Sep 28, 2010
डोंगल (Dongle) क्या होता hai
डोंगल वर्ड आपने कई बार सुना होगा। दरअसल डोंगल एक छोटी यूएसबी ड्राइव होती है जिसे कंप्यूटर से कनेक्ट करके सेफली कोई सॉफ्टवेयर रन करवाया जा सकता है। जहां सिक्योरिटी की जरूरत सर्वाधिक होती है वहीं इसे यूज किया जाता है। डोंगल का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है ताकि गैरकानूनी ढंग से सॉफ्टवेयर चोरी न हो।
लेटेस्ट टेक्नॉलॉजी बेस्ड डोंगल फ्लैश ड्राइव की तरह आसानी से कैरी किए जा सकते हैं। डोंगल को पहली बार 1980 में वर्डक्राफ्ट प्रोग्राम पर यूज किया गया था।
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iPO की राह में रिटर्न के साथ करें जोखिम की फिक्र
मुंबई : हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि बाजार की चाल के बारे
में अनुमान लगाना असंभव है। लेकिन बाजार को लेकर कुछ ऐसी चीजें हैं, जिसके बारे में आप भविष्यवाणी कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर जब भी शेयर बाजार नई ऊंचाइयां छूने के करीब पहुंचता है तो बड़ी संख्या में इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) की लंबी कतार लग जाती है।
कोल इंडिया (भारतीय शेयर बाजार का सबसे बड़ा आईपीओ होगा और इसका आकार 14,000 करोड़ रुपए का होगा) के अलावा वा टेक वाबग (वाटर मैनेजमेंट कंपनी), तिरुपति इंक्स, इरोज इंटरनेशनल, माइक्रोसेक कैपिटल जैसी कई छोटी कंपनियां पूंजी जुटाने के लिए बाजार में उतरी हैं।
इनवेस्टमेंट बैंकरों का कहना है कि आने वाले महीनों में कई और कंपनियां पूंजी जुटाने के लिए बाजार में उतर सकती हैं। आईसीआईसीआई के ईडी अनूप बागची का कहना है, 'बाजार में निवेशकों की रुचि बनी हुई है और ऐसे में पिछले काफी समय से पेंडिंग पड़े आईपीओ बाजार में आ सकते हैं।' स्त्रेई कैपिटल मार्केट्स के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर अशोक पारीख का कहना है, 'सेकेंडरी मार्केट में सुधार आ रहा है। जिन कंपनियों के प्रास्पेक्टस को सेबी की मंजूरी मिल चुकी है और जो इंतजार कर रहे हैं, वे कोल इंडिया के आईपीओ के बाजार में आने से पहले अपने हाथ आजमाएंगे।'
घरेलू शेयर बाजार ऐतिहासिक ऊंचाइयां छूने के करीब है और ऐसे में कई निवेशक इसमें अपनी किस्मत आजमाने के लिए फिर से बाजार में उतर चुके हैं। इनमें से कई निवेशकों को प्राइमरी मार्केट(आईपीओ) काफी लुभाता है। उनका मानना है कि आईपीओ एक जैकपॉट की तरह है, जिसमें आप किसी इश्यू को सब्सक्राइब करते हैं और जब कंपनी लिस्ट हो जाती है तो उसे बेच देते हैं।
इनका मानना है कि इस साधारण निवेश नीति पर दांव लगाकर ट्रेडर कुछ हफ्तों में अच्छा खासा मुनाफा बना सकते हैं। हालांकि, जल्द मुनाफा कमाने की यह रणनीति आपको महंगी भी पड़ सकती है। साल 2009 के बाद से 58 कंपनियां आईपीओ बाजार में उतरी हैं। इन 58 कंपनियों में से 22 कंपनियों के शेयर अब भी ऑफर प्राइस के नीचे ट्रेड कर रहे हैं, जबकि करीब 17 कंपनियों ने लिस्टिंग के बाद से निवेशकों को या तो कोई रिटर्न नहीं दिया है या फिर निवेशक ऐसे इश्यूज में अभी घाटे में ही चल रहे हैं।
ऐसे में आईपीओ के जरिए जल्द मोटा मुनाफा कमाने की रणनीति फ्लाप साबित होती है। हालांकि, इसी अवधि में सात आईपीओ ने निवेशकों को 100 फीसदी से ज्यादा रिटर्न दिया है। आईपीओ से रिटर्न हासिल करने के ये आंकडे़ क्या आपको कुछ सबक देते हैं? अगर हां तो वह यह है कि आईपीओ जल्द मुनाफा कमाने का जरिया नहीं हैं। अगर आप आईपीओ से पैसा बनाना चाहते हैं तो दूसरे शेयरों पर दांव लगाने की तरह इसमें भी आपको अपना होम वर्क पूरा करना होगा।
