नये बैंक लाइसेंस से बैंकिंग सेवाओं का होगा विस्तार:
निजी क्षेत्र में नए बैंकों के लिए लाइसेंस जारी करने के अंतिम दिशानिर्देश जारी होने का उद्योग जगत ने स्वागत किया। उद्योग मंडल एसोचैम ने आज कहा
कि इससे बैंकिंग सेवाओं का विस्तार करने में मदद मिलेगी।
... एसोचैम के अध्यक्ष राजकुमार धूत ने कहा कि इससे ना केवल बैंकिंग सेवाओं का विस्तार करने में मदद मिलेगी, बल्कि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहन मिलेगा। उन्होंने कहा कि साथ ही मौजूदा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को बैंकों में तब्दील होने की अनुमति देने संबंधी प्रावधान किए जाने से एनबीएफसी क्षेत्र की मांग भी पूरी होगी।
उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक ने नए बैंक लाइसेंस जारी करने के लिए शुक्रवार को अंतिम दिशानिर्देश जारी कर दिए, जिसमें निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में कंपनियों के साथ साथ एनबीएफसी को बैंकिंग क्षेत्र में उतरने की अनुमति दी गई है।
रिलायंस कैपिटल के सीईओ सैम घोष ने कहा, हम नए बैकिंग लाइसेंस दिशानिर्देशों का स्वागत करते हैं। ये दूरदर्शी हैं और रिलायंस कैपिटल बैंकिंग लाइसेंस के लिए आवेदन करना चाहेगी।
रिजर्व बैंक ने 1993 में निजी बैंकों को अनुमति दी थी और आखिरी बार 2001 में दो इकाइयों कोटक महिंद्रा बैंक और यस बैंक को लाइसेंस जारी किए थे।
Feb 23, 2013
Feb 21, 2013
वाह! चायवाले ने गरीब बच्चों के लिए खोल डाला स्कूल:.....
वाह! चायवाले ने गरीब बच्चों के लिए
खोल डाला स्कूल:-
कटक के एक छोटे से टी-स्टॉल
का मालिक गरीब बच्चों की मदद करत
करते उनके लिए एक शिक्षक भी बन
... गया।हर सुबह चाय के ठेला चलाने
वा प्रकाश राव कुछ गरीब
बच्चों को दूध बेचता है जो उसके स्टॉल
के करीब आते हैं। अगर यह 55 साल
का चायवाला इस ओर कदम
नहीं बढ़ाता तो शायद यह बच्चे
कभी पढ़ ही नहीं पाते।
प्रकाश को 11 कक्षा में छात्रवृत्ति के
बाद भी पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी जिसके
कारण वह शिक्षा की अहमियत जान
चुका था। इसके कारण ही प्रकाश ने
बस्ती में रहने वाले बच्चों को स्कूल
भेजने के लिए प्रेरित किया गया। इस
गांव के 2 किमी के आस पास 4
सरकारी स्कूल हैं पर ज्यादातर मां बाप
बेहद गरीब परिवार से हैं और वह अपने
बच्चों को इस कारण वहां नहीं भेज
सकते।
ऐसे बच्चों की मदद प्रकाश ने
करी जिससे वह पास में
ही अच्छी शिक्षा मुफ्त में ले पाएं।राव
ने सभी बच्चों को कक्षा 3 तक
पढ़ाता है और इसको पास करने वाले
