न्ट टेक्स्ट:
नई दिल्ली ।। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने वेदांता ग्रुप के बॉक्साइट माइनिंग प्रोजेक्ट की मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। यह
जानकारी वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने दी।
गौरतलब है कि सरकार द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों के एक पैनल ने वेदांता समूह के नियामगिरि हिल्स प्रॉजेक्ट को मंजूरी न देने की सिफारिश की थी। इसी सिफारिश के आधार पर वन मंत्रालय ने मंगलवार को सुबह इस बारे में अंतिम फैसला किया। सोमवार को उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने दिल्ली आकर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश से मुलाकात भी की थी। सूत्रों के मुताबिक उस मुलाकात में ही यह बात साफ हो गई थी कि सरकार पोस्को पर तो सहानुभूतिपूर्वक विचार कर सकती है, मगर वेदांता के प्रॉजेक्ट को मंजूरी मिलना मुश्किल है। विशेषज्ञों की समिति ने वेदांता द्वारा कानूनों के लगातार उल्लंघन की शिकायतों को सही पाया था।
सरकार के इस फैसले को वेदांता समूह के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। गौरतलब है कि माइनिंग क्षेत्र की इस प्रमुख कंपनी ने केयर्न इंडिया को खरीदने की कोशिशों के जरिए रिलायंस समूह के लिए बड़ी चुनौती पेश करने का इरादा जता दिया है। अब अपने-अपने क्षेत्र की इन दिग्गज कंपनियों को एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाने लगा है।
Aug 24, 2010
गंजेपन से कैसे पाएं निजात
गंजेपन को दूर करने के लिए आजकल मार्केट में कई अडवांस तकनीक हैं। मोटे तौर पर इस पूरे प्रॉसेस को हेयर रेस्टोरेशन कहा जाता है। हेयर रेस्टोरेशन के दो
तरीके हैं। पहला सर्जिकल और दूसरा नॉन-सर्जिकल। सर्जिकल के तहत आता है हेयर ट्रांसप्लांटेशन और नॉन-सर्जिकल के तहत हेयर वीविंग, बॉन्डिंग, सिलिकॉन सिस्टम और टेपिंग आते हैं। सलमान खान ने फ्रंटल के लिए सर्जिकल तरीका अपनाया है और सिर के दूसरे हिस्सों के लिए नॉन-सर्जिकल। एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये तरीके बिल्कुल सेफ हैं। पूरी जानकारी दे रहे हैं प्रभात गौड़ ।
सर्जिकल मैथडः हेयर ट्रांसप्लांटेशन
क्या है
हेयर ट्रांसप्लांटेशन एक ऐसा आर्टिस्टिक और सर्जिकल मैथड है, जिसकी मदद से सिर के पिछले व साइड वाले हिस्से से, दाढ़ी, छाती आदि से बालों को लेकर सिर के गंजे भाग में इंप्लांट कर दिया जाता है। इंप्लांट किए गए ये बाल परमानेंट होते हैं। वजह यह कि सिर के पिछले और साइड वाले हिस्सों के बाल आमतौर पर नहीं झड़ते। इंप्लांट होने के तकरीबन दो हफ्ते बाद ये उगने शुरू हो जाते हैं और एक साल के बाद इनमें फुल इंप्रूवमेंट नजर आने लगता है और नेचरल बालों जैसे दिखने लगते हैं। इन बालों की खूबी यह है कि ये परमानेंट होते हैं और जिंदगी भर रहते हैं, हालांकि कुछ केस ऐसे भी देखे गए हैं, जिनमें ये बाल उम्र बढ़ने के साथ साथ खत्म हो जाते हैं। जिस एरिया से बाल लिए जाते हैं, उसे डोनर एरिया कहते हैं। बाल लेने के बाद वहां टांके लगा दिए जाते हैं। कुछ दिनों के बाद वह जगह सामान्य हो जाती है।
कैसे होता है
