वॉशिंगटन. एएए, बीबीबी, सीए, सीसीसी, सी, डी देखने और सुनने में स्कूली बच्चों के रिपोर्ट कार्ड के ग्रेड की तरह लगते हैं। असल में ये भी एक तरह का मूल्यांकन ही हैं। लेकिन, यह स्कूली बच्चों को नहीं मिलता। यह देशों, बड़ी कंपनियों और बड़े पैमाने पर उधार लेने वालों का मूल्यांकन करती है। इस मूल्यांकन पर यह तय होता है कि उधार लेने वाले की माली हालत कैसी है? उसके उधार लौटाने की क्षमता कितनी है? ऐसे में अच्छा ग्रेड मिलने का सीधा मतलब है कम ब्याज पर आसानी से कर्ज लेने की पात्रता हासिल करना। वहीं, खराब मूल्यांकन मिलने पर ऊंची दरों पर बमुश्किल कर्ज मिलता है।
ये हैं बड़े खिलाड़ी : इस समय रेटिंग की दुनिया में तीन बड़े नाम हैं। स्टैण्डर्ड एंड पूअर, मूडीज और फिच। इनमें सबसे पुरानी एजेंसी है स्टैण्डर्ड एंड पूअर। इसकी नींव १८६० में हेनरी पूअर ने रखी थी।पूअर ने अमरीका में नहरों और रेल नेटवर्क के विकास का इतिहास लिखा था। १९०६ में गैर रेल कंपनियों के वित्त की जांच शुरू होने पर स्टैण्डर्ड स्टैटस्टिक ब्यूरो की स्थापना हुई। इन दोनों कंपनियों का १९४० के दशक में विलय हो गया। १९०९ में जॉन मूडी ने मूडीज की स्थापना की। मूडीज ने भी रेल वित्त की साख का विश्लेषण और उनका मूल्यांकन करना शुरू किया। आज दुनिया के रेटिंग व्यवसाय का करीब ४० फीसदी कारोबार इन्हीं दो कंपनियों के पास हैं। फिच इन्हीं दोनों कंपनियों का छोटा रूप है। इसके अलावा भी कई कंपनियां हैं। हालांकि उनके रेटिंग को इतना महत्व नहीं दिया जाता।
महत्व का कारण : स्टैण्डर्ड एंड पूअर, मूडीज और फिच की ग्रेडिंग का इतना महत्वपूर्ण होने का सबसे अहम कारण है अमरीका की वित्तीय निगरानी करने वाली एजेंसी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन।
१९७५ में इस कमीशन ने इन तीन कंपनियों को मान्यता प्राप्त सांख्यिकीय रेटिंग एजेंसी घोषित किया था। इससे उधार लेने की इच्छुक कंपनियों और देशों का जीवन आसान हो गया। इन एजेंसियों ने उनकी वित्तीय हालत और साख का आकलन कर उन्हें रेटिंग देना शुरू कर दिया। इन रेटिंग एजेंसियों की ताकत तब और बढ़ गई, जब सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन ने आदेश दिया कि सरकारी नियंत्रण वाले निवेश संस्थान केवल ऊंची रेटिंग वाली कंपनियों में ही निवेश करें।
कुछ निवेशकों की रेटिंग गिरने की स्थिति में उनमें किया गया निवेश बेचने का भी निर्देश दिया। इसके कारण जिन कंपनियों या देशों की रेटिंग नीचे गिरती है, उनके लिए बहुत बड़ी दिक्कत खड़ी हो जाती है।
ऐसे में बड़ी निवेश कंपनियां जब रेटिंग कम होने पर अपने निवेशों को बड़े पैमाने पर निकालना या बेचना शुरू करती है तो उनके बांड की कीमत बाज़ार में और ज्यादा गिर जाती है। इससे उनको मिलने वाले कर्ज पर ब्याज और ज्यादा बढ़ जाता है।
क्या है मतलब?
