पत्नी किचन में से आवाज लगाकर: अजी सुनते हों जरा मुझे वहां से गरम मसाला उठा देना।
पति: देता हूं चीख क्यों रही हो?
पत्नी: जल्दी करो फिर कहोगे देर हो रही है।
पति: कहां तो रखती हो नहीं मिल रहा।
पत्नी: जरा ध्यान से देखो।
पति झल्लाकर: नहीं मिल रहा तुम ही देख लो।
पत्नी: रहने दो मुझे मालूम था तुम्हें नहीं, मिलेगा इसलिए मैं पहले से ही ले आई थी!!!
May 30, 2013
May 29, 2013
बहुत समय पहले की बात है, एक वृद्ध सन्यासी हिमालय की पहाड़ियों में कहीं रहता था
बहुत समय पहले की बात है, एक वृद्ध सन्यासी हिमालय की पहाड़ियों में कहीं रहता था. वह बड़ा ज्ञानी था और उसकी बुद्धिमत्ता की ख्यातिदूर -दूरतक फैली थी. एक दिन एक औरत उसके पास पहुंची और अपना दुखड़ा रोने लगी , ” बाबा, मेरा पति मुझसे बहुत प्रेम करता था , लेकिन वह जबसे युद्ध से लौटा है ठीक सेबात तक नहीं करता .”
” युद्ध लोगों के साथ ऐसा ही करता है.” , सन्यासी बोला.
” लोग कहते हैं कि आपकी दी हुई जड़ी-बूटी इंसान में फिर से प्रेम उत्पन्न कर सकती है , कृपया आप मुझे वो जड़ी-बूटी दे दें.” , महिला ने विनती की.
सन्यासी ने कुछ सोचा और फिर बोला,” देवी मैं तुम्हे वह जड़ी-बूटी ज़रूर दे देता लेकिन उसे बनाने के लिए एक ऐसीचीज चाहिए जो मेरे पास नहीं है .”
” आपको क्या चाहिए मुझे बताइए मैं लेकर आउंगी .”, महिला बोली.
... ” मुझे बाघ की मूंछ का एक बाल चाहिए .”, सन्यासी बोला.
अगले ही दिन महिला बाघ की तलाश में जंगल में निकल पड़ी , बहुत खोजने के बाद उसे नदी के किनारे एक बाघ दिखा , बाघ उसे देखते ही दहाड़ा , महिला सहम गयी और तेजी से वापस चली गयी.
अगले कुछ दिनों तक यही हुआ , महिला हिम्मत कर के उस बाघ के पास पहुँचती और डर कर वापस चली जाती. महीना बीतते-बीतते बाघ को महिला की मौजूदगी की आदत पड़ गयी,और अब वह उसे देख कर सामान्यही रहता. अब तो महिला बाघ के लिए मांस भी लाने लगी , और बाघ बड़े चाव से उसे खाता. उनकी दोस्ती बढ़ने लगी और अब महिला बाघ को थपथपाने भी लगी. और देखते देखते एक दिन वो भी आ गया जब उसने हिम्मतदिखाते हुए बाघ की मूंछ का एक बाल भी निकाल लिया.
फिर क्या था , वह बिना देरी किये सन्यासी के पास पहुंची , और बोली
” मैं बाल ले आई बाबा .”
“बहुत अच्छे .” और ऐसा कहते हुए सन्यासी ने बाल को जलती हुई आग में फ़ेंक दिया
” अरे ये क्या बाबा , आप नहीं जानते इस बाल को लाने के लिए मैंने कितने प्रयत्न किये और आपने इसे जला दिया ……अब मेरी जड़ी-बूटी कैसे बनेगी ?” महिला घबराते हुए बोली.
” अब तुम्हे किसी जड़ी-बूटी की ज़रुरत नहीं है .” सन्यासी बोला.” जरा सोचो , तुमने बाघ को किस तरह अपने वश में किया….जब एक हिंसक पशु को धैर्य और प्रेम से जीता जा सकता है तो क्याएक इंसान को नहीं ?
” युद्ध लोगों के साथ ऐसा ही करता है.” , सन्यासी बोला.