स्ट्रिप मैथड : पहले मरीज को लोकल एनास्थीसिया दिया जाता है। उसके बाद डोनर एरिया से आधे इंच की एक स्ट्रिप निकाल ली जाती है और उसे सिर के उस भाग में इंप्लांट कर दिया जाता है, जहां गंजापन है। आधे इंच की एक स्ट्रिप में आमतौर पर दो से ढाई हजार तक फॉलिकल हो सकते हैं और एक फॉलिकल में दो से तीन बालों की रूट्स होती हैं। इंप्लांट करने के बाद डोनर एरिया में खुद घुल जाने वाले टांके लगा दिया जाते हैं। यह जगह कुछ दिनों बाद सामान्य हो जाती है। जिस एरिया में बाल लगाए जाते हैं, उस पर एक रात के लिए पट्टियां लगा दी जाती हैं, जिन्हें अगले दिन क्लिनिक में जाकर पेशेंट हटवा सकता है या खुद भी हटा सकता है। जहां तक दर्द का सवाल है तो यह उतना ही होता है जितना इंजेक्शन (यहां सिर को सुन्न करने का) लगवाने में होता है। सिर का हिस्सा सुन्न हो जाने के कारण बाद में दर्द नहीं होता।
एसयूई मैथड : स्ट्रिप मैथड में जहां डोनर एरिया से एक स्ट्रिप लेकर उसे इंप्लांट किया जाता है, वहीं एसयूई मैथड में एक-एक फॉलिकल को लेकर इंप्लांट किया जाता है। एक सिटिंग में 6 से 8 घंटे का समय लग जाता है। इसमें 2000 तक फोलिकल इंसर्ट कर दिए जाते हैं। एडमिट होने की जरूरत नहीं होती। अगर इससे भी गंजापन दूर नहीं होता है तो मरीज को दूसरी सिटिंग के लिए बुलाया जा सकता है। दूसरी सिटिंग छह महीने से एक साल के बाद होती है।
खर्च
एसयूई मैथड में 120 से 150 रुपये प्रति फॉलिकल का खर्च आता है। महंगा होने की वजह यह है कि इसमें डॉक्टर को ही सारा काम करना होता है। एक-एक रूट को निकालकर रोपना पड़ता है, जबकि स्ट्रिप मैथड में काफी काम टेक्निशियन भी कर देते हैं। स्ट्रिप मैथड में प्रति फॉलिकल 60 से 65 रुपये का खर्च आता है।
देखभाल
- हेयर ट्रांसप्लांटेशन के बाद आनेवाले बाल बिल्कुल आपके नेचरल बालों की तरह ही होते हैं। ये बिल्कुल वैसे ही ग्रो करेंगे, जैसे नेचरल बाल करते हैं। ऐसे में जैसे नेचरल बालों की देखरेख होती है, ठीक वैसे ही इनकी भी होती है।
- आप इन्हें कटा सकते हैं, शैंपू कर सकते हैं, तेल लगा सकते हैं और कॉम्ब भी कर सकते हैं।
- इन बालों को आप कलर करा सकते हैं या फिर मनचाहा स्टाइल दे सकते हैं। आप इनकी कटिंग भी करवा सकते हैं। कुछ दिनों बाद ये फिर से आ जाएंगे।
- जो बाल ट्रांसप्लांट कराए गए हैं, वे ताउम्र बने रहते हैं। वे गिरते नहीं। हालांकि कुछेक मामलों में देखा गया है कि उम्र बढ़ने के साथ साथ ये बाल गिरने लगते हैं।
- बाल चूंकि नेचरली ग्रो करते हैं इसलिए बालों का लुक थिन ही रहता है। कई बार लोग सर्जिकल और नॉन-सर्जिकल दोनों तरीकों को अपना लेते हैं।
डॉक्टर को बताएं अगर
- डायबीटीज, हाइपरटेंशन, मेटाबॉलिक डिस्ऑर्डर्स जैसी कोई क्रॉनिक बीमारी हो।
- बॉडी में अगर पेसमेकर जैसा कोई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस हो।
- किसी खास ड्रग्स से एलर्जी हो।
- अगर किसी खास बीमारी के लिए कोई दवाएं ले रहे हों।
दूसरा पहलू
