May 8, 2011
80 अरब डॉलर खर्च कर 10 लाख लोगों से जासूसी करवाता है अमेरिका
click here विकीलीक्स के ताजा खुलासे से देश के सियासी गलियारे में मचे कोहराम के बीच एक बात तो साफ हो गई है कि अमेरिका भारत में स्थित अपने राजनयिकों से जासूसी करवाता रहा है। यही नहीं, अमेरिका किसी देश के आंतरिक मामलों में दखल की भी पूरी कोशिश करता है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और वहां की सेना जासूसी के इस गोरखधंधे में शामिल होती है। खुफिया मामलों के जानकारों के मुताबिक यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि अमेरिका ने पिछले साल सिविलियन और मिलिट्री जासूसी पर कितना खर्च किया है। वैसे अमेरिका के नेशनल इंटेलिजेंस के डायरेक्टर जेम्स क्लैपर ने बताया कि पिछले साल अमेरिका ने जासूसी के काम पर 80.1 अरब डॉलर खर्च किए। इसमें सिविल एजेंसियों पर 53.1 अरब डॉलर जबकि बाकी रकम रक्षा मंत्रालय पर खर्च की गई। जासूसी पर खर्च की जाने वाली यह रकम अमेरिका के होमलैंड सिक्योरिटी डिपार्टमेंट (42.6 अरब डॉलर) या विदेश मंत्रालय (48.9 अरब डॉलर) के बजट से अधिक है। इससे पहले अमेरिकी सरकार ने 1998 में खुफिया गतिविधियों पर खर्च की जाने वाली रकम (26.7 अरब डॉलर) का सार्वजनिक तौर पर खुलासा किया था।जानकारों ने नए खुलासों के आधार पर यह दावा किया है कि अमेरिकी सरकार सिविलियन इंटेलिजेंस ऑपरेशन पर हर साल 45 अरब डॉलर और रक्षा खुफिया पर 30 अरब डॉलर खर्च करती है। इस पूरे नेटवर्क में करीब दो लाख कर्मचारी जुटे हैं। 1994 में अमेरिका खुफिया गतिविधियों पर हर साल करीब 26 अरब डॉलर खर्च करता था। कैसे काम करता है अमेरिकी खुफिया तंत्र अमेरिका में आतंकवाद विरोधी, होमलैंड सिक्योरिटी और खुफिया से जुड़े कामों में करीब 3200 संगठन (1271 सरकारी संगठन और 1931 प्राइवेट कंपनियां) जुटी हैं। इस नेटवर्क से जुड़े 8 लाख 54 हजार लोग अमेरिका में करीब 10 हजार ठिकानों पर फैले हैं। सितम्बर 2001 में हुए आतंकवादी हमलों के बाद से वाशिंगटन और आसपास के इलाकों में अति गोपनीय खुफिया कार्यों के लिए 33 इमारतें तैयार की जा रही हैं या बन गई हैं। अमेरिका में साल 2001 के आखिर तक 24 संगठन बनाए गए जिनमें होमलैंड सिक्योरिटी का दफ्तर और फॉरेन टेररिस्ट एसेट ट्रैकिंग टास्क फोर्स शामिल हैं। 2002 में 37 और ऐसे संगठन तैयार किए गए जिनका काम व्यापक विनाश के हथियारों पर नजर रखना, हमले की आशंका पर नजर रखना और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के मोर्चे पर नई रणनीति तैयार करना है। इसके बाद 2004 में 36, 2005 में 26, 2006 में 31, 2007 में 32, 2008 और 2009 में 20-20 या इनसे अधिक संगठन खड़े गए। कुल मिलाकर 9/11 की घटना के बाद अमेरिका में कम से कम 263 संगठन खड़े किए गए हैं। अधिकतर सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों का काम एक जैसा ही होता है। अमेरिका के 15 शहरों फैले 51 संघीय संगठन और मिलिट्री कमान पैसे के लेन देन और आतंकवादियों के नेटवर्क पर नजर रखते हैं। जानकारों के मुताबिक विदेशी और घरेलू जासूसी से जुड़ी रिपोर्टों की संख्या इतनी अधिक हो जाती है कि हर साल करीब 50 हजार खुफिया रिपोर्टों को कूड़ेदान में फेंकना पड़ता है। अमेरिकी प्रशासन के मौजूदा और पूर्व