” लोग कहते हैं कि आपकी दी हुई जड़ी-बूटी इंसान में फिर से प्रेम उत्पन्न कर सकती है , कृपया आप मुझे वो जड़ी-बूटी दे दें.” , महिला ने विनती की.
सन्यासी ने कुछ सोचा और फिर बोला,” देवी मैं तुम्हे वह जड़ी-बूटी ज़रूर दे देता लेकिन उसे बनाने के लिए एक ऐसीचीज चाहिए जो मेरे पास नहीं है .”
” आपको क्या चाहिए मुझे बताइए मैं लेकर आउंगी .”, महिला बोली.
... ” मुझे बाघ की मूंछ का एक बाल चाहिए .”, सन्यासी बोला.
अगले ही दिन महिला बाघ की तलाश में जंगल में निकल पड़ी , बहुत खोजने के बाद उसे नदी के किनारे एक बाघ दिखा , बाघ उसे देखते ही दहाड़ा , महिला सहम गयी और तेजी से वापस चली गयी.
अगले कुछ दिनों तक यही हुआ , महिला हिम्मत कर के उस बाघ के पास पहुँचती और डर कर वापस चली जाती. महीना बीतते-बीतते बाघ को महिला की मौजूदगी की आदत पड़ गयी,और अब वह उसे देख कर सामान्यही रहता. अब तो महिला बाघ के लिए मांस भी लाने लगी , और बाघ बड़े चाव से उसे खाता. उनकी दोस्ती बढ़ने लगी और अब महिला बाघ को थपथपाने भी लगी. और देखते देखते एक दिन वो भी आ गया जब उसने हिम्मतदिखाते हुए बाघ की मूंछ का एक बाल भी निकाल लिया.
फिर क्या था , वह बिना देरी किये सन्यासी के पास पहुंची , और बोली
” मैं बाल ले आई बाबा .”
“बहुत अच्छे .” और ऐसा कहते हुए सन्यासी ने बाल को जलती हुई आग में फ़ेंक दिया
” अरे ये क्या बाबा , आप नहीं जानते इस बाल को लाने के लिए मैंने कितने प्रयत्न किये और आपने इसे जला दिया ……अब मेरी जड़ी-बूटी कैसे बनेगी ?” महिला घबराते हुए बोली.
” अब तुम्हे किसी जड़ी-बूटी की ज़रुरत नहीं है .” सन्यासी बोला.” जरा सोचो , तुमने बाघ को किस तरह अपने वश में किया….जब एक हिंसक पशु को धैर्य और प्रेम से जीता जा सकता है तो क्याएक इंसान को नहीं ?
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May 26, 2013
एक बस खचाखच भर चुकी थी।
एक बस खचाखच भर
चुकी थी।
एक बुढिया बस रुकवा कर चढ गई। कंडक्टर के
मना करने पर उस ने कहा मुझे ज़रुरी जाना है।
किसी ने बुढिया को सीट नही दी।
... अगले बस स्टैंड से एक युवा सुंदर लडकी बस मे
चढी तो एक दिल फैंक युवक ने अपनी सीट उसे
आँफरकर दी और खुद खडा हो गया।
युवती ने बुढिया को सीट पर बैठा दिया और खुद
खडी रही ।
युवक अहिस्ता से बोला, " मैने तो सीट आप
को दी थी।"
इस पर युवती बोली, "धन्यवाद, लेकिन
किसी भी भी चीज पर बहन से
ज्यादा मां का हक होता है।
चुकी थी।
एक बुढिया बस रुकवा कर चढ गई। कंडक्टर के
मना करने पर उस ने कहा मुझे ज़रुरी जाना है।
किसी ने बुढिया को सीट नही दी।
... अगले बस स्टैंड से एक युवा सुंदर लडकी बस मे
चढी तो एक दिल फैंक युवक ने अपनी सीट उसे
आँफरकर दी और खुद खडा हो गया।
युवती ने बुढिया को सीट पर बैठा दिया और खुद
खडी रही ।
युवक अहिस्ता से बोला, " मैने तो सीट आप
को दी थी।"
इस पर युवती बोली, "धन्यवाद, लेकिन
किसी भी भी चीज पर बहन से
ज्यादा मां का हक होता है।
