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Jan 10, 2013

प्रोफ़ेसर: - बुराई क्या है ?


प्रोफ़ेसर: - बुराई क्या है ?
छात्र :- - "सर , मैं समझा सकता हूँ ,
लेकिन पहले मेरे कुछ सवालों का जवाब देंगे ?
ठंड मौजूद है क्या ?
प्रोफेसर : - हाँ ............

छात्र :- गलत श्रीमान ,
ठंड की तरह का कुछ भी नहीं है , यह गर्मी का पूर्ण अभाव है .

छात्र फिर से पूछा :- क्या अंधेरा विद्यमान है ?
प्रोफेसर :- हाँ ...........

छात्र :- आप फिर गलत हैं महोदय..
अंधेरे की तरह कुछ भी नहीं है.. यह वास्तव में प्रकाश का पूर्ण अभाव है..

भौतिक विज्ञान के अनुसार हम प्रकाश और गर्मी का अध्ययन कर सकते हैं..
लेकिन अंधेरे और ठंड का नहीं..
इसी तरह श्रीमान, बुराई कुछ भी नहीं है..
" वास्तव में यह विश्वास, प्रेम, और भगवान पर सच्चे विश्वास का अभाव है.. "

यह छात्र सी. वी. रमन थे...

एक लड़का सदा अपनी मेज़ पर 'पी' लिख कर रखता था...


एक लड़का सदा अपनी मेज़ पर 'पी' लिख कर रखता था। वह
अपनी किताबों और कॉपियों पर भी सदा 'पी' लिख
दिया करता था। घर पर भी उसने जगह-
जगह पर 'पी' लिख छोड़ा था। लोग हैरान होते थे, पर वह
किसी को कुछ
नहीं बताता था। धीरे-धीरे लोगों ने पूछना छोड़ दिया।
हाई स्कूल केबाद वह
कॉलेज में दाखिल हुआ। वहांभी 'पी' लिखने का उसका वह
क्रम चालू रहा। कुछ दिनों तक लड़के आपस में चर्चा भी करते
रहे, पर कोई उसक...े रहस्य को नहीं समझ सका। आखिर में
सहपाठियों ने मज़ाक में उसका नाम ही 'पी साहब' रख
दिया। पर वह क़तई परेशान नहीं हुआ। पढ़ाई में वह खूब मन
लगाता था, अत: एमए में फर्स्ट डिविज़न पास हुआ, और उसे
अपने ही स्कूल में प्रिंसिपल की नौकरी मिल गई।
प्रिंसिपल बनकर जब वह पहले दिन स्कूल में
आया तो छात्रों को अपने'पी' लिखने का रहस्य बताया,
बचपन से ही मेरी कामना थी कि अपने स्कूल का प्रिंसिपल
बनूं। इसी को याद रखने के लिए सदा अपने सामने 'पी'
लिखा हुआ रखता था। आज मेरा वह सपना पूरा हो गया।

Jan 9, 2013

सरदार पर भददा जोके करने से पहले एक बार ये जरुर सोच लेना....


