Sep 27, 2010

क्या है एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग

एनएसई-बीएसई के बीच एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग विवाद सुलझने के आसारक्या है एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग कंप्यूटर प्रोग्राम या एक खास तरह के सॉफ्टवेयर के माध्यम से की जाने वाली शेयरों की खरीद-बिक्री एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग कहलाती है। इस तरह के सॉफ्टवेयर को उचित शेयरों की पहचान और उनकी खरीद-बिक्री के लिए इंसान की जरूरत नहीं होती। ये कंप्यूटर प्रोग्राम खुद यह तय करते हैं कि कब, कहां और किस शेयर का कारोबार करना है। साल 2008 से डायरेक्ट मार्केट एक्सेस की अनुमति मिलने के बाद एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग को बढ़ावा मिला है। मिली सेकंड के भीतर ही ऐसे सॉफ्टवेयर आर्बिट्रेज के मौको की तलाश कर सौदों को अंजाम दे डालते हैं।

स्मार्ट ऑर्डर राउटिंगअगर कोई शेयर दो एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध है तो संभव है कि किसी एक एक्सचेंज पर उसकी कीमत अपेक्षाकृत कम हो। स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग आपके लिए बेहतर कीमत की तलाश करता है और उस समय जहां बेहतर कीमत होती है वहां ऑर्डर भेजता है।

एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग के मसले पर नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) और बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में महीनों से चल रहा विवाद अब सुलझता नजर आ रहा है। हाल ही में सेबी ने स्टॉक एक्सचेंजों और बाजार प्रतिभागियों से प्राप्त प्रस्तावों के आधार पर स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग पर एक सर्कुलर जारी किया है जिसके अनुसार स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग (एसओआर) सुविधा की पेशकश करने वाले ब्रोकर को स्टॉक एक्सचेंजों के पास आवेदन करना होगा साथ ही स्टॉक ब्रोकर को एसओआर सिस्टम और सॉफ्टवेयर की थर्ड पार्टी सिस्टम ऑडिट रिपोर्ट भी उपलब्ध करानी होगी। ऐसे सिस्टम ऑडिटरों की जानकारी स्टॉक एक्सचेंज अपने ब्रोकर को उपलब्ध कराएंगे। सेबी के अनुसार, स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग सभी निवेशकों के लिए उपलब्ध होगा।

एक बड़ी ब्रोकिंग कंपनी के निदेशक ने बताया कि एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने वाले दोनों एक्सचेंजों के बीच के कीमतों का लाभ उठा सकेंगे। आम तौर पर बड़े वित्तीय संस्थान एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हैं। एल्गोरिद्मिक सॉफ्टवेयर संबद्ध एक्सचेंजों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर सेकंड के 100वें हिस्से में बाजार में उपलब्ध कीमतों में अंतर का लाभ उठाते हुए शेयरों की खरीद-बिक्री काफी तेज गति से करता है। यह सॉफ्टवेयर स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग का इस्तेमाल करता है।

हालांकि, सेबी के सर्कुलर के अनुसार एसओआर सभी वर्ग के निवेशकों के लिए उपलब्ध होगा और सदस्यों को क्रियान्वयन की सबसे अच्छी नीति अपनानी होगी। आर्बिट्रेज का उल्लेख सर्कुलर में नहीं किया गया है और इसलिए यह एसओआर का हिस्सा नहीं भी हो सकता है। सेबी के सर्कुलर के अनुसार, स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग सिस्टम के तहत दिए गए ऑर्डर के लिए स्टॉक एक्सचेंज विशेष पहचान संख्या उपलब्ध कराएंगे। इसके अतिरिक्त स्टॉक एक्सचेंजों को स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग सिस्टम के ऑर्डर और कारोबार के आंकड़े रखने पड़ेंगे। सेबी ने स्टॉक एक्सचेंजों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग लागू होने के तीन महीने के भीतर बाजार में जारी किए जाने वाले मार्केट डेटा के टाइम स्टांपिंग की प्रणाली हो। साथ ही स्टॉक एक्सचेंजों कोबाजार शुरू होने से पहले अपने सिस्टम क्लॉक को एटॉमिक क्लॉक के हिसाब से दुरुस्त करना होगा।

