नई दिल्ली.सोनी टीवी पर शुरू हुए कौन बनेगा करोड़पति के चौथे संस्करण ने शानदार शुरूआती रेटिंग हासिल की है। एक मीडिया रिसर्च और टेलीविजन रेटिंग कम्पनी के आकलन के अनुसार केबीसी-4 ने सोमवार के दिन करीब 5 टीआरपी हासिल की है जो काफी अच्छी कही जा सकती है।
केबीसी-4 की यह शुरूआती रेटिंग पिछले कुछ समयावधि के दौरान शुरू हुए किसी भी रियलिटी शो से अधिक है। उदाहरण के लिए प्रियंका चोपड़ा के शो खतरों के खिलाड़ी-3 के पहले एपीसोड को 3.2 की रेटिंग मिली थी तो बिग बॉस-4 के शुरूआती एपिसोड को भी 3.6 की रेटिंग मिली थी।
हालाँकि बतौर होस्ट शाहरूख खान के साथ शुरू हुए केबीसी-3 को 5.3 की रेटिंग मिली थी, जो केबीसी-4 की शुरूआती रेटिंग से थोड़ी अधिक थी। केबीसी-4 ने शुरूआती सफलता अर्जित कर ली है और इससे नम्बर चार पर चल रहे सोनी को लाभ पहुँचने की सम्भावना है।
केबीसी-4 प्राइम टाइम पर यानी कि रात 9 बजे सोमवार से गुरूवार तक टेलीकास्ट होगा और इससे कलर्स के बिग बॉस-4 सहित स्टार प्लस और जी टीवी के धारावाहिकों को भी असर हो रहा है.केबीसी-4 के शुरू होने के बाद से बिग बॉस - 4 की रेटिंग गिर गई है.
Oct 15, 2010
Oct 2, 2010
जहीर ने लक्ष्मण से कहा था- बुजुर्ग हो गए हैं पोंटिंग, इसी पर भड़क गए थे कप्तान
नई दिल्ली. भारतीय ऑफ स्पिनर हरभजन सिंह ने खुलासा किया है कि किस बात पर पोंटिंग इतना भड़के थे। हुआ यह था कि गेंदबाज जहीर खान ने अपने साथी वीवीएस लक्ष्मण से कहा कि अब पोंटिंग बुजुर्ग दिखने लगे हैं। लेकिन पोंटिंग को लगा कि जहीर ने यह बात सीधे उनसे कही है, जिस पर उन्होंने बल्ला उठाकर जहीर को धमकाया। पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी अरुणलाल ने भी कहा कि जहीर वीवीएस लक्ष्मण से बात कह रहे थे और पोंटिंग को गलतफहमी हो गई।
हरभजन ने कहा कि दरअसल यह पूरा मामला पोंटिंग को हुई गलतफहमी के कारण हुआ। उनके 71 रन पर आउट होने के बाद सभी भारतीय खिलाड़ी जश्न मना रहे थे। इसी बीच जहीर ने यह टिप्पणी लक्ष्मण से चर्चा के दौरान की। और पोंटिंग यह जानने के लिए लौटे कि जहीर ने वास्तव में क्या कहा। आपको बता दें कि पोंटिंग अभी 36 साल के हैं।
पूर्व भारतीय खिलाड़ी और वर्तमान कमेंटेटर अरुणलाल ने भी इस प्रकरण को साफ करते हुए कहा कि जहीर रिकी पोंटिंग को नहीं बल्कि साथी खिलाड़ी वीवीएस लक्ष्मण से कुछ कह रहे थे। लेकिन पोंटिंग इसे गलत समझ बैठे और जहीर से उलझ पड़े।
शुक्रवार को मोहाली में खेले जा रहे भारत ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टेस्ट मैच के पहले दिन ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग और भारतीय गेंदबाज जहीर खान में बहस हो गई थी। अब खुलासा हुआ है कि जहीर, लक्ष्मण से बात कर रहे थे। इस पर आउट होकर मैदान से पवेलियन लौट रहे पोंटिंग वापस आए और जानना चाहा कि जहीर ने क्या कहा। इसके बाद उन्होंने धमकी भरे अंदाज में बल्ला भी दिखाया।
हरभजन ने कहा कि दरअसल यह पूरा मामला पोंटिंग को हुई गलतफहमी के कारण हुआ। उनके 71 रन पर आउट होने के बाद सभी भारतीय खिलाड़ी जश्न मना रहे थे। इसी बीच जहीर ने यह टिप्पणी लक्ष्मण से चर्चा के दौरान की। और पोंटिंग यह जानने के लिए लौटे कि जहीर ने वास्तव में क्या कहा। आपको बता दें कि पोंटिंग अभी 36 साल के हैं।
पूर्व भारतीय खिलाड़ी और वर्तमान कमेंटेटर अरुणलाल ने भी इस प्रकरण को साफ करते हुए कहा कि जहीर रिकी पोंटिंग को नहीं बल्कि साथी खिलाड़ी वीवीएस लक्ष्मण से कुछ कह रहे थे। लेकिन पोंटिंग इसे गलत समझ बैठे और जहीर से उलझ पड़े।
