मिर्ज़ा ग़ालिब गरीबी से तंग आकर डाकू बन गए और डकैती करने एक बैंक गए और कहा,
" अर्ज़ किया है"।
तक़दीर में जो है वही मिलेगा,
हैंड्स-अप कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा...
फिर कैशियर से कहा,
... कुछ ख्वाब मेरी आँखों से निकाल दे,
जो कुछ भी है, इस बैग में डाल दे...
बहुत कोशिश करता हूँ उसकी याद भुलाने की,
ध्यान रहे कोई कोशिश न करना पुलिस बुलाने की...
भुला दे मुझको क्या जाता है तेरा,
मार दूँगा गोली जो किसी ने पीछा किया मेरा...
Mar 4, 2013
एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया...
एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया. उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछ...ा.
संत ने किसान से कहा , ”तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो, और उन्हें शहर के बीचो-बीच जाकर रख दो.” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया.
तब संत ने कहा, ”अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ”
किसान वापस गया पर तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे. और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा. तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है, तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते.
इस कहानी से क्या सीख मिलती है:
कुछ कड़वा बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा कहने के बाद कुछ भी कर के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते. हाँ, आप उस व्यक्ति से जाकर क्षमा ज़रूर मांग सकते हैं, और मांगनी भी चाहिए, पर human nature कुछ ऐसा होता है की कुछ भी कर लीजिये इंसान कहीं ना कहीं hurt हो ही जाता है.
जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है. खुद को कष्ट देने से क्या लाभ, इससे अच्छा तो है की चुप रहा जाए.
संत ने किसान से कहा , ”तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो, और उन्हें शहर के बीचो-बीच जाकर रख दो.” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया.
तब संत ने कहा, ”अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ”
किसान वापस गया पर तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे. और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा. तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है, तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते.
इस कहानी से क्या सीख मिलती है:
कुछ कड़वा बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा कहने के बाद कुछ भी कर के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते. हाँ, आप उस व्यक्ति से जाकर क्षमा ज़रूर मांग सकते हैं, और मांगनी भी चाहिए, पर human nature कुछ ऐसा होता है की कुछ भी कर लीजिये इंसान कहीं ना कहीं hurt हो ही जाता है.
जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है. खुद को कष्ट देने से क्या लाभ, इससे अच्छा तो है की चुप रहा जाए.
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Mar 2, 2013
महाराज ! मैं पाप बेचती हूँ | ...........
एक बार घूमते-घूमते कालिदास बाजार गये | वहाँ एक महिला बैठी मिली | उसके पास एक मटका था और कुछ प्यालियाँ पड़ी थी | कालिदास ने उस महिला से पूछा : ” क्या बेच रही हो ? “
महिला ने जवाब दिया : ” महाराज ! मैं पाप बेचती हूँ | “
कालिदास ने आश्चर्यचकित होकर पूछा : ” पाप और मटके में ? “
महिला बोली : ” हाँ , महाराज ! मटके में पाप है | “
... कालिदास : ” कौन-सा पाप है ? “
महिला : ” आठ पाप इस मटके में है | मैं चिल्लाकर कहती हूँ की मैं पाप बेचती हूँ पाप … और लोग पैसे देकर पाप ले जाते है |”
अब महाकवि कालिदास को और आश्चर्य हुआ : ” पैसे देकर लोग पाप ले जाते है ? “
महिला : ” हाँ , महाराज ! पैसे से खरीदकर लोग पाप ले जाते है | “
कालिदास : ” इस मटके में आठ पाप कौन-कौन से है ? “
महिला : ” क्रोध ,बुद्धिनाश , यश का नाश , स्त्री एवं बच्चों के साथ अत्याचार और अन्याय , चोरी , असत्य आदि दुराचार , पुण्य का नाश , और स्वास्थ्य का नाश … ऐसे आठ प्रकार के पाप इस घड़े में है | “
कालिदास को कौतुहल हुआ की यह तो बड़ी विचित्र बात है | किसी भी शास्त्र में नहीं आया है की मटके में आठ प्रकार के पाप होते है | वे बोले : ” आखिरकार इसमें क्या है ? ”
महिला : ” महाराज ! इसमें शराब है शराब ! “
कालिदास महिला की कुशलता पर प्रसन्न होकर बोले : ” तुझे धन्यवाद है ! शराब में आठ प्रकार के पाप है यह तू जानती है और ‘ मैं पाप बेचती हूँ ‘ ऐसा कहकर बेचती है फिर भी लोग ले जाते है | धिक्कार है ऐसे लोगों को !