छात्रों को वह सरकारी स्कूल भेजने में
भी मदद करता है।बस्ती में रहने
वाली एक मां बी नागरातनम के मुताबिक
स्कूल से बच्चों का मन पढ़ने में लग
गया।इससे पहले सभी बच्चे
आवारा घूमते रहते थे अब पढ़ाई में
अपना ध्यान लगाकर वह
अपना भविष्य बना रहे हैं।
हालांकि स्कूल बनाने का यह
सपना इतना आसान नहीं था। प्रकाश
को किसी वित्तीय संस्थान से कोई मदद
नहीं मिली और उसने अपने बल पर यह
काम पूरा किया। स्कूल के लिए पूरे
महीने के किराया 10,000 रुपए
होता है जिसमें 4 शिक्षकों का वेतन
अलग होता है। प्रकाश अपने टी स्टॉल
से 20,000 रुपए का फायदा महीने में
कमाता है और कभी किसी बिल के
भुगतान में देरी नहीं करता।
by: gurudip
खोल डाला स्कूल:-
कटक के एक छोटे से टी-स्टॉल
का मालिक गरीब बच्चों की मदद करत
करते उनके लिए एक शिक्षक भी बन
... गया।हर सुबह चाय के ठेला चलाने
वा प्रकाश राव कुछ गरीब
बच्चों को दूध बेचता है जो उसके स्टॉल
के करीब आते हैं। अगर यह 55 साल
का चायवाला इस ओर कदम
नहीं बढ़ाता तो शायद यह बच्चे
कभी पढ़ ही नहीं पाते।
प्रकाश को 11 कक्षा में छात्रवृत्ति के
बाद भी पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी जिसके
कारण वह शिक्षा की अहमियत जान
चुका था। इसके कारण ही प्रकाश ने
बस्ती में रहने वाले बच्चों को स्कूल
भेजने के लिए प्रेरित किया गया। इस
गांव के 2 किमी के आस पास 4
सरकारी स्कूल हैं पर ज्यादातर मां बाप
बेहद गरीब परिवार से हैं और वह अपने
बच्चों को इस कारण वहां नहीं भेज
सकते।
ऐसे बच्चों की मदद प्रकाश ने
करी जिससे वह पास में
ही अच्छी शिक्षा मुफ्त में ले पाएं।राव
ने सभी बच्चों को कक्षा 3 तक
पढ़ाता है और इसको पास करने वाले
छात्रों को वह सरकारी स्कूल भेजने में
भी मदद करता है।बस्ती में रहने
वाली एक मां बी नागरातनम के मुताबिक
स्कूल से बच्चों का मन पढ़ने में लग
गया।इससे पहले सभी बच्चे
आवारा घूमते रहते थे अब पढ़ाई में
अपना ध्यान लगाकर वह
अपना भविष्य बना रहे हैं।
हालांकि स्कूल बनाने का यह
सपना इतना आसान नहीं था। प्रकाश
को किसी वित्तीय संस्थान से कोई मदद
नहीं मिली और उसने अपने बल पर यह
काम पूरा किया। स्कूल के लिए पूरे
महीने के किराया 10,000 रुपए
होता है जिसमें 4 शिक्षकों का वेतन
अलग होता है। प्रकाश अपने टी स्टॉल
से 20,000 रुपए का फायदा महीने में
कमाता है और कभी किसी बिल के
भुगतान में देरी नहीं करता।
by: gurudip
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चंद सवालों का जवाब दीजिए और पाइए 'चमत्कारी' गूगल चश्मा...
