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किसी लड़की को छेड़ो, उसका हाथ पकड़ो, अगर वो थप्पड़ मारे तो कहो - "तुम पहले इम्तिहान में पास हो गई हो. मुझे ऐसी ही शरीफ लड़की चाहिए थी."
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डॉ. संता मरीज बंता की जांच करने के बाद बोले- आप मन से सोचिए कि मैं अच्छा हो रहा हूं। आप सचमुच ठीक हो जाएंगे। मरीज बंता- ठीक है, अब मैं चलता हूं। डॉ. संता- अरे, पर मेरी फीस? मरीज बंता- आप भी मन में सोच लीजिए, आपकी फीस मिल जाएगी।
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एक स्कूल फंक्शन में केजी क्लास का एक लड़का अपने कान बंद करके बैठा हुआ था। जब उसे पूछा गया तो उसने कहा कि मेरी गर्ल फ्रेंड स्पीच देने वाली है और वाह अपनी स्पीच की शुरुआत में कहती है My Dear Brothers n Sisters :-)
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वीरू: गब्बर अगर तेरी मां ठाकुर को राखी बांध दे तो वो तेरा क्या लगेगा। गब्बर: कुछ नहीं। वीरू: कैसे? गब्बर: उसके हाथ तो मैंने लेलिए न। राखी बंधेगी कहां।
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पत्नी पति से: मेरी तो कोई औलाद नहीं है इसलिए सोचती हूं की अपनी सारी जायदात किसी साधू के नाम कर दूं। यह सुनकर पति उठकर जाने लगा। पत्नी: तुम कहां जा रहे हो पति: साधू बनने।
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एक युवक की सुपमार्केट में नौकरी लगी। नौकरी के पहले दिन मैनेजर ने उसे बुलाया और उससे हाथ मिलाया। हाथ मिलाने के बाद मैनेजर ने युवक को झाड़ू पकड़ा दी और स्टोर में झाड़ू लगाने को कहा। युवक इस पर नाराज होते हुए बोला सर मैं ग्रेजुएट हूं । झाड़ू कैसे लगाऊं। मैनेजर ने कहा, माफ करना, मुझे पता नहीं था। लाओ झाड़ू मुझे दो...मैं तुम्हें सिखा दूं।
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संता अपने जिगरी दोस्त बंता से- यार, कल एक ख़ूबसूरत लड़की से मेरी मुलाक़ात हुई। वह इतनी सुंदर थी कि मैं दीवाना हो गया और उससे आई लव यू कह दिया। बंता- बहुत दिलेरी दिखाई यार, वैसे लड़की ने क्या कहा? संता- लड़की बोली- मेरी चप्पल का साइज़ पता है क्या? बंता- हूं.. इन लड़कियों के साथ यही दि़क्क़त है। ज़रा सी जान-पहचान हुई नहीं कि तोहफ़ा मांगना शुरू कर देती हैं।
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बाप बेटे से- नालायक तुमने कभी अपनी कोई बुक खोल के पढ़ी है बेटा- हां पिता जी एक बुक रोज खोलता हूं। बाप: कौन सी। बेटा: फेसबुक
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अगर कोई अच्छा सा मैसेज हो तो जल्दी से उसे पेपर पर लिखकर संदूक में बंद कर दो कहीं गलती से भी सेंड न हो जाए। कनजूस
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रमन डॉक्टर के सामने गिड़गिड़ाते हुए बोला- मेरी बीवी पिछले छह घंटे से एकदम खामोश है। मैं क्या करूं? कुछ समझ में नहीं आ रहा है। आप ही कुछ उपए बताएं। डॉक्टर ने कहा तो तुम मेरे पास क्यों आए हो तुम्हें तो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड वालों से संपर्क करना चाहिए।
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मैंने आपको फोन किया तो आपका नेटवर्क बोला, नमस्कार, मूर्खो की दुनिया में आपका स्वागत है, आप जिस मूर्ख से इस वक्त बात करना चाहते हैं उसका दिमाग इस वक्त आउट ऑफ कवरेज है
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आपके दिल में बस जाएंगे एसएमएस की तरह, दिल में बजेंगे रिंगटोन की तरह, दोस्ती कम नहीं होगी बैलेंस की तरह,सिर्फ आप बिजी न रहें नेटवर्क की तरह
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अगर अपने दिमाग को टेस्ट करना हो तो उसको गाय के आगे रख दो। अगर वह दूर जाती है तो समझ लो गोबर है और अगर पास आती है तो समझ लो भूसा है।
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अर्ज करता हूं दबंग के प्यार में मुन्नी हुई दीवानी दबंग के प्यार में मुन्नी हुई दीवानी मुन्नी हो गई पुरानी क्योंकि अब आगई शीला की जवानी
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भिखारी: साहब एक रुपए दे दो.. साहब: तुम्हे शर्म नहीं आती क्या रोड पर खड़े हो कर भीख मांग रहे हो। भिखारी: अबे तेरे एक रुपए के लिए ऑफिस खोलूं क्या?
