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Apr 11, 2013

बच्चे बड़े हो गए हैं बेटा..

एक युवक...
मैं तकरीबन २० साल के बाद विदेश से अपने
शहर लौटा था! बाज़ार में घुमते हुए
सहसामेरी नज़रें सब्जी का ठेला लगाये एक
बूढे पर जा टिकीं,बहुत कोशिश के बावजूद
... भी मैं उसको पहचान नहीं पा रहा था !
लेकिन न जाने बार बार ऐसा क्यों लग
रहा था कीमैं उसे बड़ी अच्छी तरहसे
जनता हूँ ! मेरी उत्सुकता उस बूढ़ेसे
भी छुपी न रही , उसके चेहरे पर आई
अचानक मुस्कान से मैं समझ
गया था कि उसने मुझे पहचान लिया था!
काफी देर की जेहनी कशमकश के बाद जब
मैंने उसे पहचाना तो मेरे पाँव के नीचे से
मानो ज़मीन खिसक गई ! जब मैं विदेश
गया था तोइसकी एक बहुतबड़ी आटा मिल
हुआ करती थी नौकर चाकर आगे पीछे
घूमा करते थे ! धर्म कर्म, दान पुण्य में सब
सेअग्रणी इस दानवीर पुरुष को मैं
ताऊजी कह कर बुलाया करता था !
वही आटा मिल का मालिक और
आजसब्जी का ठेला लगाने पर मजबूर? मुझ से
रहा नहीं गयाऔर मैं उसके पास
जा पहुँचा और बहुत मुश्किल से रुंधेगले से
पूछा :
"ताऊ जी, ये सब कैसे हो गया?"
भरी ऑंखें लिए मेरे कंधे पर हाथ रख उसने
उत्तर दिया:
"बच्चे बड़े हो गए हैं बेटा...!!!

Apr 6, 2013

नेता जी मुझे लगता है मुझसे ज्यादा गरीब तो आप हैं ..!


उस छोटे कस्बे के चौराहे पर 1 भिखारी इसी आश में बैठा था
की कोई आये और उसके कटोरे में कुछ पैसे डाले
तो उसके आज के खाने का जुगाड़ बने
तभी एक गाड़ी वहाँ आ के रुकी।।गाड़ी से नेता जी का उतरना हुआ ..
भिखारी की तो मनो किस्मत ही खुल गई ,
... नेता जी सुखा प्रभावित क्षेत्र में निरीक्षणके लिए आये थे-
वो अपने सहायक से कुछ बात कर रहे थे
भिखारी बैठा उन्हें सुन रहा था
नेता जी :-
“आपको पता ही है कि मैं कल मिनाली जा रहा हूँ।
सुना है,वहाँ अच्छी ठंड पड़ रही है।
सहायक - "हाँ सर"
नेता जी - तो सुखा पीड़ितों के लिए जो बजट हमें मिला था,
उसमें अभी पचास हज़ार शेष हैं। इसी से आप मेरे लिए दस्ताने,
टोपी, सन ग्लासेस, जैकेट, स्लीपिंग बैग
और दौरे में खाना गर्म रखने के लिए कैसेरोल का
एक सैट खरीद लें।”
“सर!...” सहायक ने सकुचाने का सुंदर अभिनय करतेहुए कहा -
अगर आपकी आज्ञा है तो मैं भी अपने लिए
उसी में ‘एडजस्ट’ करवा लूँ।”
“ठीक है---ठीक है--नेता जी ने मुस्कराते हुए कहा ..
और वहा से चलने लगे !!
तो भिखारी ने अपना कटोरा उठाया
और नेता जी के पास आ पहुँचा ..
नेता जी ने तुरंत तत्परता दिखाते हुए कटोरे में
पाँच का सिक्का डाल दिया ..
भिखारी - साहब मुझे आप से कुछ नहीं चाहिए
मैं आप को कुछ देने आया हूँ
क्या ...? नेता जी ने आश्चर्यचकित हो कर पूंछा
भिखारी- साहब इस कटोरे की जरुरत मुझे नहीं आप को है ..
मैंने आप की सारी बाते सुनी ..
मुझे लगता है मुझसे ज्यादा गरीब तो आप हैं ..!
अब नेता जी का चेहरा देखने लायक था .... !!

