डियाबुल्स इन्फ्रा एस्टेट ने मुंबई में एनटीसी की 8.3 एकड़ जमीन 1,505 करोड़ रुपए में खरीद ली है। भारत मिल्स का यह प्लॉट ई ऑक्शन के जरिये बेचा गया। इस जमीन का स्वामित्व एनटीसी के पास था। इंडियाबुल्स इन्फ्रा ने एनटीसी का यह दूसरा प्लाट खरीदा है। इसके पहले उसने वरली स्थित पोद्दार मिल्स का 2.3 एकड़ का प्लाट 474 करोड़ रुपए में खरीदा था।
इंडियाबुल्स इन्फ्रा ने इस नीलामी में लोढ़ा समूह को पछाड़ा। लोढ़ा ने 1503 करोड़ रुपए की बोली लगाई थी। भारत मिल्स के इस प्लाट की रिजर्व प्राइस 750 करोड़ रुपए थी। इस जमीन को लेने के लिए जबर्दस्त होड़ लगी थी।
सरकारी कंपनी एनटीसी अपनी 24 बीमार मिलों के उद्धार के लिए अपने प्लॉट बेच रही है। इनके लिए उसे 3,875 करोड़ रुपए चाहिए। उसकी योजना 55 एकड़ जमीन बेचकर 5,000 करोड़ कमाने की है। जमीनों की बढ़ती दर को देखकर यह माना जा रहा है कि एनटीसी को 10,000 करोड़ रुपए से भी ज्यादा मिलेंगे। इन पैसों से वह अपनी बीमार कंपनियों का आधुनिकीकरण कर सकेगी।
Aug 21, 2010
मुंबई में बिका 875 करोड़ का प्लॉट
मुंबई के अंधेरी ईस्ट में मरोल स्थित बोरोसिल ग्लास वर्क्स का 18 एकड़ का एक प्लॉट 875 करोड़ रुपए में बिका। यह जमीन खरीदी शेठ डेवलपर्स के अशिवन शेठ ने। यह एक इंडस्ट्रियल प्लॉट है और अब इसके पंजीकरण की तैयारी चल रही है।
शेठ डेवलपर्स इस समय खरीदारी के अभियान में है। साल की शुरुआत में उन्होंने विले पार्ले में गोल्डन टोबैकोकंपनी की जमीन 591 करोड़ रुपए में खरीदी थी। उस जमीन पर कंपनी आवासीय परियोजना की तैयारी में है।
मरोल का प्लॉट बेचने के पहले बोरोसिल ने वहां पर अपना प्लांट बपंद कर दिया था और कामगारों को 18 करोड़ रुपया मुआवजा देकर बाहर कर दिया था। कंपनी जनवरी से ही इस प्लॉट को बेचना चाह रही थी। लेकिन इसने अपना 1000 करोड़ रुपए रखा था। इस जमीन को लेने के लिए कई बड़े डेवलपर बातचीत कर रहे थे लेकिन सफलता मिली अश्विन शेठ को।
इस जमीन की खासियत यह है कि इसमें 20 लाख वर्गफुट निर्माण किया जा सकता है। इस इलाके में फ्लैटों की अच्छी मांग भी है।
शेठ डेवलपर्स इस समय खरीदारी के अभियान में है। साल की शुरुआत में उन्होंने विले पार्ले में गोल्डन टोबैकोकंपनी की जमीन 591 करोड़ रुपए में खरीदी थी। उस जमीन पर कंपनी आवासीय परियोजना की तैयारी में है।
मरोल का प्लॉट बेचने के पहले बोरोसिल ने वहां पर अपना प्लांट बपंद कर दिया था और कामगारों को 18 करोड़ रुपया मुआवजा देकर बाहर कर दिया था। कंपनी जनवरी से ही इस प्लॉट को बेचना चाह रही थी। लेकिन इसने अपना 1000 करोड़ रुपए रखा था। इस जमीन को लेने के लिए कई बड़े डेवलपर बातचीत कर रहे थे लेकिन सफलता मिली अश्विन शेठ को।
इस जमीन की खासियत यह है कि इसमें 20 लाख वर्गफुट निर्माण किया जा सकता है। इस इलाके में फ्लैटों की अच्छी मांग भी है।
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अमेरिका में 5 लाख लोग बेरोजगार
मेरिका में बेरोजगारी भत्ते के लिए दावा करने वालों की संख्या पांच लाख तक पहुंच गई है। यह संख्या पिछले नौ महीनों में सर्वाधिक
है। इससे अर्थव्यवस्था में सुधार आने की उम्मीदें एक बार फिर धराशायी होती दिखने लगी हैं। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सांसदों से एक स्थगित विधेयक को पारित करने की मांग करते हुए कहा कि बढ़ती संख्या हमें कारवाई के लिए मजबूर कर रही है। प्रस्तावित विधेयक के पारित होने के बाद छोटे मोटे व्यवसायों में होने वाले महत्वपूर्ण निवेश में कर समाप्त हो जाएंगे। माना जा रहा है कि देश में सृजित होने वाले प्रत्येक तीन नए रोजगारों में से दो लघु व्यवसायों से ही निकलते हैं।
श्रम विभाग के अनुसार 14 अगस्त को समाप्त सप्ताह में बेरोजगारी भत्ते के लिए दावा करने वालों की संख्या में 12,000 की वृद्धि हो गई और यह एक सप्ताह पहले के 4,88,000 से बढ़कर 5,00,000 तक पहुंच गई। ये आंकडे अर्थशास्त्रियों के अनुमान से एकदम उलट हैं। उन्होंने आंकडे 4,75,000 रहने का अनुमान व्यक्त किया था।
