Jan 1, 2013

बनारस वाले बनारसी की एक कहानी...



एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला। चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल लिए। टोटके या अंधविश्वास के कारण भिक्षाटन के लिए निकलते समय भिखारी अपनी झोली खाली नहीं रखते। थैली देख कर दूसरों को लगता है कि इसे पहले से किसी ने दे रखा है।

पूर्णिमा का दिन था, भिखारी सोच रहा था कि आज ईश्वर की कृपा होगी तो मेरी यह झोली शाम से पहले ही भर जाएगी।
...
अचानक सामने से राजपथ पर उसी देश के राजा की सवारी आती दिखाई दी। भिखारी खुश हो गया। उसने सोचा, राजा के दर्शन और उनसे मिलने वाले दान से सारे दरिद्र दूर हो जाएंगे, जीवन संवर जाएगा। जैसे-जैसे राजा की सवारी निकट आती गई, भिखारी की कल्पना और उत्तेजना भी बढ़ती गई।

जैसे ही राजा का रथ भिखारी के निकट आया, राजा ने अपना रथ रुकवाया, उतर कर उसके निकट पहुंचे। भिखारी की तो मानो सांसें ही रुकने लगीं। लेकिन राजा ने उसे कुछ देने के बदले उलटे अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और भीख की याचना करने लगे। भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। अभी वह सोच ही रहा था कि राजा ने पुन: याचना की।

भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला, मगर हमेशा दूसरों से लेने वाला मन देने को राजी नहीं हो रहा था। जैसे-तैसे कर उसने दो दाने जौ के निकाले और उन्हें राजा की चादर पर डाल दिया।

उस दिन भिखारी को रोज से अधिक भीख मिली, मगर वे दो दाने देने का मलाल उसे सारे दिन रहा। शाम को जब उसने झोली पलटी तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। जो जौ वह ले गया था, उसके दो दाने सोने के हो गए थे। उसे समझ में आया कि यह दान की ही महिमा के कारण हुआ है।

वह पछताया कि काश! उस समय राजा को और अधिक जौ दी होती, लेकिन नहीं दे सका, क्योंकि देने की आदत जो नहीं थी।

Dec 25, 2012

88 के अटल: अधूरी हैं ये ख्वाहिशें, टीवी देखते कटता है वक्‍त


लखनऊ. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी का मंगलवार (25 दिसंबर) को 88वां जन्‍मदिन है। वह बीमार चल रहे हैं और उनका ज्‍यादातर वक्‍त टीवी देखते हुए ही कटता है। यूपी की राजधानी लखनऊ से उनका खास लगाव रहा है। यहीं से वह कवि से पत्रकार और पत्रकार से राजनेता बने। यहां से कई बार संसद पहुंचे। यही से सांसद रहते हुए देश के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने लखनऊ के विकास को लेकर कई योजनाएं शुरू करवाईं। लेकिन आज ये सभी योजनाएं करोड़ों खर्च किए जाने के बावजूद राजनीतिक इच्छाशक्ति और सरकारी बजट के आभाव में अधूरी पड़ी हैं।

टीवी देखते रहते हैं अटल : अटलजी 2004 के बाद गिने-चुने सार्वजनिक आयोजनों में ही देखे गए हैं। तीन साल से कुछ लिखा नहीं, दो साल से कुछ बोले नहीं हैं। गजब की भाषण कला ही तो उनकी पहचान रही है पर वे अब 'मौन' हैं। पैरालिसिस ने उनकी वाणी को विराम भले ही दे दिया हो मगर वे चैतन्य हैं। इशारों में संवाद करते हैं। 20 सालों में करीब दस सर्जरी हुई हैं उनकी। डॉक्टरों की मौजूदगी में नियमित फिजियोथेरेपी के बाद ज्यादा वक्त टीवी के सामने गुजरता है। संसद की कार्यवाही देखते हैं, लेकिन सांसदों का हंगामा देख उन्‍हें नागवार गुजरता है। ऐसे में वह तत्‍काल चैनल बदलवा देते हैं। उनके सबसे करीबी सहयोगी शिवकुमार बताते हैं कि ऐसे में वे गाने सुनने लगते हैं। इंडियन आयडल जैसे कार्यक्रम उन्‍हें खास पसंद हैं।