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एक युवक की सुपमार्केट में नौकरी लगी। नौकरी के पहले दिन मैनेजर ने उसे बुलाया और उससे हाथ मिलाया। हाथ मिलाने के बाद मैनेजर ने युवक को झाड़ू पकड़ा दी और स्टोर में झाड़ू लगाने को कहा। युवक इस पर नाराज होते हुए बोला सर मैं ग्रेजुएट हूं । झाड़ू कैसे लगाऊं। मैनेजर ने कहा, माफ करना, मुझे पता नहीं था। लाओ झाड़ू मुझे दो...मैं तुम्हें सिखा दूं।
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दसवीं का छात्र बोला: यार मैं इस बार के पेपर में फेल होना चाहता हूं। दोस्त: क्यों यार? छात्र: अरे यार पापा ने एक शर्त रखी है। दोस्त: क्या? छात्र: पापा ने कहा है कि अगर मैं फस्र्ट आया तो विज्ञान दिलवा देंगे अगर सेकण्ड आया तो आर्ट्स और अगर फेल हो गया तो शादी करवा देंगे।
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पति और पत्नी साथ घूमने गए। रास्ते में एक गधे को घास खाता देख पत्नी पति से बोली ओ,जी देखो आपका रिश्तेदार घास खा रहा है। नमस्ते करो पति:नमस्ते ससुर जी।
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पत्नी पति से: मेरी तो कोई औलाद नहीं है इसलिए सोचती हूं की अपनी सारी जायदात किसी साधू के नाम कर दूं। यह सुनकर पति उठकर जाने लगा। पत्नी: तुम कहां जा रहे हो पति: साधू बनने।
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डॉक्टर ने कहा: संता बच्चे को पानी पिलाने से पहले उबाल लेना। संता: जी डॉक्टर, वो तो सही है पर उबालने के बाद बच्चा मर तो नहीं जाएगा।
Jan 16, 2011
इन्फोसिस को दुनिया की सबसे चर्चित और बड़ी कंपनियों में शुमार करा देने वाले नारायण मूर्ति
शून्य से शुरुआत करके इन्फोसिस को दुनिया की सबसे चर्चित और बड़ी कंपनियों में शुमार करा देने वाले नारायण मूर्ति कुशल नेतृत्व और श्रेष्ठ सोच की मिसाल हैं। स्पष्टता उनका सबसे बड़ा औजार है। मनीषा पांडेय से हुई बातचीत के प्रस्तुत अंशों में वे बता रहे हैं जीवन में विजन की महत्ता, अपनी निजी विचारधारा, बड़े लीडर के गुण और हमारे भौतिक समय में धन के प्रति नजरिए के बारे में..
किसी बड़े काम या बड़े उद्यम की सफलता के पीछे बड़ी दृष्टि या विजन होता है। वह दृष्टि क्या है? वह कौन सी सोच, विचार और व्यक्तित्व का गुण होता है, जिससे मिलकर एक बड़ा विजन तैयार होता है?
दरअसल दृष्टि, विचार और सोच, ये सारी बातें आपस में गुंथी हुई हैं। आमतौर पर लोग कहेंगे कि बड़ी और दूर तक सोच पाने की क्षमता से ही बड़ा विजन बनता है, लेकिन यह बात अधूरी है। बुनियादी रूप से बड़ा विजन आता है सबकी बेहतरी और तरक्की की बात सोचने से। अपने हर कदम के बारे में यह सोचने से कि इससे किसको लाभ होगा। अगर कोई कदम अपने निजी हितों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है, तो उसके पीछे बड़ा विजन नहीं हो सकता। बड़े विजन का फलक बड़ा होता है और वह सामूहिक हितों और उन्नति की बात सोचता है।
क्या दृष्टि की संकीर्णता की वजह से ही हम कोई बड़ा स्वप्न देख और साकार नहीं कर पाते?
ऐसा नहीं है कि एक राष्ट्र के तौर पर हमने बड़े सपने नहीं देखे और उन सपनों को पूरा नहीं किया, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है। पूरी दुनिया में जहां भी शून्य से कोई बड़ी चीज खड़ी हुई, जिसके बारे में बहुतों का यह विश्वास था कि यह नामुमकिन है, तो निश्चित ही उस चीज की सफलता के पीछे बड़ा और सामूहिक हितों का विजन ही था।
सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय की जो बात आप कर रहे हैं, वह किस तरह मुमकिन है। अपने जीवन के शुरुआती दिनों में आप कम्युनिस्ट विचारधारा के समर्थक थे। लेकिन आपने निजी उद्यम का रास्ता चुना। क्यों?
जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी हुईं कि जिनके बाद से कम्युनिज्म पर से मेरा विश्वास उठ गया और मुझे महसूस हुआ कि बहुत बड़े पैमाने पर उद्यम खड़े करके और ढेरों नौकरियां पैदा करके ही गरीबी को खत्म किया जा सकता है। देखिए, पूंजीवाद कोई बुरी या अनैतिक चीज नहीं है। हमारी दिक्कत यह है कि हमारे यहां मूल्यविहीन पूंजीवाद है। हम सारी नैतिकता और सबकी बेहतरी के मूल्यों से परे निजी हितों के बारे में सोचते हैं। अगर हम नैतिक ढंग से और ईमानदारी से काम करें, तो पूंजीवाद के रास्ते ही बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं।
लेकिन उसमें तो कुछ लोग हमेशा दोयम दर्जे के श्रमिक की ही भूमिका में होंगे?