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बेरोजगारी के साप्ताहिक आंकड़ों के बजाय चार सप्ताह का औसत जो कि आमतौर पर कम घट-बढ़ वाला होता है। सप्ताह के दौरान इसमें भी 8,000 की वृद्धि दर्ज की गई और यह 4,82,500 तक पहुंच गया। यह लगातार तीसरा सप्ताह रहा जब बेरोजगारी भत्ता लेने वालों की संख्या में वृद्धि हुई। ओबामा प्रशासन के समक्ष बेरोजगारी सबसे बडी चिंता है। ओबामा की डेमोक्रेटिक पार्टी को खतरा है कि यदि स्थिति यही रही तो आगामी नवंबर के मध्यावधि चुनाव में पार्टी का कांग्रेस पर से नियंत्रण खत्म हो सकता है। बेरोजगारी के गुरुवार को जारी ताजा आंकडों के बाद राष्ट्रप्रति ओबामा ने विपक्षी रिपब्लिकन सांसदों की कटु आलोचना करते हुए कहा था कि उनकी वजह से 30 अरब डॉलर की वह योजना अटकी पड़ी है जिसमें सामुदायिक बैंकों के जरिए छोटे व्यवसायियों को कर्ज देने को बढावा दिया जाएगा।
ओबामा ने कहा कि मैंने इसी सप्ताह छोटे व्यवसायियों से मुलाकात की है, देशभर में ऐसे जितने भी लोगों से मैंने मुलाकात की है, उनके पास राजनीतिक खेल के लिए कोई समय नहीं है। उन्होंने सांसदों से अपील की कि अगले बैठक में वह प्रस्तावित विधेयक पर फिर से विचार करें। अमेरिकी बेरोजगारी के आंकडे जुलाई में 9. 5 प्रतिशत थे। अगस्त के आंकडे अगले दो सप्ताह में जारी किए जाएंगे।
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फोर्थ इडियट को 'थ्री इडियट्स' का नोटिस
फिल्म 'थ्री इडियट' के प्रड्यूसर विधु विनोद चोपड़ा ने आने
वाली फिल्म द फोर्थ इडियड को कॉपीराइट ऐक्ट के उल्लंघन पर लीगल नोटिस भेजा है।
गौरतलब है कि बिस्वरूप रॉय चौधरी ने कुछ दिन पहले 'द फोर्थ इडियट' नाम की फिल्म बनाने की घोषणा की थी। इस फिल्म के बारे में चौधरी ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया कि मेरी फिल्म का संदेश है कि सफलता के लिए भेजे का इस्तेमाल करना चाहिए।
एक तरह से फिल्म ऑल इज वेल में आमिर के दिल की आवाज सुनने वाली बात को काटती है। फिल्म में एक गाना 'कर भेजे का इस्तेमाल...' बोल पर ही बेस्ड हैं।
विधु के भेजे नोटिस में कहा गया है कि 'द फोर्थ इडियट' फिल्म कॉपीराइट ऐक्ट का उल्लंघन है। नोटिस में विधु ने बिस्वरूप पर आरोप लगाते हुए कहा गया है कि वह मेरी फिल्म का नाम, उसकी कहानी आदि को अपनी आने वाली फिल्म 'द फोर्थ इडियट' के प्रमोशन के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
नोटिस में कहा गया है कि तत्कालिता से बिस्वरूप अपनी इस फिल्म के प्रमोशन/एडवर्टाइजिंग को बंद करें। द फोर्थ इडियट और उससे जुड़े इवेंट में थ्री इडियट का सहारा लेना गलत है। प्रिकॉशन के लिए नोटिस की एक कॉपी वर्ल्ड यूनिटी कंवेंशन सेंटर को भी भेज दी गई है। नोटिस बार बार उल्लेखित करता है कि कानूनी तौर पर कॉपीराइट राइट्स हमारे पास है और किसी भी तरह से इसका उल्लंघन करना गलत है
लेकिन फोर्थ इडियट के प्रड्यूसर और डायरेक्टर बिस्वरूप रॉय चौधरी ने इस नोटिस पर कहा है कि वह विधु को इस लीगल नोटिस का जवाब देंगे। साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी फिल्म का संडे को लखनऊ में वर्ल्ड प्रीमियर का आयोजन किया जा रहा है। बिस्वरूप कहते हैं, एक घंटे की अवधि वाली इस फिल्म को समर वैकेशंस में रिलोज करने का प्लान है।
मूवी के बारे में कहा गया था कि इस ऐनिमेटेड फिल्म की कहानी वहां से शुरू होती है, जहां से थ्री इडियट की कहानी खत्म होती है यानी फुंसुक वांगड़ू के स्कूल से। फिल्म दिखाती है कि जब फुंसुक उस स्कूल के प्रिंसिपल होंगे तो स्कूल किस तरह का हो जाएगा।
यह एक डफर लड़के पप्पू की कहानी है जो रनछोड़दास (आमिर का कैरक्टर) के सिखाई तकनीकों का प्रयोग कर असंभव से लगने वाले कामों को अंजाम देकर स्कूल का नंबन वन स्टूडेंट तो बनता ही है, साथ ही साथ चांद पर जाने के कठिन काम को भी सफलतापूर्वक अंजाम देता है।
फिल्म में चतुर की आवाज थ्री इडियट में चतुर रामालिंगम का कैरक्टर निभाने वाले ओमी वैद्य ने ही दी है। इस ऐनिमेशन फिल्म में दो गाने भी हैं। ओमी ने फिल्म में एंकरिंग के साथ-साथ गाना भी गाया है। दो करोड़ रुपये के बजट वाली इस फिल्म के प्रीमियर को लखनऊ के सिटी मोंटेसरी स्कूल में करीब एक लाख बच्चों के बीच किया जाएगा।
वाली फिल्म द फोर्थ इडियड को कॉपीराइट ऐक्ट के उल्लंघन पर लीगल नोटिस भेजा है।
गौरतलब है कि बिस्वरूप रॉय चौधरी ने कुछ दिन पहले 'द फोर्थ इडियट' नाम की फिल्म बनाने की घोषणा की थी। इस फिल्म के बारे में चौधरी ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया कि मेरी फिल्म का संदेश है कि सफलता के लिए भेजे का इस्तेमाल करना चाहिए।
एक तरह से फिल्म ऑल इज वेल में आमिर के दिल की आवाज सुनने वाली बात को काटती है। फिल्म में एक गाना 'कर भेजे का इस्तेमाल...' बोल पर ही बेस्ड हैं।