आईपीओ पर दांव लगाने से पहले आपको कंपनी की कारोबारी विश्वसनीयता और उसकी सही प्राइसिंग का अंदाजा लगाना होगा। इसके अलावा आपको यह बात भी तय करनी होगी कि आप आईपीओ से लिस्टिंग गेन हासिल करना चाहते हैं या फिर शेयर की फुल वैल्यू पाने के लिए उसे लंबी अवधि तक शेयर के रूप में होल्ड करना चाहते हैं। आईपीओ पर दांव लगाने से पहले ये बातें आपके लिए काफी मददगार साबित हो सकती हैं।
सबसे पहले आपको यह बात ध्यान में रखने की जरूरत होती है कि आईपीओ में निवेश करना किसी शेयर पर पैसा लगाने जैसा ही होता है। ऐसे में कंपनी के फंडामेंटल के बारे में जानना बहुत जरूरी है। इसमें आपको कंपनी की वित्तीय स्थिति, कंपनी किसी क्षेत्र में काम करती है, इंडस्ट्री में उसकी अहमियत क्या है, इत्यादि के बारे में जानकारी जुटानी होगी। इसके अलावा आपको कंपनी के मौजूदा प्रमोटरों और निवेशकों का भी पता होना चाहिए।
में अनुमान लगाना असंभव है। लेकिन बाजार को लेकर कुछ ऐसी चीजें हैं, जिसके बारे में आप भविष्यवाणी कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर जब भी शेयर बाजार नई ऊंचाइयां छूने के करीब पहुंचता है तो बड़ी संख्या में इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) की लंबी कतार लग जाती है।
कोल इंडिया (भारतीय शेयर बाजार का सबसे बड़ा आईपीओ होगा और इसका आकार 14,000 करोड़ रुपए का होगा) के अलावा वा टेक वाबग (वाटर मैनेजमेंट कंपनी), तिरुपति इंक्स, इरोज इंटरनेशनल, माइक्रोसेक कैपिटल जैसी कई छोटी कंपनियां पूंजी जुटाने के लिए बाजार में उतरी हैं।
इनवेस्टमेंट बैंकरों का कहना है कि आने वाले महीनों में कई और कंपनियां पूंजी जुटाने के लिए बाजार में उतर सकती हैं। आईसीआईसीआई के ईडी अनूप बागची का कहना है, 'बाजार में निवेशकों की रुचि बनी हुई है और ऐसे में पिछले काफी समय से पेंडिंग पड़े आईपीओ बाजार में आ सकते हैं।' स्त्रेई कैपिटल मार्केट्स के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर अशोक पारीख का कहना है, 'सेकेंडरी मार्केट में सुधार आ रहा है। जिन कंपनियों के प्रास्पेक्टस को सेबी की मंजूरी मिल चुकी है और जो इंतजार कर रहे हैं, वे कोल इंडिया के आईपीओ के बाजार में आने से पहले अपने हाथ आजमाएंगे।'
घरेलू शेयर बाजार ऐतिहासिक ऊंचाइयां छूने के करीब है और ऐसे में कई निवेशक इसमें अपनी किस्मत आजमाने के लिए फिर से बाजार में उतर चुके हैं। इनमें से कई निवेशकों को प्राइमरी मार्केट(आईपीओ) काफी लुभाता है। उनका मानना है कि आईपीओ एक जैकपॉट की तरह है, जिसमें आप किसी इश्यू को सब्सक्राइब करते हैं और जब कंपनी लिस्ट हो जाती है तो उसे बेच देते हैं।
इनका मानना है कि इस साधारण निवेश नीति पर दांव लगाकर ट्रेडर कुछ हफ्तों में अच्छा खासा मुनाफा बना सकते हैं। हालांकि, जल्द मुनाफा कमाने की यह रणनीति आपको महंगी भी पड़ सकती है। साल 2009 के बाद से 58 कंपनियां आईपीओ बाजार में उतरी हैं। इन 58 कंपनियों में से 22 कंपनियों के शेयर अब भी ऑफर प्राइस के नीचे ट्रेड कर रहे हैं, जबकि करीब 17 कंपनियों ने लिस्टिंग के बाद से निवेशकों को या तो कोई रिटर्न नहीं दिया है या फिर निवेशक ऐसे इश्यूज में अभी घाटे में ही चल रहे हैं।