पूंजीवाद में नहीं, अनैतिक, गैर-ईमानदार पूंजीवाद में होंगे। बड़े उद्यमी और स्वप्नदर्शी का यही तो दायित्व है कि वह सबको यह भरोसा दिला सके कि यह सामूहिक श्रम है, सबके हितों के लिए किया जा रहा श्रम है। उन्हें बेहतर भविष्य की उम्मीद दे सके, यह विश्वास पैदा करके अपने कार्यस्थल पर एक निर्भय वातावरण बना सकें। कोई भी उद्यम जन के लिए, जन के द्वारा और जन का उद्यम हो।
एक बड़े लीडर में क्या गुण होने चाहिए?
बड़ा लीडर वह होता है, जो बड़ा सोचता है और सबको साथ लेकर चलता है। बड़ा लीडर वह है, जिसके कदम और फैसलों पर लोग भरोसा करें। लोगों को यह विश्वास हो कि वह उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा है, न कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए। जो उन लोगों जैसा ही सीधा, सरल और साधारण जीवन जिए, जिनके लिए वह काम कर रहा है। जिसके साथ लोग स्वयं को एकाकार महसूस कर सकें। बड़े काम में अनगिनत लोगों का श्रम और मेधा शामिल होते हैं। और लीडर ऐसा होना चाहिए, जिसकी एक आवाज पर वे अनगिनत लोग उसके पीछे चल पड़ें। वे उसका हाथ बन जाएं। उसके श्रम में शामिल हो जाएं।
क्या आपको ऐसा लीडर नजर आता है?
मौजूदा समय में निश्चित ही ऐसा कोई शख्स हमारे आसपास मौजूद नहीं है। लेकिन इतिहास में एक ऐसा शख्स हुआ है, जिसकी एक पुकार ही असंख्य लोगों को साथ बुलाने के लिए काफी थी। महात्मा गांधी ऐसे ही लीडर थे।
एक और महत्वपूर्ण सवाल, धन-संपत्ति के प्रति हमारा दृष्टिकोण क्या होना चाहिए?
आज जिस तरह से पूरी दुनिया सफलता के पीछे भाग रही है, और वह सफलता भी सिर्फ भौतिक सफलता के अर्थो में है, यह सचमुच बहुत चिंतनीय है। दरअसल धन अपने आप में कोई बुरी चीज नहीं है। असल मुद्दा है उसके प्रति आपके नजरिए का। वह जीवन के लिए जरूरी है, लेकिन क्या जीवन की हर गति सिर्फ धन के इर्द-गिर्द ही सिमटी हुई है! क्या हमें प्रेम, रिश्तों, भावनाओं, सकारात्मक ऊर्जा और रचनात्मक सपनों की कोई जरूरत नहीं! इन चीजों का धन से मोल कैसे आंकेंगे? लेकिन विडंबना देखिए कि आंका जा रहा है। सबकुछ जांचने-परखने का एक ही पैमाना बन गया है - धन। विज्ञान, तकनीक जैसी चीजें, जो मानवता के लिए बड़ा सृजन कर सकती हैं, का इस्तेमाल भी सिर्फ भौतिक विकास के लिए किया जा रहा है। ऐसे युवा नहीं मिलते, जो विज्ञान इसलिए पढ़ रहे हैं, क्योंकि यह उनका पैशन है। वे इसके और भीतर घुसना चाहते हैं, कुछ बड़ा रचना चाहते हैं। वे विज्ञान इसलिए पढ़ते हैं, क्योंकि उन्हें ऊंची तनख्वाहों वाली नौकरी मिलेगी। धन से संचालित ये लोग विज्ञान के नियम रट लेने वाली मशीन हैं, वे असल वैज्ञानिक नहीं हो सकते। वे दूसरों के खोजे नियमों और उनके आविष्कारों को अप्लाय तो कर सकते हैं, लेकिन वे खुद बड़े आविष्कार नहीं कर सकते।
एन.आर.नारायणमूर्ति
जन्म- 20 अगस्त 1946 कानपुर आईआईटी से पोस्ट ग्रेजुएट। इन्फोसिस के संस्थापक।
किसी बड़े काम या बड़े उद्यम की सफलता के पीछे बड़ी दृष्टि या विजन होता है। वह दृष्टि क्या है? वह कौन सी सोच, विचार और व्यक्तित्व का गुण होता है, जिससे मिलकर एक बड़ा विजन तैयार होता है?
दरअसल दृष्टि, विचार और सोच, ये सारी बातें आपस में गुंथी हुई हैं। आमतौर पर लोग कहेंगे कि बड़ी और दूर तक सोच पाने की क्षमता से ही बड़ा विजन बनता है, लेकिन यह बात अधूरी है। बुनियादी रूप से बड़ा विजन आता है सबकी बेहतरी और तरक्की की बात सोचने से। अपने हर कदम के बारे में यह सोचने से कि इससे किसको लाभ होगा। अगर कोई कदम अपने निजी हितों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है, तो उसके पीछे बड़ा विजन नहीं हो सकता। बड़े विजन का फलक बड़ा होता है और वह सामूहिक हितों और उन्नति की बात सोचता है।
क्या दृष्टि की संकीर्णता की वजह से ही हम कोई बड़ा स्वप्न देख और साकार नहीं कर पाते?