Apr 5, 2013

मौजुदा कानुन महिलाओँ के सुरक्षा के लिए पर्याप्त नहीँ हैँ।


लड़की अपनी धुन में मस्त चली जा रही थी।
रात के सन्नाटे में उस आधुनिका के सैंडिलों से उठती खट्–खट् की आवाज काफी दूर तक सुनाई दे रही थी।
जैसे ही वह उस पॉश कालोनी के बीचों बीच बनेपार्क के नजदीक पहुंची,
वहां पहले से छिपे बैठे दो बदमाश उससे छेड़छाड़ करने लगे।
लड़की ने कान्वेंटी अन्दाज में ‘‘शट अप! यू.....बास्टर्ड ­ !!’’ वगैरह–वगैरह कहकर अपना बचाव करना चाहा, पर जब वे अश्लील हरकतें करते हुए उसके कपड़े नोचने लगे तो वह‘‘बचाओ...बचाओ ­....’’ कहकर चिल्लाने लगी।
... उसकी चीख पुकार पार्क के चारों ओर कतार से बनी कोठियों से टकरा कर लौट आई। कोई बाहर नहीं निकला।
वे लड़की को पार्क में झुरमुट की ओर खींच रहे थे। उनके चंगुल से मुक्त होने के लिए वह बुरी तरह छटपटा रही थी।
तभी वहां से गुजर रहे एक लावारिस कुत्ते की नजर उन पर पड़ी। वह जोर–जोर से भौंकने लगा। जब उसके भौंकने का बदमाशों पर कोई असर नहीं हुआ तो वह बौखलाकर इद्दर–उधर दौड़ने लगा।
कभी घटना स्थल की ओर आता तो कभी किसी कोठी के गेट के पास जाकर भौंकने लगता मानो वहां रहने वालों को इस घटना के बारे में सूचित करना चाहता हो।
उसके इस प्रयास पर लोहे के बड़े–बड़े गेटों के उस पार तैनात विदेशी नस्ल के पालतू कुत्तेउसे हिकारत से देखने लगे। संघर्षरत लड़की के कपड़े तार–तार हो गए थे, हाथ–पैर शिथिल पड़तेजारहे थे। बदमाशों को अपने मकसद में
कामयाबी मिलती नजर आ रही थी। यह देखकर गली का कुत्ता मुंह उठाकर
जोर–जोर से रोने लगा। कुत्ते के रोने की आवाजइस
बार कोठियों से टकराकर वापस नहीं लौटी
क्योंकि वहां रहने वालों कोअच्छी तरह मालूम था कि कुत्ते के रोने से घर में अशुभ होता है।देखते ही देखते तमाम कोठियों में चहल– पहल दिखाई देनेलगी। छतों पर बालकनियों पर बहुत से लोग दिखाई देने लगे।
उनके आदेश पर बहुत से वाचमैन लाठियां–डंडें लेकर कोठियों से बाहर निकले और उस कुत्ते पर पिल पड़े।
लेकिन उस संघर्षरत अबला लड़की की किसी ने मददनहीँ की अततः बबरर्तापुर्वक ब्लात्कार कि शिकार उस मासुम अबला ने दम तोड़ दिया
अगले दिन शहर के पाश कलोनी के तथाकथित
सभ्य व्यक्तियोँ ने गैँग रेप के विरोध मेँ कैँडल मार्च निकाला कुछ लोग इंडिया गेट पर प्रर्दशन करते हुये सरकार से कानुन मेँ बदलाव की माँग की
क्योँकी इन सभ्य व्यक्तियोँ के अनुसार -:
"मौजुदा कानुन महिलाओँ के सुरक्षा के लिए पर्याप्त नहीँ हैँ।"
(वैधानिक चेतावनी : यह कहानी एक काल्पनिक कहानी हैँ इसका किसी भी घटना से कोई संबंध नहीँ हैँ , इस कहानी का एकमात्र उद्येश्य समान्य जनोँ को जागरुक करना हैँ)

Apr 4, 2013

वह खुशनसीब है जिसने खाया और दान-धर्म भी किया और वह बदनसीब है, जिसने जमा किया और छोड़कर


एक बूढ़ा था जो शहर की गलियों-गलियों घूमता और चिल्लाता जाता था - "मूर्ख हूँ- मूर्ख हूँ " लोग उसकी बात पर ध्यान न देते, क्यों कि सब उसे पागल समझते थे। बच्चे उसे परेशान करते। बड़े उसे दुत्कारते।

एक दिन एक अक्लमंद आदमी ने उसे सहानुभूतिपूर्वक खाना खिलाया, कपड़े आदि दिए और प्रेम से
पूछा- " क्यों भाई, ये क्या चिल्लाते रहते हो- " मूर्ख हूँ-मूर्ख हूँ " ?

... मुझे तुम ज़रा भी मूर्ख नहीं लगते।"

वह अचानक रो उठा। बोला- " तुमने डूबा गाँव का नाम सुना होगा। आज से तीस साल पहले वहां भयंकर बाढ़ आई थी। उसमें मेरा सर्वस्व डूब गया था। मैं उस गाँव का सबसे धनी साहूकार था। मैंने जिन्दगी भर अपना और अपने कुटुम्ब का पेट काट-काट कर धन जोड़ा था. न खाया, ना दान-धर्म किया।
मुझसे बडा मूर्ख कौन होगा।" इतना कह वह शहर के बाहर खण्डहर की और भाग गया।

अक्लमंद आदमी के मुंह से निकल गया - "
बेचारा बदनसीब "

सीख :- वह खुशनसीब है जिसने खाया और दान-धर्म भी किया और वह बदनसीब है, जिसने जमा किया और छोड़कर मर गया ।

by
प्रभाकर

Apr 1, 2013

एक समय की बात है|....