न्यू यॉर्क।। दुनिया की सबसे बड़ी सर्च इंजन कंपनी गूगल आपके लिए लेकर आई है एक चमत्कारी चश्मा गूगल ग्लास। अगर आप चाहते हैं कि गूगल ग्लास आपको फ्री में मिल जाए, तो आपको देने होंगे कुछ चंद सवालों के जवाब। आपको कंपनी को यह बताना होगा आप इस चश्मे का इस्तेमाल कैसे करेंगे और आप इस चश्मे का इस्तेमाल करने के लायक हैं कि नहीं।
... गूगल ने बुधवार को एक ऐप्लिकेशन कॉन्टेस्ट शुरू किया है जिसमें वह 8 हजार ऐप्लिकेंट्स को चुनेगा और उन्हें गूगल चश्मा देगा। गूगल ने पूछा है कि अगर आपको यह चश्मा मिल जाएगा तो आप इसका इस्तेमाल कैसे करेंगे। गूगल ने इस कॉन्टेस्ट के लिए बाकायदा एक नई ग्लास वेबसाइट लॉन्च की है। इस साइट पर सारी जानकारियां मौजूद हैं और आप इसको पढ़कर इस कॉन्टेस्ट में हिस्सा ले सकते हैं। इसके होम पेज पर तीन लिंक हैं। पहला लिंक है- इसे पहनने पर कैसे महसूस होता है (हाउ इट फील्स)। दूसरा लिंक है यह कैसे काम करता है (हाउ इट डज) और तीसरा लिंक है- आप इसे कैसे पा सकते हैं (हाउ टु गेट वन)।
पहला लिंक विडियो है। दूसरा लिंक एक गैलरी पर खुलता है और यह बताता है कि ग्लास कैसे काम करता है और इसके क्या फायदे हैं। इसमें बिल्ट इन वॉइस रेकग्निशन, ऑन बोर्ड और हैंड्स फ्री विडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा है। आप इसके जरिए लाइव विडियो शेयर कर सकते हैं। आप बोलेंगे तस्वीर लो, आप यह चश्मा तस्वीर ले लेगा। आप बोलेंगे मेसेज भेजो और मेसेज तुरंत चला जाएगा। यह आपकी आवाज को सुनकर उसका ट्रांसलेशन कर सकता है। यह मजबूत और हल्का है। इसमें इन बिल्ट सर्च की सुविधा भी मौजूद है। इसमें कई कलर ऑप्शन भी मौजूद हैं।
अंतिम लिंक ऐप्लिकेशन प्रॉसेस को बताता है। इसके जरिए आप जान सकेंगे कि कैसे आपको यह चश्मा मिल पाएगा। दरअसल, गूगल यह जानना चाहता है कि आप इस टेक्नॉलजी का इस्तेमाल कैसे करते हैं।
अगर आप गूगल के इस चमत्कारी चश्मे पर अपना हक जमाना चाहते हैं तो आपको गूगल प्लस या ट्विटर पर 50 वर्ड्स में अपनी बात बतानी होगी। आप अपनी दावेदारी को मजबूत करने के लिए पांच फोटो और और एक 15 सेकंड का विडियो भी दे सकते हैं। विजेता कैंडिडेट्स से गूगल ट्विटर और गूगल प्लस के जरिए संपर्क साधेगा। आप चाहें तो गूगल प्लस पर '+ProjectGlass' और ट्विटर पर '@ProjectGlass' को फॉलो कर सकते हैं। याद रखिए कि आप इस कॉन्टेस्ट में 27 फरवरी तक ही हिस्सा ले सकते हैं।
अभी तक इस चश्मे का इस्तेमाल सिर्फ गूगल कंपनी के कर्मचारी ही कर सकते थे लेकिन अब गूगल ने इसको अन्य लोगों के साथ शेयर करने का मन बनाया है।
... गूगल ने बुधवार को एक ऐप्लिकेशन कॉन्टेस्ट शुरू किया है जिसमें वह 8 हजार ऐप्लिकेंट्स को चुनेगा और उन्हें गूगल चश्मा देगा। गूगल ने पूछा है कि अगर आपको यह चश्मा मिल जाएगा तो आप इसका इस्तेमाल कैसे करेंगे। गूगल ने इस कॉन्टेस्ट के लिए बाकायदा एक नई ग्लास वेबसाइट लॉन्च की है। इस साइट पर सारी जानकारियां मौजूद हैं और आप इसको पढ़कर इस कॉन्टेस्ट में हिस्सा ले सकते हैं। इसके होम पेज पर तीन लिंक हैं। पहला लिंक है- इसे पहनने पर कैसे महसूस होता है (हाउ इट फील्स)। दूसरा लिंक है यह कैसे काम करता है (हाउ इट डज) और तीसरा लिंक है- आप इसे कैसे पा सकते हैं (हाउ टु गेट वन)।