ऐसे में आईपीओ के जरिए जल्द मोटा मुनाफा कमाने की रणनीति फ्लाप साबित होती है। हालांकि, इसी अवधि में सात आईपीओ ने निवेशकों को 100 फीसदी से ज्यादा रिटर्न दिया है। आईपीओ से रिटर्न हासिल करने के ये आंकडे़ क्या आपको कुछ सबक देते हैं? अगर हां तो वह यह है कि आईपीओ जल्द मुनाफा कमाने का जरिया नहीं हैं। अगर आप आईपीओ से पैसा बनाना चाहते हैं तो दूसरे शेयरों पर दांव लगाने की तरह इसमें भी आपको अपना होम वर्क पूरा करना होगा।
आईपीओ पर दांव लगाने से पहले आपको कंपनी की कारोबारी विश्वसनीयता और उसकी सही प्राइसिंग का अंदाजा लगाना होगा। इसके अलावा आपको यह बात भी तय करनी होगी कि आप आईपीओ से लिस्टिंग गेन हासिल करना चाहते हैं या फिर शेयर की फुल वैल्यू पाने के लिए उसे लंबी अवधि तक शेयर के रूप में होल्ड करना चाहते हैं। आईपीओ पर दांव लगाने से पहले ये बातें आपके लिए काफी मददगार साबित हो सकती हैं।
सबसे पहले आपको यह बात ध्यान में रखने की जरूरत होती है कि आईपीओ में निवेश करना किसी शेयर पर पैसा लगाने जैसा ही होता है। ऐसे में कंपनी के फंडामेंटल के बारे में जानना बहुत जरूरी है। इसमें आपको कंपनी की वित्तीय स्थिति, कंपनी किसी क्षेत्र में काम करती है, इंडस्ट्री में उसकी अहमियत क्या है, इत्यादि के बारे में जानकारी जुटानी होगी। इसके अलावा आपको कंपनी के मौजूदा प्रमोटरों और निवेशकों का भी पता होना चाहिए।
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Sep 27, 2010
मुनाफा कमाने वाले शेयरों की पहचान करने का मंत्र
संस्थागत निवेशक आम निवेशकों की
ओर से होने वाली खरीद-फरोख्त पर बड़ा असर डालते हैं, क्योंकि उनके पास ऑर्डर को सपोर्ट करने के लिए ज्यादा पैसा होता है और इससे शेयर पर पड़ने वाला प्रभाव और भी बढ़ जाता है।' वॉल स्ट्रीट के एक जाने-माने कमेंटेटर के ये शब्द इक्विटी बाजारों में संस्थागत निवेशकों की अहमियत रेखांकित करते हैं। संस्थागत निवेशक बाजार के अच्छे विश्लेषकों को आसानी से अपने साथ जोड़ लेते हैं और निवेश संबंधी शोध तक भी उनकी अच्छी पहुंच होती है। इसके चलते जब भी मल्टी-बैगर शेयर तलाशने की बारी आती है तो वे दूसरों से आगे नजर आते हैं।
इसके अलावा ज्यादातर मामलों में ये निवेशक लंबे वक्त तक अपनी पोजीशन बरकरार रखते हैं। इसलिए यह जानना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है कि संस्थागत निवेशक किन शेयरों की खरीद कर रहे हैं और कौन से शेयर उनकी प्राथमिकता सूची से बाहर हैं। छोटे निवेशकों को सर्तकता तो बरतनी चाहिए और निवेश का कोई भी फैसला करने से पहले पर्याप्त होमवर्क कर ही लेना चाहिए, लेकिन अगर वे इसके साथ संस्थागत गतिविधियों पर भी एक नजर डाल लें तो उन्हें निवेश के बुनियादी विचार की झलक मिल जाएगी।
संस्थागत निवेशक मोटे तौर पर म्यूचुअल फंड, बीमा और पेंशन प्रोवाइडर पर ध्यान केंद्रित करते हैं। बीते कुछ वर्षों से भारतीय इक्विटी में संस्थागत निवेशकों की दिलचस्पी काफी बढ़ी है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त 2010 को खत्म हुए आठ महीनों में उन्होंने 59,724 करोड़ रुपए की खरीदारी की है। यह पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 48 फीसदी ज्यादा है। आमतौर पर रिसर्च पर उनका काफी फोकस होता है और निवेश की उनकी रणनीति मध्यम से लंबी अवधि के लिए होती है।
इसका मतलब यह हुआ कि वे उन्हीं शेयरों में निवेश करते हैं जिनमें मध्यम अवधि के लिए वृद्धि की अच्छी संभावना हो। छोटा निवेशक कंपनी के भावी कारोबार से डिस्काउंटेड कैश फ्लो (डीसीएफ) जैसी निवेश की आधुनिक तकनीकों से परिचित नहीं होता। इसलिए लंबी अवधि के निवेश के लिए संस्थागत निवेशकों के निवेश के चलन पर निगाह बनाए रखना ज्यादा सरल तरीका है।