ऐसा नहीं है कि एक राष्ट्र के तौर पर हमने बड़े सपने नहीं देखे और उन सपनों को पूरा नहीं किया, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है। पूरी दुनिया में जहां भी शून्य से कोई बड़ी चीज खड़ी हुई, जिसके बारे में बहुतों का यह विश्वास था कि यह नामुमकिन है, तो निश्चित ही उस चीज की सफलता के पीछे बड़ा और सामूहिक हितों का विजन ही था।
सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय की जो बात आप कर रहे हैं, वह किस तरह मुमकिन है। अपने जीवन के शुरुआती दिनों में आप कम्युनिस्ट विचारधारा के समर्थक थे। लेकिन आपने निजी उद्यम का रास्ता चुना। क्यों?
जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी हुईं कि जिनके बाद से कम्युनिज्म पर से मेरा विश्वास उठ गया और मुझे महसूस हुआ कि बहुत बड़े पैमाने पर उद्यम खड़े करके और ढेरों नौकरियां पैदा करके ही गरीबी को खत्म किया जा सकता है। देखिए, पूंजीवाद कोई बुरी या अनैतिक चीज नहीं है। हमारी दिक्कत यह है कि हमारे यहां मूल्यविहीन पूंजीवाद है। हम सारी नैतिकता और सबकी बेहतरी के मूल्यों से परे निजी हितों के बारे में सोचते हैं। अगर हम नैतिक ढंग से और ईमानदारी से काम करें, तो पूंजीवाद के रास्ते ही बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं।
लेकिन उसमें तो कुछ लोग हमेशा दोयम दर्जे के श्रमिक की ही भूमिका में होंगे?
पूंजीवाद में नहीं, अनैतिक, गैर-ईमानदार पूंजीवाद में होंगे। बड़े उद्यमी और स्वप्नदर्शी का यही तो दायित्व है कि वह सबको यह भरोसा दिला सके कि यह सामूहिक श्रम है, सबके हितों के लिए किया जा रहा श्रम है। उन्हें बेहतर भविष्य की उम्मीद दे सके, यह विश्वास पैदा करके अपने कार्यस्थल पर एक निर्भय वातावरण बना सकें। कोई भी उद्यम जन के लिए, जन के द्वारा और जन का उद्यम हो।
एक बड़े लीडर में क्या गुण होने चाहिए?
बड़ा लीडर वह होता है, जो बड़ा सोचता है और सबको साथ लेकर चलता है। बड़ा लीडर वह है, जिसके कदम और फैसलों पर लोग भरोसा करें। लोगों को यह विश्वास हो कि वह उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा है, न कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए। जो उन लोगों जैसा ही सीधा, सरल और साधारण जीवन जिए, जिनके लिए वह काम कर रहा है। जिसके साथ लोग स्वयं को एकाकार महसूस कर सकें। बड़े काम में अनगिनत लोगों का श्रम और मेधा शामिल होते हैं। और लीडर ऐसा होना चाहिए, जिसकी एक आवाज पर वे अनगिनत लोग उसके पीछे चल पड़ें। वे उसका हाथ बन जाएं। उसके श्रम में शामिल हो जाएं।
क्या आपको ऐसा लीडर नजर आता है?
मौजूदा समय में निश्चित ही ऐसा कोई शख्स हमारे आसपास मौजूद नहीं है। लेकिन इतिहास में एक ऐसा शख्स हुआ है, जिसकी एक पुकार ही असंख्य लोगों को साथ बुलाने के लिए काफी थी। महात्मा गांधी ऐसे ही लीडर थे।
एक और महत्वपूर्ण सवाल, धन-संपत्ति के प्रति हमारा दृष्टिकोण क्या होना चाहिए?
आज जिस तरह से पूरी दुनिया सफलता के पीछे भाग रही है, और वह सफलता भी सिर्फ भौतिक सफलता के अर्थो में है, यह सचमुच बहुत चिंतनीय है। दरअसल धन अपने आप में कोई बुरी चीज नहीं है। असल मुद्दा है उसके प्रति आपके नजरिए का। वह जीवन के लिए जरूरी है, लेकिन क्या जीवन की हर गति सिर्फ धन के इर्द-गिर्द ही सिमटी हुई है! क्या हमें प्रेम, रिश्तों, भावनाओं, सकारात्मक ऊर्जा और रचनात्मक सपनों की कोई जरूरत नहीं! इन चीजों का धन से मोल कैसे आंकेंगे? लेकिन विडंबना देखिए कि आंका जा रहा है। सबकुछ जांचने-परखने का एक ही पैमाना बन गया है - धन। विज्ञान, तकनीक जैसी चीजें, जो मानवता के लिए बड़ा सृजन कर सकती हैं, का इस्तेमाल भी सिर्फ भौतिक विकास के लिए किया जा रहा है। ऐसे युवा नहीं मिलते, जो विज्ञान इसलिए पढ़ रहे हैं, क्योंकि यह उनका पैशन है। वे इसके और भीतर घुसना चाहते हैं, कुछ बड़ा रचना चाहते हैं। वे विज्ञान इसलिए पढ़ते हैं, क्योंकि उन्हें ऊंची तनख्वाहों वाली नौकरी मिलेगी। धन से संचालित ये लोग विज्ञान के नियम रट लेने वाली मशीन हैं, वे असल वैज्ञानिक नहीं हो सकते। वे दूसरों के खोजे नियमों और उनके आविष्कारों को अप्लाय तो कर सकते हैं, लेकिन वे खुद बड़े आविष्कार नहीं कर सकते।
एन.आर.नारायणमूर्ति
जन्म- 20 अगस्त 1946 कानपुर आईआईटी से पोस्ट ग्रेजुएट। इन्फोसिस के संस्थापक।
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G.K.,
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इस विधायक ने मेरा रेप किया है इसे फांसी पर लटका