विधु के भेजे नोटिस में कहा गया है कि 'द फोर्थ इडियट' फिल्म कॉपीराइट ऐक्ट का उल्लंघन है। नोटिस में विधु ने बिस्वरूप पर आरोप लगाते हुए कहा गया है कि वह मेरी फिल्म का नाम, उसकी कहानी आदि को अपनी आने वाली फिल्म 'द फोर्थ इडियट' के प्रमोशन के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
नोटिस में कहा गया है कि तत्कालिता से बिस्वरूप अपनी इस फिल्म के प्रमोशन/एडवर्टाइजिंग को बंद करें। द फोर्थ इडियट और उससे जुड़े इवेंट में थ्री इडियट का सहारा लेना गलत है। प्रिकॉशन के लिए नोटिस की एक कॉपी वर्ल्ड यूनिटी कंवेंशन सेंटर को भी भेज दी गई है। नोटिस बार बार उल्लेखित करता है कि कानूनी तौर पर कॉपीराइट राइट्स हमारे पास है और किसी भी तरह से इसका उल्लंघन करना गलत है
लेकिन फोर्थ इडियट के प्रड्यूसर और डायरेक्टर बिस्वरूप रॉय चौधरी ने इस नोटिस पर कहा है कि वह विधु को इस लीगल नोटिस का जवाब देंगे। साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी फिल्म का संडे को लखनऊ में वर्ल्ड प्रीमियर का आयोजन किया जा रहा है। बिस्वरूप कहते हैं, एक घंटे की अवधि वाली इस फिल्म को समर वैकेशंस में रिलोज करने का प्लान है।
मूवी के बारे में कहा गया था कि इस ऐनिमेटेड फिल्म की कहानी वहां से शुरू होती है, जहां से थ्री इडियट की कहानी खत्म होती है यानी फुंसुक वांगड़ू के स्कूल से। फिल्म दिखाती है कि जब फुंसुक उस स्कूल के प्रिंसिपल होंगे तो स्कूल किस तरह का हो जाएगा।
यह एक डफर लड़के पप्पू की कहानी है जो रनछोड़दास (आमिर का कैरक्टर) के सिखाई तकनीकों का प्रयोग कर असंभव से लगने वाले कामों को अंजाम देकर स्कूल का नंबन वन स्टूडेंट तो बनता ही है, साथ ही साथ चांद पर जाने के कठिन काम को भी सफलतापूर्वक अंजाम देता है।
फिल्म में चतुर की आवाज थ्री इडियट में चतुर रामालिंगम का कैरक्टर निभाने वाले ओमी वैद्य ने ही दी है। इस ऐनिमेशन फिल्म में दो गाने भी हैं। ओमी ने फिल्म में एंकरिंग के साथ-साथ गाना भी गाया है। दो करोड़ रुपये के बजट वाली इस फिल्म के प्रीमियर को लखनऊ के सिटी मोंटेसरी स्कूल में करीब एक लाख बच्चों के बीच किया जाएगा।
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अरबपतियों का INDIA....
कितनी सच्चई है? क्या सचमुच हिंदुस्तान ने इतनी सारी संपदा पैदा कर दी है और अगर की है तो किस उद्देश्य से की है?
ऐसा दावा है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के पहले पूरी दुनिया में डॉलर अरबपतियों के मामले में भारत रूस के बाद दूसरे नंबर पर था। अब हमारे प्रधानमंत्री के एक आर्थिक सलाहकार कहते हैं कि संभवत: हम ऐसे देश हैं, जहां ऐसे अरबपतियों की संख्या सबसे ज्यादा है।
अचानक इतने सारे अरबपति कहां से पैदा हो गए? क्या वे सॉफ्टवेअर उद्यमी हैं? नहीं। क्या वे रचनात्मक व्यवसाय से ताल्लुक रखने वाले हैं? नहीं। क्या वे मीडिया के लोग हैं? नहीं। क्या हमने गूगल, फेसबुक या ट्विटर बनाया है? नहीं। विश्व के सर्वश्रेष्ठ १क्क् ब्रांडों में कितने हमारे हैं? टाटा और संभवत: एयरटेल को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा वैश्विक ब्रांड है।
प्रतिवर्ष हम कितने नए आविष्कार और वैश्विक स्तर के पेंटेंट रजिस्टर करते हैं? आप उनकी संख्या अपनी उंगलियों पर गिन सकते हैं। फिर इतनी विपुल धन-संपदा कहां से आ गई? बिल्कुल उसी तरह, जिस तरह रूसी अरबपतियों ने अपनी संपदा का निर्माण किया। सत्ता और जोड़गांठ के कामों में लगे हुए लोगों से नजदीकियां बनाकर, उन चीजों को हथियाकर जो दरअसल हमारी और आपकी हैं। हिंदुस्तान के समस्त नए धन का अधिकांश हिस्सा संदिग्ध जमीनों, रियल इस्टेट के धंधे, गैरकानूनी खनन, सरकारी ठेकों, विशेष आर्थिक क्षेत्रों, जो कभी अस्तित्व में आ ही नहीं सके, से आ रहा है।
दरअसल उन विशेष आर्थिक क्षेत्रों को अस्तित्व में लाना मकसद था भी नहीं, बल्कि उसका मकसद गरीब किसानों और उससे भी ज्यादा गरीब आदिवासियों को विस्थापित कर राज्य से मुनाफा वसूलना था। हम दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों से मुकाबला करने के लिए 117 मंजिल वाले ऊंचे टॉवर खड़े कर रहे हैं, जबकि हमारे शहरों में पर्याप्त बिजली, पानी, पार्क, सड़कें और सार्वजनिक परिवहन की भी कोई व्यवस्था नहीं है। इन ऊंचे-ऊंचे टॉवरों के फ्लैट कौन खरीद रहा है? ये फ्लैट वे लोग खरीद रहे हैं, जो कानूनों को तोड़ते-मरोड़ते हैं, जो मंजूरी देते हैं।