कुछ दोस्त मिलकर दिल्ली घूमने का प्रोग्राम
बनाते है और रेलवे स्टेशन से बाहर निकलकर एक
टेक्सी किराए पर लेते है , उस टेक्सी का ड्राइवर
बुढ्ढा सरदार था, यात्रा के दौरान
बच्चो को मस्ती सूझती है और सब दोस्त
मिलकर बारी बारी सरदार पर बने जोक्स
को एक दुसरे को सुनाते है उनका मकसद उस
ड्राइवर को चिढाना था . लेकिन वो बुढ्ढा सरदार
चिढना तो दूर पर उनके साथ हर जोक पर हस
रहा था , सब साईट सीन को देख बच्चे वापस
रेलवे स्टेशन आ जाते है …और तय
किया किराया उस सरदार को चुकाते है , सरदार
भी वो पैसे ले लेता है , पर हर बच्चे
को अपनी और से एक एक रूपया हाथ में देता है
एक लड़का बोलता है “बाबा जी हम सुबह से
आपके धर्म पर जोक मार रहे है , आप
गुस्सा तो दूर पर हर जोक में हमारे साथ हँस रहे
थे , और जब ये यात्रा पूरी हो गई आप हर लडके
को प्यार से एक-एक रूपया दे रहे है ,
ऐसा क्यों ? ”
सरदार बोला ” बच्चो आप अभी जवान
हो आपका नया खून है आप मस्ती नहीं करोगे
तो कौन करेगा ? लेकिन मेने आपको एक-एक
रूपया इस लिए दिया के जब वापस आप अपने
अपने शहर जाओगे तो ये रूपया आप उस सरदार
को दे देना जो रास्ते में भीख मांग रहा हो , इस
बात को दो साल हो गए है और जितने लडके
दिल्ली घूमने गए थे सब के पास वो एक रुपये
का सिक्का आज भी जेब में पड़ा है …उन्हें कोई
सरदार भीख मांगता नहीं दिखा।
वह गैरेज खोलेगा ट्रक चलाएगा लेकिन भीख
नहीं माँगेगा। उनकी आबादी देश
की आबादी की मात्र 1.4% हैं पर टोटल टैक्स में
उनका हिस्सा 35% का हैं, और सेना में
भी 50000 से भी अधिक हैं। उनके लंगरों में
खाना खाने वालो की जाति और धर्म
नहीं पूछा जाता अल्पसंख्यक हैं पर अपने लिए
आरक्षण नहीं माँगते स्वंत्रता आन्दोलन में सबसे
अधिक अपने बेटो को खोया हैं पर कभी बदले में
कुछ माँगा नहीं क्या बाकी के धर्म वाले उनसे
कुछ सीखेंगे ??
Our Sikhs Brother contribute:-
* 35% of total income tax
* 67% of total charities
* 45% of Indian Army
* 59,000++ Gurudwaras serve
LANGAR to 5,900,000+ people
everyday !
किसी भी सरदार पर भददा जोके करने से पहले
एक बार ये जरुर सोच लेना कि देश के लिए
अपनी जवानी को दावं पर लगा देने वाले शाहिद
भगत सिंह भी एक सरदार थे..
शेयर करके सच्चे खालसाओ का धन्यवाद
ज्ञापित करिए

Jan 7, 2013

एक गिलास दूध


एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान बेचा करता था, एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी. उसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग लेगा. दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजाखोला, जिसे देखकर वह घबरा गया और बजाय खाने के उस...ने पानी का एक गिलास पानी माँगा.लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है, इसलिए वह एक........बड़ा गिलास दूध का ले आई. लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया." कितने पैसे दूं?" लड़के ने पूछा." पैसे किस बात के?" लड़की ने जवाव मेंकहा." माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए."" तो फिर मैं आपको दिल से धन्यबाद देताहूँ."जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति मिल चुकीथी , बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था.

सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी. लोकल डॉक्टर ने उसे शहरके बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया. विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के लिए बुलाया गया. जैसे ही उसने लड़की के कस्वे का नाम सुना, उसकी आँखों में चमक आ गयी. वहएकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया. उसने उस लड़की को देखा, एकदम पहचान लिया और तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देगा..उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी. डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस लड़की के इलाज का बिल लिया. उस बिल के कौने में एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरा गयी, उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बचगयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान लेलेगी. फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने में पेन से लिखे नोट पर गयी, जहाँ लिखा था," एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुकाहै." नीचे डॉक्टर होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे.ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालोंपर आंसूटपक पड़े उसने ऊपर कि और दोनों हाथ उठा कर कहा," हे भगवान! आपकाबहुत-बहुत धन्यवाद, आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका है.

Jan 5, 2013

चौकीदार बोला....फाटक बंद रखना मेरी पॉवर में है....