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की प्रवक्ता दिव्या मलिक लाहिरी ने बताया कि बीएसई के मार्केट डेटा पर टाइम स्टाम्प नहीं होने की वजह से एनएसई की प्रणाली स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग को क्रियान्वित होने से रोक रही थी। एनएसई काफी समय पहले से मार्केट डेटा की स्टांपिंग करता आ रहा है। सेबी के दिशानिर्देशों के बाद बीएसई भी अब मार्केट डेटा की स्टांपिंग करेगा। फिर, ऑर्डर के क्रियान्वयन में बाधा नहीं आनी चाहिए।

बीएसई के डिप्टी सीईओ आशीष कुमार चौहान के अनुसार, स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग पर सेबी का सर्कुलर आने के बाद न केवल एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग को बढ़ावा मिलेगा बल्कि एक छोटे निवेशक को भी स्मार्ट ऑर्डर राउटिंग से सही भाव पर शेयरों की खरीदारी करने का अवसर मिलेगा। मुझे उम्मीद है कि एक महीने में सारा मामला सुलझ जाना चाहिए। साल 2008 में डायरेक्ट मार्केट एक्सेस यानी डीएमए की अनुमति मिलने के बाद एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग को बढ़ावा मिला है। डीएमए में ग्राहक और एक्सचेंज के बीच ब्रोकर की दखलंदाजी नहीं होती है।

जानिए क्या होता है टीजर लोन

इन दिनों टीजर लोन की चर्चा खूब है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने इसकी काफी पब्लिसिटी की और इललिए यह काफी लोकप्रिय भी हो गया है। आइए हम बताते हैं कि टीजर लोन दरअसल है क्या टीजर लोन शुरूआती तौर पर एक सस्ता लोन है। इसके तहत कुछ समय तक यानी दो या तीन सालों के लिए ब्याज दरें निश्चित कर दी जाती हैँ। कुछ मामलों में यह पांच साल भी हो सकता है। लेकिन इसके बाद ब्याज दरें बढ़ जाती हैँ। इसमें ब्याज दरें जान बूझकर कम रखी जाती हैँ ताकि ग्राहकों को ललचाया जा सके। बाद में इसकी दरें बढ़ा दी जाती हैं या इसे फ्लोटिंग रेट में ट्रांसफर कर दिया जाता है। इस तरह के लोन के खिलाफ आलोचकों का कहना है कि यह कर्ज लेने वालों को बरगलाने के लिए है। शुरू में तो उन्हें कम ब्याज में लोन मिल जाता है लेकिन दीर्घकाल में उन्हें घाटा हो सकता है क्योंकि उन्हें फ्लोटिंग रेट पर लोन लेना होगा। उस समय के रेट ज्यादा भी हो सकते हैँ। लेकिन अगर रेट नहीं बढ़े तो ग्राहकों को फायदा हो सकता है लेकिन यह देखते हुए कि हाउसिंग लोन लंबे समय के लिए लिये जाते हैं ब्याज दरों के बारे में कोई भी भविष्यवाणी करना नामुमकिन है।


हालांकि रिजर्व बैंक ने इस तरह के लोन पर किसी तरह का बयान जारी नहीं किया है लेकिन उसने इसकी बढ़ती प्रवृति पर चिंता जताई है।

Sep 11, 2010

इडियट्स' को पीछे छोड़ देगी 'दबंग'!


त्‍यौहारों के मौके पर रिलीज हुई सलमान खान की फिल्‍म ‘दबंग’ शुरुआती दिन ही बॉक्‍स ऑफिस पर जबरदस्‍त हिट रही। करीब 18 करोड़ रुपए की लागत से बनी यह फिल्‍म 40 करोड़ रुपए में डिस्‍ट्रीब्‍यूटर्स के हाथों बिक गई। देश भर में 1300 सिनेमाघरों में रिलीज हुई दबंग शुक्रवार को रिलीज के दिन 97 फीसदी हाउसफुल रही।

ईद के मौके पर रिलीज दबंग को आमिर खान की 'थ्री इडियट्स' की तरह कामयाबी मिलने की उम्‍मीद की जा रही है। अगर पिछले कुछ समय में आई कुछ फिल्मों से तुलना करें तो दबंग की ओपनिंग थ्री इडियट्स के करीब रही। हालांकि खुद सलमान की ही ईद पर रिलीज हुई ‘वांटेड’ ने सफलता के झंडे गाड़े थे। दबंग फिल्म की हाइप और दर्शकों के क्रेज को देखते हुए सभी मल्टीप्लेक्सों ने इसे प्रमुखता दी और नंबर ऑफ शोज भी बढ़ा दिए। बावजूद इसके फिल्‍म के टिकटों के लिए मारामारी रही।