पहला लिंक विडियो है। दूसरा लिंक एक गैलरी पर खुलता है और यह बताता है कि ग्लास कैसे काम करता है और इसके क्या फायदे हैं। इसमें बिल्ट इन वॉइस रेकग्निशन, ऑन बोर्ड और हैंड्स फ्री विडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा है। आप इसके जरिए लाइव विडियो शेयर कर सकते हैं। आप बोलेंगे तस्वीर लो, आप यह चश्मा तस्वीर ले लेगा। आप बोलेंगे मेसेज भेजो और मेसेज तुरंत चला जाएगा। यह आपकी आवाज को सुनकर उसका ट्रांसलेशन कर सकता है। यह मजबूत और हल्का है। इसमें इन बिल्ट सर्च की सुविधा भी मौजूद है। इसमें कई कलर ऑप्शन भी मौजूद हैं।
अंतिम लिंक ऐप्लिकेशन प्रॉसेस को बताता है। इसके जरिए आप जान सकेंगे कि कैसे आपको यह चश्मा मिल पाएगा। दरअसल, गूगल यह जानना चाहता है कि आप इस टेक्नॉलजी का इस्तेमाल कैसे करते हैं।
अगर आप गूगल के इस चमत्कारी चश्मे पर अपना हक जमाना चाहते हैं तो आपको गूगल प्लस या ट्विटर पर 50 वर्ड्स में अपनी बात बतानी होगी। आप अपनी दावेदारी को मजबूत करने के लिए पांच फोटो और और एक 15 सेकंड का विडियो भी दे सकते हैं। विजेता कैंडिडेट्स से गूगल ट्विटर और गूगल प्लस के जरिए संपर्क साधेगा। आप चाहें तो गूगल प्लस पर '+ProjectGlass' और ट्विटर पर '@ProjectGlass' को फॉलो कर सकते हैं। याद रखिए कि आप इस कॉन्टेस्ट में 27 फरवरी तक ही हिस्सा ले सकते हैं।
अभी तक इस चश्मे का इस्तेमाल सिर्फ गूगल कंपनी के कर्मचारी ही कर सकते थे लेकिन अब गूगल ने इसको अन्य लोगों के साथ शेयर करने का मन बनाया है।
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SOCIAL NETWORKS
99% लोग धर्म के नाम पर अपना बुद्धि , विवेक खो देते हैँ ...
आज हर तरफ नफरत , धार्मिक असहिष्णुता फैली हुई है ।
इस बीच एक बयान इंडियन प्रेस कौँसिल के अध्यक्ष मारकंडे काटजुके तरफ से आया था ।
भारत के 90 % लोग मुर्ख है ।
पहली नजर मेँ मुझे अटपटा सा लगा ये बयान पर इस बात पर जब मैँने गौरकिया तो मुझे उनके बातोँ मेँ 101% सच्चाई लगी ।
... देखिये कैसे ?
1. हिन्दु - अपने को हिन्दु और गाय को माता कहने वाले लोग कितने अपनेधर्म को सही ढंग से निभाते हैँ यु पी के एक मँत्री ने तो अपनी गाय माता की दलाली तक कर दी ।
आम हिन्दु भी पैसो के खातिर गाय कसाइयोँ के हाथो बेचते दिख जाएंगे ।
मंदिर के पुजारी पैसे लेकर अपना उल्लु सीधा करने मेँ लगे हैँ ।
मंदिर मठो मेँ हजारोँ करोङो ये ढोगी दबाए बैठे हैँ जबकि इन्हीँ के धर्म को मानने वाले हाथो मेँ कटोरा लिए भीख मांगते मिल जाएंगे ।
इन ढोंगियोँ के खिलाफ कोई हिन्दु आंदोलन नहीँ करता ।
2. मुस्लिम- अपने को मुस्लिम मानने वाले आज अपना इमान बेचे बैठे हैँ अल्लाह के नाम पर मासुमोँ का कत्लेआम करते फिरते हैँ अपनी हीँ जाति के सिया भाईयोँका आए दिन कत्ल करते रहते हैँ ।
तब कोई मुस्लिम आंदोलन नहीँ करता उन तालीबानियोँ , उन सुन्नी नेताओँ के खिलाफ ।
क्युं भाई क्युँ नहीँ करते उनका विरोध करते ?