50 साल से अटलजी की निजी सेवा में लगे शिव कुमार कहते हैं, 'अटलजी ने कभी व्हीलचेयर पर लोगों के सामने आना गवारा नहीं किया। वे बोल नहीं सकते पर हम उनका हर इशारा समझते हैं।' 2004 के बाद अटलजी की ख्वाहिश काश्मीर पर कुछ लिखने की जरूर रही। एनडीए जब सत्ता से बाहर हुआ तो वे मनाली में थे। वहां भी उन्होंने अपनों के बीच कहा कि अब कश्मीर पर काम करने के लिए मेरे पास वक्त रहेगा। काफी पहले श्यामाप्रसाद मुखर्जी पर उन्होंने किताब भी लिखी थी-मृत्यु या हत्या। कई बार उनके करीबियों ने बायोग्राफी पर काम करने की सलाह दी लेकिन अटलजी ने हर बार मुस्कराकर टाल दिया। वे कहते,'मेरी प्राथमिकता कश्मीर पर कुछ लिखना जरूर है।'

बतौर प्रधानमंत्री उनके मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन को याद है कि तीन साल पहले तक वे कश्मीर पर काम भी कर रहे थे। टंडन कहते हैं कि मुमकिन है कोई दस्तावेज बना भी हो। मध्यप्रदेश में भाजपा दूसरी दफा सत्ता में लौटी तो मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, अनिल माधव दवे, अनूप मिश्रा और संगठन के कुछ नेता आशीर्वाद के लिए आए। मोतीचूर के लड्डू लेकर आए। चौहान आधा लड्डू तोड़कर अटलजी को खिलाने लगे तो खानपान के शौकीन अटलजी ने उन्हें वहीं टोक दिया, 'आधा नहीं। पूरा खाऊंगा।' उन्होंने पूरा लड्डू ही खाया। तस्वीरें खिंचवाईं। सब चुनावी अपडेट देते रहे। वे मुस्कराते रहे बस। कुछ बोले नहीं। दवे याद करते हैं कि किसी के आने पर इससे पहले अटलजी हॉल में खुद चलकर आया करते थे। पहली बार हमने उन्हें पहले से कुर्सी पर बैठे हुए देखा।

मुंबई में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति आखिरी आयोजन था, जिसमें वे शरीक हुए। वे व्हील चेअर पर आए थे। सब उन्हें सुनने के लिए बेताब थे। सिर्फ एक पंक्ति का ही भाषण हुआ। यह पहला मौका था, जब उन्होंने इतना संक्षिप्त उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा था,'यह परिवर्तन का काल है।'


Dec 20, 2012

कभी मोदी बेचा करते थे चाय !


नई दिल्ली। आखिरकार तीसरी बार गुजरात मोदी का हुआ। इससे पहले तमाम सर्वे में भी मोदी की जीत पक्की बताई गई थी। आइए मोदी के बारे में कुछ रोचक बातें आपको बताते हैं..

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म दामोदारदास मूलचंद मोदी व उनकी पत्‍‌नी हीराबेन मोदी के घर मेहसाणा जिले में हुआ। 17 सितंबर 1950 को बेहद साधारण परिवार में जन्में मोदी अपने विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। गुजरात पर राज करने वाले मोदी के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। मोदी का बचपन कठोर परिश्रम के साथ बीता। मात्र 14 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने रेलवे स्टेशन पर पिता की चाय की दुकान में हाथ बंटाना शुरू कर दिया था।

ब्रांड बन चुके नरेंद्र मोदी का बचपन बहुत ही अभावग्रस्त रहा है। छोटी सी उम्र में ही वे वडनगर में एक ऑयल कंपनी में तेल के पीपे उठाया करते थे, हर पीपे पर उन्हें 5 पैसे की मजदूरी मिला करती थी।

मोदी के पड़ोसी बताते हैं कि जब भी रेलवे स्टेशन पर कोई ट्रेन आती तो हाफ पैंट में मोदी चाय की केतली लेकर दौड़ पड़ते थे। चाय के अलावा वे पांच-पांच पैसे में पानी के ग्लास भी बेचा करते थे।

प्रचारक जीवन के दरमियान उनकी जवाबदारी सुबह उठकर चाय के लिए दूध लाना हुआ करती थी। संघ प्रचारकों की चाय के लिए मोदी सुबह 5 बजे उठकर दूध लेने जाया करते थे।

मोदी पढ़ने में काफी होशियार थे। उनकी विशेष रुचि समाजशास्त्र और इतिहास में थी। इन सब्जेक्ट्स को वे बहुत रुचि के साथ पढ़ा करते थे।

मोदी की याददाश्त हमेशा से ही बहुत तेज रही। एक बार वे किसी से मुलाकात कर लें तो फिर उसका नाम कभी नहीं भूलते।