शुक्रवार को मोहाली में खेले जा रहे भारत ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टेस्ट मैच के पहले दिन ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग और भारतीय गेंदबाज जहीर खान में बहस हो गई थी। अब खुलासा हुआ है कि जहीर, लक्ष्मण से बात कर रहे थे। इस पर आउट होकर मैदान से पवेलियन लौट रहे पोंटिंग वापस आए और जानना चाहा कि जहीर ने क्या कहा। इसके बाद उन्होंने धमकी भरे अंदाज में बल्ला भी दिखाया।
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Oct 1, 2010
वायदा कारोबार क्या होता है?
आपने कभी किसी को कुछ देने का वादा तो किया ही होगा। यह वादा ही इस कारोबार का आधार है। मान लीजिए आपके
पास शेयर खरीदने के लिए पूरे पैसे नहीं हैं, मगर शेयर के दाम काफी नीचे चल रहे हैं। आप क्या करेंगे? आप शेयर बेचने वाले से वादा करते हैं कि कुछ पैसे अभी ले लो, बाकी कुछ दिनों बाद ले लेना। पूरा पैसा देकर, पूरे शेयर ले लूंगा। यही वादा कारोबार है।
आपने 100 शेयर खरीदे। कुल कीमत करीब 10 हजार रुपये है। आपने 10 या 15 फीसदी मार्जिन मनी शेयर बेचने वाले को दे दी। तय हुआ कि 30 दिन बाद आप बाकी रकम दे देंगे। आप जैसे ही पूरी रकम देंगे, शेयर आपके नाम हो जाएगा। इस तरह का कारोबार ही वायदा कारोबार कहलाता है। अब शेयरों के साथ उपभोक्ता वस्तुओं और अमेरिकी डॉलरों का भी वायदा कारोबार शुरू हो गया है। डॉलर का वायदा कारोबार शेयर बाजार में होता है, जबकि उपभोक्ता वस्तुओं का कमोडिटी एक्सचेंजों में।
वायदा का फायदा: पूरा पैसा न होने के बावजूद भी खरीदारी संभव है। इससे बाजार में मनी फ्लो बना रहता है, जिसे तकनीकी भाषा में लिक्विडिटी कहा जाता है। पैसे की कमी के कारण बाजार में कारोबार नहीं रुकता। प्लानिंग करने में आसानी होती है। शेयर अगर नीचे गिर रहे हैं, तो वायदा कारोबार काफी फायदेमंद होता है। आप निचले दामों पर शेयर खरीदकर बाद में बेचने की प्लानिंग कर सकते हैं। अगर आपको तीन माह बाद कारोबार या विदेश जाने के लिए डॉलर की जरूरत है, तो पहले से वायदा कारोबार के जरिए उसे बुक कर सकते हैं। उपभोक्ता वस्तुओं में भी ऐसा किया जा सकता है।
पास शेयर खरीदने के लिए पूरे पैसे नहीं हैं, मगर शेयर के दाम काफी नीचे चल रहे हैं। आप क्या करेंगे? आप शेयर बेचने वाले से वादा करते हैं कि कुछ पैसे अभी ले लो, बाकी कुछ दिनों बाद ले लेना। पूरा पैसा देकर, पूरे शेयर ले लूंगा। यही वादा कारोबार है।
आपने 100 शेयर खरीदे। कुल कीमत करीब 10 हजार रुपये है। आपने 10 या 15 फीसदी मार्जिन मनी शेयर बेचने वाले को दे दी। तय हुआ कि 30 दिन बाद आप बाकी रकम दे देंगे। आप जैसे ही पूरी रकम देंगे, शेयर आपके नाम हो जाएगा। इस तरह का कारोबार ही वायदा कारोबार कहलाता है। अब शेयरों के साथ उपभोक्ता वस्तुओं और अमेरिकी डॉलरों का भी वायदा कारोबार शुरू हो गया है। डॉलर का वायदा कारोबार शेयर बाजार में होता है, जबकि उपभोक्ता वस्तुओं का कमोडिटी एक्सचेंजों में।
वायदा का फायदा: पूरा पैसा न होने के बावजूद भी खरीदारी संभव है। इससे बाजार में मनी फ्लो बना रहता है, जिसे तकनीकी भाषा में लिक्विडिटी कहा जाता है। पैसे की कमी के कारण बाजार में कारोबार नहीं रुकता। प्लानिंग करने में आसानी होती है। शेयर अगर नीचे गिर रहे हैं, तो वायदा कारोबार काफी फायदेमंद होता है। आप निचले दामों पर शेयर खरीदकर बाद में बेचने की प्लानिंग कर सकते हैं। अगर आपको तीन माह बाद कारोबार या विदेश जाने के लिए डॉलर की जरूरत है, तो पहले से वायदा कारोबार के जरिए उसे बुक कर सकते हैं। उपभोक्ता वस्तुओं में भी ऐसा किया जा सकता है।
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लॉट क्या होता है और क्या होती है मार्जिन कॉल?