ओर से होने वाली खरीद-फरोख्त पर बड़ा असर डालते हैं, क्योंकि उनके पास ऑर्डर को सपोर्ट करने के लिए ज्यादा पैसा होता है और इससे शेयर पर पड़ने वाला प्रभाव और भी बढ़ जाता है।' वॉल स्ट्रीट के एक जाने-माने कमेंटेटर के ये शब्द इक्विटी बाजारों में संस्थागत निवेशकों की अहमियत रेखांकित करते हैं। संस्थागत निवेशक बाजार के अच्छे विश्लेषकों को आसानी से अपने साथ जोड़ लेते हैं और निवेश संबंधी शोध तक भी उनकी अच्छी पहुंच होती है। इसके चलते जब भी मल्टी-बैगर शेयर तलाशने की बारी आती है तो वे दूसरों से आगे नजर आते हैं।
इसके अलावा ज्यादातर मामलों में ये निवेशक लंबे वक्त तक अपनी पोजीशन बरकरार रखते हैं। इसलिए यह जानना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है कि संस्थागत निवेशक किन शेयरों की खरीद कर रहे हैं और कौन से शेयर उनकी प्राथमिकता सूची से बाहर हैं। छोटे निवेशकों को सर्तकता तो बरतनी चाहिए और निवेश का कोई भी फैसला करने से पहले पर्याप्त होमवर्क कर ही लेना चाहिए, लेकिन अगर वे इसके साथ संस्थागत गतिविधियों पर भी एक नजर डाल लें तो उन्हें निवेश के बुनियादी विचार की झलक मिल जाएगी।
संस्थागत निवेशक मोटे तौर पर म्यूचुअल फंड, बीमा और पेंशन प्रोवाइडर पर ध्यान केंद्रित करते हैं। बीते कुछ वर्षों से भारतीय इक्विटी में संस्थागत निवेशकों की दिलचस्पी काफी बढ़ी है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त 2010 को खत्म हुए आठ महीनों में उन्होंने 59,724 करोड़ रुपए की खरीदारी की है। यह पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 48 फीसदी ज्यादा है। आमतौर पर रिसर्च पर उनका काफी फोकस होता है और निवेश की उनकी रणनीति मध्यम से लंबी अवधि के लिए होती है।
इसका मतलब यह हुआ कि वे उन्हीं शेयरों में निवेश करते हैं जिनमें मध्यम अवधि के लिए वृद्धि की अच्छी संभावना हो। छोटा निवेशक कंपनी के भावी कारोबार से डिस्काउंटेड कैश फ्लो (डीसीएफ) जैसी निवेश की आधुनिक तकनीकों से परिचित नहीं होता। इसलिए लंबी अवधि के निवेश के लिए संस्थागत निवेशकों के निवेश के चलन पर निगाह बनाए रखना ज्यादा सरल तरीका है।
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बाजार में ये छोटी कंपनियां कर सकती हैं बड़ा कमाल
कामयाबी
छोटी हो या बड़ी, उसकी खुशी मनाने की जरूरत होती है। इसी बात पर विश्वास करते हुए ईटी इंटेलीजेंस गुप हर साल भारतीय उद्योग जगत की 100 सबसे तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की सूची जारी करता है। यह आज की तेज रफ्तार छोटी कंपनियां ही हैं, जो कल के दिग्गजों में उभरने का दमखम रखती हैं।
लेकिन इसके साथ एक चेतावनी भी आती है। निश्चित रूप से यह कहना मुश्किल है कि इंडिया इंक के इन छोटे उस्तादों में से कौन से आने वाले वक्त की ग्रां प्री में शामिल होंगे। जैसा कि कहा जाता है कि अतीत का प्रदर्शन इस बात की गारंटी नहीं होता कि भविष्य में किस तरह का प्रदर्शन रहेगा। लेकिन ऐतिहासिक चलन के आधार पर हम यह पता लगा सकते हैं कि किस तरह की कंपनियां बड़ा बनने की संभावनाएं रखती हैं।