महिला ने जवाब दिया : ” महाराज ! मैं पाप बेचती हूँ | “
कालिदास ने आश्चर्यचकित होकर पूछा : ” पाप और मटके में ? “
महिला बोली : ” हाँ , महाराज ! मटके में पाप है | “
... कालिदास : ” कौन-सा पाप है ? “
महिला : ” आठ पाप इस मटके में है | मैं चिल्लाकर कहती हूँ की मैं पाप बेचती हूँ पाप … और लोग पैसे देकर पाप ले जाते है |”
अब महाकवि कालिदास को और आश्चर्य हुआ : ” पैसे देकर लोग पाप ले जाते है ? “
महिला : ” हाँ , महाराज ! पैसे से खरीदकर लोग पाप ले जाते है | “
कालिदास : ” इस मटके में आठ पाप कौन-कौन से है ? “
महिला : ” क्रोध ,बुद्धिनाश , यश का नाश , स्त्री एवं बच्चों के साथ अत्याचार और अन्याय , चोरी , असत्य आदि दुराचार , पुण्य का नाश , और स्वास्थ्य का नाश … ऐसे आठ प्रकार के पाप इस घड़े में है | “
कालिदास को कौतुहल हुआ की यह तो बड़ी विचित्र बात है | किसी भी शास्त्र में नहीं आया है की मटके में आठ प्रकार के पाप होते है | वे बोले : ” आखिरकार इसमें क्या है ? ”
महिला : ” महाराज ! इसमें शराब है शराब ! “
कालिदास महिला की कुशलता पर प्रसन्न होकर बोले : ” तुझे धन्यवाद है ! शराब में आठ प्रकार के पाप है यह तू जानती है और ‘ मैं पाप बेचती हूँ ‘ ऐसा कहकर बेचती है फिर भी लोग ले जाते है | धिक्कार है ऐसे लोगों को !
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महात्मा को एक बार रास्ते में पड़ा धन मिल गया।....
महात्मा को एक बार रास्ते में पड़ा धन मिल गया। उन्होंने निश्चय किया कि वे इस सबसे गरीब आदमी को दान कर देंगे। निर्धन आदमी की तलाश में वे खूब घूमे। उन्हें कोई सुपात्र नहीं मिला। एक दिन उन्होंने देखा राजमार्ग पर राजा के साथ अस्त्र-शस्त्रों से सजी विशाल सेना चली आ रही है। राजा महात्मा को पहचानता था।
हाथी से उतरकर उसने महात्मा को प्रणाम किया। महात्मा ने अपनी झोली से धन निकाला और राजा को थमा दिया। राजा ने विनीत स्वर में कहा महाराज! यह क्या? आपके आशीर्वाद से मेरे खजाने में हीरे-जवाहरात का भंडार है। महात्मा ने उत्तर दिया राजन! मैं गरीब आदमी की तलाश में था। तुम सबसे गरीब हो। यदि तुम्हारे खजाने में धन का अंबार है तो सेना लेकर कहां जा रहे हो? अगर तुम्हें किसी बात की कमी नहीं तो यह सब किसलिए? राज्य का विस्तार और धन के लिए। महात्मा की बातों ने असर किया। राजा ने तत्काल अपनी सेना को लौटने का आदेश दिया। वह ऐसे जा रहा था मानो में अनमोल खजाना जीतकर लौट रहा हो।
हाथी से उतरकर उसने महात्मा को प्रणाम किया। महात्मा ने अपनी झोली से धन निकाला और राजा को थमा दिया। राजा ने विनीत स्वर में कहा महाराज! यह क्या? आपके आशीर्वाद से मेरे खजाने में हीरे-जवाहरात का भंडार है। महात्मा ने उत्तर दिया राजन! मैं गरीब आदमी की तलाश में था। तुम सबसे गरीब हो। यदि तुम्हारे खजाने में धन का अंबार है तो सेना लेकर कहां जा रहे हो? अगर तुम्हें किसी बात की कमी नहीं तो यह सब किसलिए? राज्य का विस्तार और धन के लिए। महात्मा की बातों ने असर किया। राजा ने तत्काल अपनी सेना को लौटने का आदेश दिया। वह ऐसे जा रहा था मानो में अनमोल खजाना जीतकर लौट रहा हो।
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Mar 1, 2013
बचपन में मेरी एक गन्दी आदत थी, मैं पापा के पर्स से चुपके से कभी कभी पैसे निकाल लेता था। जब दूसरी कक्षा में था तो पापा के पर्स के सिक्के वाले हिस्से से हर सोमवार को एक रुपैया चुरा के स्कूल के बाहर खोमचे वाले से WWF के पोस्ट-कार्ड खरीदता था।
धीरे धीरे मेरी आदत थोड़ी और बिगड़ी, जब पांचवी कक्षा में था तो बगल में बैठने वाली लड़की को महीने में एक बार कैंटीन में फाउंटेन पेप्सी और समोसा खिलने के लिए नियमित तरीके से 11 रुपये चुराने लगा।
...