जो यह मुमकिन बनाते हैं कि ये ऊंचे टॉवर खड़े किए जा सकें। ये वे लोग हैं, जो ये सुनिश्चित करते हैं कि मुझसे और आपसे पानी और बिजली छीनकर इन टॉवरों तक पहुंचाई जा सके। नेता, बाबू, बिल्डर, सत्ता के दलाल उनके इर्द-गिर्द छाए हुए हैं। यह हिंदुस्तान का सबसे शांत और सुकूनदेह नेटवर्क है। सबसे अमीर है और सबसे ज्यादा भ्रष्ट भी। नहीं, ये बात मैं नहीं कह रहा हूं। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार ने यह बात कही। कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़ा अनैतिकता और लालच का हर कांड यही बता रहा है।
600 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट में ये लोग 36,000 करोड़ रुपए निगल गए और अभी तक निगलते जा रहे हैं। इस लूट का परिमाण और इसका आकार इतना बड़ा था कि पूरी दुनिया के सामने भारत ने अपनी प्रतिष्ठा खो दी। रूस का विनाशकारी तत्व चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद यहां भी आ पहुंचा है। इसने हिंदुस्तान में सच्चे अर्थो में और बड़ी मजबूती से अपनी जड़ें जमा ली हैं। बिना कहे चुपके-चुपके निजीकरण हो रहा है। सिर्फ मुंबई के बिल्डरों को पता है कि माल को किस तरह बांटना है।
किससे लेकर किसको देना है, किस चीज के बदले में देना है। वे अपना मुंह नहीं खोल रहे हैं क्योंकि माल पाने के लिए वे खुद कतार में लगे हुए हैं और वे भलीभांति जानते हैं कि अगर कोई इसके खिलाफ गुस्सा प्रकट करेगा तो यह व्यवस्था किस तरह उससे प्रतिशोध ले सकती है। हर कोई जानता है कि जो भी कीमत चुकाने को तैयार हो, मुंबई की जमीन का एक-एक कोना उसके हाथों बिकने को तैयार है। पार्क, भिखारियों के घर, बूढ़े लोगों के आशियाने, वक्फ की संपत्ति, सारी झुग्गी-झोपड़ियां, समंदर के आसपास की वो जमीनें जहां नमक बनता है, मैंग्रूव्स (एक किस्म की झाड़ी, जो समंदर किनारे बसे शहरों में उगाई जाती है), पुरानी विरासत वाली संपत्ति, पहाड़, जंगल, समुद्र तट की जमीनें सबकुछ बिकने के लिए तैयार है। अब कुछ भी पवित्र नहीं है।
सीआरजेड (कोस्टल रेगुलेशन जोन) का भी कोई अर्थ नहीं है। सबकुछ हथियाने, कब्जा करने के लिए तैयार है। इतनी बड़ी संख्या में घर बनाए जा रहे हैं, जितने खरीदने वाले लोग भी नहीं हैं। इतने ऑफिस बन रहे हैं, जितनी शहर को कभी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। एक के बाद एक बड़ी संख्या में मॉल उग रहे हैं, जहां बिक्री कम-से-कम होती जा रही है। फिर भी कीमतें कम नहीं हो रहीं क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो मुनाफाखोरों को नुकसान होगा और आम आदमी को फायदा। और आखिर कौन चाहता है कि आम आदमी को फायदा पहुंचे?
निश्चित ही सरकार तो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती। एक समय ऐसा था, जब 64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले के कारण 400 सांसदों के साथ सरकार गिर गई थी। आज हजारों करोड़ रुपयों के घोटाले हो रहे हैं, फिर भी किसी को कोई डर नहीं है क्योंकि विपक्ष भी मुनाफे के इस धंधे में दीवार नहीं बनना चाहता। हर कोई लूट में हिस्सेदार है और जब कोई पत्रकार या आरटीआई कार्यकर्ता इसके खिलाफ खड़ा होता है तो उसका मुंह बंद करने के लिए सिर्फ भाड़े के हत्यारों या झूठे मुकदमे की जरूरत होती है।
उसका मुंह बंद हो जाएगा। आप इसे जो कहना चाहें कहें - चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद, सरकारी खजाने की लूट या सीधे-सादे शब्दों में भ्रष्टाचार। लेकिन जो सरकार में बैठे हैं, वे इसे विकास कहते हैं। लेकिन यह कैसा विकास है, जिसमें मैं देख रहा हूं कि और-और लोग बेघर होते जा रहे हैं, और-और भिखारी बढ़ते जा रहे हैं, और-और बीमार लोग हैं, जो बिना इलाज के मर रहे हैं क्योंकि इलाज के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। और-और गरीब लोग और-और दरिद्रता और अभाव की हालत में जी रहे हैं? यह कैसा विकास है कि मैं और-और आत्महत्या कर रहे किसानों के बारे में पढ़ता हूं, और-और विद्यार्थी आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि आखिर उनका भविष्य क्या है।
और-और लोग अपनी नौकरियां खोते जा रहे हैं, वे बेरोजगार हो रहे हैं। क्या हम हिंदुस्तान को और ज्यादा कुंठाओं, अपराधों और हिंसा के लिए तैयार कर रहे हैं? अगर ऐसा हुआ तो फिर हमारे इतने सारे अरबपति कहां जाएंगे? - लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार हैंकितनी सच्चई है? क्या सचमुच हिंदुस्तान ने इतनी सारी संपदा पैदा कर दी है और अगर की है तो किस उद्देश्य से की है?