एक चौकीदार था जिसकी ड्यूटी एक रेलवे के फाटक पर लगी हुई थी...सालों से वो एक फाटक पर कार्यरत था...एक ही क्रम था- ट्रेन आने पर फाटक खोलना और ट्रेन के चले जाने पर फाटक खोल देना.....उसकी पत्‍‌नी अक्सर खाना लेकर वहां आती थे और उसके काम से अच्छी तरह परिचित थी.....उसकी पत्‍‌नी को ऐसा लगता था कि ये काम बहुत ही बोरिंग है और उसका पति बहुत ही बेकार आदमी है.....एक दिन आखिर अपने पति से उसने पूछ ही लिया.....

"मै देखती हूँ सबके पास कुछ ना कुछ पॉवर होती है लेकिन तुम्हारे पास तो कोई पॉवर ही नही है !"

उसके पति को लगा जैसे उसने सीधे अहम् पर चोट मारी हो...उसने गुस्से से बोला...
... "मै चाहूं तो किसी को भी कितनी देर तक रोक कर रख सकता हूँ…"

पत्‍‌नी बोली: ठीक है, फिर मुझे भी दिखाओ अपनी पॉवर !
.
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उसी समय एक ट्रेन आनी थी, उसने फाटक लगा दिया...

तभी एक नेता का काफिला वहाँ आ कर रुका और फाटक खुलने का इंतज़ार करने लगा...

लेकिन ट्रेन चले जाने के काफी देर बाद भी जब फाटक नही खुला तो नेता जी ने साथ आ रहे पुलिस वाले को भेजा, ये बोलकर कि जाओ देखो क्या मामला है...
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पुलिस वाला जा कर उससे पूछा: फाटक क्यों नही खोलते ?
चौकीदार: मेरी मर्ज़ी, नही खोलता अभी....ये मेरी पॉवर में है !
पुलिस वाले ने तुरंत उसे गलियाँ देकर दो चार तमाचे जड़े और फाटक खुलवाया...

ये देखकर उसकी पत्‍‌नी चौकीदार से बोली:
तुम तो कहते थे ये तुम्हारी पॉवर है, और पुलिस वाला तुम्हे गाली देकर और पीटकर निकल गया !

चौकीदार बोला.....
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"जैसे फाटक बंद रखना मेरी पॉवर में है....गाली देना और पीटना उसकी पॉवर में है..."

"सीख: पॉवर का दुरुपयोग नुकसानदेह होता है….."

Jan 1, 2013

बनारस वाले बनारसी की एक कहानी...



एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला। चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल लिए। टोटके या अंधविश्वास के कारण भिक्षाटन के लिए निकलते समय भिखारी अपनी झोली खाली नहीं रखते। थैली देख कर दूसरों को लगता है कि इसे पहले से किसी ने दे रखा है।

पूर्णिमा का दिन था, भिखारी सोच रहा था कि आज ईश्वर की कृपा होगी तो मेरी यह झोली शाम से पहले ही भर जाएगी।
...
अचानक सामने से राजपथ पर उसी देश के राजा की सवारी आती दिखाई दी। भिखारी खुश हो गया। उसने सोचा, राजा के दर्शन और उनसे मिलने वाले दान से सारे दरिद्र दूर हो जाएंगे, जीवन संवर जाएगा। जैसे-जैसे राजा की सवारी निकट आती गई, भिखारी की कल्पना और उत्तेजना भी बढ़ती गई।

जैसे ही राजा का रथ भिखारी के निकट आया, राजा ने अपना रथ रुकवाया, उतर कर उसके निकट पहुंचे। भिखारी की तो मानो सांसें ही रुकने लगीं। लेकिन राजा ने उसे कुछ देने के बदले उलटे अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और भीख की याचना करने लगे। भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। अभी वह सोच ही रहा था कि राजा ने पुन: याचना की।

भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला, मगर हमेशा दूसरों से लेने वाला मन देने को राजी नहीं हो रहा था। जैसे-तैसे कर उसने दो दाने जौ के निकाले और उन्हें राजा की चादर पर डाल दिया।

उस दिन भिखारी को रोज से अधिक भीख मिली, मगर वे दो दाने देने का मलाल उसे सारे दिन रहा। शाम को जब उसने झोली पलटी तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। जो जौ वह ले गया था, उसके दो दाने सोने के हो गए थे। उसे समझ में आया कि यह दान की ही महिमा के कारण हुआ है।

वह पछताया कि काश! उस समय राजा को और अधिक जौ दी होती, लेकिन नहीं दे सका, क्योंकि देने की आदत जो नहीं थी।

Dec 20, 2012

कभी मोदी बेचा करते थे चाय !