पिता जी भी इतना ध्यान नहीं देते थे, उनका पर्स कभी ढंग से नहीं रखा रहता था। नोट टेढ़े मेढे पड़े रहते थे, पापा कभी गिनते भी नहीं थे की कितने पैसे हैं पर्स में। मेरी ये आदत इस वजह से कभी टूटी नहीं।
जब मैं दसवी कक्षा में पहुंचा तो मेरे शहर में पहली बार मल्टीप्लेक्स खुला। सारे दोस्त लार्ड ऑफ़ द रिंग्स देखने जा रहे थे। उस दिन मैंने पिता जी के पर्स से सीधे दो सौ रुपैये मारे। फिल्म तो बहुत अच्छी थी, पर उस दिन अचानक मुझे लगा की मैं क्या गलत करता जा रहा हूँ।
तीन दिन तक मैंने पापा से नज़र तक नहीं मिलायी।
पिता जी आज भी इतना ध्यान नहीं देते, पर्स अभी भी अस्तव्यस्त रहता है। आज मेरी नौकरी लग गयी है, पिता जी के पर्स से आखिरी बार पैसा चुराए हुए मुझे दस साल से ऊपर हो गए हैं।
अब मेरी नौकरी लग गयी है, और कभी कभार पापा की पर्स में चुपके से एक पांच सौ का नोट डाल देता हूँ . पापा को पता नहीं चलता, पर मुझे मन ही मन बहुत सुकून मिलता है।
by-saan durg
धीरे धीरे मेरी आदत थोड़ी और बिगड़ी, जब पांचवी कक्षा में था तो बगल में बैठने वाली लड़की को महीने में एक बार कैंटीन में फाउंटेन पेप्सी और समोसा खिलने के लिए नियमित तरीके से 11 रुपये चुराने लगा।
...
पिता जी भी इतना ध्यान नहीं देते थे, उनका पर्स कभी ढंग से नहीं रखा रहता था। नोट टेढ़े मेढे पड़े रहते थे, पापा कभी गिनते भी नहीं थे की कितने पैसे हैं पर्स में। मेरी ये आदत इस वजह से कभी टूटी नहीं।
जब मैं दसवी कक्षा में पहुंचा तो मेरे शहर में पहली बार मल्टीप्लेक्स खुला। सारे दोस्त लार्ड ऑफ़ द रिंग्स देखने जा रहे थे। उस दिन मैंने पिता जी के पर्स से सीधे दो सौ रुपैये मारे। फिल्म तो बहुत अच्छी थी, पर उस दिन अचानक मुझे लगा की मैं क्या गलत करता जा रहा हूँ।
तीन दिन तक मैंने पापा से नज़र तक नहीं मिलायी।
पिता जी आज भी इतना ध्यान नहीं देते, पर्स अभी भी अस्तव्यस्त रहता है। आज मेरी नौकरी लग गयी है, पिता जी के पर्स से आखिरी बार पैसा चुराए हुए मुझे दस साल से ऊपर हो गए हैं।
अब मेरी नौकरी लग गयी है, और कभी कभार पापा की पर्स में चुपके से एक पांच सौ का नोट डाल देता हूँ . पापा को पता नहीं चलता, पर मुझे मन ही मन बहुत सुकून मिलता है।
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