May 8, 2011
190 करोड़ की मालकिन, घर-घर बर्तन-कपड़े धोने पर मजबूर
सूरत। आज 'मदर्स डे' पर जहां एक तरफ मां की पूजा की जा रही है। वहीं कुछ ऐसी माएं भी हैं, जिन्हें उन कपूतों की वजह से ही आज दर-दर की ठोकरें खाना पड़ रही हैं, जिन्हें वे हमेशा अपने सीने से लगाए रखती थीं। ठीक इसी तरह इस मां की कहानी है, जिसे सुनते ही आपकी आंखें भर आएंगी... आभवा के जमींदार व 109 करोड़ रुपए के वारिस रोहित देसाई की पत्नी हंसाबेन का जीवन ऐशो-आराम से भरपूर था। लेकिन पति के देहांत के बाद उनकी जिंदगी जैसे बिखर सी गई। कुछ ही दिनों बाद उनकी हालत ऐसी कर दी गई कि वे आज घर-घर बर्तन व साफ करके अपना पेट पाल रही हैं। मां के साथ यह कृत्य किसी और ने नहीं, बल्कि सगे बेटे ने ही किया। हंसाबेन बताती हैं कि उनके सगे बेटे संदीप ने पहले तो उनकी सारी जायदाद अपने नाम कर ली और बाद में उन्हें घर से भी निकाल दिया। हंसाबेन आज जब अपने पुराने दिनों को याद करती हैं तो उनकी आखें आंसुओं से भर जाती हैं कि जहां एक समय उनकी एक आवाज पर कई नौकर हाजिर हो जाया करते थे, वहीं आज वे नौकरों की तरह दूसरों के घरों में बर्तन व कपड़े धोकर जीवन बसर पर मजबूर हैं। हंसाबेन कहती हैं कि संदीप ने उन्हें विश्वास में लेकर सारी जायदाद अपने नाम कर ली और जब उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाना चाही तो संदीप ने उन्हें घर से ही निकाल दिया। बेघर होने के बाद हंसाबेन के पास जीवन बसर करने के लिए कुछ भी नहीं रहा और वे दूसरे लोगों के घर के बर्तन-कपड़े धोने जैसे काम करने पर मजबूर हो गईं। लोगों के कहने पर हंसाबेन ने इसकी शिकायत फैमिली कोर्ट में भी की और कोर्ट द्वारा संदीप को यह आदेश भी दिया जा चुका है कि वह मां के भरण-पोषण का पूरा खर्च उठाए। लेकिन संदीप ने अदालत के फैसले को भी नहीं माना। पति के मित्र ने सहारा दिया... वह भी बेटे से देखा न गया बेघर किए जाने के बाद हंसाबेन को उनके पति के दोस्त नानूभाई ने सहारा दिया। हंसाबेन वहां पर लगभग छह महीने तक रहीं और उनका कहना है कि इस घर में उन्हें इतना प्यार मिला, जितना उनके सगे बेटे ने भी कभी नहीं दिया। लेकिन हंसाबेन का यह सुख भी बेटे से देखा नहीं गया और उसने एक बार नानूभाई के घर पहुंचकर नानूभाई के साथ काफी गाली-गलौच की। नानूभाई ने तो हंसाबेन से इसकी कोई शिकायत नहीं कि लेकिन हंसाबेन नहीं चाहती थीं कि फिर उनका बेटा इस घर में आकर हंगामा करे और इस घर के लोगों की शांति भंग करे। नानूभाई के बहुत रोकने पर भी वे नहीं मानीं और उन्होंने यह घर छोड़ दिया। मां को डायन कहता था... हंसाबेन ने बताया कि उनका बेटा अपने बच्चों को उनके पास नहीं आने देता था और उनसे कहता था कि दादी के पास मत जाना, उसे गंभीर बीमारी है, नहीं तो तुम भी बीमार पड़ जाओगे। इसके अलावा संदीप उन्हें डायन कहकर ही पुकारता था। ......अब समाज या कानून के डर से इस मां को उसका बेटा भले ही खाने-पीने के लिए चंद रुपए दे दे, लेकिन क्या उससे मां के सीने पर लगे जख्म भर पाएंगे? ......सवाल यह उठता है कि मां तो अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर भूखा नहीं सोने देती। अगर सोने के लिए बिस्तर न हों तो उन्हें अपने सीने से लगाकर सुलाती है। ...जब बच्चों को मां की जरूरत होती है तब वह तो अपने सारे फर्ज पूरी ईमानदारी और निस्वार्थ भाव से पूरा करती है। लेकिन जब बच्चों की बारी आती है तो वह उनकी आंखों में ही चुभने लगती है, आखिर क्यों ?
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अत्यंत दुःखद.
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