Sep 27, 2010

मुनाफा कमाने वाले शेयरों की पहचान करने का मंत्र

संस्थागत निवेशक आम निवेशकों की
ओर से होने वाली खरीद-फरोख्त पर बड़ा असर डालते हैं, क्योंकि उनके पास ऑर्डर को सपोर्ट करने के लिए ज्यादा पैसा होता है और इससे शेयर पर पड़ने वाला प्रभाव और भी बढ़ जाता है।' वॉल स्ट्रीट के एक जाने-माने कमेंटेटर के ये शब्द इक्विटी बाजारों में संस्थागत निवेशकों की अहमियत रेखांकित करते हैं। संस्थागत निवेशक बाजार के अच्छे विश्लेषकों को आसानी से अपने साथ जोड़ लेते हैं और निवेश संबंधी शोध तक भी उनकी अच्छी पहुंच होती है। इसके चलते जब भी मल्टी-बैगर शेयर तलाशने की बारी आती है तो वे दूसरों से आगे नजर आते हैं।

इसके अलावा ज्यादातर मामलों में ये निवेशक लंबे वक्त तक अपनी पोजीशन बरकरार रखते हैं। इसलिए यह जानना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है कि संस्थागत निवेशक किन शेयरों की खरीद कर रहे हैं और कौन से शेयर उनकी प्राथमिकता सूची से बाहर हैं। छोटे निवेशकों को सर्तकता तो बरतनी चाहिए और निवेश का कोई भी फैसला करने से पहले पर्याप्त होमवर्क कर ही लेना चाहिए, लेकिन अगर वे इसके साथ संस्थागत गतिविधियों पर भी एक नजर डाल लें तो उन्हें निवेश के बुनियादी विचार की झलक मिल जाएगी।

संस्थागत निवेशक मोटे तौर पर म्यूचुअल फंड, बीमा और पेंशन प्रोवाइडर पर ध्यान केंद्रित करते हैं। बीते कुछ वर्षों से भारतीय इक्विटी में संस्थागत निवेशकों की दिलचस्पी काफी बढ़ी है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त 2010 को खत्म हुए आठ महीनों में उन्होंने 59,724 करोड़ रुपए की खरीदारी की है। यह पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 48 फीसदी ज्यादा है। आमतौर पर रिसर्च पर उनका काफी फोकस होता है और निवेश की उनकी रणनीति मध्यम से लंबी अवधि के लिए होती है।

इसका मतलब यह हुआ कि वे उन्हीं शेयरों में निवेश करते हैं जिनमें मध्यम अवधि के लिए वृद्धि की अच्छी संभावना हो। छोटा निवेशक कंपनी के भावी कारोबार से डिस्काउंटेड कैश फ्लो (डीसीएफ) जैसी निवेश की आधुनिक तकनीकों से परिचित नहीं होता। इसलिए लंबी अवधि के निवेश के लिए संस्थागत निवेशकों के निवेश के चलन पर निगाह बनाए रखना ज्यादा सरल तरीका है।

बाजार में ये छोटी कंपनियां कर सकती हैं बड़ा कमाल

कामयाबी
छोटी हो या बड़ी, उसकी खुशी मनाने की जरूरत होती है। इसी बात पर विश्वास करते हुए ईटी इंटेलीजेंस गुप हर साल भारतीय उद्योग जगत की 100 सबसे तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की सूची जारी करता है। यह आज की तेज रफ्तार छोटी कंपनियां ही हैं, जो कल के दिग्गजों में उभरने का दमखम रखती हैं।

लेकिन इसके साथ एक चेतावनी भी आती है। निश्चित रूप से यह कहना मुश्किल है कि इंडिया इंक के इन छोटे उस्तादों में से कौन से आने वाले वक्त की ग्रां प्री में शामिल होंगे। जैसा कि कहा जाता है कि अतीत का प्रदर्शन इस बात की गारंटी नहीं होता कि भविष्य में किस तरह का प्रदर्शन रहेगा। लेकिन ऐतिहासिक चलन के आधार पर हम यह पता लगा सकते हैं कि किस तरह की कंपनियां बड़ा बनने की संभावनाएं रखती हैं।