ऐसा दावा है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के पहले पूरी दुनिया में डॉलर अरबपतियों के मामले में भारत रूस के बाद दूसरे नंबर पर था। अब हमारे प्रधानमंत्री के एक आर्थिक सलाहकार कहते हैं कि संभवत: हम ऐसे देश हैं, जहां ऐसे अरबपतियों की संख्या सबसे ज्यादा है।
अचानक इतने सारे अरबपति कहां से पैदा हो गए? क्या वे सॉफ्टवेअर उद्यमी हैं? नहीं। क्या वे रचनात्मक व्यवसाय से ताल्लुक रखने वाले हैं? नहीं। क्या वे मीडिया के लोग हैं? नहीं। क्या हमने गूगल, फेसबुक या ट्विटर बनाया है? नहीं। विश्व के सर्वश्रेष्ठ १क्क् ब्रांडों में कितने हमारे हैं? टाटा और संभवत: एयरटेल को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा वैश्विक ब्रांड है।
प्रतिवर्ष हम कितने नए आविष्कार और वैश्विक स्तर के पेंटेंट रजिस्टर करते हैं? आप उनकी संख्या अपनी उंगलियों पर गिन सकते हैं। फिर इतनी विपुल धन-संपदा कहां से आ गई? बिल्कुल उसी तरह, जिस तरह रूसी अरबपतियों ने अपनी संपदा का निर्माण किया। सत्ता और जोड़गांठ के कामों में लगे हुए लोगों से नजदीकियां बनाकर, उन चीजों को हथियाकर जो दरअसल हमारी और आपकी हैं। हिंदुस्तान के समस्त नए धन का अधिकांश हिस्सा संदिग्ध जमीनों, रियल इस्टेट के धंधे, गैरकानूनी खनन, सरकारी ठेकों, विशेष आर्थिक क्षेत्रों, जो कभी अस्तित्व में आ ही नहीं सके, से आ रहा है।
दरअसल उन विशेष आर्थिक क्षेत्रों को अस्तित्व में लाना मकसद था भी नहीं, बल्कि उसका मकसद गरीब किसानों और उससे भी ज्यादा गरीब आदिवासियों को विस्थापित कर राज्य से मुनाफा वसूलना था। हम दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों से मुकाबला करने के लिए 117 मंजिल वाले ऊंचे टॉवर खड़े कर रहे हैं, जबकि हमारे शहरों में पर्याप्त बिजली, पानी, पार्क, सड़कें और सार्वजनिक परिवहन की भी कोई व्यवस्था नहीं है। इन ऊंचे-ऊंचे टॉवरों के फ्लैट कौन खरीद रहा है? ये फ्लैट वे लोग खरीद रहे हैं, जो कानूनों को तोड़ते-मरोड़ते हैं, जो मंजूरी देते हैं।
जो यह मुमकिन बनाते हैं कि ये ऊंचे टॉवर खड़े किए जा सकें। ये वे लोग हैं, जो ये सुनिश्चित करते हैं कि मुझसे और आपसे पानी और बिजली छीनकर इन टॉवरों तक पहुंचाई जा सके। नेता, बाबू, बिल्डर, सत्ता के दलाल उनके इर्द-गिर्द छाए हुए हैं। यह हिंदुस्तान का सबसे शांत और सुकूनदेह नेटवर्क है। सबसे अमीर है और सबसे ज्यादा भ्रष्ट भी। नहीं, ये बात मैं नहीं कह रहा हूं। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार ने यह बात कही। कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़ा अनैतिकता और लालच का हर कांड यही बता रहा है।
600 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट में ये लोग 36,000 करोड़ रुपए निगल गए और अभी तक निगलते जा रहे हैं। इस लूट का परिमाण और इसका आकार इतना बड़ा था कि पूरी दुनिया के सामने भारत ने अपनी प्रतिष्ठा खो दी। रूस का विनाशकारी तत्व चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद यहां भी आ पहुंचा है। इसने हिंदुस्तान में सच्चे अर्थो में और बड़ी मजबूती से अपनी जड़ें जमा ली हैं। बिना कहे चुपके-चुपके निजीकरण हो रहा है। सिर्फ मुंबई के बिल्डरों को पता है कि माल को किस तरह बांटना है।
किससे लेकर किसको देना है, किस चीज के बदले में देना है। वे अपना मुंह नहीं खोल रहे हैं क्योंकि माल पाने के लिए वे खुद कतार में लगे हुए हैं और वे भलीभांति जानते हैं कि अगर कोई इसके खिलाफ गुस्सा प्रकट करेगा तो यह व्यवस्था किस तरह उससे प्रतिशोध ले सकती है। हर कोई जानता है कि जो भी कीमत चुकाने को तैयार हो, मुंबई की जमीन का एक-एक कोना उसके हाथों बिकने को तैयार है। पार्क, भिखारियों के घर, बूढ़े लोगों के आशियाने, वक्फ की संपत्ति, सारी झुग्गी-झोपड़ियां, समंदर के आसपास की वो जमीनें जहां नमक बनता है, मैंग्रूव्स (एक किस्म की झाड़ी, जो समंदर किनारे बसे शहरों में उगाई जाती है), पुरानी विरासत वाली संपत्ति, पहाड़, जंगल, समुद्र तट की जमीनें सबकुछ बिकने के लिए तैयार है। अब कुछ भी पवित्र नहीं है।
सीआरजेड (कोस्टल रेगुलेशन जोन) का भी कोई अर्थ नहीं है। सबकुछ हथियाने, कब्जा करने के लिए तैयार है। इतनी बड़ी संख्या में घर बनाए जा रहे हैं, जितने खरीदने वाले लोग भी नहीं हैं। इतने ऑफिस बन रहे हैं, जितनी शहर को कभी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। एक के बाद एक बड़ी संख्या में मॉल उग रहे हैं, जहां बिक्री कम-से-कम होती जा रही है। फिर भी कीमतें कम नहीं हो रहीं क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो मुनाफाखोरों को नुकसान होगा और आम आदमी को फायदा। और आखिर कौन चाहता है कि आम आदमी को फायदा पहुंचे?