नई दिल्ली। आखिरकार तीसरी बार गुजरात मोदी का हुआ। इससे पहले तमाम सर्वे में भी मोदी की जीत पक्की बताई गई थी। आइए मोदी के बारे में कुछ रोचक बातें आपको बताते हैं..

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म दामोदारदास मूलचंद मोदी व उनकी पत्‍‌नी हीराबेन मोदी के घर मेहसाणा जिले में हुआ। 17 सितंबर 1950 को बेहद साधारण परिवार में जन्में मोदी अपने विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। गुजरात पर राज करने वाले मोदी के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। मोदी का बचपन कठोर परिश्रम के साथ बीता। मात्र 14 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने रेलवे स्टेशन पर पिता की चाय की दुकान में हाथ बंटाना शुरू कर दिया था।

ब्रांड बन चुके नरेंद्र मोदी का बचपन बहुत ही अभावग्रस्त रहा है। छोटी सी उम्र में ही वे वडनगर में एक ऑयल कंपनी में तेल के पीपे उठाया करते थे, हर पीपे पर उन्हें 5 पैसे की मजदूरी मिला करती थी।

मोदी के पड़ोसी बताते हैं कि जब भी रेलवे स्टेशन पर कोई ट्रेन आती तो हाफ पैंट में मोदी चाय की केतली लेकर दौड़ पड़ते थे। चाय के अलावा वे पांच-पांच पैसे में पानी के ग्लास भी बेचा करते थे।

प्रचारक जीवन के दरमियान उनकी जवाबदारी सुबह उठकर चाय के लिए दूध लाना हुआ करती थी। संघ प्रचारकों की चाय के लिए मोदी सुबह 5 बजे उठकर दूध लेने जाया करते थे।

मोदी पढ़ने में काफी होशियार थे। उनकी विशेष रुचि समाजशास्त्र और इतिहास में थी। इन सब्जेक्ट्स को वे बहुत रुचि के साथ पढ़ा करते थे।

मोदी की याददाश्त हमेशा से ही बहुत तेज रही। एक बार वे किसी से मुलाकात कर लें तो फिर उसका नाम कभी नहीं भूलते।

Dec 18, 2012

तुम्हें यह साबित करना होगा कि यह पर्स तुम्हारा ही है।



यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेन में टी.टी.ई. को एक
पुराना फटा सा पर्स मिला। उसने पर्स को खोलकर यह
पता लगाने की कोशिश की कि वह किसका है। लेकिन पर्स
में ऐसा कुछ नहीं था जिससे कोई सुराग मिल सके। पर्स में
कुछ पैसे और भगवान श्रीकृष्ण की फोटो थी। फिर उस
...
... टी.टी.ई. ने हवा में पर्स हिलाते हुए पूछा -"यह
किसका पर्स है?"
एक बूढ़ा यात्री बोला -"यह मेरा पर्स है। इसे कृपया मुझे
दे दें।"टी.टी.ई. ने कहा -"तुम्हें यह साबित
करना होगा कि यह पर्स तुम्हारा ही है।
केवल तभी मैं यह
पर्स तुम्हें लौटा सकता हूं।"उस बूढ़े व्यक्ति ने दंतविहीन
मुस्कान के साथ उत्तर दिया -"इसमें भगवान श्रीकृष्ण
की फोटो है।"टी.टी.ई. ने कहा -"यह कोई ठोस सबूत
नहीं है। किसी भी व्यक्ति के पर्स में भगवान श्रीकृष्ण
की फोटो हो सकती है। इसमें क्या खास बात है? पर्स में
तुम्हारी फोटो क्यों नहीं है?"