इसमें दिक्कत यह होती है कि आपके सिर के दूसरे हिस्सों के नॉर्मल बाल पहले की रफ्तार से गिरते रह सकते हैं। ऐसे में ट्रांसप्लांट कराने के बाद भी लगातार कुछ खास दवाएं लेते रहने की जरूरत है, जिससे बाकी के बालों को गिरने से बचाया जा सके या उनके गिरने की रफ्तार को कम किया जा सके। ट्रांसप्लांटेशन के बाद अगर बालों का गिरना जारी रहे तो मरीज के पास उस जगह पर दोबारा ट्रांसप्लांटेशन कराने का ऑप्शन है, लेकिन इसमें यह देखना होगा कि डोनर एरिया पर उसके लायक बाल बचे भी हैं कि नहीं। डोनर एरिया पर ज्यादा बाल न होने की हालत में दोबारा ट्रांसप्लांटेशन संभव नहीं हो पाता। अगर बाल हैं, तो करा सकते हैं।
नॉन-सर्जिकल मैथड : हेयर वीविंग, बॉन्डिंग, सिलिकॉन सिस्टम और टेपिंग
हेयर वीविंग
हेयर वीविंग एक ऐसी टेक्निक है, जिसके जरिए नॉर्मल ह्यूमन हेयर या सिंथेटिक हेयर को खोपड़ी के उस भाग पर वीव कर दिया जाता है, जहां गंजापन है। आमतौर पर हेयर कटिंग कराने के बाद जो बाल मिलते हैं, उन्हें हेयर मैन्युफैक्चरर को बेच दिया जाता है। उसके बाद इन्हीं बालों को वीविंग के काम में यूज किया जाता है। ये थोड़े महंगे होते हैं, जबकि दूसरी तरफ सिंथेटिक हेयर नॉर्मल हेयर के मुकाबले थोड़े सस्ते होते हैं। सिंथेटिक हेयर कई तरह के सिंथेटिक फाइबर के बने होते हैं। बॉलिवुड में अक्षय खन्ना, अमिताभ बच्चन, सनी देओल और सुरेश ओबेराय ने हेयर वीविंग कराई है।
कैसे होती है
जहां-जहां बाल नहीं हैं, वहां-वहां हेयर यूनिट लगाई जाती है। इसके लिए सिर पर मौजूद तीन साइड के बालों की मदद से मशीन और धागे के जरिए एक बेस बनाते हैं। इस बेस के ऊपर हेयर यूनिट को स्टिच कर दिया जाता है। इस पूरे प्रॉसेस में दो घंटे लगते हैं और एक ही सिटिंग में काम पूरा हो जाता है। डेढ़ महीने के बाद जब आपके ओरिजनल बाल ग्रो होते हैं तो बेस ढीला हो जाता है जिसके चलते स्टिच की गई यूनिट भी ढीली हो जाती हैं। इन्हें ठीक कराने के लिए एक्सपर्ट के पास जाना पड़ता है।
- ये बाल सेमी-परमानेंट होते हैं। हर 15 दिन के बाद इनकी सर्विसिंग करानी पड़ती है। सर्विसिंग के काम में दो घंटे का वक्त लग जाता है।
- जो लोग अच्छी तरह से मेनटेन कर लेते हैं, उन्हें दो महीने बाद सर्विस की जरूरत होती है।
- देखभाल बिल्कुल नेचरल बालों की तरह ही करनी है। ऑयल यूज नहीं करना है। मोटे दांतों वाले कंघे का यूज किया जाता है।
- हर 15 दिनों के बाद होनेवाली सर्विस में 500 से 1500 रुपये तक का खर्च आ जाता है।
- इनकी लाइफ कम होती है। छह महीने से एक साल तक चल जाते हैं। हालांकि अच्छी देखभाल की जाए तो चार साल तक चल जाते हैं। एक बार बाल खराब हो जाने के बाद वीविंग का पूरा प्रॉसिजर दोहराना पड़ता है।
- इसे प्रॉसिजर में कई पेशेंट्स को दर्द होता है और यह दर्द पूरे एक दिन रहता है, जिसे कम करने के लिए पेनकिलर्स दिए जाते हैं।
बॉन्डिंग
बॉन्डिंग भी नॉन-सर्जिकल मैथड है। इसे क्लिपिंग सिस्टम कहा जाता है।
इसमें हेयर यूनिट के तीन साइड में क्लिप लगाते हैं। यह क्लिप यूनिट के अंदर से लगाया जाता है। इस क्लिप की मदद से यूनिट को पहले से मौजूद बालों के साथ अटैच कर दिया जाता है। इन्हें दिन में लगा सकते हैं और रात को खोल कर रख सकते हैं, लेकिन यह आपकी सुविधा पर निर्भर है। ऐसा करना जरूरी नहीं है।
सर्विस कराने की जरूरत नहीं होती। हेयर कट करा सकते हैं, लेकिन हेयर ड्रेसर को यह पता होना चाहिए कि आपके ऑरिजनल और नकली बाल कौन से हैं। उसी के हिसाब से उसे कटिंग करनी होगी। इसमें प्रॉसिजर में 1 घंटे का वक्त लगता है और इसमें दर्द नहीं होता। खराब हो जाने के बाद इसे दोबारा करा सकते हैं।