अतीत के निरंतर ठोस प्रदर्शन की वजह से ईटीआईजी की 100 तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की हालिया सूची में शामिल खिलाड़ी इस दौड़ में अव्वल आने के मजबूत दावेदार हैं। निवेशकों को और अध्ययन करने के आधार पर सूची से बेहतरीन दिखने वाले शेयर चुनने चाहिए या फिर बाजारों में अगली पंक्ति में खड़े होने के लिए हमारे चयन के आधार पर पोर्टफोलियो तैयार करना चाहिए।

शेयर बाजार के दिग्गज

धमाकेदार वित्तीय प्रदर्शन, निवेशकों का भरोसा जीतने के लिहाज से काफी अहम चीज है। यह इस बात से साबित होता है कि 100 तेजी रफ्तार छोटी कंपनियों की ईटीआईजी की 2009 की सूची में से 77 कंपनियों ने बीते एक साल के दौरान बेंचमार्क इंडेक्स को अपने प्रदर्शन से पीछे छोड़ दिया है। इसके अलावा 27 कंपनियों के शेयर भाव इस अवधि में बढ़कर दोगुने स्तर पर पहुंच चुके हैं।

सूची की शीर्ष 10 कंपनियां शामिल कर बनाए जाने वाले पोर्टफोलियो ने निवेशकों को 59 फीसदी रिटर्न दिया होता, जबकि बाजार ने इस दौरान 21 फीसदी का मुनाफा दिया है। शीर्ष 25 कंपनियों के पोर्टफोलियो ने 61 फीसदी रिटर्न कमाया है। और इन सभी 100 कंपनियों के समान वेटेज से बना पोर्टफोलियो वैल्यू के लिहाज से आज 73 फीसदी ऊपर होता। वास्तव में यह धमाकेदार प्रदर्शन है।

नए नायक

ईटीआईजी 2010 की 100 तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की फेहरिस्त में जाइडस वेलनेस ने सभी को पीछे छोड़ दिया है। यह पिछले साल चौथे पायदान से शीर्ष स्तर तक पहुंची है। इस शेयर को कैडिला हेल्थकेयर के कंज्यूमर हेल्थकेयर कारोबार के विलय से काफी फायदा हुआ है और यह कंपनी कर्ज-मुक्त और नकदी के मामले में अमीर खिलाड़ी बनी हुई है।

हाल में सूचीबद्ध होने वाली टेकनेफैब इंजीनियरिंग दूसरे स्थान पर है, जिसका श्रेय बीते तीन साल के दौरान मुनाफे में प्रभावशाली बढ़त को जाता है। लेकिन वह कंपनी हॉकिंग कूकर्स है, जिसने सूची के शीर्ष पांच दिग्गजों में सबसे ज्यादा हैरत में डाला है। पिछले साल फेहरिस्त में 19वें पायदान तक गिरने के बाद कंपनी ने इस बार शीर्ष तीन में जगह बनाई है।

कारोबारी साल 2010 के दौरान मुनाफे में बढ़िया ग्रोथ ने कंपनी को मैन इंफ्राकंस्ट्रक्शंस, विनाती ऑगेर्निक्स और वीएसटी टिलर्स ट्रैक्टर्स के आगे पहुंचा दिया। विनाती ऑर्गेनिक्स पिछले साल के 14वें रैंक से इस साल आठवें नम्बर तक आई है, जबकि वीएसटी टिलर्स 27वें पर थी, लेकिन इस बार 12वें पायदान पर है।

हालांकि, कुछ कंपनियों ने पिछले साल की तुलना में जमीन भी खोई है। 2009 की सूची में तीसरे नम्बर पर खड़ी टाटा स्पॉन्ज आयरन इस साल 20वें पायदान तक लुढ़क गई है। इसी तरह प्राज इंडस्ट्रीज पिछले साल 10वें नम्बर पर खड़ी थी, लेकिन इस साल हैरानी में डालते हुए सूची में 83वें पायदान तक पहुंच गई है। पिछले साल टॉपर रही सुल्जर इंडिया हाल में डीलिस्ट हो गई है और इसलिए इस बार सूची में जगह बनाने में कामयाब नहीं हुई।

अन्य कंपनियों में ब्लिस जीवीएस फार्मा ने चौथे नम्बर पर सीट कब्जाते हुए सूची में बढ़िया एंट्री की है। हाल में सूचीबद्ध हुई एक अन्य कंपनी मैन इंफ्रा सीधे तौर पर सूची में दाखिल होकर पांचवें पायदान पर पहुंच गई है। अतीत में कमजोर इंटरेस्ट कवरेज रेशियो की वजह से पिछले साल सूची में शामिल होने में नाकाम रही प्लास्टिक उत्पाद बनाने वाली मयूर यूनिकोटर्स इस बार प्रतिष्ठित फेहरिस्त तक पहुंच गई है। कंपनी सूची में सातवें स्थान पर है। हाल में लिस्टेड हुई कंपनियों के बारे में और जानने के लिए ईटी इनवेस्टर्स गाइड के आगामी संस्करणों पर निगाहें बनाए रखें।

हमने कैसे तैयार की सूची?