बांदा से बसपा विधायक द्वारा दुष्कर्म पीड़िता जेल से रिहा होते ही विधायक को फांसी पर लटकाने की मांग की। पीड़िता जेल के दौरान बीते अपने दर्द को बताते हुए काफी गुस्से में थी। पुलिस पर आरोप लगाते हुए बताया कि पुलिस वाले उसको जेल में पिटते थे। यहां तक कि बिधायक के भाई के सामने पुलिस ने उसे मारा और धमकी दी।
सूबे की मुखिया मायावती के निर्देश के बाद पीड़िता को छोड़ दिया गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पीड़िता को जेल से रिहा करने और पर्याप्त सुरक्षा देने का आदेश दिया था।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में एक दलित लड़की के साथ बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी और उनके साथियों द्वारा कथित तौर पर दुष्कर्म किए जाने से सम्बद्ध मामले में राज्य सरकार ने शनिवार को बांदा जेल में बंद लड़की की तत्काल रिहाई का आदेश दिया था।
रेप मामले में फंसे बांदा के विधायक मामले पर सूबे की मुखिया ने कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिया है। मुख्यमंत्री मायावती ने कहा था लड़की पर चोरी के आरोप में जो भी पुलिस अधिकारी पर लिप्त होगा उस पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
गौरतलब है कि बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की को आरोपित विधायक के घर कथित चोरी के आरोप में 15 दिसम्बर को अतर्रा पुलिस ने जेल भेज दिया था।
उल्लेखनीय है कि नरैनी क्षेत्र के शहबाजपुर गांव की एक लड़की ने पिछले दिनों अदालत में लिखित बयान देकर विधायक पुरूषोत्तम द्विवेदी और उनके तीन सहयोगियों पर कथित तौर पर बंधक बनाकर बलात्कार करने का आरोप लगाया था।
सूबे की मुखिया मायावती के निर्देश के बाद पीड़िता को छोड़ दिया गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पीड़िता को जेल से रिहा करने और पर्याप्त सुरक्षा देने का आदेश दिया था।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में एक दलित लड़की के साथ बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी और उनके साथियों द्वारा कथित तौर पर दुष्कर्म किए जाने से सम्बद्ध मामले में राज्य सरकार ने शनिवार को बांदा जेल में बंद लड़की की तत्काल रिहाई का आदेश दिया था।
रेप मामले में फंसे बांदा के विधायक मामले पर सूबे की मुखिया ने कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिया है। मुख्यमंत्री मायावती ने कहा था लड़की पर चोरी के आरोप में जो भी पुलिस अधिकारी पर लिप्त होगा उस पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
गौरतलब है कि बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की को आरोपित विधायक के घर कथित चोरी के आरोप में 15 दिसम्बर को अतर्रा पुलिस ने जेल भेज दिया था।
उल्लेखनीय है कि नरैनी क्षेत्र के शहबाजपुर गांव की एक लड़की ने पिछले दिनों अदालत में लिखित बयान देकर विधायक पुरूषोत्तम द्विवेदी और उनके तीन सहयोगियों पर कथित तौर पर बंधक बनाकर बलात्कार करने का आरोप लगाया था।
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किसने-कैसे रोकी हमारी 7 लाख करोड़ की राहें
नई दिल्ली. सिर्फ सात किलोमीटर लंबी पहले से छह-लेन बनी सड़क को फिर से छह-लेन बनाने में कितनी लागत आएगी। और समय कितना लगेगा? लागत - 109 करोड़। समय - पता नहीं, क्योंकि एक साल पहले शुरू हुआ निर्माण अभी जारी है। हालांकि मामला दिल्ली में मेहरौली से गुड़गांव की सड़क का है, लेकिन यह पूरे देश में हाइवे निर्माण की हालात बयान करता है।
मजे की बात यह है कि जब पिछले साल राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने इस रोड का टैंडर निकाला तब दिल्ली मेट्रो रेल कॉपरेरेशन (डीएमआरसी) इस सड़क को छह-लेन बना रहा था। उसकी लागत आई थी 8.4 करोड़ रुपए। समय लगा था 8 महीने। काम खत्म हुआ अप्रैल 2010 में। डीएमआरसी का काम अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि एनएचएआई ने 19 फरवरी को इस रोड को नेशनल हाइवे घोषित कर दिया। नाम दिया एनएच-236, लेकिन इसको छह लेन बनाने, साथ में फुटपाथ और साइकिल ट्रैक बनाने के लिए टैंडर तो उसने जनवरी में ही बुला लिए थे। सड़क के दोनों ओर सड़क परिवहन मंत्री कमलनाथ जैसे मुल्क के असरदार लोगों के फार्महाउस हैं।
फुटपाथ और साइकिल ट्रैक बनाने की जगह नहीं है, इसलिए काम ठप पड़ा है। ऐसी ही विचित्र बातों के कारण भास्कर ने जानने की कोशिश की कि कहां पर रुकी हैं हमारी राहें? किसने रोका है उन्हें? क्यों नहीं बन पा रही हैं हमारी सड़कें? क्यों कई प्रोजेक्ट छह से सात साल देरी से चल रहे हैं? क्या यह देरी भ्रष्टाचार की वजह से है? या देरी की वजह से भ्रष्टाचार पनप रहा है? कितना पैसा कहां से आ रहा है और कहां जा रहा है?