मोदी बोले, गुजरात की 6 करोड़ जनता हीरो


नई दिल्‍ली/अहमदाबाद/शिमला. गुजरात (मतगणना LIVE) और हिमाचल विधानसभा चुनाव (मतगणना लाइव अपडेट) के नतीजे आते ही देश में सियासी पारा चढ़ गया है। नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार गुजरात के सीएम बनने का रास्ता साफ हो गया है और बीजेपी राज्‍य में लगातार पांचवी बार सत्‍ता में आई है। जीत के बाद बीजेपी के कार्यालय पहुंचे मोदी ने अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा, 'गुजरात के करोडो़ं भाई और बहनों का धन्यवाद। गुजरात चुनाव ने सिद्ध कर दिया है कि इस देश की जनता और इस देश के मतदाता, क्या अच्छा औऱ क्या बुरा है, यह भली भांति समझता है। और जब उसे स्वतंत्र रूप से निर्णय लेना होता है तो वह ऊंची सोच के साथ भविष्य को नजर में रखकर अपना फैसला सुनाता है। गुजरात के नतीजों ने यह सिद्ध कर दिया कि लोकतंत्र की इस लंबी प्रक्रिया के दौरान गुजरात का मतदाता कितना मैच्योर हुआ है। सारे लोभ लालच, भांति-भांति के जहर से ऊपर उठकर वोट दिया। मतदाताओं ने सोचा कि अगर गुजरात का भला होगा तो मेरा भी भला होगा। देश के पॉलिटिकल पंडितों को समझना होगा कि देश ने 80 के दशक के जातिवादी जहर को देखा और महसूस किया है। गुजरात के मतदाता यहां कभी भी 80 के दशक का हाल दोबारा नहीं चाहते। गुजरात के मतदाता जातिवाद, क्षेत्रवाद से ऊपर उठ चुके हैं। आने वाली पीढ़ी के बारे में लोग सोच रहे हैं।'



नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन से पहले ट्वीट किया, 'जनता की सेवा करने का मौका देने के लिए गुजरात की 6 करोड़ जनता और भगवान का धन्यवाद। उन सबका शुक्रिया जिन्होंने वोट दिया और जिन्होंने नहीं दिया उनका वोट पाने के लिए कड़ी मेहनत करूंगा।'


इससे पहले तमिलनाडु की सीएम जयललिता और बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन ने नरेंद्र मोदी को जीत (पढ़ें: मोदी की जीत के कारण) पर बधाई दी है। मोदी ने अपने राजनीतिक विरोधी केशुभाई पटेल से मुलाकात की और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया। नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद केशुभाई पटेल ने कहा, 'मैंने मोदी को बधाई दी और हम दोनों ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाई। 2007 में मैंने मोदी को फोन किया था कि बधाई देने कहां आऊं? तो मोदी ने मुझे बताया था कि बधाई लेने वे खुद आएंगे।' ('मोदी सरकार बनी तो होंगे धमाके')



हिमाचल में पांच साल बाद कांग्रेस की वापसी हो रही है। यहां बीजेपी ने अपनी हार स्‍वीकार कर ली है। लेकिन, हिमाचल में सीएम की कुर्सी को लेकर कांग्रेस के भीतर घमासान शुरू हो गया है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी विरेंद्र कुमार ने कहा है कि वीरभद्र सिंह सीएम पद के अकेले दावेदार नहीं है। अगर वे अकेले ही दावेदार होते तो दि‍ल्ली में विधायक दल की बैठक नहीं बुलाई जाती। मीडिया की ओर से पूछ गए सवाल के जवाब देते हुए उन्‍होंने कहा कि विधायक दल की बैठक में जो भी फैसला किया जाएगा उसे कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी के पास भेज दिया जाएगा। अंतिम मुहर सोनिया गांधी ही लगाएंगी कि हिमाचल का मुख्‍यमंत्री कौन होगा। उधर, सीएम की कुर्सी को लेकर जोड़ तोड़ और लॉबिंग शुरू हो गई है।



अभी तक की मतगणना के मुताबिक बीजेपी 113 सीटें जीत गई जबकि 3 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। वहीं कांग्रेस 56 सीटें जीत गई है और 4 पर आगे चल रही है। पांच सीटों पर अन्‍य उम्‍मीदवार बढ़त बनाए हुए हैं। जेडी (यू) ने एक सीट जीतकर अपना खाता खोला है। यहां पार्टी ने बीजेपी से अलग चुनाव लड़ा।


हिमाचल में अब तक परिणामों में कांग्रेस को 36 सीटें जीत चुकी है। भाजपा 24 सीटें जीत चुकी है और 2 पर आगे चल रही है। अन्य के खाते में 5 सीटे गई हैं और एक उम्मीदवार बढ़त बनाए हुए है।

