Jan 7, 2013

एक गिलास दूध


एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान बेचा करता था, एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी. उसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग लेगा. दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजाखोला, जिसे देखकर वह घबरा गया और बजाय खाने के उस...ने पानी का एक गिलास पानी माँगा.लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है, इसलिए वह एक........बड़ा गिलास दूध का ले आई. लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया." कितने पैसे दूं?" लड़के ने पूछा." पैसे किस बात के?" लड़की ने जवाव मेंकहा." माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए."" तो फिर मैं आपको दिल से धन्यबाद देताहूँ."जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति मिल चुकीथी , बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था.

सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी. लोकल डॉक्टर ने उसे शहरके बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया. विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के लिए बुलाया गया. जैसे ही उसने लड़की के कस्वे का नाम सुना, उसकी आँखों में चमक आ गयी. वहएकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया. उसने उस लड़की को देखा, एकदम पहचान लिया और तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देगा..उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी. डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस लड़की के इलाज का बिल लिया. उस बिल के कौने में एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरा गयी, उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बचगयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान लेलेगी. फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने में पेन से लिखे नोट पर गयी, जहाँ लिखा था," एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुकाहै." नीचे डॉक्टर होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे.ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालोंपर आंसूटपक पड़े उसने ऊपर कि और दोनों हाथ उठा कर कहा," हे भगवान! आपकाबहुत-बहुत धन्यवाद, आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका है.

Jan 5, 2013

चौकीदार बोला....फाटक बंद रखना मेरी पॉवर में है....


एक चौकीदार था जिसकी ड्यूटी एक रेलवे के फाटक पर लगी हुई थी...सालों से वो एक फाटक पर कार्यरत था...एक ही क्रम था- ट्रेन आने पर फाटक खोलना और ट्रेन के चले जाने पर फाटक खोल देना.....उसकी पत्‍‌नी अक्सर खाना लेकर वहां आती थे और उसके काम से अच्छी तरह परिचित थी.....उसकी पत्‍‌नी को ऐसा लगता था कि ये काम बहुत ही बोरिंग है और उसका पति बहुत ही बेकार आदमी है.....एक दिन आखिर अपने पति से उसने पूछ ही लिया.....

"मै देखती हूँ सबके पास कुछ ना कुछ पॉवर होती है लेकिन तुम्हारे पास तो कोई पॉवर ही नही है !"

उसके पति को लगा जैसे उसने सीधे अहम् पर चोट मारी हो...उसने गुस्से से बोला...
... "मै चाहूं तो किसी को भी कितनी देर तक रोक कर रख सकता हूँ…"

पत्‍‌नी बोली: ठीक है, फिर मुझे भी दिखाओ अपनी पॉवर !
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उसी समय एक ट्रेन आनी थी, उसने फाटक लगा दिया...

तभी एक नेता का काफिला वहाँ आ कर रुका और फाटक खुलने का इंतज़ार करने लगा...

लेकिन ट्रेन चले जाने के काफी देर बाद भी जब फाटक नही खुला तो नेता जी ने साथ आ रहे पुलिस वाले को भेजा, ये बोलकर कि जाओ देखो क्या मामला है...
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पुलिस वाला जा कर उससे पूछा: फाटक क्यों नही खोलते ?
चौकीदार: मेरी मर्ज़ी, नही खोलता अभी....ये मेरी पॉवर में है !
पुलिस वाले ने तुरंत उसे गलियाँ देकर दो चार तमाचे जड़े और फाटक खुलवाया...

ये देखकर उसकी पत्‍‌नी चौकीदार से बोली:
तुम तो कहते थे ये तुम्हारी पॉवर है, और पुलिस वाला तुम्हे गाली देकर और पीटकर निकल गया !

चौकीदार बोला.....
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"जैसे फाटक बंद रखना मेरी पॉवर में है....गाली देना और पीटना उसकी पॉवर में है..."

"सीख: पॉवर का दुरुपयोग नुकसानदेह होता है….."

Jan 1, 2013

बनारस वाले की एक मजेदार......


कल साल का आखिरी दिन मंगरू को एक मजेदार याद दे गया...आपसे भी शेयर करता हूँ...

मंगरू सुलभ शौचालय की लाइन में लगा था...भीड़ काफी थी...क़रीब 20-25 लोग लाइन में खडे थे...लेकिन एक बडी अजीब चीज देखी मंगरू ने कि लोग शौचालय से सामान्य से थोडा जल्दी और मुस्कुराते हुए निकल कर आ रहे थे...माजरा कुछ समझ में नही आया...मंगरू नए सोचा चलो अपनी भी बारी आएगी...
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मंगरू की बारी आई...
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बैठते ही सामने दीवार पर नजर पडी...वहां लिखा था...
"जरा बाएँ देखिए..."
मंगरू ने बैठे बैठे ही बाई तरफ़ देखा...
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वहां लिखा था...
"जरा दाएँ देखिए..."
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मंगरू ने बैठे बैठे ही दाईं तरफ़ देखा...
वहां लिखा था...
"जरा पीछे देखिए..."
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मंगरू ने बैठे बैठे ही पीछे देखा...
वहां लिखा था...
"जरा ऊपर देखिए..."
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मंगरू ने बैठे बैठे ही ऊपर देखा...
वहां लिखा था...
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अबे सा* पिछले 10 मिनट से देख रहा हूँ आगे पीछॆ दाएँ बाएँ देख रहा है...जल्दी निकल, देखता नही बाहर लम्बी लाइन लगी है...
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मंगरू भी मुस्कुराते हुए निकल लिया..

बनारस वाले बनारसी की एक कहानी...



एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला। चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल लिए। टोटके या अंधविश्वास के कारण भिक्षाटन के लिए निकलते समय भिखारी अपनी झोली खाली नहीं रखते। थैली देख कर दूसरों को लगता है कि इसे पहले से किसी ने दे रखा है।

पूर्णिमा का दिन था, भिखारी सोच रहा था कि आज ईश्वर की कृपा होगी तो मेरी यह झोली शाम से पहले ही भर जाएगी।
...
अचानक सामने से राजपथ पर उसी देश के राजा की सवारी आती दिखाई दी। भिखारी खुश हो गया। उसने सोचा, राजा के दर्शन और उनसे मिलने वाले दान से सारे दरिद्र दूर हो जाएंगे, जीवन संवर जाएगा। जैसे-जैसे राजा की सवारी निकट आती गई, भिखारी की कल्पना और उत्तेजना भी बढ़ती गई।

जैसे ही राजा का रथ भिखारी के निकट आया, राजा ने अपना रथ रुकवाया, उतर कर उसके निकट पहुंचे। भिखारी की तो मानो सांसें ही रुकने लगीं। लेकिन राजा ने उसे कुछ देने के बदले उलटे अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और भीख की याचना करने लगे। भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। अभी वह सोच ही रहा था कि राजा ने पुन: याचना की।

भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला, मगर हमेशा दूसरों से लेने वाला मन देने को राजी नहीं हो रहा था। जैसे-तैसे कर उसने दो दाने जौ के निकाले और उन्हें राजा की चादर पर डाल दिया।

उस दिन भिखारी को रोज से अधिक भीख मिली, मगर वे दो दाने देने का मलाल उसे सारे दिन रहा। शाम को जब उसने झोली पलटी तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। जो जौ वह ले गया था, उसके दो दाने सोने के हो गए थे। उसे समझ में आया कि यह दान की ही महिमा के कारण हुआ है।

वह पछताया कि काश! उस समय राजा को और अधिक जौ दी होती, लेकिन नहीं दे सका, क्योंकि देने की आदत जो नहीं थी।