> एएए : सबसे मजबूत सबसे बेहतर
> एए : वादों को पूरा करने में सक्षम
> ए : वादों को पूरा करने की क्षमता पर विपरीत परिस्थितियों का पड़ सकता है असर
> बीबीबी : वादों को पूरा करने की क्षमता, लेकिन विपरीत परिस्थितियों से आर्थिक हालात प्रभावित होने की ज्यादा गुंजाइश।
> सीसी : वर्तमान में बहुत कमजोर
> डी : उधार लौटाने में असफल
Aug 7, 2011
कहीं नहीं देखी ऐसी दीवानगी-दिव्या bharati
पांच अप्रैल, 1993 को मात्र उन्नीस वर्ष की आयु में चौदह हिंदी और सात दक्षिण भारतीय फिल्में पूरी करके और एक दर्जन फिल्मों के लिए अनुबंधित दिव्या भारती की मृत्यु हो गई। वर्सोवा, मुंबई स्थित पांचवें माले पर मौजूद अपने फ्लैट की खिड़की से फिसलकर गिरीं और मृत पाई गईं। उस समय उनके घर कुछ अंतरंग मित्र मौजूद थे। पुलिस ने गहन तहकीकात के बाद उसे दुर्घटना के रूप में दर्ज करके फाइल बंद कर दी।
मृत्यु के समय अनुबंधित फिल्मों में से एक थी ‘लाडला’, जिसे बाद में श्रीदेवी के साथ बनाया गया। दिव्या भारती कुछ हद तक श्रीदेवी से मिलती-जुलती थीं, पर उनके अभिनय में एक बेबाक सा चुलबुलापन नजर आता था, जो दशकों पूर्व की बिंदास गीताबाली की याद दिलाता था।
शबनम कपूर की ‘दीवाना’ (१९९२) में दिव्या के नायक ऋषि कपूर और कथा के अनुसार उनकी तथाकथित मृत्यु के बाद युवा विधवा का दिल जीतने वाले खिलंदड़ पात्र को शाहरुख ने अभिनीत किया था और इसी भूमिका में अपनी ऊर्जा और भावना की तीव्रता के कारण शाहरुख खान को खूब सराहा गया। दिव्या और शाहरुख पर फिल्मांकित किए गए गीत- ‘ये कैसी दीवानगी.’ में दिव्या और शाहरुख खान के बीच समान गति से प्रवाहित ऊर्जा के कारण उत्पन्न प्रेम का रसायन पर्दे पर जादू सा जगा देता था।
अगर दिव्या जीवित रहतीं, तो उनकी और शाहरुख की जोड़ी प्रेम फिल्मों में भावना की तीव्रता भर देती। मात्र सोलह की उम्र में वेंकटेश के साथ उसने सफल ‘बोबिला राजा’ की। दक्षिण की दो सफलताओं पर सवार दिव्या को मुंबई के निर्माताओं ने घेर लिया। माता-पिता से छुप उसने निर्माता साजिद नाडियादवाला से प्रेम विवाह किया और सफलता के नशे में प्रेम ने एक बदहवासी, दीवानगी पैदा की।
ज्ञातव्य है कि वह दौर फिल्म उद्योग में अपराध जगत के दबदबे का दौर था। और उन दिनों यह अफवाह थी कि दिव्या पर भी अनेक दबाव थे, परंतु वे मंदाकिनी की तरह डिगी नहीं और पांच अप्रैल की रात उन्हें सजा दी गई थी। पुलिस तहकीकात में यह बेबुनियाद पाया गया।
बहरहाल, यह भी संभावना है कि धन और ख्याति की वर्षा यह मध्यम वर्ग परिवार की मामूली सी शिक्षित लड़की साध नहीं पाई और हर समय वे तरंग में रहती थीं। उस रात शायद उसने ज्यादा पी ली या ड्रग्स के साथ शराब मिला ली। यह दुखद है कि इतनी सुंदर, स्वस्थ प्रतिभाशाली कलाकार जरा सी अभिव्यक्त होकर चली गई, जैसे पूर्णिमा की रात के पहले पहर ही बदलियां छा जाएं।
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1970 से अब तक वायुसेना के 999 विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए
नई दिल्ली। वायुसेना के 999 विमान 1970 के बाद से दुर्घटना के शिकार हो चुके हैं। इनमें से 34 फीसदी दुर्घटना पायलटों की गलती से हुई है। यह जानकारी रक्षा मंत्रालय ने एक संसदीय समिति को दी है।