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May 18, 2013
एक हीरा व्यापारी था जो हीरे का बहुत बड़ा विशेषज्ञ माना जाता था ।
एक हीरा व्यापारी था जो हीरे का बहुत बड़ा विशेषज्ञ माना जाता था । किन्तु किसी गंभीर बीमारी के चलते अल्प आयु में ही उसकी मृत्युहो गयी । अपने पीछे वह अपनी पत्नी और बेटा छोड़ गया ।
जब बेटा बड़ा हुआ तो उसकी माँ ने कहा, “बेटा , मरने से पहले तुम्हारे पिताजी ये पत्थर छोड़ गए थे, तुम इसे लेकर बाज़ार जाओ और इसकी कीमतका पता लगाओ | लेकिन ध्यान रहे कि तुम्हे केवल कीमत पता करनी है, इसे बेचना नहीं है |”
युवक पत्थर लेकर निकला, सबसे पहले उसे एक सब्जी बेचने वाली महिला मिली |
”अम्मा, तुम इस पत्थर के बदले मुझे क्या दे सकती हो ?”, युवक ने पूछा |
”देना ही है तो दो गाजरों के बदले मुझे ये दे दो | तौलने के काम आएगा |”- सब्जी वाली बोली ।
युवक आगे बढ़ गया । इस बार वो एक दुकानदार के पास गया और उससे पत्थर की कीमत जानना चाही ।
दुकानदार बोला, ” इसके बदले मैं अधिक से अधिक 500 रूपये दे सकता हूँ, देना हो तो दो नहीं तो आगे बढ़ जाओ” |
युवक इस बार एक सुनार के पास गया, सुनार ने पत्थर के बदले 20 हज़ार देने की बात की |
फिर वह हीरे की एक प्रतिष्ठित दुकान पर गया वहां उसे पत्थर के बदले 1 लाख रूपये का प्रस्ताव मिला |
और अंत में युवक शहर के सबसेबड़े हीरा विशेषज्ञ के पास पहुंचा और बोला,” श्रीमान , कृपया इस पत्थर की कीमत बताने का कष्ट करें” |
विशेषज्ञ ने ध्यान से पत्थर का निरीक्षण किया और आश्चर्य से युवक की तरफ देखते हुए बोला, ”यह तो एक अमूल्य हीरा है | करोड़ों रूपये देकर भी ऐसा हीरा मिलना मुश्किल है” |
यदि हम गहराई से सोचें तो ऐसा ही मूल्यवान हमारा मानव जीवन भी है | यह अलग बात है कि हम में से बहुत से लोग इसकी कीमत नहीं जानते और सब्जी बेचने वाली महिला की तरह इसे मामूली समझ तुच्छ कामो में लगा देते हैं ।
आइये हम प्रार्थना करें कि परमेश्वर सभी को इस मूल्यवान जीवन को समझने की सद्बुद्धि दे और हम हीरे के विशेषज्ञ की तरह इस जीवन का मूल्य आंक सकें ॥
जब बेटा बड़ा हुआ तो उसकी माँ ने कहा, “बेटा , मरने से पहले तुम्हारे पिताजी ये पत्थर छोड़ गए थे, तुम इसे लेकर बाज़ार जाओ और इसकी कीमतका पता लगाओ | लेकिन ध्यान रहे कि तुम्हे केवल कीमत पता करनी है, इसे बेचना नहीं है |”
युवक पत्थर लेकर निकला, सबसे पहले उसे एक सब्जी बेचने वाली महिला मिली |
”अम्मा, तुम इस पत्थर के बदले मुझे क्या दे सकती हो ?”, युवक ने पूछा |
”देना ही है तो दो गाजरों के बदले मुझे ये दे दो | तौलने के काम आएगा |”- सब्जी वाली बोली ।
युवक आगे बढ़ गया । इस बार वो एक दुकानदार के पास गया और उससे पत्थर की कीमत जानना चाही ।
दुकानदार बोला, ” इसके बदले मैं अधिक से अधिक 500 रूपये दे सकता हूँ, देना हो तो दो नहीं तो आगे बढ़ जाओ” |
युवक इस बार एक सुनार के पास गया, सुनार ने पत्थर के बदले 20 हज़ार देने की बात की |