क्यों गिरफ्तार हुए एनएचएआई के वरिष्ठ अधिकारी सीबीआई के हाथों? और क्या कह रहे हैं मंत्री और अधिकारी आपके सवालों पर?
खरबों का खर्च लेकिन न ऑडिट, न रेग्यूलेटर:
पूर्व केंद्रीय परिवहन सचिव और एनएचएआई के पूर्व चेयरमैन योगेंद्र नारायण के मुताबिक हाइवे सेक्टर को सीएजी और सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत होना ही चाहिए। इस क्षेत्र में विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय स्वतंत्र रेग्यूलेटरी अथॉरिटी की सख्त जरूरत है।केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री कमलनाथ ने बताया कि हाइवे का काम अभी तक ठप पड़ा था। अभी तक हाईवे को लेकर न तो कोई योजना थी, न डैडलाइन, न टारगेट और न ही काम अवार्ड हो रहे थे। अब मैं काम में तेजी लाया हूं। पिछले साल 10 हजार किलोमीटर के काम अवार्ड हुए हैं। इस साल भी लक्ष्य 10 हजार किमी काम देने का है। आपको जल्द ही नतीजे दिखने लगेंगे।
इंजीनियरों की ठेकेदारों से साठगांठ से भ्रष्टाचार
मंत्रालय व एनएचएआई के इंजीनियरों की कंसलटेट्स और ठेकेदारों के साथ गहरी साठगांठ है। इससे हाइवे के काम में देरी और भ्रष्टाचार फैल रहा है। - ब्रह्मा दत्त, पूर्व केंद्रीय परिवहन सचिव का सड़क परिवहन पर बनी संसदीय समिति के सामने बयान
20 नहीं सिर्फ 5 किमी प्रतिदिन
हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने पांच वर्षो में 35 हजार किमी. राजमार्ग निर्माण का लक्ष्य रखा है - हर दिन 20 किमी, लेकिन फिलहाल 5 किमी प्रति दिन निर्माण हो रहा है। अब इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में निवेश घाटे का सौदा नहीं, खरबों की कमाई है
मिथक
1. कोई इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में पैसा नहीं लगाना चाहता क्योंकि यह लाभ का सौदा नहीं है
2. सड़क बनाने जैसी कल्याणकारी योजनाओं में सरकार का पैसा डूब जाता है
हकीकत
1. कुछ कंपनियां सात-आठ सालों में अरबपति हो गईं क्योंकि रेट ऑफ रिटर्न 90 प्रतिशत है।
2. हाइवे पर टोल और सेस के जरिए 10 हजार करोड़ से ज्यादा की कमाई।
मजे की बात यह है कि जब पिछले साल राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने इस रोड का टैंडर निकाला तब दिल्ली मेट्रो रेल कॉपरेरेशन (डीएमआरसी) इस सड़क को छह-लेन बना रहा था। उसकी लागत आई थी 8.4 करोड़ रुपए। समय लगा था 8 महीने। काम खत्म हुआ अप्रैल 2010 में। डीएमआरसी का काम अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि एनएचएआई ने 19 फरवरी को इस रोड को नेशनल हाइवे घोषित कर दिया। नाम दिया एनएच-236, लेकिन इसको छह लेन बनाने, साथ में फुटपाथ और साइकिल ट्रैक बनाने के लिए टैंडर तो उसने जनवरी में ही बुला लिए थे। सड़क के दोनों ओर सड़क परिवहन मंत्री कमलनाथ जैसे मुल्क के असरदार लोगों के फार्महाउस हैं।
फुटपाथ और साइकिल ट्रैक बनाने की जगह नहीं है, इसलिए काम ठप पड़ा है। ऐसी ही विचित्र बातों के कारण भास्कर ने जानने की कोशिश की कि कहां पर रुकी हैं हमारी राहें? किसने रोका है उन्हें? क्यों नहीं बन पा रही हैं हमारी सड़कें? क्यों कई प्रोजेक्ट छह से सात साल देरी से चल रहे हैं? क्या यह देरी भ्रष्टाचार की वजह से है? या देरी की वजह से भ्रष्टाचार पनप रहा है? कितना पैसा कहां से आ रहा है और कहां जा रहा है?
क्यों गिरफ्तार हुए एनएचएआई के वरिष्ठ अधिकारी सीबीआई के हाथों? और क्या कह रहे हैं मंत्री और अधिकारी आपके सवालों पर?