पिछले साल क्रिसमस के मौके पर रिलीज हुई थ्री इडियट्स ने 41 करोड़ रुपए की ‘वीकेंड ओपनिंग’ कर रिकार्ड बनाया था। जानकारों का कहना है कि सब कुछ ठीक रहा तो दबंग, थ्री इडियट्स को भी पीछे छोड़ देगी। ‘फिल्‍म इंफॉर्मेशन’ के एडिटर कोमल नाहटा कहते हैं, ‘फिल्‍म की वीकेंड ओपनिंग के अंतिम आंकड़ें आने तक यह संभव है।’

’ट्रेड गाइड’ के एडिटर तरण आदर्श कहते हैं कि दबंग पहले वीकेंड पर 45 करोड़ रुपए की कमाई करेगी और इस तरह कलेकशन के मामले में थ्री इडियट्स को पीछे छोड़ देगी। उन्‍होंने कहा, ‘निश्चित तौर पर यह इस साल की सबसे सुपरहिट फिल्‍म साबित होगी। सबसे बड़ी बात है कि यह फिल्‍म थ्री इडियट्स को तगड़ी टक्‍कर दे रही है। यह फिल्‍म सिनेमाघरों के साथ साथ मल्टीप्लेक्सों में भी धूम मचा रही है।

बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता शत्रुध्‍न सिन्‍हा की बेटी सोनाक्षी इस फिल्‍म के जिरए पहली बार फिल्‍मों पर कदम रख रही हैं। अन्‍य कलाकारों में मलाइका अरोड़ा खान आइटम गर्ल की भूमिका में हैं तो विनोद खन्‍ना, डिम्‍पल कपाडि़या, सोनू सूद जैसे कलाकार भी हैं। दिल्‍ली-एनसीआर में इस फिल्‍म के 250 प्रिंट बिके हैं। यह फिल्‍म मेट्रो से इतर छोटे शहरों में भी खूब धूम मचा रही है।

Sep 6, 2010

फिल्मी हीरो

अरसे बाद ऐसा हुआ है कि किसी फिल्म के प्रोमो ने मुझमें इतनी दिलचस्पी जगाई है कि मैं उसका पहले दिन का पहला शो देखने के लिए बेचैन हूं। मुझे नहीं पता कि फिल्म अच्छी होगी या बुरी। संभावना तो यही है कि फिल्म चलताऊ ही होगी। हाल ही में इस तरह की दो फिल्में आई थीं और वे दोनों भी ऐसी ही थीं। यह अलग बात है कि उन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर खूब धूम मचाई।

उनमें से एक आमिर खान की फिल्म थी, जिसके बॉक्स ऑफिस प्रदर्शन के बाद आमिर ने मार्केटिंग के महारथी का रुतबा हासिल कर लिया। इसकी एक वजह यह भी रही कि आमिर ने शाहरुख खान की सल्तनत में सेंध लगा दी थी। शाहरुख खान रब ने बना दी जोड़ी जैसी फिल्म में अपने जाने-पहचाने रंग-ढंग के साथ मौजूद थे, लेकिन इस फिल्म के प्रदर्शन के महज दो हफ्तों बाद रिलीज हुई आमिर की फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया। देखते ही देखते सभी का ध्यान सुरिंदर साहनी से हटकर संजय सिंघानिया पर केंद्रित हो गया। मेरी नजर में दोनों ही फिल्में सामान्य थीं, लेकिन आमिर की फिल्म बहुत बड़ी हिट हो गई। साथ ही इसने बॉलीवुड को कामयाबी का एक नया मंत्र भी दे दिया : खूनखराबे से भरा ‘तमिल तड़का’।

इसकी सफलता के बाद इसी शैली की एक और फिल्म आई, लेकिन वह तमिल के बजाय तेलुगू मूल की थी : वांटेड। आप इससे बुरी किसी दूसरी फिल्म की कल्पना नहीं कर सकते। कमजोर कहानी, ढीली बुनावट, बिना किसी कुशलता के एक साथ नत्थी कर दिए गए अलग-अलग बिखरे हुए हिस्से। इसके बावजूद अगर इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी के झंडे गाड़ दिए तो उसकी वजह थे सलमान खान। सलमान अपने चिर-परिचित अंदाज में परदे पर आए थे और उनका यही जादू काम कर गया। स्क्रीन पर सलमान का होना ही काफी होता है।