निश्चित ही सरकार तो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती। एक समय ऐसा था, जब 64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले के कारण 400 सांसदों के साथ सरकार गिर गई थी। आज हजारों करोड़ रुपयों के घोटाले हो रहे हैं, फिर भी किसी को कोई डर नहीं है क्योंकि विपक्ष भी मुनाफे के इस धंधे में दीवार नहीं बनना चाहता। हर कोई लूट में हिस्सेदार है और जब कोई पत्रकार या आरटीआई कार्यकर्ता इसके खिलाफ खड़ा होता है तो उसका मुंह बंद करने के लिए सिर्फ भाड़े के हत्यारों या झूठे मुकदमे की जरूरत होती है।
उसका मुंह बंद हो जाएगा। आप इसे जो कहना चाहें कहें - चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद, सरकारी खजाने की लूट या सीधे-सादे शब्दों में भ्रष्टाचार। लेकिन जो सरकार में बैठे हैं, वे इसे विकास कहते हैं। लेकिन यह कैसा विकास है, जिसमें मैं देख रहा हूं कि और-और लोग बेघर होते जा रहे हैं, और-और भिखारी बढ़ते जा रहे हैं, और-और बीमार लोग हैं, जो बिना इलाज के मर रहे हैं क्योंकि इलाज के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। और-और गरीब लोग और-और दरिद्रता और अभाव की हालत में जी रहे हैं? यह कैसा विकास है कि मैं और-और आत्महत्या कर रहे किसानों के बारे में पढ़ता हूं, और-और विद्यार्थी आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि आखिर उनका भविष्य क्या है।
और-और लोग अपनी नौकरियां खोते जा रहे हैं, वे बेरोजगार हो रहे हैं। क्या हम हिंदुस्तान को और ज्यादा कुंठाओं, अपराधों और हिंसा के लिए तैयार कर रहे हैं? अगर ऐसा हुआ तो फिर हमारे इतने सारे अरबपति कहां जाएंगे? - लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार हैं
ऐसा दावा है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के पहले पूरी दुनिया में डॉलर अरबपतियों के मामले में भारत रूस के बाद दूसरे नंबर पर था। अब हमारे प्रधानमंत्री के एक आर्थिक सलाहकार कहते हैं कि संभवत: हम ऐसे देश हैं, जहां ऐसे अरबपतियों की संख्या सबसे ज्यादा है।
अचानक इतने सारे अरबपति कहां से पैदा हो गए? क्या वे सॉफ्टवेअर उद्यमी हैं? नहीं। क्या वे रचनात्मक व्यवसाय से ताल्लुक रखने वाले हैं? नहीं। क्या वे मीडिया के लोग हैं? नहीं। क्या हमने गूगल, फेसबुक या ट्विटर बनाया है? नहीं। विश्व के सर्वश्रेष्ठ १क्क् ब्रांडों में कितने हमारे हैं? टाटा और संभवत: एयरटेल को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा वैश्विक ब्रांड है।
प्रतिवर्ष हम कितने नए आविष्कार और वैश्विक स्तर के पेंटेंट रजिस्टर करते हैं? आप उनकी संख्या अपनी उंगलियों पर गिन सकते हैं। फिर इतनी विपुल धन-संपदा कहां से आ गई? बिल्कुल उसी तरह, जिस तरह रूसी अरबपतियों ने अपनी संपदा का निर्माण किया। सत्ता और जोड़गांठ के कामों में लगे हुए लोगों से नजदीकियां बनाकर, उन चीजों को हथियाकर जो दरअसल हमारी और आपकी हैं। हिंदुस्तान के समस्त नए धन का अधिकांश हिस्सा संदिग्ध जमीनों, रियल इस्टेट के धंधे, गैरकानूनी खनन, सरकारी ठेकों, विशेष आर्थिक क्षेत्रों, जो कभी अस्तित्व में आ ही नहीं सके, से आ रहा है।
दरअसल उन विशेष आर्थिक क्षेत्रों को अस्तित्व में लाना मकसद था भी नहीं, बल्कि उसका मकसद गरीब किसानों और उससे भी ज्यादा गरीब आदिवासियों को विस्थापित कर राज्य से मुनाफा वसूलना था। हम दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों से मुकाबला करने के लिए 117 मंजिल वाले ऊंचे टॉवर खड़े कर रहे हैं, जबकि हमारे शहरों में पर्याप्त बिजली, पानी, पार्क, सड़कें और सार्वजनिक परिवहन की भी कोई व्यवस्था नहीं है। इन ऊंचे-ऊंचे टॉवरों के फ्लैट कौन खरीद रहा है? ये फ्लैट वे लोग खरीद रहे हैं, जो कानूनों को तोड़ते-मरोड़ते हैं, जो मंजूरी देते हैं।
जो यह मुमकिन बनाते हैं कि ये ऊंचे टॉवर खड़े किए जा सकें। ये वे लोग हैं, जो ये सुनिश्चित करते हैं कि मुझसे और आपसे पानी और बिजली छीनकर इन टॉवरों तक पहुंचाई जा सके। नेता, बाबू, बिल्डर, सत्ता के दलाल उनके इर्द-गिर्द छाए हुए हैं। यह हिंदुस्तान का सबसे शांत और सुकूनदेह नेटवर्क है। सबसे अमीर है और सबसे ज्यादा भ्रष्ट भी। नहीं, ये बात मैं नहीं कह रहा हूं। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार ने यह बात कही। कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़ा अनैतिकता और लालच का हर कांड यही बता रहा है।
600 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट में ये लोग 36,000 करोड़ रुपए निगल गए और अभी तक निगलते जा रहे हैं। इस लूट का परिमाण और इसका आकार इतना बड़ा था कि पूरी दुनिया के सामने भारत ने अपनी प्रतिष्ठा खो दी। रूस का विनाशकारी तत्व चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद यहां भी आ पहुंचा है। इसने हिंदुस्तान में सच्चे अर्थो में और बड़ी मजबूती से अपनी जड़ें जमा ली हैं। बिना कहे चुपके-चुपके निजीकरण हो रहा है। सिर्फ मुंबई के बिल्डरों को पता है कि माल को किस तरह बांटना है।
किससे लेकर किसको देना है, किस चीज के बदले में देना है। वे अपना मुंह नहीं खोल रहे हैं क्योंकि माल पाने के लिए वे खुद कतार में लगे हुए हैं और वे भलीभांति जानते हैं कि अगर कोई इसके खिलाफ गुस्सा प्रकट करेगा तो यह व्यवस्था किस तरह उससे प्रतिशोध ले सकती है। हर कोई जानता है कि जो भी कीमत चुकाने को तैयार हो, मुंबई की जमीन का एक-एक कोना उसके हाथों बिकने को तैयार है। पार्क, भिखारियों के घर, बूढ़े लोगों के आशियाने, वक्फ की संपत्ति, सारी झुग्गी-झोपड़ियां, समंदर के आसपास की वो जमीनें जहां नमक बनता है, मैंग्रूव्स (एक किस्म की झाड़ी, जो समंदर किनारे बसे शहरों में उगाई जाती है), पुरानी विरासत वाली संपत्ति, पहाड़, जंगल, समुद्र तट की जमीनें सबकुछ बिकने के लिए तैयार है। अब कुछ भी पवित्र नहीं है।
सीआरजेड (कोस्टल रेगुलेशन जोन) का भी कोई अर्थ नहीं है। सबकुछ हथियाने, कब्जा करने के लिए तैयार है। इतनी बड़ी संख्या में घर बनाए जा रहे हैं, जितने खरीदने वाले लोग भी नहीं हैं। इतने ऑफिस बन रहे हैं, जितनी शहर को कभी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। एक के बाद एक बड़ी संख्या में मॉल उग रहे हैं, जहां बिक्री कम-से-कम होती जा रही है। फिर भी कीमतें कम नहीं हो रहीं क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो मुनाफाखोरों को नुकसान होगा और आम आदमी को फायदा। और आखिर कौन चाहता है कि आम आदमी को फायदा पहुंचे?