फिर वह हीरे की एक प्रतिष्ठित दुकान पर गया वहां उसे पत्थर के बदले 1 लाख रूपये का प्रस्ताव मिला |
और अंत में युवक शहर के सबसेबड़े हीरा विशेषज्ञ के पास पहुंचा और बोला,” श्रीमान , कृपया इस पत्थर की कीमत बताने का कष्ट करें” |
विशेषज्ञ ने ध्यान से पत्थर का निरीक्षण किया और आश्चर्य से युवक की तरफ देखते हुए बोला, ”यह तो एक अमूल्य हीरा है | करोड़ों रूपये देकर भी ऐसा हीरा मिलना मुश्किल है” |
यदि हम गहराई से सोचें तो ऐसा ही मूल्यवान हमारा मानव जीवन भी है | यह अलग बात है कि हम में से बहुत से लोग इसकी कीमत नहीं जानते और सब्जी बेचने वाली महिला की तरह इसे मामूली समझ तुच्छ कामो में लगा देते हैं ।
आइये हम प्रार्थना करें कि परमेश्वर सभी को इस मूल्यवान जीवन को समझने की सद्बुद्धि दे और हम हीरे के विशेषज्ञ की तरह इस जीवन का मूल्य आंक सकें ॥
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May 17, 2013
एक बार एक सेठ अपने गांव के पास ही के एक कस्बे से पैदल
एक बार एक सेठ अपने गांव के पास ही के एक कस्बे से पैदल ही गांव आ रहा था कि रास्ते मेंएक डाकू दल मिल गया| डाकू दल ने सेठ को पकड़ कर दो चार लट्ठ जमा दिए तो सेठ ने अपनी जेब में जो धन था वह निकालकर डाकू दल को दे दिया, फिर भी डाकुओं ने सेठ की कमीज उतरवा ली|
कमीज उतारते ही सेठ की बनियान में भी एक जेब देखकर डाकुओं के सरदार ने सेठ की बनियान भी उतरवा ली|
सेठ ने कुछ धन अपनी धोती की अंटी में भी दबा रखा था सो डाकू सरदार ने सेठ की धोती भी खुलवाली| अब सेठ जी सिर्फ कच्छे में थे|
डाकू सरदार ने सेठ का कच्छा गौर से देखा तो उसे लगा कि सेठ ने कच्छे में भी कुछ छुपा रखा है| सो डाकू सरदार ने सेठ से पुछा- “कच्छे में भी धन छुपा रखा है क्या?"
सेठ : जी धन नहीं है! इसमें मैंने एक पिस्टल छुपा रखी है|
... डाकू सरदार : पिस्टल किस लिए? तू क्या करेगा पिस्टल का? तेरे क्या काम की पिस्टल?
सेठ : जी! समय आने पर व जरुरत के समय मौके पर काम लूँगा!
डाकू सरदार : बावलीबूच इस से बढ़िया जरुरत वाला समय कब आयेगा? तेरी धोती, कुर्ता तक लुट गया| तू कच्छे में नंगा खड़ा है, तेरा सारा धन लुट गया! फिर भी इस पिस्टल जैसे हथियार का इस्तेमाल करने का तुझे मौका नजर नहीं आया? लगता है तू भी भारत के मतदाता की तरह ही बावलीबूच है|
सेठ को डाकू द्वारा अपनी भारतीय मतदाता से तुलना समझ नहीं आई सो उसने डाकू से निवेदन किया –
"हे डाकू महाराज! कम से कम मुझे ये तो बता दीजिये कि मुझमें व भारतीय मतदाता में आपको ऐसी कौन सी समानता नजर आई जो आपने मुझे भारतीय मतदाता के समान बावलीबूच बता दिया|"
डाकू कहने लगा : देख सेठ तू पिस्टल पास होते हुए भी पूरा लुट गया| धन के साथ तेरे कपड़े तक हमने उतार लिये| फिर भी तूने अपना धन और कपड़े बचाने को पिस्टल का उपयोग नहीं किया. यह ठीक उसी तरह है जैसे भारतीय मतदाता पुरे पांच सालतक सत्ताधारी दल से लुटता हुआ डायलोग मारता रहता है कि अगले चुनाव आने दीजिये, अपने वोट रूपी हथियार का इस्तेमाल करते हुए इन नेताओं को सबक सिखाऊंगा|