यदि मिग21 विमान की ताजा दुर्घटना को भी शामिल कर लिया जाए, तो आंकड़ा 1000 हो जाता है।
वायुसेना के 946 मिग विमानों में से आधे से अधिक अब तक दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं।
समिति द्वारा बजटीय मांग से सम्बंधित संसद में बुधवार को पेश की गई एक रिपोर्ट में कहा गया, "मंत्रालय ने एक लिखित जवाब में 1970 से अब तक हुई विमान दुर्घटनाओं का ब्योरा दिया है। इसके मुताबिक अक तक 999 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुक हैं।"
उप्र: वायुसेना का जगुआर दुर्घटनाग्रस्त, दो की मौत
इन 999 मामलों में से 12 की अभी जांच चल रही है, जबकि शेष 987 में से 388 मामले में चालक दल की गलती सामने आई है।
राजस्थान में हुए मिग लड़ाकू विमान की दुर्घटना होने और पायलट के मारे जाने की घटना के अगले ही दिन रक्षा संसदीय रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि मिग बेड़े के आधे से अधिक विमान हादसों में स्वाहा हो चुके हैं।
रक्षा मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति की आज संसद में पेश रिपोर्ट में मंत्रालय के हवाले से यह स्वीकार किया गया है कि मिग विमानों की ज्यादातर दुर्घटनाएं पुरानी टेक्नोलाजी की वजह से हुई हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि पुरानी पड़ चुकी टेक्नोलाजी के कारण मिग 21 और मिग 27 के इंजन में खराबी आने की घटनाएं आम हैं।
संसदीय समिति की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इन विमानों की आपूर्ति करने वाले देश रूस ने भी इन्हें अपनी सेवा से बाहर कर दिया है और दुनिया में अकेली भारतीय वायुसेना ही है, जो इन विमानों पर अपना दावं लगाए हुए है।
समिति ने नए विमानों की खरीदारी की प्रक्रिया को योजनाबद्ध ढंग से पूरा करने की वकालत करते हुए मंत्रालय से कहा है कि मौजूदा विमानों के जीवनकाल को बढ़ाने तथा पायलटों की ट्रेनिंग पर नए सिरे से विचार किया जाए और मिग विमानों को जितना जल्दी संभव हो, रिटायर कर दिया जाए।
बीकानेर में मिग-21 दुर्घटनाग्रस्त, पायलट की मौत
मानवीय गलतियों में सुधार के पहलू के बारे में संसदीय समिति को बताया गया कि पायलटों की ट्रेनिंग के लिए समुचित ट्रेनर विमानों की उपलब्धता की कमी चिंता का विषय है।
इस समय वायुसेना के प्रशिक्षण विमानों के बेड़े में 114 एचपीटी, 96 किरण एमके-वन ए, 41 किरण एके-दो, 42 हॉक, 35 चेतक, 19 डोर्नियर, आठ एएन-32 परिवहन विमान और छह एवरो विमान हैं। अधिकांश ट्रेनरों में एचपीटी और किरण मार्क-1 एवं मार्क दो विमान हैं जिन्हें बदला जा रहा है।
यदि मिग21 विमान की ताजा दुर्घटना को भी शामिल कर लिया जाए, तो आंकड़ा 1000 हो जाता है।
वायुसेना के 946 मिग विमानों में से आधे से अधिक अब तक दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं।
समिति द्वारा बजटीय मांग से सम्बंधित संसद में बुधवार को पेश की गई एक रिपोर्ट में कहा गया, "मंत्रालय ने एक लिखित जवाब में 1970 से अब तक हुई विमान दुर्घटनाओं का ब्योरा दिया है। इसके मुताबिक अक तक 999 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुक हैं।"
उप्र: वायुसेना का जगुआर दुर्घटनाग्रस्त, दो की मौत