अगर आप मेरी तरह फिल्म को उसके प्रीमियर या टीवी पर नहीं देखते हैं। अगर आप फिल्म को मल्टीप्लेक्स के बजाय सिंगल स्क्रीन टॉकीज में देखते हैं, तो आप समझ सकते हैं कि सलमान का जादू क्यों चलता है। अकड़ से भरी उनकी चाल पर सीटियां बजती हैं। पुराने ढब के इन टॉकीजों में सलमान की हर अदा पर तालियां पड़ती हैं। उनके संवादों को दर्शक दोहराते हैं। कई ऐसे भी होते हैं, जो इससे पहले भी कई बार वह फिल्म देख चुके होते हैं। वे भी सलमान के साथ-साथ डायलॉग बोलकर सुनाते हैं।

सलमान अकेले ऐसे सितारे हैं, जिनके प्रशंसक उनसे अभिनय की उम्मीद नहीं करते। वे बस इतना ही चाहते हैं कि सलमान ठसक के साथ अकड़कर चलें, गाहे-बगाहे एकाध करारे डायलॉग छोड़ते रहें और जरूरत पड़ने पर अपने से भी कद्दावर गुंडों की ठुकाई कर दें। हां, वे एक क्षण के लिए अपनी तालियां सबसे ज्यादा सहेजकर रखते हैं, वह पल होता है जब सलमान अपनी शर्ट उतारते हैं। फिर चाहे सलमान को यह काम किसी की पिटाई करने के लिए करना पड़े या कोई चालू किस्म का गाना गाने के लिए।

आमिर इससे ठीक उलट हैं। वे कभी नहीं चाहते कि उनसे कोई गलती हो। उनके लिए हर रोल जिंदगी और मौत का सवाल होता है। उनकी फिल्में भी सलमान की फिल्मों के ठीक उलट होती हैं। वे इतनी एहतियात के साथ बनाई गई होती हैं कि प्रत्येक दृश्य से फिल्म की भावना और अहसास नजर आते हैं। फिल्म के दृश्यों में आमिर का व्यावहारिक कौशल नजर आ ही जाता है, लेकिन उन्हें इसलिए नजरअंदाज कर दिया जाता है क्योंकि वे आमिर हैं और कुछ भी गलत नहीं कर सकते। अब तो आमिर के प्रोडच्यूसरों ने भी खुलकर शाहरुख खान के साथ नंबर गेम की जंग छेड़ दी है।

पूरे-पूरे पन्नों के विज्ञापन छपवाए जाते हैं, जिनमें आमिर की फिल्मों के बॉक्स ऑफिस प्रदर्शन के आंकड़े होते हैं। यह सिलसिला तब तक जारी रहता है, जब तक फिल्मी पंडित इस जोड़-गणित से तौबा नहीं कर लेते। अक्षय कुमार के निर्माताओं ने भी कुछ समय के लिए नंबर गेम की इस होड़ में शिरकत की, पर पिछली कुछ फिल्मों के पिटने के बाद वे अब खामोश हो गए हैं। लेकिन अक्षय का करिश्मा अब भी बरकरार है। अक्षय जानते हैं कि उनके पास हंसी-ठिठोली का ऐसा माद्दा है कि यदि पटकथा में थोड़ी-बहुत झोल भी हो तो वे उसे छुपा लेंगे। शायद इसी भरोसे से अक्षय आंख मूंदकर कोई भी फिल्म साइन कर लेते हैं।

यह बड़े मजे की बात है कि आज सलमान को छोड़ बाकी सारे फिल्मी अभिनेता ‘स्टार’ नहीं लगते। वे अब स्टार से ज्यादा बिजनेसमैन दिखने लगे हैं। शाहरुख तो एक बिजनेस पत्रिका के कवर पर भी अवतरित हो चुके हैं। अब वे स्टार के बजाय किसी प्रोडच्यूसर सरीखा व्यवहार करते ज्यादा नजर आते हैं। यही हाल आमिर का भी है। वे भूल रहे हैं कि इस तरह एक बड़ा प्रशंसक वर्ग तैयार नहीं किया जा सकता।