खरबों का खर्च लेकिन न ऑडिट, न रेग्यूलेटर:
पूर्व केंद्रीय परिवहन सचिव और एनएचएआई के पूर्व चेयरमैन योगेंद्र नारायण के मुताबिक हाइवे सेक्टर को सीएजी और सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत होना ही चाहिए। इस क्षेत्र में विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय स्वतंत्र रेग्यूलेटरी अथॉरिटी की सख्त जरूरत है।केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री कमलनाथ ने बताया कि हाइवे का काम अभी तक ठप पड़ा था। अभी तक हाईवे को लेकर न तो कोई योजना थी, न डैडलाइन, न टारगेट और न ही काम अवार्ड हो रहे थे। अब मैं काम में तेजी लाया हूं। पिछले साल 10 हजार किलोमीटर के काम अवार्ड हुए हैं। इस साल भी लक्ष्य 10 हजार किमी काम देने का है। आपको जल्द ही नतीजे दिखने लगेंगे।
इंजीनियरों की ठेकेदारों से साठगांठ से भ्रष्टाचार
मंत्रालय व एनएचएआई के इंजीनियरों की कंसलटेट्स और ठेकेदारों के साथ गहरी साठगांठ है। इससे हाइवे के काम में देरी और भ्रष्टाचार फैल रहा है। - ब्रह्मा दत्त, पूर्व केंद्रीय परिवहन सचिव का सड़क परिवहन पर बनी संसदीय समिति के सामने बयान
20 नहीं सिर्फ 5 किमी प्रतिदिन
हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने पांच वर्षो में 35 हजार किमी. राजमार्ग निर्माण का लक्ष्य रखा है - हर दिन 20 किमी, लेकिन फिलहाल 5 किमी प्रति दिन निर्माण हो रहा है। अब इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में निवेश घाटे का सौदा नहीं, खरबों की कमाई है
मिथक
1. कोई इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में पैसा नहीं लगाना चाहता क्योंकि यह लाभ का सौदा नहीं है
2. सड़क बनाने जैसी कल्याणकारी योजनाओं में सरकार का पैसा डूब जाता है
हकीकत
1. कुछ कंपनियां सात-आठ सालों में अरबपति हो गईं क्योंकि रेट ऑफ रिटर्न 90 प्रतिशत है।
2. हाइवे पर टोल और सेस के जरिए 10 हजार करोड़ से ज्यादा की कमाई।
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सिर्फ सात किलोमीटर लंबी पहले से छह-लेन बनी सड़क
नई दिल्ली. सिर्फ सात किलोमीटर लंबी पहले से छह-लेन बनी सड़क को फिर से छह-लेन बनाने में कितनी लागत आएगी। और समय कितना लगेगा? लागत - 109 करोड़। समय - पता नहीं, क्योंकि एक साल पहले शुरू हुआ निर्माण अभी जारी है। हालांकि मामला दिल्ली में मेहरौली से गुड़गांव की सड़क का है, लेकिन यह पूरे देश में हाइवे निर्माण की हालात बयान करता है।
मजे की बात यह है कि जब पिछले साल राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने इस रोड का टैंडर निकाला तब दिल्ली मेट्रो रेल कॉपरेरेशन (डीएमआरसी) इस सड़क को छह-लेन बना रहा था। उसकी लागत आई थी 8.4 करोड़ रुपए। समय लगा था 8 महीने। काम खत्म हुआ अप्रैल 2010 में। डीएमआरसी का काम अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि एनएचएआई ने 19 फरवरी को इस रोड को नेशनल हाइवे घोषित कर दिया। नाम दिया एनएच-236, लेकिन इसको छह लेन बनाने, साथ में फुटपाथ और साइकिल ट्रैक बनाने के लिए टैंडर तो उसने जनवरी में ही बुला लिए थे। सड़क के दोनों ओर सड़क परिवहन मंत्री कमलनाथ जैसे मुल्क के असरदार लोगों के फार्महाउस हैं।
फुटपाथ और साइकिल ट्रैक बनाने की जगह नहीं है, इसलिए काम ठप पड़ा है। ऐसी ही विचित्र बातों के कारण भास्कर ने जानने की कोशिश की कि कहां पर रुकी हैं हमारी राहें? किसने रोका है उन्हें? क्यों नहीं बन पा रही हैं हमारी सड़कें? क्यों कई प्रोजेक्ट छह से सात साल देरी से चल रहे हैं? क्या यह देरी भ्रष्टाचार की वजह से है? या देरी की वजह से भ्रष्टाचार पनप रहा है? कितना पैसा कहां से आ रहा है और कहां जा रहा है?
क्यों गिरफ्तार हुए एनएचएआई के वरिष्ठ अधिकारी सीबीआई के हाथों? और क्या कह रहे हैं मंत्री और अधिकारी आपके सवालों पर?