Dec 18, 2012

तुम्हें यह साबित करना होगा कि यह पर्स तुम्हारा ही है।



यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेन में टी.टी.ई. को एक
पुराना फटा सा पर्स मिला। उसने पर्स को खोलकर यह
पता लगाने की कोशिश की कि वह किसका है। लेकिन पर्स
में ऐसा कुछ नहीं था जिससे कोई सुराग मिल सके। पर्स में
कुछ पैसे और भगवान श्रीकृष्ण की फोटो थी। फिर उस
...
... टी.टी.ई. ने हवा में पर्स हिलाते हुए पूछा -"यह
किसका पर्स है?"
एक बूढ़ा यात्री बोला -"यह मेरा पर्स है। इसे कृपया मुझे
दे दें।"टी.टी.ई. ने कहा -"तुम्हें यह साबित
करना होगा कि यह पर्स तुम्हारा ही है।
केवल तभी मैं यह
पर्स तुम्हें लौटा सकता हूं।"उस बूढ़े व्यक्ति ने दंतविहीन
मुस्कान के साथ उत्तर दिया -"इसमें भगवान श्रीकृष्ण
की फोटो है।"टी.टी.ई. ने कहा -"यह कोई ठोस सबूत
नहीं है। किसी भी व्यक्ति के पर्स में भगवान श्रीकृष्ण
की फोटो हो सकती है। इसमें क्या खास बात है? पर्स में
तुम्हारी फोटो क्यों नहीं है?"

बूढ़ा व्यक्ति ठंडी गहरी सांस भरते हुए बोला -"मैं तुम्हें
बताता हूं कि मेरा फोटो इस पर्स में क्यों नहीं है। जब मैं
स्कूल में पढ़ रहा था, तब ये पर्स मेरे पिता ने मुझे
दिया था। उस समय मुझे जेबखर्च के रूप में कुछ पैसे मिलते थे।
मैंने पर्स में अपने माता-पिता की फोटो रखी हुयी थी।
जब मैं किशोर अवस्था में पहुंचा, मैं अपनी कद-काठी पर
मोहित था। मैंने पर्स में से माता-पिता की फोटो हटाकर
अपनी फोटो लगा ली। मैं अपने सुंदर चेहरे और काले घने
बालों को देखकर खुश हुआ करता था। कुछ साल बाद
मेरी शादी हो गयी। मेरी पत्नी बहुत सुंदर थी और मैं उससे
बहुत प्रेम करता था। मैंने पर्स में से अपनी फोटो हटाकर
उसकी लगा ली। मैं घंटों उसके सुंदर चेहरे
को निहारा करता।

जब मेरी पहली संतान का जन्म हुआ, तब मेरे जीवन
का नया अध्याय शुरू हुआ। मैं अपने बच्चे के साथ खेलने के लिए
काम पर कम समय खर्च करने लगा। मैं देर से काम पर
जाता ओर जल्दी लौट आता। कहने की बात नहीं, अब मेरे
पर्स में मेरे बच्चे की फोटो आ गयी थी।"
बूढ़े व्यक्ति ने डबडबाती आँखों के साथ
बोलना जारी रखा -"कई वर्ष पहले मेरे माता-
पिता का स्वर्गवास हो गया। पिछले वर्ष
मेरी पत्नी भी मेरा साथ छोड़ गयी। मेरा इकलौता पुत्र
अपने परिवार में व्यस्त है। उसके पास मेरी देखभाल का क्त
नहीं है। जिसे मैंने अपने जिगर के टुकड़े की तरह पाला था,
वह अब मुझसे बहुत दूर हो चुका है। अब मैंने भगवान कृष्ण
की फोटो पर्स में लगा ली है। अब जाकर मुझे एहसास हुआ है
कि श्रीकृष्ण ही मेरे शाश्वत साथी हैं। वे हमेशा मेरे साथ
रहेंगे। काश मुझे पहले ही यह एहसास हो गया होता।
जैसा प्रेम मैंने अपने परिवार से किया, वैसा प्रेम यदि मैंने
ईश्वर के साथ किया होता तो आज मैं
इतना अकेला नहीं होता।"

टी.टी.ई. ने उस बूढ़े व्यक्ति को पर्स लौटा दिया। अगले
स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही वह टी.टी.ई. प्लेटफार्म पर बने
बुकस्टाल पर पहुंचा और विक्रेता से बोला -"क्या तुम्हारे
पास भगवान की कोई फोटो है? मुझे अपने पर्स में रखने के
लिए चाहिए।