इन मुर्खो के पास अपना खुद का दिमाग नहीँ ।
कौन ऐसा भगवान , अल्लाह , खुदा , मुसा है जो अपने बेटोँ का खुन बहता देखेँ या कहता है कि मासुमोँका खुन बहाओँ ।
अगर कोई भगवान , अल्लाह कहता है ऐसा करने के लिए तो मैँ उसे अपना खुदा , भगवान नहीँ मानुंगा ।
ईसाई - अपने को ईसाई मानने वाले आजकल दुसरोँ को मुर्ख बनाने मेँ लगे हैँ ये आदिवासी इलाकोँ मेँ जाते हैँ और अंधविश्वास को बढावा दे रहे हैँ तबियत खराब होने पर प्राथना करने के लिए बोलते हैँ येमुर्ख ।
क्या सिर्फ प्राथना करने से कौई ठीक हो जाएगा ?
आज धर्म की आङ ले के लोगो को बहकाया जा रहा है ।
99% लोग धर्म के नाम पर अपना बुद्धि , विवेक खो देते हैँ । एक इंसान से तुरंत हिन्दु मुसलिम सिख इसाई बन जाते हैँ ।
अरे मुर्खो भेङ ना बनोँ , बनना है तो एक इंसान बनो ।
इस बीच एक बयान इंडियन प्रेस कौँसिल के अध्यक्ष मारकंडे काटजुके तरफ से आया था ।
भारत के 90 % लोग मुर्ख है ।
पहली नजर मेँ मुझे अटपटा सा लगा ये बयान पर इस बात पर जब मैँने गौरकिया तो मुझे उनके बातोँ मेँ 101% सच्चाई लगी ।
... देखिये कैसे ?
1. हिन्दु - अपने को हिन्दु और गाय को माता कहने वाले लोग कितने अपनेधर्म को सही ढंग से निभाते हैँ यु पी के एक मँत्री ने तो अपनी गाय माता की दलाली तक कर दी ।
आम हिन्दु भी पैसो के खातिर गाय कसाइयोँ के हाथो बेचते दिख जाएंगे ।
मंदिर के पुजारी पैसे लेकर अपना उल्लु सीधा करने मेँ लगे हैँ ।
मंदिर मठो मेँ हजारोँ करोङो ये ढोगी दबाए बैठे हैँ जबकि इन्हीँ के धर्म को मानने वाले हाथो मेँ कटोरा लिए भीख मांगते मिल जाएंगे ।
इन ढोंगियोँ के खिलाफ कोई हिन्दु आंदोलन नहीँ करता ।
2. मुस्लिम- अपने को मुस्लिम मानने वाले आज अपना इमान बेचे बैठे हैँ अल्लाह के नाम पर मासुमोँ का कत्लेआम करते फिरते हैँ अपनी हीँ जाति के सिया भाईयोँका आए दिन कत्ल करते रहते हैँ ।
तब कोई मुस्लिम आंदोलन नहीँ करता उन तालीबानियोँ , उन सुन्नी नेताओँ के खिलाफ ।
क्युं भाई क्युँ नहीँ करते उनका विरोध करते ?
इन मुर्खो के पास अपना खुद का दिमाग नहीँ ।
कौन ऐसा भगवान , अल्लाह , खुदा , मुसा है जो अपने बेटोँ का खुन बहता देखेँ या कहता है कि मासुमोँका खुन बहाओँ ।
अगर कोई भगवान , अल्लाह कहता है ऐसा करने के लिए तो मैँ उसे अपना खुदा , भगवान नहीँ मानुंगा ।
ईसाई - अपने को ईसाई मानने वाले आजकल दुसरोँ को मुर्ख बनाने मेँ लगे हैँ ये आदिवासी इलाकोँ मेँ जाते हैँ और अंधविश्वास को बढावा दे रहे हैँ तबियत खराब होने पर प्राथना करने के लिए बोलते हैँ येमुर्ख ।
क्या सिर्फ प्राथना करने से कौई ठीक हो जाएगा ?