अतीत के निरंतर ठोस प्रदर्शन की वजह से ईटीआईजी की 100 तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की हालिया सूची में शामिल खिलाड़ी इस दौड़ में अव्वल आने के मजबूत दावेदार हैं। निवेशकों को और अध्ययन करने के आधार पर सूची से बेहतरीन दिखने वाले शेयर चुनने चाहिए या फिर बाजारों में अगली पंक्ति में खड़े होने के लिए हमारे चयन के आधार पर पोर्टफोलियो तैयार करना चाहिए।
शेयर बाजार के दिग्गज
धमाकेदार वित्तीय प्रदर्शन, निवेशकों का भरोसा जीतने के लिहाज से काफी अहम चीज है। यह इस बात से साबित होता है कि 100 तेजी रफ्तार छोटी कंपनियों की ईटीआईजी की 2009 की सूची में से 77 कंपनियों ने बीते एक साल के दौरान बेंचमार्क इंडेक्स को अपने प्रदर्शन से पीछे छोड़ दिया है। इसके अलावा 27 कंपनियों के शेयर भाव इस अवधि में बढ़कर दोगुने स्तर पर पहुंच चुके हैं।
सूची की शीर्ष 10 कंपनियां शामिल कर बनाए जाने वाले पोर्टफोलियो ने निवेशकों को 59 फीसदी रिटर्न दिया होता, जबकि बाजार ने इस दौरान 21 फीसदी का मुनाफा दिया है। शीर्ष 25 कंपनियों के पोर्टफोलियो ने 61 फीसदी रिटर्न कमाया है। और इन सभी 100 कंपनियों के समान वेटेज से बना पोर्टफोलियो वैल्यू के लिहाज से आज 73 फीसदी ऊपर होता। वास्तव में यह धमाकेदार प्रदर्शन है।
नए नायक
ईटीआईजी 2010 की 100 तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की फेहरिस्त में जाइडस वेलनेस ने सभी को पीछे छोड़ दिया है। यह पिछले साल चौथे पायदान से शीर्ष स्तर तक पहुंची है। इस शेयर को कैडिला हेल्थकेयर के कंज्यूमर हेल्थकेयर कारोबार के विलय से काफी फायदा हुआ है और यह कंपनी कर्ज-मुक्त और नकदी के मामले में अमीर खिलाड़ी बनी हुई है।
हाल में सूचीबद्ध होने वाली टेकनेफैब इंजीनियरिंग दूसरे स्थान पर है, जिसका श्रेय बीते तीन साल के दौरान मुनाफे में प्रभावशाली बढ़त को जाता है। लेकिन वह कंपनी हॉकिंग कूकर्स है, जिसने सूची के शीर्ष पांच दिग्गजों में सबसे ज्यादा हैरत में डाला है। पिछले साल फेहरिस्त में 19वें पायदान तक गिरने के बाद कंपनी ने इस बार शीर्ष तीन में जगह बनाई है।
कारोबारी साल 2010 के दौरान मुनाफे में बढ़िया ग्रोथ ने कंपनी को मैन इंफ्राकंस्ट्रक्शंस, विनाती ऑगेर्निक्स और वीएसटी टिलर्स ट्रैक्टर्स के आगे पहुंचा दिया। विनाती ऑर्गेनिक्स पिछले साल के 14वें रैंक से इस साल आठवें नम्बर तक आई है, जबकि वीएसटी टिलर्स 27वें पर थी, लेकिन इस बार 12वें पायदान पर है।
हालांकि, कुछ कंपनियों ने पिछले साल की तुलना में जमीन भी खोई है। 2009 की सूची में तीसरे नम्बर पर खड़ी टाटा स्पॉन्ज आयरन इस साल 20वें पायदान तक लुढ़क गई है। इसी तरह प्राज इंडस्ट्रीज पिछले साल 10वें नम्बर पर खड़ी थी, लेकिन इस साल हैरानी में डालते हुए सूची में 83वें पायदान तक पहुंच गई है। पिछले साल टॉपर रही सुल्जर इंडिया हाल में डीलिस्ट हो गई है और इसलिए इस बार सूची में जगह बनाने में कामयाब नहीं हुई।
अन्य कंपनियों में ब्लिस जीवीएस फार्मा ने चौथे नम्बर पर सीट कब्जाते हुए सूची में बढ़िया एंट्री की है। हाल में सूचीबद्ध हुई एक अन्य कंपनी मैन इंफ्रा सीधे तौर पर सूची में दाखिल होकर पांचवें पायदान पर पहुंच गई है। अतीत में कमजोर इंटरेस्ट कवरेज रेशियो की वजह से पिछले साल सूची में शामिल होने में नाकाम रही प्लास्टिक उत्पाद बनाने वाली मयूर यूनिकोटर्स इस बार प्रतिष्ठित फेहरिस्त तक पहुंच गई है। कंपनी सूची में सातवें स्थान पर है। हाल में लिस्टेड हुई कंपनियों के बारे में और जानने के लिए ईटी इनवेस्टर्स गाइड के आगामी संस्करणों पर निगाहें बनाए रखें।
हमने कैसे तैयार की सूची?
