नई दिल्ली। वायुसेना के 999 विमान 1970 के बाद से दुर्घटना के शिकार हो चुके हैं। इनमें से 34 फीसदी दुर्घटना पायलटों की गलती से हुई है। यह जानकारी रक्षा मंत्रालय ने एक संसदीय समिति को दी है।
यदि मिग21 विमान की ताजा दुर्घटना को भी शामिल कर लिया जाए, तो आंकड़ा 1000 हो जाता है।
वायुसेना के 946 मिग विमानों में से आधे से अधिक अब तक दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं।
समिति द्वारा बजटीय मांग से सम्बंधित संसद में बुधवार को पेश की गई एक रिपोर्ट में कहा गया, "मंत्रालय ने एक लिखित जवाब में 1970 से अब तक हुई विमान दुर्घटनाओं का ब्योरा दिया है। इसके मुताबिक अक तक 999 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुक हैं।"
उप्र: वायुसेना का जगुआर दुर्घटनाग्रस्त, दो की मौत
इन 999 मामलों में से 12 की अभी जांच चल रही है, जबकि शेष 987 में से 388 मामले में चालक दल की गलती सामने आई है।
राजस्थान में हुए मिग लड़ाकू विमान की दुर्घटना होने और पायलट के मारे जाने की घटना के अगले ही दिन रक्षा संसदीय रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि मिग बेड़े के आधे से अधिक विमान हादसों में स्वाहा हो चुके हैं।
रक्षा मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति की आज संसद में पेश रिपोर्ट में मंत्रालय के हवाले से यह स्वीकार किया गया है कि मिग विमानों की ज्यादातर दुर्घटनाएं पुरानी टेक्नोलाजी की वजह से हुई हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि पुरानी पड़ चुकी टेक्नोलाजी के कारण मिग 21 और मिग 27 के इंजन में खराबी आने की घटनाएं आम हैं।
संसदीय समिति की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इन विमानों की आपूर्ति करने वाले देश रूस ने भी इन्हें अपनी सेवा से बाहर कर दिया है और दुनिया में अकेली भारतीय वायुसेना ही है, जो इन विमानों पर अपना दावं लगाए हुए है।
समिति ने नए विमानों की खरीदारी की प्रक्रिया को योजनाबद्ध ढंग से पूरा करने की वकालत करते हुए मंत्रालय से कहा है कि मौजूदा विमानों के जीवनकाल को बढ़ाने तथा पायलटों की ट्रेनिंग पर नए सिरे से विचार किया जाए और मिग विमानों को जितना जल्दी संभव हो, रिटायर कर दिया जाए।
बीकानेर में मिग-21 दुर्घटनाग्रस्त, पायलट की मौत
मानवीय गलतियों में सुधार के पहलू के बारे में संसदीय समिति को बताया गया कि पायलटों की ट्रेनिंग के लिए समुचित ट्रेनर विमानों की उपलब्धता की कमी चिंता का विषय है।
इस समय वायुसेना के प्रशिक्षण विमानों के बेड़े में 114 एचपीटी, 96 किरण एमके-वन ए, 41 किरण एके-दो, 42 हॉक, 35 चेतक, 19 डोर्नियर, आठ एएन-32 परिवहन विमान और छह एवरो विमान हैं। अधिकांश ट्रेनरों में एचपीटी और किरण मार्क-1 एवं मार्क दो विमान हैं जिन्हें बदला जा रहा है।
Aug 7, 2011
‘जूनो’ चला ‘ज्यूपिटर से मिलने, चार साल बाद पहुंचेगा
केप केनवेरल। सौरमंडल के अध्ययन के लिए विकसित किया गया अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (नासा) का खोजी यान ‘जूनो’ अपनी पांच साल की यात्रा के दौरान लगभग सोलह हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बृहस्पति ग्रह तक की टोह लेगा। यह अंतरिक्षयान मानव द्वारा निर्मित सबसे तेज चलने वाली मशीन है।
आधिकारिक सूत्रों ने यहां बताया कि चार टन वजनी जूनो भारतीय समयानुसार रात नौ बजकर चार मिनट पर एटलस-5 रॉकेट से प्रक्षेपित किया जाएगा। इस रॉकेट पर पांच बूस्टर इंजन लगे हुए हैं और नासा के किसी भी मानवरहित अंतरिक्ष मिशन के लिए इसे बेहद दमदार समझा जाता है। इस अंतरिक्ष यान का नाम रोमन मिथकीय देवता ‘ज्यूपिटर’ की पत्नी ‘जूनो’ के नाम पर रखा गया है। ज्यूपिटर को ही बृहस्पति के नाम से भी जाना जाता है।
इस अंतरिक्षयान के जरिए तीन छोटी मूर्तियों को भी अंतरिक्ष में भेजा जा रहा है। इसमें ‘ज्यूपिटर देवता’, उसकी पत्नी ‘जूनो’ और इस ग्रह को पहली बार टेलिस्कोप के जरिए ढूंढने वाले इतालवी खगोलशास्त्री ‘गैलेलियो गैलिली’ की मूर्तियां शामिल हैं।
गुरु के लिए रवाना हो रहा है पहला अंतरिक्षयान ‘जूनो’!