निश्चित ही सरकार तो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती। एक समय ऐसा था, जब 64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले के कारण 400 सांसदों के साथ सरकार गिर गई थी। आज हजारों करोड़ रुपयों के घोटाले हो रहे हैं, फिर भी किसी को कोई डर नहीं है क्योंकि विपक्ष भी मुनाफे के इस धंधे में दीवार नहीं बनना चाहता। हर कोई लूट में हिस्सेदार है और जब कोई पत्रकार या आरटीआई कार्यकर्ता इसके खिलाफ खड़ा होता है तो उसका मुंह बंद करने के लिए सिर्फ भाड़े के हत्यारों या झूठे मुकदमे की जरूरत होती है।
उसका मुंह बंद हो जाएगा। आप इसे जो कहना चाहें कहें - चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद, सरकारी खजाने की लूट या सीधे-सादे शब्दों में भ्रष्टाचार। लेकिन जो सरकार में बैठे हैं, वे इसे विकास कहते हैं। लेकिन यह कैसा विकास है, जिसमें मैं देख रहा हूं कि और-और लोग बेघर होते जा रहे हैं, और-और भिखारी बढ़ते जा रहे हैं, और-और बीमार लोग हैं, जो बिना इलाज के मर रहे हैं क्योंकि इलाज के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। और-और गरीब लोग और-और दरिद्रता और अभाव की हालत में जी रहे हैं? यह कैसा विकास है कि मैं और-और आत्महत्या कर रहे किसानों के बारे में पढ़ता हूं, और-और विद्यार्थी आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि आखिर उनका भविष्य क्या है।
और-और लोग अपनी नौकरियां खोते जा रहे हैं, वे बेरोजगार हो रहे हैं। क्या हम हिंदुस्तान को और ज्यादा कुंठाओं, अपराधों और हिंसा के लिए तैयार कर रहे हैं? अगर ऐसा हुआ तो फिर हमारे इतने सारे अरबपति कहां जाएंगे? - लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार हैंकितनी सच्चई है? क्या सचमुच हिंदुस्तान ने इतनी सारी संपदा पैदा कर दी है और अगर की है तो किस उद्देश्य से की है?
ऐसा दावा है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के पहले पूरी दुनिया में डॉलर अरबपतियों के मामले में भारत रूस के बाद दूसरे नंबर पर था। अब हमारे प्रधानमंत्री के एक आर्थिक सलाहकार कहते हैं कि संभवत: हम ऐसे देश हैं, जहां ऐसे अरबपतियों की संख्या सबसे ज्यादा है।
अचानक इतने सारे अरबपति कहां से पैदा हो गए? क्या वे सॉफ्टवेअर उद्यमी हैं? नहीं। क्या वे रचनात्मक व्यवसाय से ताल्लुक रखने वाले हैं? नहीं। क्या वे मीडिया के लोग हैं? नहीं। क्या हमने गूगल, फेसबुक या ट्विटर बनाया है? नहीं। विश्व के सर्वश्रेष्ठ १क्क् ब्रांडों में कितने हमारे हैं? टाटा और संभवत: एयरटेल को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा वैश्विक ब्रांड है।
प्रतिवर्ष हम कितने नए आविष्कार और वैश्विक स्तर के पेंटेंट रजिस्टर करते हैं? आप उनकी संख्या अपनी उंगलियों पर गिन सकते हैं। फिर इतनी विपुल धन-संपदा कहां से आ गई? बिल्कुल उसी तरह, जिस तरह रूसी अरबपतियों ने अपनी संपदा का निर्माण किया। सत्ता और जोड़गांठ के कामों में लगे हुए लोगों से नजदीकियां बनाकर, उन चीजों को हथियाकर जो दरअसल हमारी और आपकी हैं। हिंदुस्तान के समस्त नए धन का अधिकांश हिस्सा संदिग्ध जमीनों, रियल इस्टेट के धंधे, गैरकानूनी खनन, सरकारी ठेकों, विशेष आर्थिक क्षेत्रों, जो कभी अस्तित्व में आ ही नहीं सके, से आ रहा है।
दरअसल उन विशेष आर्थिक क्षेत्रों को अस्तित्व में लाना मकसद था भी नहीं, बल्कि उसका मकसद गरीब किसानों और उससे भी ज्यादा गरीब आदिवासियों को विस्थापित कर राज्य से मुनाफा वसूलना था। हम दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों से मुकाबला करने के लिए 117 मंजिल वाले ऊंचे टॉवर खड़े कर रहे हैं, जबकि हमारे शहरों में पर्याप्त बिजली, पानी, पार्क, सड़कें और सार्वजनिक परिवहन की भी कोई व्यवस्था नहीं है। इन ऊंचे-ऊंचे टॉवरों के फ्लैट कौन खरीद रहा है? ये फ्लैट वे लोग खरीद रहे हैं, जो कानूनों को तोड़ते-मरोड़ते हैं, जो मंजूरी देते हैं।