कंपनियों की सूची तैयार करने के लिए हमने कारोबारी साल 2010 के दौरान 1,000 करोड़ रुपए से कम शुद्ध बिक्री रखने वाली फर्मों को इसमें शामिल किया है। संदेहास्पद विश्वसनीयता रखने वाली छोटी कंपनियों को इसके दायरे से बाहर रखने के उद्देश्य से हमने उन कंपनियों को फेहरिस्त से बाहर कर दिया, जिनका माकेर्ट कैपिटलाइजेशन 50 करोड़ रुपए से कम है।

अंतिम सूची में ऐसी कंपनियां शामिल हैं, जो बीते तीन साल के दौरान आरओसीई 15 फीसदी से ज्यादा, बीते तीन साल में डीईआर 1.5 से कम और आईसीआर 5 से ऊपर रखने में कामयाब रही हैं। पिछले तीन साल के दौरान एकबार से ज्यादा लाभांश न देने वाली या चूकने वाली कंपनियों और एक साल से ज्यादा वक्त तक नेगेटिव ऑपरेटिंग कैश फ्लो वाले खिलाडि़यों को भी बाहर का दरवाजा दिखा दिया गया। इसके बाद हमारे पास मजबूत वित्तीय स्थिति वाली केवल 140 कंपनियां बचीं। क्योंकि हम सबसे तेज बढ़ती छोटी कंपनियों को चिन्हित करने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए हमने इन सभी कंपनियों के लिए बिक्री और मुनाफे की वेटेड औसत बढ़त दरों का आकलन किया।

सबसे ज्यादा अहमियत कारोबारी साल 2010 की ग्रोथ को दी गई। आखिरकार, तीन साल की बिक्री और मुनाफे की बढ़त और आरओसीई को 30:30:40 का वेटेज दिया गया, जिसके बाद अंतिम रैंकिंग का फैसला किया गया।

हमने ऐसी कंपनियों को भी न चुनने का फैसला किया, जिन्होंने तेज ग्रोथ तक पहुंचने के लिए अपनी बैलेंस शीट पर अतिरिक्त दबाव झेला। हमारी सूची में नकदी जुटाने में मजबूती रखने वाली, नियमित लाभांश देने वाली और बैलेंस शीट पर कर्ज का बोझ कम रखने वाली कंपनियां शामिल हैं। ये कंपनियां फंड के खर्च की तुलना में कारोबार में निवेश की गई रकम पर कहीं ज्यादा पूंजी कमाने में कामयाब हो रही हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कर्जदाताओं और इक्विटी साझेदारों को भुगतान करने के बाद भी उनके पास कारोबार में दोबारा निवेश करने के लिए रकम बची रहेगी। कम कर्ज और ज्यादा इंटरेस्ट कवरेज गाढ़े वक्त में उनका सतत प्रदर्शन सुनिश्चित करेगा।

इन कंपनियों ने सूची में जगह बनाने के लिए निरंतर बेहतरीन प्रदर्शन किया है। लेकिन याद रखिए कि हमारी 100 सबसे तेजी से बढ़ती छोटी कंपनियों की सूची, कोई अकेला निवेश ट्रिगर नहीं है। यह निवेश से जुड़ा अध्ययन शुरू करने के लिए प्रवेश बिंदु जरूर मुहैया कराता है। इसलिए निवेश करते रहिए...