अब देख भारतीय जनता को नेताओं ने इतना लुटा कि अब उसके तन पर थोड़ा सा कपड़ा मात्र ही बचा है जबकि उसके पास "मत" (वोट) रूपी ऐसा हथियार है जिसके इस्तेमाल से वह नेताओं द्वारा लुटे जाने से आसानी से बच सकता है| पर वह भी तेरी तरह ही सोचता रहता है कि इस चुनाव में नहीं, अगले चुनावों में इस नेता को देखूंगा! और इसी तरह देखने का इंतजार करते करते भारतीय मतदाता नेताओं के हाथों लुटता रहता है, ठीक वैसे ही जैसे तुम हथियार होने के बावजूद हमसेलुट गए|
कमीज उतारते ही सेठ की बनियान में भी एक जेब देखकर डाकुओं के सरदार ने सेठ की बनियान भी उतरवा ली|
सेठ ने कुछ धन अपनी धोती की अंटी में भी दबा रखा था सो डाकू सरदार ने सेठ की धोती भी खुलवाली| अब सेठ जी सिर्फ कच्छे में थे|
डाकू सरदार ने सेठ का कच्छा गौर से देखा तो उसे लगा कि सेठ ने कच्छे में भी कुछ छुपा रखा है| सो डाकू सरदार ने सेठ से पुछा- “कच्छे में भी धन छुपा रखा है क्या?"
सेठ : जी धन नहीं है! इसमें मैंने एक पिस्टल छुपा रखी है|
... डाकू सरदार : पिस्टल किस लिए? तू क्या करेगा पिस्टल का? तेरे क्या काम की पिस्टल?
सेठ : जी! समय आने पर व जरुरत के समय मौके पर काम लूँगा!
डाकू सरदार : बावलीबूच इस से बढ़िया जरुरत वाला समय कब आयेगा? तेरी धोती, कुर्ता तक लुट गया| तू कच्छे में नंगा खड़ा है, तेरा सारा धन लुट गया! फिर भी इस पिस्टल जैसे हथियार का इस्तेमाल करने का तुझे मौका नजर नहीं आया? लगता है तू भी भारत के मतदाता की तरह ही बावलीबूच है|
सेठ को डाकू द्वारा अपनी भारतीय मतदाता से तुलना समझ नहीं आई सो उसने डाकू से निवेदन किया –
"हे डाकू महाराज! कम से कम मुझे ये तो बता दीजिये कि मुझमें व भारतीय मतदाता में आपको ऐसी कौन सी समानता नजर आई जो आपने मुझे भारतीय मतदाता के समान बावलीबूच बता दिया|"
डाकू कहने लगा : देख सेठ तू पिस्टल पास होते हुए भी पूरा लुट गया| धन के साथ तेरे कपड़े तक हमने उतार लिये| फिर भी तूने अपना धन और कपड़े बचाने को पिस्टल का उपयोग नहीं किया. यह ठीक उसी तरह है जैसे भारतीय मतदाता पुरे पांच सालतक सत्ताधारी दल से लुटता हुआ डायलोग मारता रहता है कि अगले चुनाव आने दीजिये, अपने वोट रूपी हथियार का इस्तेमाल करते हुए इन नेताओं को सबक सिखाऊंगा|
अब देख भारतीय जनता को नेताओं ने इतना लुटा कि अब उसके तन पर थोड़ा सा कपड़ा मात्र ही बचा है जबकि उसके पास "मत" (वोट) रूपी ऐसा हथियार है जिसके इस्तेमाल से वह नेताओं द्वारा लुटे जाने से आसानी से बच सकता है| पर वह भी तेरी तरह ही सोचता रहता है कि इस चुनाव में नहीं, अगले चुनावों में इस नेता को देखूंगा! और इसी तरह देखने का इंतजार करते करते भारतीय मतदाता नेताओं के हाथों लुटता रहता है, ठीक वैसे ही जैसे तुम हथियार होने के बावजूद हमसेलुट गए|
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