जूनो बृहस्पति ग्रह पर जानेवाला विश्व का पहला ऐसा खोजी यान है जो सौर ऊर्जा से संचालित है। चूंकि बृहस्पति ग्रह को मिलने वाली सौर ऊर्जा पृथ्वी के मुकाबले 25 फिसदी कम है, इसलिए इस यान का निर्माण कुछ इस तरह से किया गया है कि यह कम सौर ऊर्जा से भी अपनी आवश्यकतानुसार विद्युत ऊर्जा का निर्माण कर सके। खुले अंतरिक्ष में सूर्य से निकलने वाले विकिरण से बचाव का कोई उपाय नहीं है और इससे किसी भी अंतरिक्षयान के सोलर सेल और अन्य उपकरण आसानी से नष्ट हो सकते हैं। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर जूनो के सोलर सेल इस तरह से बनाए गए हैं कि ये सौर-विकिरण को 50 फिसदी अधिक समय तक झेल पाने में सक्षम हैं।
जूनो बृहस्पति ग्रह की अपनी दो अरब 80 करोड़ किलोमीटर लंबी यात्रा को पांच बरस में पूरा करने के बाद वर्ष 2016 में बृहस्पति की कक्षा में पहुंचेगा। इसके बाद यह उसकी परिक्रमा कर आंकड़े जुटाएगा। यह बृहस्पति की ध्रुवीय कक्षा में स्थापित होने वाला पहला अंतरिक्षयान होगा। एक वर्ष तक बृहस्पति का अध्ययन करने के बाद इसका मिशन पूरा हो जाएगा और यह 2017 में बृहस्पति की सतह पर गिरकर नष्ट हो जाएगा।
जूनो अंतरिक्षयान अपने इस मिशन के दौरान अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों से लैस होगा। इस मिशन के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी से जुड़े देशों इटली, बेल्जियम और फ्रांस ने भी मदद दी है। यान में इस प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं जो बृहस्पति ग्रह के रोजमर्रा के घटनाक्रम का पता लगाने के अलावा उसके अंतर को खंगालने का भी प्रयत्न करेंगे।
इस मिशन के दो प्रमुख उद्देश्यों में बृहस्पति पर पानी की मौजूदगी का पता लगाना और उसकी सतह के बारे में अधिक जानकारी जुटाना होगा। जूनो यह पता लगाने की भी कोशिश करेगा कि क्या बृहस्पति की आंतरिक संरचना ठोस पदार्थों से मिल कर बनी है अथवा वह गैस रूप में है।
इस मिशन के जरिए वैज्ञानिक बृहस्पति के उस चुंबकीय क्षेत्र का पता लगाने का भी प्रयत्न करेंगे जो पृथ्वी के गुरुत्वबल के मुकाबले 20 हजार गुना अधिक शक्तिशाली है। बृहस्पति का अति शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र अपने आस-पास से गुजरती किसी भी बड़ी उल्का या क्षुद्र ग्रह को आसानी से अपने अंदर समा लेता है। इस तरह से बृहस्पति कई मायनों में अंतरिक्ष की बड़ी चट्टानों से पृथ्वी की रक्षा भी करता है।
अपने अभियान के दौरान जूनो पिछले 300 वर्षों से बृहस्पति की सतह पर चल रहे भीषण तूफानों के बारे में भी पता लगाने की कोशिश करेगा। धरती से देखने पर यह तूफ्ना बृहस्पति की सतह पर एक बड़े लाल धब्बे के रूप में दिखता है ।अंग्रेज खगोलशास्त्री राबर्ट हुक ने वर्ष 1664 में पहली बार इसका पता लगाया था।
उल्लेखनीय है कि नासा ने 1973 में ‘पायोनियर’ अंतरिक्षयान के जरिए बृहस्पति ग्रह के शोध का आगाज किया था। इसके बाद के तीन दशकों में वायजर, उल्येसिस और कैसिनी यानों ने भी इस ग्रह के वातावरण का जायजा लिया।
प्लूटो क्षुद्र ग्रह के अध्ययन के लिए जानेवाले नासा के अंतरिक्ष यान ‘न्यू होराइजन्स’ ने 2007 में आवश्यक गति प्राप्त करने के लिए इस ग्रह का चक्कर लगाया था।