आज धर्म की आङ ले के लोगो को बहकाया जा रहा है ।
99% लोग धर्म के नाम पर अपना बुद्धि , विवेक खो देते हैँ । एक इंसान से तुरंत हिन्दु मुसलिम सिख इसाई बन जाते हैँ ।
अरे मुर्खो भेङ ना बनोँ , बनना है तो एक इंसान बनो ।
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बहुत समय पहले की बात है.....
बहुत समय पहले की बात है एक सरोवर में बहुत सारे
मेंढक रहते थे . सरोवर के बीचों -बीच एक बहुत
पुराना धातु का खम्भा भी लगा हुआ था जिसे
उस सरोवर को बनवाने वाले राजा ने
लगवाया था . खम्भा काफी ऊँचाथा और
... उसकी सतह भी बिलकुल चिकनी थी .
एक दिन मेंढकों के दिमाग में आया कि क्यों ना एक
रेस करवाई जाए . रेस में भागलेने
वाली प्रतियोगीयों को खम्भे पर चढ़ना होगा ,
और जो सबसे पहले एक ऊपर पहुच
जाएगा वही विजेता माना जाएगा .
रेस का दिन आ पंहुचा , चारो तरफ बहुत भीड़ थी ;
आस -पास के इलाकों से भी कई मेंढक इस रेस में
हिस्सा लेने पहुचे . माहौल में सरगर्मी थी , हर
तरफ
शोर ही शोर था .
रेस शुरू हुई …
…लेकिन खम्भे को देखकर भीड़ में एकत्र हुए
किसी भी मेंढक को ये यकीन नहीं हुआकि कोई
भी मेंढक ऊपर तक पहुंच पायेगा …
हर तरफ यही सुनाई देता …
“ अरे ये बहुत कठिन है ”
“ वो कभी भी ये रेस पूरी नहीं कर पायंगे ”
“ सफलता का तो कोई सवाल ही नहीं , इतने
चिकने खम्भे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता ”
और यही हो भी रहा था , जो भी मेंढक कोशिश
करता , वो थोडा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता ,
कई मेंढक दो -तीन बार गिरनेके बावजूद अपने
प्रयास
में लगे हुए थे …
पर भीड़ तो अभी भी चिल्लायेजा रही थी , “ ये
नहीं हो सकता , असंभव ”, और वो उत्साहित मेंढक
भी ये सुन-सुनकर हताश हो गएऔर अपना प्रयास
छोड़ दिया .
लेकिन उन्ही मेंढकों के बीचएक छोटा सा मेंढक
था , जो बार -बार गिरने पर भी उसी जोश के
साथ ऊपर चढ़ने में लगा हुआ था ….वो लगातार
ऊपर
की ओर बढ़ता रहा ,और अंततः वह खम्भे के ऊपर
पहुच
गया और इस रेस का विजेता बना .
उसकी जीत पर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ ,
सभी मेंढक उसे घेर कर खड़े हो गए और पूछने लगे ,”
तुमने
ये असंभव काम कैसे कर दिखाया , भला तुम्हे
अपना लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति कहाँ से
मिली, ज़रा हमें भी तो बताओ कि तुमने ये विजय
कैसे प्राप्त की ?”
तभी पीछे से एक आवाज़ आई … “अरे उससे क्या पूछते
हो , वो तो बहरा है ”
Friends, अक्सर हमारे अन्दर अपना लक्ष्य
प्राप्त
करने की काबीलियत होती है, पर हम अपने
चारों तरफ मौजूद नकारात्मकता की वजह से खुद
को कम आंक बैठते हैं और हमने जो बड़े-बड़े सपने देखे
होते हैं उन्हें पूरा किये
बिना ही अपनी ज़िन्दगी गुजार देते हैं .
