल हैं और जिनमें ट्रेड-टू-ट्रेड आधार पर कारोबार होता है। एफ समूह के तहत तय आय वाले सिक्योरिटीज को रखा गया है और जी ग्रुप में सरकारी सिक्योरिटीज रखे जाते हैं।
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