कंपनियों की सूची तैयार करने के लिए हमने कारोबारी साल 2010 के दौरान 1,000 करोड़ रुपए से कम शुद्ध बिक्री रखने वाली फर्मों को इसमें शामिल किया है। संदेहास्पद विश्वसनीयता रखने वाली छोटी कंपनियों को इसके दायरे से बाहर रखने के उद्देश्य से हमने उन कंपनियों को फेहरिस्त से बाहर कर दिया, जिनका माकेर्ट कैपिटलाइजेशन 50 करोड़ रुपए से कम है।
अंतिम सूची में ऐसी कंपनियां शामिल हैं, जो बीते तीन साल के दौरान आरओसीई 15 फीसदी से ज्यादा, बीते तीन साल में डीईआर 1.5 से कम और आईसीआर 5 से ऊपर रखने में कामयाब रही हैं। पिछले तीन साल के दौरान एकबार से ज्यादा लाभांश न देने वाली या चूकने वाली कंपनियों और एक साल से ज्यादा वक्त तक नेगेटिव ऑपरेटिंग कैश फ्लो वाले खिलाडि़यों को भी बाहर का दरवाजा दिखा दिया गया। इसके बाद हमारे पास मजबूत वित्तीय स्थिति वाली केवल 140 कंपनियां बचीं। क्योंकि हम सबसे तेज बढ़ती छोटी कंपनियों को चिन्हित करने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए हमने इन सभी कंपनियों के लिए बिक्री और मुनाफे की वेटेड औसत बढ़त दरों का आकलन किया।
सबसे ज्यादा अहमियत कारोबारी साल 2010 की ग्रोथ को दी गई। आखिरकार, तीन साल की बिक्री और मुनाफे की बढ़त और आरओसीई को 30:30:40 का वेटेज दिया गया, जिसके बाद अंतिम रैंकिंग का फैसला किया गया।
हमने ऐसी कंपनियों को भी न चुनने का फैसला किया, जिन्होंने तेज ग्रोथ तक पहुंचने के लिए अपनी बैलेंस शीट पर अतिरिक्त दबाव झेला। हमारी सूची में नकदी जुटाने में मजबूती रखने वाली, नियमित लाभांश देने वाली और बैलेंस शीट पर कर्ज का बोझ कम रखने वाली कंपनियां शामिल हैं। ये कंपनियां फंड के खर्च की तुलना में कारोबार में निवेश की गई रकम पर कहीं ज्यादा पूंजी कमाने में कामयाब हो रही हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कर्जदाताओं और इक्विटी साझेदारों को भुगतान करने के बाद भी उनके पास कारोबार में दोबारा निवेश करने के लिए रकम बची रहेगी। कम कर्ज और ज्यादा इंटरेस्ट कवरेज गाढ़े वक्त में उनका सतत प्रदर्शन सुनिश्चित करेगा।
इन कंपनियों ने सूची में जगह बनाने के लिए निरंतर बेहतरीन प्रदर्शन किया है। लेकिन याद रखिए कि हमारी 100 सबसे तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की सूची, कोई अकेला निवेश ट्रिगर नहीं है। यह निवेश से जुड़ा अध्ययन शुरू करने के लिए प्रवेश बिंदु जरूर मुहैया कराता है। इसलिए निवेश करते रहिए...
छोटी हो या बड़ी, उसकी खुशी मनाने की जरूरत होती है। इसी बात पर विश्वास करते हुए ईटी इंटेलीजेंस गुप हर साल भारतीय उद्योग जगत की 100 सबसे तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की सूची जारी करता है। यह आज की तेज रफ्तार छोटी कंपनियां ही हैं, जो कल के दिग्गजों में उभरने का दमखम रखती हैं।
लेकिन इसके साथ एक चेतावनी भी आती है। निश्चित रूप से यह कहना मुश्किल है कि इंडिया इंक के इन छोटे उस्तादों में से कौन से आने वाले वक्त की ग्रां प्री में शामिल होंगे। जैसा कि कहा जाता है कि अतीत का प्रदर्शन इस बात की गारंटी नहीं होता कि भविष्य में किस तरह का प्रदर्शन रहेगा। लेकिन ऐतिहासिक चलन के आधार पर हम यह पता लगा सकते हैं कि किस तरह की कंपनियां बड़ा बनने की संभावनाएं रखती हैं।