आवश्यकता इस बात की है हम हमें कमजोर बनाने
वाली हर एक आवाज के प्रति बहरे और ऐसे हर एक
दृश्य
के प्रति अंधे हो जाएं. और तब हमें सफलता के शिखर
पर पहुँचने से कोई नहीं रोकपायेगा.
....... पोस्ट अच्छा लगे तो blog को अवश्य follow करे
मेंढक रहते थे . सरोवर के बीचों -बीच एक बहुत
पुराना धातु का खम्भा भी लगा हुआ था जिसे
उस सरोवर को बनवाने वाले राजा ने
लगवाया था . खम्भा काफी ऊँचाथा और
... उसकी सतह भी बिलकुल चिकनी थी .
एक दिन मेंढकों के दिमाग में आया कि क्यों ना एक
रेस करवाई जाए . रेस में भागलेने
वाली प्रतियोगीयों को खम्भे पर चढ़ना होगा ,
और जो सबसे पहले एक ऊपर पहुच
जाएगा वही विजेता माना जाएगा .
रेस का दिन आ पंहुचा , चारो तरफ बहुत भीड़ थी ;
आस -पास के इलाकों से भी कई मेंढक इस रेस में
हिस्सा लेने पहुचे . माहौल में सरगर्मी थी , हर
तरफ
शोर ही शोर था .
रेस शुरू हुई …
…लेकिन खम्भे को देखकर भीड़ में एकत्र हुए
किसी भी मेंढक को ये यकीन नहीं हुआकि कोई
भी मेंढक ऊपर तक पहुंच पायेगा …
हर तरफ यही सुनाई देता …
“ अरे ये बहुत कठिन है ”
“ वो कभी भी ये रेस पूरी नहीं कर पायंगे ”
“ सफलता का तो कोई सवाल ही नहीं , इतने
चिकने खम्भे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता ”
और यही हो भी रहा था , जो भी मेंढक कोशिश
करता , वो थोडा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता ,
कई मेंढक दो -तीन बार गिरनेके बावजूद अपने
प्रयास
में लगे हुए थे …
पर भीड़ तो अभी भी चिल्लायेजा रही थी , “ ये
नहीं हो सकता , असंभव ”, और वो उत्साहित मेंढक
भी ये सुन-सुनकर हताश हो गएऔर अपना प्रयास
छोड़ दिया .
लेकिन उन्ही मेंढकों के बीचएक छोटा सा मेंढक
था , जो बार -बार गिरने पर भी उसी जोश के
साथ ऊपर चढ़ने में लगा हुआ था ….वो लगातार
ऊपर
की ओर बढ़ता रहा ,और अंततः वह खम्भे के ऊपर
पहुच
गया और इस रेस का विजेता बना .
उसकी जीत पर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ ,
सभी मेंढक उसे घेर कर खड़े हो गए और पूछने लगे ,”
तुमने
ये असंभव काम कैसे कर दिखाया , भला तुम्हे
अपना लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति कहाँ से
मिली, ज़रा हमें भी तो बताओ कि तुमने ये विजय
कैसे प्राप्त की ?”
तभी पीछे से एक आवाज़ आई … “अरे उससे क्या पूछते
हो , वो तो बहरा है ”
Friends, अक्सर हमारे अन्दर अपना लक्ष्य
प्राप्त
करने की काबीलियत होती है, पर हम अपने
चारों तरफ मौजूद नकारात्मकता की वजह से खुद
को कम आंक बैठते हैं और हमने जो बड़े-बड़े सपने देखे
होते हैं उन्हें पूरा किये
बिना ही अपनी ज़िन्दगी गुजार देते हैं .
आवश्यकता इस बात की है हम हमें कमजोर बनाने
वाली हर एक आवाज के प्रति बहरे और ऐसे हर एक
दृश्य
के प्रति अंधे हो जाएं. और तब हमें सफलता के शिखर
पर पहुँचने से कोई नहीं रोकपायेगा.
....... पोस्ट अच्छा लगे तो blog को अवश्य follow करे
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