एक समय की बात है|चाइना में लिली नाम की एक लड़की रहेती थी|
वह शादी करके अपने पति और सासुमा के साथ रहने लगती है|
लिली जल्दी से ससुमा के साथ adjust नहीं कर पाती है| लिली को
ससुमा का स्वाभाव अच्छा नहीं लगता है और सासुमा भी हर वक्त
लिली की बुराइयाँ निकलती रहती है| दिन ब दिन उनका रिश्ता
बिगड़ता जाता है | गुस्सा मारा मारी झगड़ा चलता रहेता है|
बिचारा पती टेंशन में जीता रहता है|आखिर में लिली बहुत हे
कंटाल जाती है | क्योंकि उसकी सासुमा उसकी हमेशा बेइज्जती
करती रहेती है|

लिली इतनी परेशान हो जाती है की वो सोचती है की अभी सासुमा
को ही ख़त्म कर देते है हमेशा के लिए| लिली एक ऐसे वैदराज गर्ग
के पास पहुँचती है जो उसके पिताजी के खास दोस्त थे और लिली उन्हें
संझाती है की कैसे उसकी साँस ने उसका जीना हराम कर दिया है|
और उन्हें कहेती है की ऐसा जहर दो की उसकी सासुमा खा कर
तुरंत मर जाए |
वैदराज गर्ग थोडा सा सोचते है और कहेते है की ठीक है मै तुम्हारी
समस्या का हमेशा का हल निकाल देता हूँ| पर तुम्हे मेरी बाते द्यान
से समझनी होगी | लिली कहेती है ठीक है वैदराज जी आप जैसा कहोगे
मै वैसा ही करुँगी | वैदराज अन्दर जाते है और कुछ गोलियां लेकर
वापिस आते है | वह लिली को समझाते है की वह उसकी सासुमा के लिए
धीमा जहर दे रहे है | अगर तेज जहर देंगे तो लोगो को शक होगा की
लिली ने ही उसे मार दिया है | लिली को समझाते है की रोज अच्छा खाना
बनाना और एक गोली सुबह और एक गोली रात को खाने में डाल देना|
हाँ याद रहे किसी को शक ना पड़े इस लिए सावधान रहेना|
और इसलिए सासुमा से अच्छे से रहेना | उसके साथ कोई वाद विवाद ना
करना और जैसा कहे हर बात मान ना| उसकी ऐसी सेवा करना की
वह खुश हो जाए और जीतना वह तुम्हारे ऊपर खुश होगी उतना ही
जहर उसके ऊपर काम करेगा |और लगबग छह महीनो के करीब
तुम्हारी सासुमा का राम नाम एक हो जायेगा|

समय बीतता गया और लिली वैसा ही करती रही जैसा वैदराज ने कहा
था |वह उसकी माँ के साथ ऐसा बर्ताव करने लगी जैसे की वो अपनी खुद की
माँ हो| कुछ ही समय में लिली का स्वभाव बदलने लगा | वह जैसा सासुमा
बोले वैसा ही करने लगी | कभी वाद विवाद नहीं किया और अपने गुस्से
को भी कंट्रोल करना सिख गई |

धीरे धीरे सासुमा भी कुश रहने लगी और बहुत ही अच्छा चलने लगी |
सासुमा का भी स्वाभाव बहुत हे अच्छा रहने लगा | जो सासुमा हमेशा
लिली का अपमान करती थी वो अब सभी लोगो के सामने लिली की
तारीफ़ करने लगी थी | साँस और बहु ऐसे रहने लगे जैसे की सगे माँ
और बेटी हो| लिली का पती भी बहुत ही खुश रहने लगा | लिली
रोज रोज सासुमा के स्वादिस्ट भोजन में थोडा थोडा जहर डालती
रहेती थी|

एक दिन लिली दौड़ती दौड़ती वैधराज के पास पहुंची और कहने लगी
वैधराज जी प्लीज फीर से मेरी मदद कीजिये मै अपनी प्यारी सासुमा
को नहीं मारना चाहती प्लीज ऐसी दवा दीजिये की मेरी सासुमा का
जहर समाप्त हो जाए | क्योंकि मेरी सासुमा बहुत अच्छी है और मुझे
बहुत ही प्यार करती है |

वैदराज मुस्कुराये और कहने लगे की चिंता की कोई बात नहीं है|
क्योंकि जो मैंने तुम्हे दिया वो जहर नहीं पर विटामिन की गोली थी|
जहर तो तुम्हारे दिमाग में था जो अब निकल चूका है|