अधिकारियों के हवाले से ‘वाशिंगटन पोस्ट’ लिखता है कि अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) द्वारा अपने नागरिकों की जासूसी के दौरान इकट्ठा की गई सूचनाओं तक संघीय जांच एजेंसी (एफबीआई), रक्षा खुफिया एजेंसी (डीआईए), सीआईए और होमलैंड सिक्योरिटी डिपार्टमेंट की भी पहुंच होती है। अमेरिकी प्रशासन की ओर से अपने ही नागरिकों की जासूसी करने की बात उस वक्त सामने आई जब इलेक्ट्रॉनिक्स फ्रंटियर फाउंडेशन नामक संगठन के हाथ ऐसे दस्तावेज हाथ लगे जिससे साफ हो गया कि खुफिया एजेंट सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स के जरिये कई तरह के लोगों से दोस्ती कर मौजूदा हालात की जानकारी इकट्ठा करते हैं। यदि कोई आदमी इन एजेंटों के जाल में फंस कर वेबसाइट पर दोस्ती कर लेता है तो एजेंट यूजर से नजदीकी बढ़ाकर कई तरह की जानकारियां हासिल कर लेते हैं। भारतीय राजनयिकों की जासूसी खोजी वेबसाइट विकीलीक्स के खुलासे से भारत, अमेरिका सहित दुनिया के अधिकतर देशों में सियासी कोहराम मचा है। खुलासे से साफ हुआ है कि अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजनयिकों की जासूसी के आदेश दिए थे। संदेशों से साफ है कि अमेरिका ने इसके अलावा चीन और पाकिस्तान के राजनयिकों की जासूसी करवाई है। पिछले साल विकीलीक्स ने अमरीकी दूतावासों की ओर से भेजे गए जिन करीब ढाई लाख संदेशों को सार्वजनिक किया, उनमें से 3038 संदेश नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास से भेजे गए हैं। विकीलीक्स के खुलासों के मुताबिक अमेरिका संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून सहित यूएन नेतृत्व और सुरक्षा परिषद में शामिल चीन, रूस, फ्रांस व ब्रिटेन के प्रतिनिधियों की जासूसी में भी जुटा है। हालांकि विकिलीक्स के इस खुलासे पर अमेरिका भड़क गया। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता पी जे क्राउले ने कहा, ‘हमारे राजनयिकों द्वारा जुटाई गई सूचनाएं हमारी नीतियों और कार्यक्रमों को अमली जामा पहनाने में मददगार होती हैं। हमारे राजनयिक ‘डिप्लोमैट्स’ ही हैं जासूस नहीं।’ अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने विकीलीक्स की हरकत को गैरजिम्मेदाराना करार दिया। पेंटागन ने इन सूचनाओं की गोपनीयता बनाए रखने के लिए कड़े कदम उठाने भी शुरू कर दिए हैं। यूएन में अमेरिकी दूत सुसान राइस ने भी क्राउले की तर्ज पर अपने राजनयिकों का बचाव किया है। उन्होंने कहा, ‘हमारे राजनयिक भी वही करते हैं जो दुनियाभर में अन्य देशों के जासूस हर दिन करते हैं। इनका काम संबंधों को मजबूत बनाने, बातचीत की प्रक्रिया जारी रखने और जटिल समस्याओं का हल ढूंढने में मदद करना है।’ पाकिस्तान में दो नागरिकों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया रेमंड डेविस भी अमेरिकी जासूस बताया गया। हालांकि अमेरिका ने पाकिस्तान को यह समझाने की कोशिश की कि डेविस को राजनयिक दर्जा हासिल है इसलिए उन्हें वापस अमेरिका भेजा जाना चाहिए। आपकी राय क्या अमेरिका के जासूसी जाल से बचना मुमकिन नहीं रह गया है या फिर सरकारें अपना हित और अमेरिकी रौब को देखते हुए घुटने टेक कर उसके जाल में फंसने के लिए तैयार रहती हैं।
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