बूढ़ा व्यक्ति ठंडी गहरी सांस भरते हुए बोला -"मैं तुम्हें
बताता हूं कि मेरा फोटो इस पर्स में क्यों नहीं है। जब मैं
स्कूल में पढ़ रहा था, तब ये पर्स मेरे पिता ने मुझे
दिया था। उस समय मुझे जेबखर्च के रूप में कुछ पैसे मिलते थे।
मैंने पर्स में अपने माता-पिता की फोटो रखी हुयी थी।
जब मैं किशोर अवस्था में पहुंचा, मैं अपनी कद-काठी पर
मोहित था। मैंने पर्स में से माता-पिता की फोटो हटाकर
अपनी फोटो लगा ली। मैं अपने सुंदर चेहरे और काले घने
बालों को देखकर खुश हुआ करता था। कुछ साल बाद
मेरी शादी हो गयी। मेरी पत्नी बहुत सुंदर थी और मैं उससे
बहुत प्रेम करता था। मैंने पर्स में से अपनी फोटो हटाकर
उसकी लगा ली। मैं घंटों उसके सुंदर चेहरे
को निहारा करता।

जब मेरी पहली संतान का जन्म हुआ, तब मेरे जीवन
का नया अध्याय शुरू हुआ। मैं अपने बच्चे के साथ खेलने के लिए
काम पर कम समय खर्च करने लगा। मैं देर से काम पर
जाता ओर जल्दी लौट आता। कहने की बात नहीं, अब मेरे
पर्स में मेरे बच्चे की फोटो आ गयी थी।"
बूढ़े व्यक्ति ने डबडबाती आँखों के साथ
बोलना जारी रखा -"कई वर्ष पहले मेरे माता-
पिता का स्वर्गवास हो गया। पिछले वर्ष
मेरी पत्नी भी मेरा साथ छोड़ गयी। मेरा इकलौता पुत्र
अपने परिवार में व्यस्त है। उसके पास मेरी देखभाल का क्त
नहीं है। जिसे मैंने अपने जिगर के टुकड़े की तरह पाला था,
वह अब मुझसे बहुत दूर हो चुका है। अब मैंने भगवान कृष्ण
की फोटो पर्स में लगा ली है। अब जाकर मुझे एहसास हुआ है
कि श्रीकृष्ण ही मेरे शाश्वत साथी हैं। वे हमेशा मेरे साथ
रहेंगे। काश मुझे पहले ही यह एहसास हो गया होता।
जैसा प्रेम मैंने अपने परिवार से किया, वैसा प्रेम यदि मैंने
ईश्वर के साथ किया होता तो आज मैं
इतना अकेला नहीं होता।"

टी.टी.ई. ने उस बूढ़े व्यक्ति को पर्स लौटा दिया। अगले
स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही वह टी.टी.ई. प्लेटफार्म पर बने
बुकस्टाल पर पहुंचा और विक्रेता से बोला -"क्या तुम्हारे
पास भगवान की कोई फोटो है? मुझे अपने पर्स में रखने के
लिए चाहिए।