जो यह मुमकिन बनाते हैं कि ये ऊंचे टॉवर खड़े किए जा सकें। ये वे लोग हैं, जो ये सुनिश्चित करते हैं कि मुझसे और आपसे पानी और बिजली छीनकर इन टॉवरों तक पहुंचाई जा सके। नेता, बाबू, बिल्डर, सत्ता के दलाल उनके इर्द-गिर्द छाए हुए हैं। यह हिंदुस्तान का सबसे शांत और सुकूनदेह नेटवर्क है। सबसे अमीर है और सबसे ज्यादा भ्रष्ट भी। नहीं, ये बात मैं नहीं कह रहा हूं। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार ने यह बात कही। कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़ा अनैतिकता और लालच का हर कांड यही बता रहा है।
600 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट में ये लोग 36,000 करोड़ रुपए निगल गए और अभी तक निगलते जा रहे हैं। इस लूट का परिमाण और इसका आकार इतना बड़ा था कि पूरी दुनिया के सामने भारत ने अपनी प्रतिष्ठा खो दी। रूस का विनाशकारी तत्व चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद यहां भी आ पहुंचा है। इसने हिंदुस्तान में सच्चे अर्थो में और बड़ी मजबूती से अपनी जड़ें जमा ली हैं। बिना कहे चुपके-चुपके निजीकरण हो रहा है। सिर्फ मुंबई के बिल्डरों को पता है कि माल को किस तरह बांटना है।
किससे लेकर किसको देना है, किस चीज के बदले में देना है। वे अपना मुंह नहीं खोल रहे हैं क्योंकि माल पाने के लिए वे खुद कतार में लगे हुए हैं और वे भलीभांति जानते हैं कि अगर कोई इसके खिलाफ गुस्सा प्रकट करेगा तो यह व्यवस्था किस तरह उससे प्रतिशोध ले सकती है। हर कोई जानता है कि जो भी कीमत चुकाने को तैयार हो, मुंबई की जमीन का एक-एक कोना उसके हाथों बिकने को तैयार है। पार्क, भिखारियों के घर, बूढ़े लोगों के आशियाने, वक्फ की संपत्ति, सारी झुग्गी-झोपड़ियां, समंदर के आसपास की वो जमीनें जहां नमक बनता है, मैंग्रूव्स (एक किस्म की झाड़ी, जो समंदर किनारे बसे शहरों में उगाई जाती है), पुरानी विरासत वाली संपत्ति, पहाड़, जंगल, समुद्र तट की जमीनें सबकुछ बिकने के लिए तैयार है। अब कुछ भी पवित्र नहीं है।
सीआरजेड (कोस्टल रेगुलेशन जोन) का भी कोई अर्थ नहीं है। सबकुछ हथियाने, कब्जा करने के लिए तैयार है। इतनी बड़ी संख्या में घर बनाए जा रहे हैं, जितने खरीदने वाले लोग भी नहीं हैं। इतने ऑफिस बन रहे हैं, जितनी शहर को कभी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। एक के बाद एक बड़ी संख्या में मॉल उग रहे हैं, जहां बिक्री कम-से-कम होती जा रही है। फिर भी कीमतें कम नहीं हो रहीं क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो मुनाफाखोरों को नुकसान होगा और आम आदमी को फायदा। और आखिर कौन चाहता है कि आम आदमी को फायदा पहुंचे?
निश्चित ही सरकार तो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती। एक समय ऐसा था, जब 64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले के कारण 400 सांसदों के साथ सरकार गिर गई थी। आज हजारों करोड़ रुपयों के घोटाले हो रहे हैं, फिर भी किसी को कोई डर नहीं है क्योंकि विपक्ष भी मुनाफे के इस धंधे में दीवार नहीं बनना चाहता। हर कोई लूट में हिस्सेदार है और जब कोई पत्रकार या आरटीआई कार्यकर्ता इसके खिलाफ खड़ा होता है तो उसका मुंह बंद करने के लिए सिर्फ भाड़े के हत्यारों या झूठे मुकदमे की जरूरत होती है।
उसका मुंह बंद हो जाएगा। आप इसे जो कहना चाहें कहें - चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद, सरकारी खजाने की लूट या सीधे-सादे शब्दों में भ्रष्टाचार। लेकिन जो सरकार में बैठे हैं, वे इसे विकास कहते हैं। लेकिन यह कैसा विकास है, जिसमें मैं देख रहा हूं कि और-और लोग बेघर होते जा रहे हैं, और-और भिखारी बढ़ते जा रहे हैं, और-और बीमार लोग हैं, जो बिना इलाज के मर रहे हैं क्योंकि इलाज के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। और-और गरीब लोग और-और दरिद्रता और अभाव की हालत में जी रहे हैं? यह कैसा विकास है कि मैं और-और आत्महत्या कर रहे किसानों के बारे में पढ़ता हूं, और-और विद्यार्थी आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि आखिर उनका भविष्य क्या है।
और-और लोग अपनी नौकरियां खोते जा रहे हैं, वे बेरोजगार हो रहे हैं। क्या हम हिंदुस्तान को और ज्यादा कुंठाओं, अपराधों और हिंसा के लिए तैयार कर रहे हैं? अगर ऐसा हुआ तो फिर हमारे इतने सारे अरबपति कहां जाएंगे? - लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार हैं
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