खरबों का खर्च लेकिन न ऑडिट, न रेग्यूलेटर:
पूर्व केंद्रीय परिवहन सचिव और एनएचएआई के पूर्व चेयरमैन योगेंद्र नारायण के मुताबिक हाइवे सेक्टर को सीएजी और सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत होना ही चाहिए। इस क्षेत्र में विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय स्वतंत्र रेग्यूलेटरी अथॉरिटी की सख्त जरूरत है।केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री कमलनाथ ने बताया कि हाइवे का काम अभी तक ठप पड़ा था। अभी तक हाईवे को लेकर न तो कोई योजना थी, न डैडलाइन, न टारगेट और न ही काम अवार्ड हो रहे थे। अब मैं काम में तेजी लाया हूं। पिछले साल 10 हजार किलोमीटर के काम अवार्ड हुए हैं। इस साल भी लक्ष्य 10 हजार किमी काम देने का है। आपको जल्द ही नतीजे दिखने लगेंगे।
इंजीनियरों की ठेकेदारों से साठगांठ से भ्रष्टाचार
मंत्रालय व एनएचएआई के इंजीनियरों की कंसलटेट्स और ठेकेदारों के साथ गहरी साठगांठ है। इससे हाइवे के काम में देरी और भ्रष्टाचार फैल रहा है। - ब्रह्मा दत्त, पूर्व केंद्रीय परिवहन सचिव का सड़क परिवहन पर बनी संसदीय समिति के सामने बयान
20 नहीं सिर्फ 5 किमी प्रतिदिन
हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने पांच वर्षो में 35 हजार किमी. राजमार्ग निर्माण का लक्ष्य रखा है - हर दिन 20 किमी, लेकिन फिलहाल 5 किमी प्रति दिन निर्माण हो रहा है। अब इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में निवेश घाटे का सौदा नहीं, खरबों की कमाई है
मिथक
1. कोई इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में पैसा नहीं लगाना चाहता क्योंकि यह लाभ का सौदा नहीं है
2. सड़क बनाने जैसी कल्याणकारी योजनाओं में सरकार का पैसा डूब जाता है
हकीकत
1. कुछ कंपनियां सात-आठ सालों में अरबपति हो गईं क्योंकि रेट ऑफ रिटर्न 90 प्रतिशत है।
2. हाइवे पर टोल और सेस के जरिए 10 हजार करोड़ से ज्यादा की कमाई।
मजे की बात यह है कि जब पिछले साल राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने इस रोड का टैंडर निकाला तब दिल्ली मेट्रो रेल कॉपरेरेशन (डीएमआरसी) इस सड़क को छह-लेन बना रहा था। उसकी लागत आई थी 8.4 करोड़ रुपए। समय लगा था 8 महीने। काम खत्म हुआ अप्रैल 2010 में। डीएमआरसी का काम अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि एनएचएआई ने 19 फरवरी को इस रोड को नेशनल हाइवे घोषित कर दिया। नाम दिया एनएच-236, लेकिन इसको छह लेन बनाने, साथ में फुटपाथ और साइकिल ट्रैक बनाने के लिए टैंडर तो उसने जनवरी में ही बुला लिए थे। सड़क के दोनों ओर सड़क परिवहन मंत्री कमलनाथ जैसे मुल्क के असरदार लोगों के फार्महाउस हैं।
फुटपाथ और साइकिल ट्रैक बनाने की जगह नहीं है, इसलिए काम ठप पड़ा है। ऐसी ही विचित्र बातों के कारण भास्कर ने जानने की कोशिश की कि कहां पर रुकी हैं हमारी राहें? किसने रोका है उन्हें? क्यों नहीं बन पा रही हैं हमारी सड़कें? क्यों कई प्रोजेक्ट छह से सात साल देरी से चल रहे हैं? क्या यह देरी भ्रष्टाचार की वजह से है? या देरी की वजह से भ्रष्टाचार पनप रहा है? कितना पैसा कहां से आ रहा है और कहां जा रहा है?
क्यों गिरफ्तार हुए एनएचएआई के वरिष्ठ अधिकारी सीबीआई के हाथों? और क्या कह रहे हैं मंत्री और अधिकारी आपके सवालों पर?
खरबों का खर्च लेकिन न ऑडिट, न रेग्यूलेटर:
पूर्व केंद्रीय परिवहन सचिव और एनएचएआई के पूर्व चेयरमैन योगेंद्र नारायण के मुताबिक हाइवे सेक्टर को सीएजी और सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत होना ही चाहिए। इस क्षेत्र में विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय स्वतंत्र रेग्यूलेटरी अथॉरिटी की सख्त जरूरत है।केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री कमलनाथ ने बताया कि हाइवे का काम अभी तक ठप पड़ा था। अभी तक हाईवे को लेकर न तो कोई योजना थी, न डैडलाइन, न टारगेट और न ही काम अवार्ड हो रहे थे। अब मैं काम में तेजी लाया हूं। पिछले साल 10 हजार किलोमीटर के काम अवार्ड हुए हैं। इस साल भी लक्ष्य 10 हजार किमी काम देने का है। आपको जल्द ही नतीजे दिखने लगेंगे।
इंजीनियरों की ठेकेदारों से साठगांठ से भ्रष्टाचार
मंत्रालय व एनएचएआई के इंजीनियरों की कंसलटेट्स और ठेकेदारों के साथ गहरी साठगांठ है। इससे हाइवे के काम में देरी और भ्रष्टाचार फैल रहा है। - ब्रह्मा दत्त, पूर्व केंद्रीय परिवहन सचिव का सड़क परिवहन पर बनी संसदीय समिति के सामने बयान
20 नहीं सिर्फ 5 किमी प्रतिदिन
हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने पांच वर्षो में 35 हजार किमी. राजमार्ग निर्माण का लक्ष्य रखा है - हर दिन 20 किमी, लेकिन फिलहाल 5 किमी प्रति दिन निर्माण हो रहा है। अब इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में निवेश घाटे का सौदा नहीं, खरबों की कमाई है
मिथक
1. कोई इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में पैसा नहीं लगाना चाहता क्योंकि यह लाभ का सौदा नहीं है
2. सड़क बनाने जैसी कल्याणकारी योजनाओं में सरकार का पैसा डूब जाता है
हकीकत
1. कुछ कंपनियां सात-आठ सालों में अरबपति हो गईं क्योंकि रेट ऑफ रिटर्न 90 प्रतिशत है।
2. हाइवे पर टोल और सेस के जरिए 10 हजार करोड़ से ज्यादा की कमाई।
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