इन 999 मामलों में से 12 की अभी जांच चल रही है, जबकि शेष 987 में से 388 मामले में चालक दल की गलती सामने आई है।
राजस्थान में हुए मिग लड़ाकू विमान की दुर्घटना होने और पायलट के मारे जाने की घटना के अगले ही दिन रक्षा संसदीय रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि मिग बेड़े के आधे से अधिक विमान हादसों में स्वाहा हो चुके हैं।
रक्षा मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति की आज संसद में पेश रिपोर्ट में मंत्रालय के हवाले से यह स्वीकार किया गया है कि मिग विमानों की ज्यादातर दुर्घटनाएं पुरानी टेक्नोलाजी की वजह से हुई हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि पुरानी पड़ चुकी टेक्नोलाजी के कारण मिग 21 और मिग 27 के इंजन में खराबी आने की घटनाएं आम हैं।
संसदीय समिति की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इन विमानों की आपूर्ति करने वाले देश रूस ने भी इन्हें अपनी सेवा से बाहर कर दिया है और दुनिया में अकेली भारतीय वायुसेना ही है, जो इन विमानों पर अपना दावं लगाए हुए है।
समिति ने नए विमानों की खरीदारी की प्रक्रिया को योजनाबद्ध ढंग से पूरा करने की वकालत करते हुए मंत्रालय से कहा है कि मौजूदा विमानों के जीवनकाल को बढ़ाने तथा पायलटों की ट्रेनिंग पर नए सिरे से विचार किया जाए और मिग विमानों को जितना जल्दी संभव हो, रिटायर कर दिया जाए।
बीकानेर में मिग-21 दुर्घटनाग्रस्त, पायलट की मौत
मानवीय गलतियों में सुधार के पहलू के बारे में संसदीय समिति को बताया गया कि पायलटों की ट्रेनिंग के लिए समुचित ट्रेनर विमानों की उपलब्धता की कमी चिंता का विषय है।
इस समय वायुसेना के प्रशिक्षण विमानों के बेड़े में 114 एचपीटी, 96 किरण एमके-वन ए, 41 किरण एके-दो, 42 हॉक, 35 चेतक, 19 डोर्नियर, आठ एएन-32 परिवहन विमान और छह एवरो विमान हैं। अधिकांश ट्रेनरों में एचपीटी और किरण मार्क-1 एवं मार्क दो विमान हैं जिन्हें बदला जा रहा है।
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‘जूनो’ चला ‘ज्यूपिटर से मिलने, चार साल बाद पहुंचेगा
केप केनवेरल। सौरमंडल के अध्ययन के लिए विकसित किया गया अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (नासा) का खोजी यान ‘जूनो’ अपनी पांच साल की यात्रा के दौरान लगभग सोलह हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बृहस्पति ग्रह तक की टोह लेगा। यह अंतरिक्षयान मानव द्वारा निर्मित सबसे तेज चलने वाली मशीन है।
आधिकारिक सूत्रों ने यहां बताया कि चार टन वजनी जूनो भारतीय समयानुसार रात नौ बजकर चार मिनट पर एटलस-5 रॉकेट से प्रक्षेपित किया जाएगा। इस रॉकेट पर पांच बूस्टर इंजन लगे हुए हैं और नासा के किसी भी मानवरहित अंतरिक्ष मिशन के लिए इसे बेहद दमदार समझा जाता है। इस अंतरिक्ष यान का नाम रोमन मिथकीय देवता ‘ज्यूपिटर’ की पत्नी ‘जूनो’ के नाम पर रखा गया है। ज्यूपिटर को ही बृहस्पति के नाम से भी जाना जाता है।
इस अंतरिक्षयान के जरिए तीन छोटी मूर्तियों को भी अंतरिक्ष में भेजा जा रहा है। इसमें ‘ज्यूपिटर देवता’, उसकी पत्नी ‘जूनो’ और इस ग्रह को पहली बार टेलिस्कोप के जरिए ढूंढने वाले इतालवी खगोलशास्त्री ‘गैलेलियो गैलिली’ की मूर्तियां शामिल हैं।
गुरु के लिए रवाना हो रहा है पहला अंतरिक्षयान ‘जूनो’!