लॉट क्या होता है?
दरअसल नकद बाजार की तरह वायदा बाजार में कोई भी शेयर मनमानी संख्या में नहीं खरीदा जा सकता। एक्सचेंज यह तय करता है कि कौन सा शेयर कम से कम कितनी संख्या में खरीदा जा सकता है। इसी संख्या को लॉट कहते हैं। वायदा बाजार में कोई भी शेयर लॉट में ही खरीदा जाता है। वैसे तो इस बारे में कोई पक्का नियम नहीं है, लेकिन आम तौर पर एक लॉट शेयरों की कीमत 2 लाख रुपए के आसपास होती है। अभी हाल ही में एनएसई ने शेयरों के लॉट की समीक्षा की और लॉट में संख्या पहले के मुकाबले काफी कम की गई। इसका कारण यही था कि पिछले कुछ सालों की बढ़त के कारण एक-एक लॉट के शेयरों की कीमत 6-7 लाख रुपए तक पहुंच गई थी।
वायदा कारोबार में मार्जिन क्या होता है?
लॉट में शेयर खरीदना जाहिर है काफी महंगा होता है। इसलिए शेयर ब्रोकर अपने ग्राहकों को मार्जिन की सुविधा देते हैं। मार्जिन के तहत शेयरों की साख के लिहाज से एक खास प्रतिशत रकम निवेशक को देनी होती है, जबकि बाकी रकम ब्रोकर निवेशक को देता है। आम तौर पर निवेशकों को अलग-अलग शेयरों के लिहाज से 20-30 फीसदी मार्जिन रखना होता है, जबकि 70-80 फीसदी कर्ज ब्रोकर देता है।
लॉन्ग और शॉर्ट किसे कहते हैं?
लॉन्ग होना यानी कोई शेयर में खरीदारी करना और शॉर्ट करना यानी कोई शेयर आपके पास न हो, लेकिन ब्रोकर से कर्ज लेकर उसे बेचना।
मार्जिन कॉल क्या होती है?