1,400 करोड़ रुपए से ज्यादा में बिका दुनिया का सबसे कीमती फ्लैट

लंदन : मोनैको स्थित दुनिया के सबसे कीमती फ्लैट 20 करोड़ पाउंड में बिक्री हो गई है।
फ्लैट के मुख्य कमरे में पूर्व मालिक की रहस्यमय हत्या के बावजूद इसकी इतनी अधिक कीमत मिली है।

अखबार 'डेली मेल' के मुताबिक खाड़ी देश के एक निवेशक ने 97 सालों की लीज पर 24 करोड़ यूरो (19.9 करोड़ पाउंड) में इस फ्लैट को खरीदा है। माना जा रहा है कि यह निवेशक अरब का एक शेख है।

इस फ्लैट में एक लाइब्रेरी, स्वीमिंग पूल और सिनेमा स्क्रीन सहित सभी कुछ है। ऐसा माना जा रहा है कि संपत्ति विक्रेता क्रिश्चन और निक कैंडी को इस सौदे में कम से कम 19 लाख पाउंड का फायदा हुआ है। उन्होंने वर्ष 2000 की शुरुआत में एक ब्रिटिश महिला लिली साफ्रा से 17,500 वर्ग फीट का तीन बेडरूम वाला यह फ्लैट खरीदा था। बैंक में काम करने वाले साफ्रा के पति एडमंड की इस फ्लैट में लगी रहस्यपूर्ण आग में मौत हो गई थी। उस समय इसकी कीमत मुश्किल से एक करोड़ पाउंड थी।

क्या है एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग

एनएसई-बीएसई के बीच एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग विवाद सुलझने के आसारक्या है एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग कंप्यूटर प्रोग्राम या एक खास तरह के सॉफ्टवेयर के माध्यम से की जाने वाली शेयरों की खरीद-बिक्री एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग कहलाती है। इस तरह के सॉफ्टवेयर को उचित शेयरों की पहचान और उनकी खरीद-बिक्री के लिए इंसान की जरूरत नहीं होती। ये कंप्यूटर प्रोग्राम खुद यह तय करते हैं कि कब, कहां और किस शेयर का कारोबार करना है। साल 2008 से डायरेक्ट मार्केट एक्सेस की अनुमति मिलने के बाद एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग को बढ़ावा मिला है। मिली सेकंड के भीतर ही ऐसे सॉफ्टवेयर आर्बिट्रेज के मौको की तलाश कर सौदों को अंजाम दे डालते हैं।

स्मार्ट ऑर्डर राउटिंगअगर कोई शेयर दो एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध है तो संभव है कि किसी एक एक्सचेंज पर उसकी कीमत अपेक्षाकृत कम हो। स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग आपके लिए बेहतर कीमत की तलाश करता है और उस समय जहां बेहतर कीमत होती है वहां ऑर्डर भेजता है।

एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग के मसले पर नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) और बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में महीनों से चल रहा विवाद अब सुलझता नजर आ रहा है। हाल ही में सेबी ने स्टॉक एक्सचेंजों और बाजार प्रतिभागियों से प्राप्त प्रस्तावों के आधार पर स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग पर एक सर्कुलर जारी किया है जिसके अनुसार स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग (एसओआर) सुविधा की पेशकश करने वाले ब्रोकर को स्टॉक एक्सचेंजों के पास आवेदन करना होगा साथ ही स्टॉक ब्रोकर को एसओआर सिस्टम और सॉफ्टवेयर की थर्ड पार्टी सिस्टम ऑडिट रिपोर्ट भी उपलब्ध करानी होगी। ऐसे सिस्टम ऑडिटरों की जानकारी स्टॉक एक्सचेंज अपने ब्रोकर को उपलब्ध कराएंगे। सेबी के अनुसार, स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग सभी निवेशकों के लिए उपलब्ध होगा।

एक बड़ी ब्रोकिंग कंपनी के निदेशक ने बताया कि एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने वाले दोनों एक्सचेंजों के बीच के कीमतों का लाभ उठा सकेंगे। आम तौर पर बड़े वित्तीय संस्थान एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हैं। एल्गोरिद्मिक सॉफ्टवेयर संबद्ध एक्सचेंजों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर सेकंड के 100वें हिस्से में बाजार में उपलब्ध कीमतों में अंतर का लाभ उठाते हुए शेयरों की खरीद-बिक्री काफी तेज गति से करता है। यह सॉफ्टवेयर स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग का इस्तेमाल करता है।