जूनो बृहस्पति ग्रह पर जानेवाला विश्व का पहला ऐसा खोजी यान है जो सौर ऊर्जा से संचालित है। चूंकि बृहस्पति ग्रह को मिलने वाली सौर ऊर्जा पृथ्वी के मुकाबले 25 फिसदी कम है, इसलिए इस यान का निर्माण कुछ इस तरह से किया गया है कि यह कम सौर ऊर्जा से भी अपनी आवश्यकतानुसार विद्युत ऊर्जा का निर्माण कर सके। खुले अंतरिक्ष में सूर्य से निकलने वाले विकिरण से बचाव का कोई उपाय नहीं है और इससे किसी भी अंतरिक्षयान के सोलर सेल और अन्य उपकरण आसानी से नष्ट हो सकते हैं। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर जूनो के सोलर सेल इस तरह से बनाए गए हैं कि ये सौर-विकिरण को 50 फिसदी अधिक समय तक झेल पाने में सक्षम हैं।
जूनो बृहस्पति ग्रह की अपनी दो अरब 80 करोड़ किलोमीटर लंबी यात्रा को पांच बरस में पूरा करने के बाद वर्ष 2016 में बृहस्पति की कक्षा में पहुंचेगा। इसके बाद यह उसकी परिक्रमा कर आंकड़े जुटाएगा। यह बृहस्पति की ध्रुवीय कक्षा में स्थापित होने वाला पहला अंतरिक्षयान होगा। एक वर्ष तक बृहस्पति का अध्ययन करने के बाद इसका मिशन पूरा हो जाएगा और यह 2017 में बृहस्पति की सतह पर गिरकर नष्ट हो जाएगा।
जूनो अंतरिक्षयान अपने इस मिशन के दौरान अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों से लैस होगा। इस मिशन के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी से जुड़े देशों इटली, बेल्जियम और फ्रांस ने भी मदद दी है। यान में इस प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं जो बृहस्पति ग्रह के रोजमर्रा के घटनाक्रम का पता लगाने के अलावा उसके अंतर को खंगालने का भी प्रयत्न करेंगे।
इस मिशन के दो प्रमुख उद्देश्यों में बृहस्पति पर पानी की मौजूदगी का पता लगाना और उसकी सतह के बारे में अधिक जानकारी जुटाना होगा। जूनो यह पता लगाने की भी कोशिश करेगा कि क्या बृहस्पति की आंतरिक संरचना ठोस पदार्थों से मिल कर बनी है अथवा वह गैस रूप में है।
इस मिशन के जरिए वैज्ञानिक बृहस्पति के उस चुंबकीय क्षेत्र का पता लगाने का भी प्रयत्न करेंगे जो पृथ्वी के गुरुत्वबल के मुकाबले 20 हजार गुना अधिक शक्तिशाली है। बृहस्पति का अति शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र अपने आस-पास से गुजरती किसी भी बड़ी उल्का या क्षुद्र ग्रह को आसानी से अपने अंदर समा लेता है। इस तरह से बृहस्पति कई मायनों में अंतरिक्ष की बड़ी चट्टानों से पृथ्वी की रक्षा भी करता है।
अपने अभियान के दौरान जूनो पिछले 300 वर्षों से बृहस्पति की सतह पर चल रहे भीषण तूफानों के बारे में भी पता लगाने की कोशिश करेगा। धरती से देखने पर यह तूफ्ना बृहस्पति की सतह पर एक बड़े लाल धब्बे के रूप में दिखता है ।अंग्रेज खगोलशास्त्री राबर्ट हुक ने वर्ष 1664 में पहली बार इसका पता लगाया था।