जूनो के बाद नासा की ‘यूरोपा जूपिटर सिस्टम मिशन’ को 2020 में वहां भेजने की योजना है, जो बृहस्पति के तीन बड़े चंद्रमाओं यूरोपा, गैनिमेड और कैलिस्टो की बर्फीली सतहों का अध्ययन कर वहां पानी होने की संभावनाओं की तलाश करेगा।
आधिकारिक सूत्रों ने यहां बताया कि चार टन वजनी जूनो भारतीय समयानुसार रात नौ बजकर चार मिनट पर एटलस-5 रॉकेट से प्रक्षेपित किया जाएगा। इस रॉकेट पर पांच बूस्टर इंजन लगे हुए हैं और नासा के किसी भी मानवरहित अंतरिक्ष मिशन के लिए इसे बेहद दमदार समझा जाता है। इस अंतरिक्ष यान का नाम रोमन मिथकीय देवता ‘ज्यूपिटर’ की पत्नी ‘जूनो’ के नाम पर रखा गया है। ज्यूपिटर को ही बृहस्पति के नाम से भी जाना जाता है।
इस अंतरिक्षयान के जरिए तीन छोटी मूर्तियों को भी अंतरिक्ष में भेजा जा रहा है। इसमें ‘ज्यूपिटर देवता’, उसकी पत्नी ‘जूनो’ और इस ग्रह को पहली बार टेलिस्कोप के जरिए ढूंढने वाले इतालवी खगोलशास्त्री ‘गैलेलियो गैलिली’ की मूर्तियां शामिल हैं।
गुरु के लिए रवाना हो रहा है पहला अंतरिक्षयान ‘जूनो’!
जूनो बृहस्पति ग्रह पर जानेवाला विश्व का पहला ऐसा खोजी यान है जो सौर ऊर्जा से संचालित है। चूंकि बृहस्पति ग्रह को मिलने वाली सौर ऊर्जा पृथ्वी के मुकाबले 25 फिसदी कम है, इसलिए इस यान का निर्माण कुछ इस तरह से किया गया है कि यह कम सौर ऊर्जा से भी अपनी आवश्यकतानुसार विद्युत ऊर्जा का निर्माण कर सके। खुले अंतरिक्ष में सूर्य से निकलने वाले विकिरण से बचाव का कोई उपाय नहीं है और इससे किसी भी अंतरिक्षयान के सोलर सेल और अन्य उपकरण आसानी से नष्ट हो सकते हैं। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर जूनो के सोलर सेल इस तरह से बनाए गए हैं कि ये सौर-विकिरण को 50 फिसदी अधिक समय तक झेल पाने में सक्षम हैं।
जूनो बृहस्पति ग्रह की अपनी दो अरब 80 करोड़ किलोमीटर लंबी यात्रा को पांच बरस में पूरा करने के बाद वर्ष 2016 में बृहस्पति की कक्षा में पहुंचेगा। इसके बाद यह उसकी परिक्रमा कर आंकड़े जुटाएगा। यह बृहस्पति की ध्रुवीय कक्षा में स्थापित होने वाला पहला अंतरिक्षयान होगा। एक वर्ष तक बृहस्पति का अध्ययन करने के बाद इसका मिशन पूरा हो जाएगा और यह 2017 में बृहस्पति की सतह पर गिरकर नष्ट हो जाएगा।
जूनो अंतरिक्षयान अपने इस मिशन के दौरान अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों से लैस होगा। इस मिशन के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी से जुड़े देशों इटली, बेल्जियम और फ्रांस ने भी मदद दी है। यान में इस प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं जो बृहस्पति ग्रह के रोजमर्रा के घटनाक्रम का पता लगाने के अलावा उसके अंतर को खंगालने का भी प्रयत्न करेंगे।
इस मिशन के दो प्रमुख उद्देश्यों में बृहस्पति पर पानी की मौजूदगी का पता लगाना और उसकी सतह के बारे में अधिक जानकारी जुटाना होगा। जूनो यह पता लगाने की भी कोशिश करेगा कि क्या बृहस्पति की आंतरिक संरचना ठोस पदार्थों से मिल कर बनी है अथवा वह गैस रूप में है।