हालांकि, सेबी के सर्कुलर के अनुसार एसओआर सभी वर्ग के निवेशकों के लिए उपलब्ध होगा और सदस्यों को क्रियान्वयन की सबसे अच्छी नीति अपनानी होगी। आर्बिट्रेज का उल्लेख सर्कुलर में नहीं किया गया है और इसलिए यह एसओआर का हिस्सा नहीं भी हो सकता है। सेबी के सर्कुलर के अनुसार, स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग सिस्टम के तहत दिए गए ऑर्डर के लिए स्टॉक एक्सचेंज विशेष पहचान संख्या उपलब्ध कराएंगे। इसके अतिरिक्त स्टॉक एक्सचेंजों को स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग सिस्टम के ऑर्डर और कारोबार के आंकड़े रखने पड़ेंगे। सेबी ने स्टॉक एक्सचेंजों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग लागू होने के तीन महीने के भीतर बाजार में जारी किए जाने वाले मार्केट डेटा के टाइम स्टांपिंग की प्रणाली हो। साथ ही स्टॉक एक्सचेंजों कोबाजार शुरू होने से पहले अपने सिस्टम क्लॉक को एटॉमिक क्लॉक के हिसाब से दुरुस्त करना होगा।

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की प्रवक्ता दिव्या मलिक लाहिरी ने बताया कि बीएसई के मार्केट डेटा पर टाइम स्टाम्प नहीं होने की वजह से एनएसई की प्रणाली स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग को क्रियान्वित होने से रोक रही थी। एनएसई काफी समय पहले से मार्केट डेटा की स्टांपिंग करता आ रहा है। सेबी के दिशानिर्देशों के बाद बीएसई भी अब मार्केट डेटा की स्टांपिंग करेगा। फिर, ऑर्डर के क्रियान्वयन में बाधा नहीं आनी चाहिए।

बीएसई के डिप्टी सीईओ आशीष कुमार चौहान के अनुसार, स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग पर सेबी का सर्कुलर आने के बाद न केवल एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग को बढ़ावा मिलेगा बल्कि एक छोटे निवेशक को भी स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग से सही भाव पर शेयरों की खरीदारी करने का अवसर मिलेगा। मुझे उम्मीद है कि एक महीने में सारा मामला सुलझ जाना चाहिए। साल 2008 में डायरेक्ट मार्केट एक्सेस यानी डीएमए की अनुमति मिलने के बाद एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग को बढ़ावा मिला है। डीएमए में ग्राहक और एक्सचेंज के बीच ब्रोकर की दखलंदाजी नहीं होती है।

जानिए क्या होता है टीजर लोन

इन दिनों टीजर लोन की चर्चा खूब है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने इसकी काफी पब्लिसिटी की और इललिए यह काफी लोकप्रिय भी हो गया है। आइए हम बताते हैं कि टीजर लोन दरअसल है क्या टीजर लोन शुरूआती तौर पर एक सस्ता लोन है। इसके तहत कुछ समय तक यानी दो या तीन सालों के लिए ब्याज दरें निश्चित कर दी जाती हैँ। कुछ मामलों में यह पांच साल भी हो सकता है। लेकिन इसके बाद ब्याज दरें बढ़ जाती हैँ। इसमें ब्याज दरें जान बूझकर कम रखी जाती हैँ ताकि ग्राहकों को ललचाया जा सके। बाद में इसकी दरें बढ़ा दी जाती हैं या इसे फ्लोटिंग रेट में ट्रांसफर कर दिया जाता है। इस तरह के लोन के खिलाफ आलोचकों का कहना है कि यह कर्ज लेने वालों को बरगलाने के लिए है। शुरू में तो उन्हें कम ब्याज में लोन मिल जाता है लेकिन दीर्घकाल में उन्हें घाटा हो सकता है क्योंकि उन्हें फ्लोटिंग रेट पर लोन लेना होगा। उस समय के रेट ज्यादा भी हो सकते हैँ। लेकिन अगर रेट नहीं बढ़े तो ग्राहकों को फायदा हो सकता है लेकिन यह देखते हुए कि हाउसिंग लोन लंबे समय के लिए लिये जाते हैं ब्याज दरों के बारे में कोई भी भविष्यवाणी करना नामुमकिन है।


हालांकि रिजर्व बैंक ने इस तरह के लोन पर किसी तरह का बयान जारी नहीं किया है लेकिन उसने इसकी बढ़ती प्रवृति पर चिंता जताई है।