मान लीजिए आपने 5,000 पर एक लॉट निफ्टी अप्रैल लॉन्ग किया। निफ्टी के एक लॉट में 50 इकाइयां होती हैं। यानी आपको पूरे लॉट के लिए 2,50,000 रुपए देने होंगे। अब आपका ब्रोकर आपको 30 फीसदी मार्जिन जमा करने को कहता है यानी आप 50 हजार रुपए जमा करते हैं। दो लाख रुपए ब्रोकर आपके पोजिशन पर आपको कर्ज देता है। अब बाजार गिरने लगा और निफ्टी अप्रैल पहुंच गया 4,000 हजार पर। यानी आपकी पोजिशन रह गई 2,00,000 रुपए की। अब यहां से अगर निफ्टी थोड़ा भी नीचे गया और आपने मार्जिन बढ़ाने से इंकार कर दिया, तो सौदा काटने के बाद भी घाटा ब्रोकर का होगा। ऐसे में जहां निफ्टी 4,100 से नीचे फिसलेगा, आपका ब्रोकर आपको तुरंत मार्जिन जमा कराने को कहेगा। अगर निफ्टी के 4,000 तक आने तक आप रकम नहीं जमा करा सके, तो वह 4,000 पहुंचते ही सौदा काट देगा ताकि उसे दिए गए कर्ज की रकम वापस मिल जाए।
दरअसल नकद बाजार की तरह वायदा बाजार में कोई भी शेयर मनमानी संख्या में नहीं खरीदा जा सकता। एक्सचेंज यह तय करता है कि कौन सा शेयर कम से कम कितनी संख्या में खरीदा जा सकता है। इसी संख्या को लॉट कहते हैं। वायदा बाजार में कोई भी शेयर लॉट में ही खरीदा जाता है। वैसे तो इस बारे में कोई पक्का नियम नहीं है, लेकिन आम तौर पर एक लॉट शेयरों की कीमत 2 लाख रुपए के आसपास होती है। अभी हाल ही में एनएसई ने शेयरों के लॉट की समीक्षा की और लॉट में संख्या पहले के मुकाबले काफी कम की गई। इसका कारण यही था कि पिछले कुछ सालों की बढ़त के कारण एक-एक लॉट के शेयरों की कीमत 6-7 लाख रुपए तक पहुंच गई थी।
वायदा कारोबार में मार्जिन क्या होता है?
लॉट में शेयर खरीदना जाहिर है काफी महंगा होता है। इसलिए शेयर ब्रोकर अपने ग्राहकों को मार्जिन की सुविधा देते हैं। मार्जिन के तहत शेयरों की साख के लिहाज से एक खास प्रतिशत रकम निवेशक को देनी होती है, जबकि बाकी रकम ब्रोकर निवेशक को देता है। आम तौर पर निवेशकों को अलग-अलग शेयरों के लिहाज से 20-30 फीसदी मार्जिन रखना होता है, जबकि 70-80 फीसदी कर्ज ब्रोकर देता है।
लॉन्ग और शॉर्ट किसे कहते हैं?
लॉन्ग होना यानी कोई शेयर में खरीदारी करना और शॉर्ट करना यानी कोई शेयर आपके पास न हो, लेकिन ब्रोकर से कर्ज लेकर उसे बेचना।
मार्जिन कॉल क्या होती है?
मान लीजिए आपने 5,000 पर एक लॉट निफ्टी अप्रैल लॉन्ग किया। निफ्टी के एक लॉट में 50 इकाइयां होती हैं। यानी आपको पूरे लॉट के लिए 2,50,000 रुपए देने होंगे। अब आपका ब्रोकर आपको 30 फीसदी मार्जिन जमा करने को कहता है यानी आप 50 हजार रुपए जमा करते हैं। दो लाख रुपए ब्रोकर आपके पोजिशन पर आपको कर्ज देता है। अब बाजार गिरने लगा और निफ्टी अप्रैल पहुंच गया 4,000 हजार पर। यानी आपकी पोजिशन रह गई 2,00,000 रुपए की। अब यहां से अगर निफ्टी थोड़ा भी नीचे गया और आपने मार्जिन बढ़ाने से इंकार कर दिया, तो सौदा काटने के बाद भी घाटा ब्रोकर का होगा। ऐसे में जहां निफ्टी 4,100 से नीचे फिसलेगा, आपका ब्रोकर आपको तुरंत मार्जिन जमा कराने को कहेगा। अगर निफ्टी के 4,000 तक आने तक आप रकम नहीं जमा करा सके, तो वह 4,000 पहुंचते ही सौदा काट देगा ताकि उसे दिए गए कर्ज की रकम वापस मिल जाए।
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बायबैक का फंडा
किसी कंपनी के अपने शेयर दोबारा खरीदने के कदम को बायबैक कहा जाता है। ऐसा कर कंपनी खुले बाजार में उपलब्ध अपने शेयरों की संख्या घटाती है। इस कदम से आय प्रति शेयर (ईपीएस) में इजाफा होने के अलावा कंपनी की संपत्ति पर मिलने वाला रिटर्न भी बढ़ता है।
इनके असर से कंपनी की बैलेंस शीट भी बेहतर होती है। निवेशक के लिए बायबैक का मतलब है, कंपनी में उसकी हिस्सेदारी बढ़ना। शेयर बायबैक करने को कभी-कभार शेयर खरीदना कहा जाता है और आम तौर पर इसे शेयर की कीमत में उछाल का संकेत माना जाता है।
कैसा होता है बायबैक?
