गलवार को रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए रेपो और रिवर्स रेपो दोनो ही दरों को बढ़ा दिया है । इस नीति के अंतर्गत केन्द्रीय बैंक आगे की रणनीतिके बारे में दिशा निर्देश तय करता है। जिसके तहत वह रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट कोघटाता या बढ़ाता है। लेकिन आरबीआई के इन तकनीकी शब्दों के बारे में आम आदमी काज्ञान शून्य रहता है। आइए जानते हैं। क्या होती है रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट औरक्यों जरुरत होती है इसे घटाने और बढ़ाने की।
रेपो रेट
आम आदमी कीतरह बैंकों और वित्तीय संस्थानों को भी कर्ज की जरुरत पड़ती है ऐसे में ये रिजर्वबैंक से शार्ट टर्म के लिए कर्ज लेते हैं। जिस ब्याज दर पर आरबीआई बैंकों औरवित्तीय संस्थानों को कर्ज देता है उसे रेपो रेट कहते है। जब बाजार में लिक्विडिटीज्यादा हो जाती है तो आरबीआई रेपो रेट बढ़ा देता है जिससे आरबीआई से मिलने वालाकर्ज महंगा हो जाता है और बाजार में लिक्विडिटी में कमी आ जाती है। इससे महंगाई कोकाबू में करने में भी मदद मिलती है।
रिवर्स रेपो रेट
बैंकों औरवित्तीय संस्थानों के पास जब नगदी की अधिकता हो जाती है तो वो उसे आरबीआई को उधारदे देते हैं। जिस दर पर आरबीआई उन्हें ब्याज देता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।महंगाई को काबू में करने के लिए भी रिवर्स रेपो रेट आरबीआई बढ़ा देता है जिससे बैंकबाजार में पैसा लगाने के बजाय आरबीआई के पास पैसा जमा करवाने में ज्यादा दिलचस्पीदिखाते हैं।
ज्ञानवर्धक. कृपया यह भी बताएं की रेपो क्यां कोई अंग्रेजी का शब्द है या फिर लघु रूप?
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