इस मिशन के जरिए वैज्ञानिक बृहस्पति के उस चुंबकीय क्षेत्र का पता लगाने का भी प्रयत्न करेंगे जो पृथ्वी के गुरुत्वबल के मुकाबले 20 हजार गुना अधिक शक्तिशाली है। बृहस्पति का अति शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र अपने आस-पास से गुजरती किसी भी बड़ी उल्का या क्षुद्र ग्रह को आसानी से अपने अंदर समा लेता है। इस तरह से बृहस्पति कई मायनों में अंतरिक्ष की बड़ी चट्टानों से पृथ्वी की रक्षा भी करता है।
अपने अभियान के दौरान जूनो पिछले 300 वर्षों से बृहस्पति की सतह पर चल रहे भीषण तूफानों के बारे में भी पता लगाने की कोशिश करेगा। धरती से देखने पर यह तूफ्ना बृहस्पति की सतह पर एक बड़े लाल धब्बे के रूप में दिखता है ।अंग्रेज खगोलशास्त्री राबर्ट हुक ने वर्ष 1664 में पहली बार इसका पता लगाया था।
उल्लेखनीय है कि नासा ने 1973 में ‘पायोनियर’ अंतरिक्षयान के जरिए बृहस्पति ग्रह के शोध का आगाज किया था। इसके बाद के तीन दशकों में वायजर, उल्येसिस और कैसिनी यानों ने भी इस ग्रह के वातावरण का जायजा लिया।
प्लूटो क्षुद्र ग्रह के अध्ययन के लिए जानेवाले नासा के अंतरिक्ष यान ‘न्यू होराइजन्स’ ने 2007 में आवश्यक गति प्राप्त करने के लिए इस ग्रह का चक्कर लगाया था।
जूनो के बाद नासा की ‘यूरोपा जूपिटर सिस्टम मिशन’ को 2020 में वहां भेजने की योजना है, जो बृहस्पति के तीन बड़े चंद्रमाओं यूरोपा, गैनिमेड और कैलिस्टो की बर्फीली सतहों का अध्ययन कर वहां पानी होने की संभावनाओं की तलाश करेगा।
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Jun 19, 2011
आईपैड एक तरह का टेबलेट कंप्यूटर है जिसे अमेरिकी कंपनी ऐप्पल ने बनाया है यह आकर में लैपटप से छोटा और स्मार्टफोन से बड़ा होता है. यह मूल रुप से ऑडियो-वीडियो मीडिया खासकर ई बुक्स वगैरह के लिए बेहतर है। उसके अलावा यह फिल्में देखने, गेम्स खेलने और वेब कंटेंट के लिए उपयोगी होता है।आईफोन और आईपॉड की तरह यह मल्टीटच डिस्पले नियंत्रित होता है। इसके पहले टेबलेट कंप्यूटरों में यह सुविधा नहीं होती थी।ऐप्पल ने पहला आईपैड 2010 में रिलीज किया था लेकिन महज 80 दिनों में उसने तीस लाख आईपैड बेच दिए थे।
जानिए क्या होती है हाइब्रिड कार
आपने कई लोगों से हाइब्रिड कार के बारे में सुना होगा लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि यह क्या होती है। हाईब्रिड टेक्नोलॉजी से मतलब दो ईधन से चलने से हाईब्रिड कारें पेट्रोल या डीजल और बैट्री की पावर से चलती है दुनिया भर में हाईब्रिड टेक्नोलॉजी को लेकर अलग अलग वाहन बनाए गए हैं इसमें डीजल-बैट्री, पेट्रोल- बेट्री से चलने वाली गाडियां होती है। अगर आपको याद हो तो काफी पहले मोपेड चला करती थी जिसमें पहले पैडल मारते थे उसके बाद वो स्टार्ट होकर चलती थी वो भी एक तरह की हाईब्रिड बाइक थी क्योंकि उसमें शरीर की ताकत और ईधन दोनो इस्तेमाल हो रहे हैं। होंडा सिविक एक हाइब्रिड कार है पैट्रोल और कार की बैट्री दोनो से चलती है ऐसी गाड़ियां ईधन की बचत ज्यादा करती हैं और इनसे प्रदूषण भी काफी कम होता है।
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May 8, 2011
80 अरब डॉलर खर्च कर 10 लाख लोगों से जासूसी करवाता है अमेरिका