May 8, 2011

190 करोड़ की मालकिन, घर-घर बर्तन-कपड़े धोने पर मजबूर

सूरत। आज 'मदर्स डे' पर जहां एक तरफ मां की पूजा की जा रही है। वहीं कुछ ऐसी माएं भी हैं, जिन्हें उन कपूतों की वजह से ही आज दर-दर की ठोकरें खाना पड़ रही हैं, जिन्हें वे हमेशा अपने सीने से लगाए रखती थीं। ठीक इसी तरह इस मां की कहानी है, जिसे सुनते ही आपकी आंखें भर आएंगी... आभवा के जमींदार व 109 करोड़ रुपए के वारिस रोहित देसाई की पत्नी हंसाबेन का जीवन ऐशो-आराम से भरपूर था। लेकिन पति के देहांत के बाद उनकी जिंदगी जैसे बिखर सी गई। कुछ ही दिनों बाद उनकी हालत ऐसी कर दी गई कि वे आज घर-घर बर्तन व साफ करके अपना पेट पाल रही हैं। मां के साथ यह कृत्य किसी और ने नहीं, बल्कि सगे बेटे ने ही किया। हंसाबेन बताती हैं कि उनके सगे बेटे संदीप ने पहले तो उनकी सारी जायदाद अपने नाम कर ली और बाद में उन्हें घर से भी निकाल दिया। हंसाबेन आज जब अपने पुराने दिनों को याद करती हैं तो उनकी आखें आंसुओं से भर जाती हैं कि जहां एक समय उनकी एक आवाज पर कई नौकर हाजिर हो जाया करते थे, वहीं आज वे नौकरों की तरह दूसरों के घरों में बर्तन व कपड़े धोकर जीवन बसर पर मजबूर हैं। हंसाबेन कहती हैं कि संदीप ने उन्हें विश्वास में लेकर सारी जायदाद अपने नाम कर ली और जब उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाना चाही तो संदीप ने उन्हें घर से ही निकाल दिया। बेघर होने के बाद हंसाबेन के पास जीवन बसर करने के लिए कुछ भी नहीं रहा और वे दूसरे लोगों के घर के बर्तन-कपड़े धोने जैसे काम करने पर मजबूर हो गईं। लोगों के कहने पर हंसाबेन ने इसकी शिकायत फैमिली कोर्ट में भी की और कोर्ट द्वारा संदीप को यह आदेश भी दिया जा चुका है कि वह मां के भरण-पोषण का पूरा खर्च उठाए। लेकिन संदीप ने अदालत के फैसले को भी नहीं माना। पति के मित्र ने सहारा दिया... वह भी बेटे से देखा न गया बेघर किए जाने के बाद हंसाबेन को उनके पति के दोस्त नानूभाई ने सहारा दिया। हंसाबेन वहां पर लगभग छह महीने तक रहीं और उनका कहना है कि इस घर में उन्हें इतना प्यार मिला, जितना उनके सगे बेटे ने भी कभी नहीं दिया। लेकिन हंसाबेन का यह सुख भी बेटे से देखा नहीं गया और उसने एक बार नानूभाई के घर पहुंचकर नानूभाई के साथ काफी गाली-गलौच की। नानूभाई ने तो हंसाबेन से इसकी कोई शिकायत नहीं कि लेकिन हंसाबेन नहीं चाहती थीं कि फिर उनका बेटा इस घर में आकर हंगामा करे और इस घर के लोगों की शांति भंग करे। नानूभाई के बहुत रोकने पर भी वे नहीं मानीं और उन्होंने यह घर छोड़ दिया। मां को डायन कहता था... हंसाबेन ने बताया कि उनका बेटा अपने बच्चों को उनके पास नहीं आने देता था और उनसे कहता था कि दादी के पास मत जाना, उसे गंभीर बीमारी है, नहीं तो तुम भी बीमार पड़ जाओगे। इसके अलावा संदीप उन्हें डायन कहकर ही पुकारता था। ......अब समाज या कानून के डर से इस मां को उसका बेटा भले ही खाने-पीने के लिए चंद रुपए दे दे, लेकिन क्‍या उससे मां के सीने पर लगे जख्‍म भर पाएंगे? ......सवाल यह उठता है कि मां तो अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर भूखा नहीं सोने देती। अगर सोने के लिए बिस्तर न हों तो उन्हें अपने सीने से लगाकर सुलाती है। ...जब बच्चों को मां की जरूरत होती है तब वह तो अपने सारे फर्ज पूरी ईमानदारी और निस्वार्थ भाव से पूरा करती है। लेकिन जब बच्चों की बारी आती है तो वह उनकी आंखों में ही चुभने लगती है, आखिर क्यों ?