उल्लेखनीय है कि नासा ने 1973 में ‘पायोनियर’ अंतरिक्षयान के जरिए बृहस्पति ग्रह के शोध का आगाज किया था। इसके बाद के तीन दशकों में वायजर, उल्येसिस और कैसिनी यानों ने भी इस ग्रह के वातावरण का जायजा लिया।
प्लूटो क्षुद्र ग्रह के अध्ययन के लिए जानेवाले नासा के अंतरिक्ष यान ‘न्यू होराइजन्स’ ने 2007 में आवश्यक गति प्राप्त करने के लिए इस ग्रह का चक्कर लगाया था।
जूनो के बाद नासा की ‘यूरोपा जूपिटर सिस्टम मिशन’ को 2020 में वहां भेजने की योजना है, जो बृहस्पति के तीन बड़े चंद्रमाओं यूरोपा, गैनिमेड और कैलिस्टो की बर्फीली सतहों का अध्ययन कर वहां पानी होने की संभावनाओं की तलाश करेगा।
आधिकारिक सूत्रों ने यहां बताया कि चार टन वजनी जूनो भारतीय समयानुसार रात नौ बजकर चार मिनट पर एटलस-5 रॉकेट से प्रक्षेपित किया जाएगा। इस रॉकेट पर पांच बूस्टर इंजन लगे हुए हैं और नासा के किसी भी मानवरहित अंतरिक्ष मिशन के लिए इसे बेहद दमदार समझा जाता है। इस अंतरिक्ष यान का नाम रोमन मिथकीय देवता ‘ज्यूपिटर’ की पत्नी ‘जूनो’ के नाम पर रखा गया है। ज्यूपिटर को ही बृहस्पति के नाम से भी जाना जाता है।
इस अंतरिक्षयान के जरिए तीन छोटी मूर्तियों को भी अंतरिक्ष में भेजा जा रहा है। इसमें ‘ज्यूपिटर देवता’, उसकी पत्नी ‘जूनो’ और इस ग्रह को पहली बार टेलिस्कोप के जरिए ढूंढने वाले इतालवी खगोलशास्त्री ‘गैलेलियो गैलिली’ की मूर्तियां शामिल हैं।
गुरु के लिए रवाना हो रहा है पहला अंतरिक्षयान ‘जूनो’!
जूनो बृहस्पति ग्रह पर जानेवाला विश्व का पहला ऐसा खोजी यान है जो सौर ऊर्जा से संचालित है। चूंकि बृहस्पति ग्रह को मिलने वाली सौर ऊर्जा पृथ्वी के मुकाबले 25 फिसदी कम है, इसलिए इस यान का निर्माण कुछ इस तरह से किया गया है कि यह कम सौर ऊर्जा से भी अपनी आवश्यकतानुसार विद्युत ऊर्जा का निर्माण कर सके। खुले अंतरिक्ष में सूर्य से निकलने वाले विकिरण से बचाव का कोई उपाय नहीं है और इससे किसी भी अंतरिक्षयान के सोलर सेल और अन्य उपकरण आसानी से नष्ट हो सकते हैं। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर जूनो के सोलर सेल इस तरह से बनाए गए हैं कि ये सौर-विकिरण को 50 फिसदी अधिक समय तक झेल पाने में सक्षम हैं।
जूनो बृहस्पति ग्रह की अपनी दो अरब 80 करोड़ किलोमीटर लंबी यात्रा को पांच बरस में पूरा करने के बाद वर्ष 2016 में बृहस्पति की कक्षा में पहुंचेगा। इसके बाद यह उसकी परिक्रमा कर आंकड़े जुटाएगा। यह बृहस्पति की ध्रुवीय कक्षा में स्थापित होने वाला पहला अंतरिक्षयान होगा। एक वर्ष तक बृहस्पति का अध्ययन करने के बाद इसका मिशन पूरा हो जाएगा और यह 2017 में बृहस्पति की सतह पर गिरकर नष्ट हो जाएगा।