कंपनी टेंडर ऑफर या खुले बाजार में बायबैक से अपने शेयर वापस खरीद सकती है। पहले तरीके में कंपनी शेयरों की उन संख्या से जुड़े ब्योरे के साथ टेंडर ऑफर जारी करती है जिन्हें खरीदने की उसकी योजना है और प्राइस रेंज का संकेत देती है। ऑफर को स्वीकार करने में दिलचस्पी रखने वाले निवेशक को एक आवेदन भरकर जमा कराना होता है, जिसमें इसकी जानकारी होती है कि वह कितने शेयर टेंडर करना चाहता है और वांछित कीमत क्या है।
इस फॉर्म को कंपनी के पास वापस भेजना होता है। ज्यादातर मामलों में टेंडर ऑफर बायबैक की कीमत ओपन माकेर्ट में शेयर के दाम से ज्यादा होती है। सेबी के दिशा-निर्देशों के मुताबिक अगर कंपनी आपके शेयरों को स्वीकार करती है तो उसे आपको ऑफर क्लोज होने के 15 दिन के भीतर जानकारी देनी होगी। कंपनी के समक्ष दूसरा रूट यह होगा कि वह सीधे बाजार से धीरे-धीरे शेयरों को खरीदे।
कहां से मिली जानकारी?
बायबैक से जुड़ी तमाम जानकारी स्टॉक एक्सचेंज से मिल सकती है क्योंकि कंपनियों को ऐसे प्रस्तावों के बारे में सूचित करने की जरूरत होती है।
कंपनियां क्यों चुन रही है बायबैक का रास्ता?
इसकी कई वजह हो सकती हैं। कभी-कभी कंपनियां तब बायबैक में शामिल होती हैं जब उन्हें लगता है कि बाजार में शेयरों की कीमत काफी टूट रही है। दूसरे हालात में ज्यादा नकदी का इस्तेमाल कर ऐसा किया जा सकता है। हालांकि ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिखता कि कंपनी के टेकओवर से बचने के लिए ऐसा किया गया हो।
इनके असर से कंपनी की बैलेंस शीट भी बेहतर होती है। निवेशक के लिए बायबैक का मतलब है, कंपनी में उसकी हिस्सेदारी बढ़ना। शेयर बायबैक करने को कभी-कभार शेयर खरीदना कहा जाता है और आम तौर पर इसे शेयर की कीमत में उछाल का संकेत माना जाता है।
कैसा होता है बायबैक?
कंपनी टेंडर ऑफर या खुले बाजार में बायबैक से अपने शेयर वापस खरीद सकती है। पहले तरीके में कंपनी शेयरों की उन संख्या से जुड़े ब्योरे के साथ टेंडर ऑफर जारी करती है जिन्हें खरीदने की उसकी योजना है और प्राइस रेंज का संकेत देती है। ऑफर को स्वीकार करने में दिलचस्पी रखने वाले निवेशक को एक आवेदन भरकर जमा कराना होता है, जिसमें इसकी जानकारी होती है कि वह कितने शेयर टेंडर करना चाहता है और वांछित कीमत क्या है।
इस फॉर्म को कंपनी के पास वापस भेजना होता है। ज्यादातर मामलों में टेंडर ऑफर बायबैक की कीमत ओपन माकेर्ट में शेयर के दाम से ज्यादा होती है। सेबी के दिशा-निर्देशों के मुताबिक अगर कंपनी आपके शेयरों को स्वीकार करती है तो उसे आपको ऑफर क्लोज होने के 15 दिन के भीतर जानकारी देनी होगी। कंपनी के समक्ष दूसरा रूट यह होगा कि वह सीधे बाजार से धीरे-धीरे शेयरों को खरीदे।
कहां से मिली जानकारी?
बायबैक से जुड़ी तमाम जानकारी स्टॉक एक्सचेंज से मिल सकती है क्योंकि कंपनियों को ऐसे प्रस्तावों के बारे में सूचित करने की जरूरत होती है।
कंपनियां क्यों चुन रही है बायबैक का रास्ता?
इसकी कई वजह हो सकती हैं। कभी-कभी कंपनियां तब बायबैक में शामिल होती हैं जब उन्हें लगता है कि बाजार में शेयरों की कीमत काफी टूट रही है। दूसरे हालात में ज्यादा नकदी का इस्तेमाल कर ऐसा किया जा सकता है। हालांकि ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिखता कि कंपनी के टेकओवर से बचने के लिए ऐसा किया गया हो।
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