click here विकीलीक्स के ताजा खुलासे से देश के सियासी गलियारे में मचे कोहराम के बीच एक बात तो साफ हो गई है कि अमेरिका भारत में स्थित अपने राजनयिकों से जासूसी करवाता रहा है। यही नहीं, अमेरिका किसी देश के आंतरिक मामलों में दखल की भी पूरी कोशिश करता है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और वहां की सेना जासूसी के इस गोरखधंधे में शामिल होती है। खुफिया मामलों के जानकारों के मुताबिक यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि अमेरिका ने पिछले साल सिविलियन और मिलिट्री जासूसी पर कितना खर्च किया है। वैसे अमेरिका के नेशनल इंटेलिजेंस के डायरेक्टर जेम्स क्लैपर ने बताया कि पिछले साल अमेरिका ने जासूसी के काम पर 80.1 अरब डॉलर खर्च किए। इसमें सिविल एजेंसियों पर 53.1 अरब डॉलर जबकि बाकी रकम रक्षा मंत्रालय पर खर्च की गई। जासूसी पर खर्च की जाने वाली यह रकम अमेरिका के होमलैंड सिक्योरिटी डिपार्टमेंट (42.6 अरब डॉलर) या विदेश मंत्रालय (48.9 अरब डॉलर) के बजट से अधिक है। इससे पहले अमेरिकी सरकार ने 1998 में खुफिया गतिविधियों पर खर्च की जाने वाली रकम (26.7 अरब डॉलर) का सार्वजनिक तौर पर खुलासा किया था।जानकारों ने नए खुलासों के आधार पर यह दावा किया है कि अमेरिकी सरकार सिविलियन इंटेलिजेंस ऑपरेशन पर हर साल 45 अरब डॉलर और रक्षा खुफिया पर 30 अरब डॉलर खर्च करती है। इस पूरे नेटवर्क में करीब दो लाख कर्मचारी जुटे हैं। 1994 में अमेरिका खुफिया गतिविधियों पर हर साल करीब 26 अरब डॉलर खर्च करता था। कैसे काम करता है अमेरिकी खुफिया तंत्र अमेरिका में आतंकवाद विरोधी, होमलैंड सिक्योरिटी और खुफिया से जुड़े कामों में करीब 3200 संगठन (1271 सरकारी संगठन और 1931 प्राइवेट कंपनियां) जुटी हैं। इस नेटवर्क से जुड़े 8 लाख 54 हजार लोग अमेरिका में करीब 10 हजार ठिकानों पर फैले हैं। सितम्बर 2001 में हुए आतंकवादी हमलों के बाद से वाशिंगटन और आसपास के इलाकों में अति गोपनीय खुफिया कार्यों के लिए 33 इमारतें तैयार की जा रही हैं या बन गई हैं। अमेरिका में साल 2001 के आखिर तक 24 संगठन बनाए गए जिनमें होमलैंड सिक्योरिटी का दफ्तर और फॉरेन टेररिस्ट एसेट ट्रैकिंग टास्क फोर्स शामिल हैं। 2002 में 37 और ऐसे संगठन तैयार किए गए जिनका काम व्यापक विनाश के हथियारों पर नजर रखना, हमले की आशंका पर नजर रखना और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के मोर्चे पर नई रणनीति तैयार करना है। इसके बाद 2004 में 36, 2005 में 26, 2006 में 31, 2007 में 32, 2008 और 2009 में 20-20 या इनसे अधिक संगठन खड़े गए। कुल मिलाकर 9/11 की घटना के बाद अमेरिका में कम से कम 263 संगठन खड़े किए गए हैं। अधिकतर सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों का काम एक जैसा ही होता है। अमेरिका के 15 शहरों फैले 51 संघीय संगठन और मिलिट्री कमान पैसे के लेन देन और आतंकवादियों के नेटवर्क पर नजर रखते हैं। जानकारों के मुताबिक विदेशी और घरेलू जासूसी से जुड़ी रिपोर्टों की संख्या इतनी अधिक हो जाती है कि हर साल करीब 50 हजार खुफिया रिपोर्टों को कूड़ेदान में फेंकना पड़ता है। अमेरिकी प्रशासन के मौजूदा और पूर्व अधिकारियों के हवाले से ‘वाशिंगटन पोस्ट’ लिखता है कि अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) द्वारा अपने नागरिकों की जासूसी के दौरान इकट्ठा की गई सूचनाओं तक संघीय जांच एजेंसी (एफबीआई), रक्षा खुफिया एजेंसी (डीआईए), सीआईए और होमलैंड सिक्योरिटी डिपार्टमेंट की भी पहुंच होती है। अमेरिकी प्रशासन की ओर से अपने ही नागरिकों की जासूसी करने की बात उस वक्त सामने आई जब इलेक्ट्रॉनिक्स फ्रंटियर फाउंडेशन नामक संगठन के हाथ ऐसे दस्तावेज हाथ लगे जिससे साफ हो गया कि खुफिया एजेंट सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स के जरिये कई तरह के लोगों से दोस्ती कर मौजूदा हालात की जानकारी इकट्ठा करते हैं। यदि कोई आदमी इन एजेंटों के जाल में फंस कर वेबसाइट पर दोस्ती कर लेता है तो एजेंट यूजर से नजदीकी बढ़ाकर कई तरह की जानकारियां हासिल कर लेते हैं। भारतीय राजनयिकों की जासूसी खोजी वेबसाइट विकीलीक्स के खुलासे से भारत, अमेरिका सहित दुनिया के अधिकतर देशों में सियासी कोहराम मचा है। खुलासे से साफ हुआ है कि अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजनयिकों की जासूसी के आदेश दिए थे। संदेशों से साफ है कि अमेरिका ने इसके अलावा चीन और पाकिस्तान के राजनयिकों की जासूसी करवाई है। पिछले साल विकीलीक्स ने अमरीकी दूतावासों की ओर से भेजे गए जिन करीब ढाई लाख संदेशों को सार्वजनिक किया, उनमें से 3038 संदेश नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास से भेजे गए हैं। विकीलीक्स के खुलासों के मुताबिक अमेरिका संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून सहित यूएन नेतृत्व और सुरक्षा परिषद में शामिल चीन, रूस, फ्रांस व ब्रिटेन के प्रतिनिधियों की जासूसी में भी जुटा है। हालांकि विकिलीक्स के इस खुलासे पर अमेरिका भड़क गया। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता पी जे क्राउले ने कहा, ‘हमारे राजनयिकों द्वारा जुटाई गई सूचनाएं हमारी नीतियों और कार्यक्रमों को अमली जामा पहनाने में मददगार होती हैं। हमारे राजनयिक ‘डिप्लोमैट्स’ ही हैं जासूस नहीं।’ अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने विकीलीक्स की हरकत को गैरजिम्मेदाराना करार दिया। पेंटागन ने इन सूचनाओं की गोपनीयता बनाए रखने के लिए कड़े कदम उठाने भी शुरू कर दिए हैं। यूएन में अमेरिकी दूत सुसान राइस ने भी क्राउले की तर्ज पर अपने राजनयिकों का बचाव किया है। उन्होंने कहा, ‘हमारे राजनयिक भी वही करते हैं जो दुनियाभर में अन्य देशों के जासूस हर दिन करते हैं। इनका काम संबंधों को मजबूत बनाने, बातचीत की प्रक्रिया जारी रखने और जटिल समस्याओं का हल ढूंढने में मदद करना है।’ पाकिस्तान में दो नागरिकों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया रेमंड डेविस भी अमेरिकी जासूस बताया गया। हालांकि अमेरिका ने पाकिस्तान को यह समझाने की कोशिश की कि डेविस को राजनयिक दर्जा हासिल है इसलिए उन्हें वापस अमेरिका भेजा जाना चाहिए। आपकी राय क्या अमेरिका के जासूसी जाल से बचना मुमकिन नहीं रह गया है या फिर सरकारें अपना हित और अमेरिकी रौब को देखते हुए घुटने टेक कर उसके जाल में फंसने के लिए तैयार रहती हैं।
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