जूनो अंतरिक्षयान अपने इस मिशन के दौरान अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों से लैस होगा। इस मिशन के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी से जुड़े देशों इटली, बेल्जियम और फ्रांस ने भी मदद दी है। यान में इस प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं जो बृहस्पति ग्रह के रोजमर्रा के घटनाक्रम का पता लगाने के अलावा उसके अंतर को खंगालने का भी प्रयत्न करेंगे।
इस मिशन के दो प्रमुख उद्देश्यों में बृहस्पति पर पानी की मौजूदगी का पता लगाना और उसकी सतह के बारे में अधिक जानकारी जुटाना होगा। जूनो यह पता लगाने की भी कोशिश करेगा कि क्या बृहस्पति की आंतरिक संरचना ठोस पदार्थों से मिल कर बनी है अथवा वह गैस रूप में है।
इस मिशन के जरिए वैज्ञानिक बृहस्पति के उस चुंबकीय क्षेत्र का पता लगाने का भी प्रयत्न करेंगे जो पृथ्वी के गुरुत्वबल के मुकाबले 20 हजार गुना अधिक शक्तिशाली है। बृहस्पति का अति शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र अपने आस-पास से गुजरती किसी भी बड़ी उल्का या क्षुद्र ग्रह को आसानी से अपने अंदर समा लेता है। इस तरह से बृहस्पति कई मायनों में अंतरिक्ष की बड़ी चट्टानों से पृथ्वी की रक्षा भी करता है।
अपने अभियान के दौरान जूनो पिछले 300 वर्षों से बृहस्पति की सतह पर चल रहे भीषण तूफानों के बारे में भी पता लगाने की कोशिश करेगा। धरती से देखने पर यह तूफ्ना बृहस्पति की सतह पर एक बड़े लाल धब्बे के रूप में दिखता है ।अंग्रेज खगोलशास्त्री राबर्ट हुक ने वर्ष 1664 में पहली बार इसका पता लगाया था।
उल्लेखनीय है कि नासा ने 1973 में ‘पायोनियर’ अंतरिक्षयान के जरिए बृहस्पति ग्रह के शोध का आगाज किया था। इसके बाद के तीन दशकों में वायजर, उल्येसिस और कैसिनी यानों ने भी इस ग्रह के वातावरण का जायजा लिया।
प्लूटो क्षुद्र ग्रह के अध्ययन के लिए जानेवाले नासा के अंतरिक्ष यान ‘न्यू होराइजन्स’ ने 2007 में आवश्यक गति प्राप्त करने के लिए इस ग्रह का चक्कर लगाया था।
जूनो के बाद नासा की ‘यूरोपा जूपिटर सिस्टम मिशन’ को 2020 में वहां भेजने की योजना है, जो बृहस्पति के तीन बड़े चंद्रमाओं यूरोपा, गैनिमेड और कैलिस्टो की बर्फीली सतहों का अध्ययन कर वहां पानी होने की संभावनाओं की तलाश करेगा।
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Jun 19, 2011
आईपैड एक तरह का टेबलेट कंप्यूटर है जिसे अमेरिकी कंपनी ऐप्पल ने बनाया है यह आकर में लैपटप से छोटा और स्मार्टफोन से बड़ा होता है. यह मूल रुप से ऑडियो-वीडियो मीडिया खासकर ई बुक्स वगैरह के लिए बेहतर है। उसके अलावा यह फिल्में देखने, गेम्स खेलने और वेब कंटेंट के लिए उपयोगी होता है।आईफोन और आईपॉड की तरह यह मल्टीटच डिस्पले नियंत्रित होता है। इसके पहले टेबलेट कंप्यूटरों में यह सुविधा नहीं होती थी।ऐप्पल ने पहला आईपैड 2010 में रिलीज किया था लेकिन महज 80 दिनों में उसने तीस लाख आईपैड बेच दिए थे।
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