आम आदमी अमूमन रुपए-पैसों के गणित में उलझे रहने वाले शख्स को पसंद नहीं करता। लोग आम तौर पर बिजनेसमैन को पसंद नहीं करते। जब मैं छोटा था, तब अधिकतर फिल्मों में खलनायक गांव का महाजन या शहर का सफेदपोश साहूकार ही होता था। अब भारत की तस्वीर बदल गई है और लोगों के लिए पैसा कोई खराब चीज नहीं रह गई है, लेकिन हमारे देश का आम आदमी आज भी किसी अमीर आदमी के बजाय अपने हीरो को ही रुपहले परदे पर देखना पसंद करता है। पूरे दो दशक तक हमारे बॉलीवुड का हीरो एक ऐसा एंग्री यंग मैन रहा, जो सिस्टम से अकेले लड़ता था और अकेले ही गुनहगारों का पर्दाफाश भी कर देता था।

इसीलिए मैं एक बार फिर चुलबुल पांडे के बारे में सोच रहा हूं। मुझे कोई शक नहीं है कि दबंग किस तरह की फिल्म होगी। लेकिन मैं ऐसी फिल्मों को पसंद करता हूं, जिनमें कोई सिरफिरा किस्म का हीरो उतनी ही सिरफिरी किस्म की कहानी के साथ हमारे सामने आता है और परदे पर अजीबोगरीब हरकतें करते हुए दर्शकों का दिल जीत लेता है। आज सलमान से बेहतर इस काम को और कोई अंजाम नहीं दे सकता।

क्या मैं खुद कभी इस तरह की कोई फिल्म बनाऊंगा? शायद नहीं। क्या मैं आपको इस तरह की कोई फिल्म देखने का सुझाव दूंगा? कतई नहीं। लेकिन क्या मैं सीटियां बजाते, तालियां पीटते दीवाने प्रशंसकों के बीच किसी एकल ठाठिया टॉकीज में यह फिल्म देखने जाऊंगा? जी हां। फिल्म देखने के इस सबसे मजेदार अनुभव के लिए ही मैं पैसे खर्च करता हूं। यह मुझे अपने बचपन के दिनों की याद दिलाता है। यह मुझे उन फिल्मों की याद दिलाता है, जहां हमारी फिल्में निहायत ‘फिल्मी’ किस्म की हुआ करती थीं और हमारे फिल्मी हीरो कुछ भी कर सकते थे।

Sep 4, 2010

जानिए क्या होते हैं पिक्सल ?

आप जब भी किसी फोटो को देखते हैं तो लगता है कि वो पूरी तरह से एक ही एलीमेंटस से बनी हुई है लेकिन जनाब ऐसा नहीं है दरअसल जो भी पिक्चर या फोटो हम देखते है वो बहुत छोटे टुकड़ो या बिंदुओ से मिलकर बनी होती है जिसे पिक्सल कहा जाता है। कंप्यूटर से लेकर तमाम डिजिटल उपकरणों पर दिखने वाली तस्वीरें इन्ही पिक्सलों से मिलकर बनती हैं।


लेकिन अहम बात ये है कि पिक्सल किसी भी फोटो को मापने का पैमाना नहीं है। जैसा कि कई बार कैमरों पर पिक्सल्स इंच दिया जाता है। सीधे तौर पर इसे इस तरह समझा जा सकता है कि जिस फोटो में जितने ज्यादा पिक्सल होंगे वो फोटो उतनी ही ज्यादा स्पष्ट होगी। कंप्यूटर के मॉनीटर पर या टीवी स्क्रीन या कोई भी फोटो लाखों पिक्सल्स से मिलकर बनी होती है। हर एक पिक्सल आठ या उसके गुणक में रंग ग्रहण करता है। बिट को इसकी इकाई माना जाता है। अगर किसी पिक्सल में 24 बिट हैं तो वर अधिकतम 16 लाख रंगों को दिखा सकता है। माना जाता है कि पिक्सल ही किसी फोटो की सबसे छोटी इकाई होते हैं लेकिन ये पिक्सल भी कई छोटे तत्वों से मिलकर बने होते हैं। एक मॉनीटर का पिक्सल तीन रंगों के बिंदुओ से बने होते हैं ये रंग हैं ला, हरा और बैंगनी। ये तीनो रंग किसी पिक्सल में घुले मिले होते हैं। डिजिटल कैमरों के लिए मेगापिक्सल शब्द का इस्तेमाल किया जाता है जो पिक्सल से भी छोटी इकाई है। मेगापिक्सल्स कैमरों को बेहतर माना जाता है।