अतीत के निरंतर ठोस प्रदर्शन की वजह से ईटीआईजी की 100 तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की हालिया सूची में शामिल खिलाड़ी इस दौड़ में अव्वल आने के मजबूत दावेदार हैं। निवेशकों को और अध्ययन करने के आधार पर सूची से बेहतरीन दिखने वाले शेयर चुनने चाहिए या फिर बाजारों में अगली पंक्ति में खड़े होने के लिए हमारे चयन के आधार पर पोर्टफोलियो तैयार करना चाहिए।
शेयर बाजार के दिग्गज
धमाकेदार वित्तीय प्रदर्शन, निवेशकों का भरोसा जीतने के लिहाज से काफी अहम चीज है। यह इस बात से साबित होता है कि 100 तेजी रफ्तार छोटी कंपनियों की ईटीआईजी की 2009 की सूची में से 77 कंपनियों ने बीते एक साल के दौरान बेंचमार्क इंडेक्स को अपने प्रदर्शन से पीछे छोड़ दिया है। इसके अलावा 27 कंपनियों के शेयर भाव इस अवधि में बढ़कर दोगुने स्तर पर पहुंच चुके हैं।
सूची की शीर्ष 10 कंपनियां शामिल कर बनाए जाने वाले पोर्टफोलियो ने निवेशकों को 59 फीसदी रिटर्न दिया होता, जबकि बाजार ने इस दौरान 21 फीसदी का मुनाफा दिया है। शीर्ष 25 कंपनियों के पोर्टफोलियो ने 61 फीसदी रिटर्न कमाया है। और इन सभी 100 कंपनियों के समान वेटेज से बना पोर्टफोलियो वैल्यू के लिहाज से आज 73 फीसदी ऊपर होता। वास्तव में यह धमाकेदार प्रदर्शन है।
नए नायक
ईटीआईजी 2010 की 100 तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की फेहरिस्त में जाइडस वेलनेस ने सभी को पीछे छोड़ दिया है। यह पिछले साल चौथे पायदान से शीर्ष स्तर तक पहुंची है। इस शेयर को कैडिला हेल्थकेयर के कंज्यूमर हेल्थकेयर कारोबार के विलय से काफी फायदा हुआ है और यह कंपनी कर्ज-मुक्त और नकदी के मामले में अमीर खिलाड़ी बनी हुई है।
हाल में सूचीबद्ध होने वाली टेकनेफैब इंजीनियरिंग दूसरे स्थान पर है, जिसका श्रेय बीते तीन साल के दौरान मुनाफे में प्रभावशाली बढ़त को जाता है। लेकिन वह कंपनी हॉकिंग कूकर्स है, जिसने सूची के शीर्ष पांच दिग्गजों में सबसे ज्यादा हैरत में डाला है। पिछले साल फेहरिस्त में 19वें पायदान तक गिरने के बाद कंपनी ने इस बार शीर्ष तीन में जगह बनाई है।
कारोबारी साल 2010 के दौरान मुनाफे में बढ़िया ग्रोथ ने कंपनी को मैन इंफ्राकंस्ट्रक्शंस, विनाती ऑगेर्निक्स और वीएसटी टिलर्स ट्रैक्टर्स के आगे पहुंचा दिया। विनाती ऑर्गेनिक्स पिछले साल के 14वें रैंक से इस साल आठवें नम्बर तक आई है, जबकि वीएसटी टिलर्स 27वें पर थी, लेकिन इस बार 12वें पायदान पर है।
हालांकि, कुछ कंपनियों ने पिछले साल की तुलना में जमीन भी खोई है। 2009 की सूची में तीसरे नम्बर पर खड़ी टाटा स्पॉन्ज आयरन इस साल 20वें पायदान तक लुढ़क गई है। इसी तरह प्राज इंडस्ट्रीज पिछले साल 10वें नम्बर पर खड़ी थी, लेकिन इस साल हैरानी में डालते हुए सूची में 83वें पायदान तक पहुंच गई है। पिछले साल टॉपर रही सुल्जर इंडिया हाल में डीलिस्ट हो गई है और इसलिए इस बार सूची में जगह बनाने में कामयाब नहीं हुई।
अन्य कंपनियों में ब्लिस जीवीएस फार्मा ने चौथे नम्बर पर सीट कब्जाते हुए सूची में बढ़िया एंट्री की है। हाल में सूचीबद्ध हुई एक अन्य कंपनी मैन इंफ्रा सीधे तौर पर सूची में दाखिल होकर पांचवें पायदान पर पहुंच गई है। अतीत में कमजोर इंटरेस्ट कवरेज रेशियो की वजह से पिछले साल सूची में शामिल होने में नाकाम रही प्लास्टिक उत्पाद बनाने वाली मयूर यूनिकोटर्स इस बार प्रतिष्ठित फेहरिस्त तक पहुंच गई है। कंपनी सूची में सातवें स्थान पर है। हाल में लिस्टेड हुई कंपनियों के बारे में और जानने के लिए ईटी इनवेस्टर्स गाइड के आगामी संस्करणों पर निगाहें बनाए रखें।
हमने कैसे तैयार की सूची?
कंपनियों की सूची तैयार करने के लिए हमने कारोबारी साल 2010 के दौरान 1,000 करोड़ रुपए से कम शुद्ध बिक्री रखने वाली फर्मों को इसमें शामिल किया है। संदेहास्पद विश्वसनीयता रखने वाली छोटी कंपनियों को इसके दायरे से बाहर रखने के उद्देश्य से हमने उन कंपनियों को फेहरिस्त से बाहर कर दिया, जिनका माकेर्ट कैपिटलाइजेशन 50 करोड़ रुपए से कम है।
अंतिम सूची में ऐसी कंपनियां शामिल हैं, जो बीते तीन साल के दौरान आरओसीई 15 फीसदी से ज्यादा, बीते तीन साल में डीईआर 1.5 से कम और आईसीआर 5 से ऊपर रखने में कामयाब रही हैं। पिछले तीन साल के दौरान एकबार से ज्यादा लाभांश न देने वाली या चूकने वाली कंपनियों और एक साल से ज्यादा वक्त तक नेगेटिव ऑपरेटिंग कैश फ्लो वाले खिलाडि़यों को भी बाहर का दरवाजा दिखा दिया गया। इसके बाद हमारे पास मजबूत वित्तीय स्थिति वाली केवल 140 कंपनियां बचीं। क्योंकि हम सबसे तेज बढ़ती छोटी कंपनियों को चिन्हित करने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए हमने इन सभी कंपनियों के लिए बिक्री और मुनाफे की वेटेड औसत बढ़त दरों का आकलन किया।
सबसे ज्यादा अहमियत कारोबारी साल 2010 की ग्रोथ को दी गई। आखिरकार, तीन साल की बिक्री और मुनाफे की बढ़त और आरओसीई को 30:30:40 का वेटेज दिया गया, जिसके बाद अंतिम रैंकिंग का फैसला किया गया।
हमने ऐसी कंपनियों को भी न चुनने का फैसला किया, जिन्होंने तेज ग्रोथ तक पहुंचने के लिए अपनी बैलेंस शीट पर अतिरिक्त दबाव झेला। हमारी सूची में नकदी जुटाने में मजबूती रखने वाली, नियमित लाभांश देने वाली और बैलेंस शीट पर कर्ज का बोझ कम रखने वाली कंपनियां शामिल हैं। ये कंपनियां फंड के खर्च की तुलना में कारोबार में निवेश की गई रकम पर कहीं ज्यादा पूंजी कमाने में कामयाब हो रही हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कर्जदाताओं और इक्विटी साझेदारों को भुगतान करने के बाद भी उनके पास कारोबार में दोबारा निवेश करने के लिए रकम बची रहेगी। कम कर्ज और ज्यादा इंटरेस्ट कवरेज गाढ़े वक्त में उनका सतत प्रदर्शन सुनिश्चित करेगा।
इन कंपनियों ने सूची में जगह बनाने के लिए निरंतर बेहतरीन प्रदर्शन किया है। लेकिन याद रखिए कि हमारी 100 सबसे तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की सूची, कोई अकेला निवेश ट्रिगर नहीं है। यह निवेश से जुड़ा अध्ययन शुरू करने के लिए प्रवेश बिंदु जरूर मुहैया कराता है। इसलिए निवेश करते रहिए...
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1,400 करोड़ रुपए से ज्यादा में बिका दुनिया का सबसे कीमती फ्लैट
लंदन : मोनैको स्थित दुनिया के सबसे कीमती फ्लैट 20 करोड़ पाउंड में बिक्री हो गई है।
फ्लैट के मुख्य कमरे में पूर्व मालिक की रहस्यमय हत्या के बावजूद इसकी इतनी अधिक कीमत मिली है।
अखबार 'डेली मेल' के मुताबिक खाड़ी देश के एक निवेशक ने 97 सालों की लीज पर 24 करोड़ यूरो (19.9 करोड़ पाउंड) में इस फ्लैट को खरीदा है। माना जा रहा है कि यह निवेशक अरब का एक शेख है।
इस फ्लैट में एक लाइब्रेरी, स्वीमिंग पूल और सिनेमा स्क्रीन सहित सभी कुछ है। ऐसा माना जा रहा है कि संपत्ति विक्रेता क्रिश्चन और निक कैंडी को इस सौदे में कम से कम 19 लाख पाउंड का फायदा हुआ है। उन्होंने वर्ष 2000 की शुरुआत में एक ब्रिटिश महिला लिली साफ्रा से 17,500 वर्ग फीट का तीन बेडरूम वाला यह फ्लैट खरीदा था। बैंक में काम करने वाले साफ्रा के पति एडमंड की इस फ्लैट में लगी रहस्यपूर्ण आग में मौत हो गई थी। उस समय इसकी कीमत मुश्किल से एक करोड़ पाउंड थी।
फ्लैट के मुख्य कमरे में पूर्व मालिक की रहस्यमय हत्या के बावजूद इसकी इतनी अधिक कीमत मिली है।
अखबार 'डेली मेल' के मुताबिक खाड़ी देश के एक निवेशक ने 97 सालों की लीज पर 24 करोड़ यूरो (19.9 करोड़ पाउंड) में इस फ्लैट को खरीदा है। माना जा रहा है कि यह निवेशक अरब का एक शेख है।
इस फ्लैट में एक लाइब्रेरी, स्वीमिंग पूल और सिनेमा स्क्रीन सहित सभी कुछ है। ऐसा माना जा रहा है कि संपत्ति विक्रेता क्रिश्चन और निक कैंडी को इस सौदे में कम से कम 19 लाख पाउंड का फायदा हुआ है। उन्होंने वर्ष 2000 की शुरुआत में एक ब्रिटिश महिला लिली साफ्रा से 17,500 वर्ग फीट का तीन बेडरूम वाला यह फ्लैट खरीदा था। बैंक में काम करने वाले साफ्रा के पति एडमंड की इस फ्लैट में लगी रहस्यपूर्ण आग में मौत हो गई थी। उस समय इसकी कीमत मुश्किल से एक करोड़ पाउंड थी।
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