सिलिकॉन सिस्टम
अगर आप दर्द भी नहीं चाहते और बॉन्डिंग भी नहीं चाहते तो आप इस सिस्टम को अपना सकते हैं।
इसमें आसपास के ऑरिजनल बालों को ट्रिम किया जाता है। इसके बाद उस पर ग्लू (सिलिकॉन जेल) लगाते हैं और फिर हेयर यूनिट को इस पर चिपका देते हैं।
यह एक से डेढ़ महीने तक फिक्स रहता है उसके बाद ढीला होने लगता है। ऐसे में सर्विस कराने की जरूरत होती है। सर्विस में डेढ़ घंटा लगता है और इसकी फीस होती है 1000 से 1500 रुपये।
टेपिंग
यह भी एक नॉन-सर्जिकल मैथड है जिसमें हेयर यूनिट का इस्तेमाल करते हैं। इस्तेमाल करने का तरीका अलग होता है।
इस प्रॉसिजर में एक टेप का इस्तेमाल किया जाता है, जो दो तरफ से स्टिकी होता है और ट्रांसपैरंट होता है। यह आम लोगों को नजर नहीं आता। दो स्टिकी सिरों में से एक सिर में लगती है और दूसरी यूनिट में।
इसमें भी 15 दिनों बाद सर्विस की जरूरत पड़ती है। लेकिन इसमें फायदा यह है कि कुछ फीस देकर सैलून में ही सर्विस करने का तरीका सीखा जा सकता है और फिर हर 15 दिन बाद खुद ही सर्विस की जा सकती है। जो लोग देश से बाहर ज्यादा रहते हैं, उनके लिए यह तरीका मुनासिब है।
नोट : इन चारों तरीकों का खर्च वीव किए जानेवाले बालों की क्वॉलिटी पर निर्भर करता है, गंजेपन की स्थिति या मैथड पर नहीं। बालों की क्वॉलिटी के हिसाब से आमतौर पर इसका खर्च पांच हजार से 80 हजार रुपये के बीच आता है।
विग
जिस तरह पहले विग यूज होती थी, उसी का अडवांस वर्जन आज भी यूज होता है, लेकिन हेयर वीविंग और विग में बहुत फर्क है। हेयर वीविंग सिर्फ उस जगह की जाती है, जहां गंजापन है, जबकि विग को फोरहेड लाइन से ईयर लाइन तक पूरा पहना जाता है, गंजापन भले ही कहीं पर भी हो। आजकल विग को लोग कम प्रेफर करते हैं क्योंकि पहनने के यह काफी टाइट लगती है।
बी केयरफुल
हेयर रेस्टोरेशन के ऊपर बताए गए तरीकों से वैसे तो कोई खास और स्थायी साइड इफेक्ट्स या नुकसान नहीं होता है, फिर भी कुछ पेशेंट्स को कई तरह की दिक्कतें आ सकती हैं। ये इस तरह हैं:
- हेयर रेस्टोरेशन के बाद पहले से मौजूद ओरिजनल बाल कुछ वक्त के लिए थिन हो सकते हैं। इस स्थिति को शॉक लॉस या शेडिंग के नाम से जाना जाता है। कुछ समय बाद यह स्थिति खुद-ब-खुद ठीक हो जाती है।
- खोपड़ी सुन्न हो सकती है या उसमें ढीलापन आ सकता है। यह भी कुछ महीनों में अपने आप ही ठीक हो जाता है।
- सिर में दर्द या खुजली की शिकायत हो सकती है।
- इंफेक्शन की भी आशंका होती है, जिसे एंटिबायोटिक्स के जरिए कुछ ही समय में ठीक कर दिया जाता है।
- कुछ दिनों के लिए आंखों और माथे पर सूजन आ सकती
तरीके हैं। पहला सर्जिकल और दूसरा नॉन-सर्जिकल। सर्जिकल के तहत आता है हेयर ट्रांसप्लांटेशन और नॉन-सर्जिकल के तहत हेयर वीविंग, बॉन्डिंग, सिलिकॉन सिस्टम और टेपिंग आते हैं। सलमान खान ने फ्रंटल के लिए सर्जिकल तरीका अपनाया है और सिर के दूसरे हिस्सों के लिए नॉन-सर्जिकल। एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये तरीके बिल्कुल सेफ हैं। पूरी जानकारी दे रहे हैं प्रभात गौड़ ।
सर्जिकल मैथडः हेयर ट्रांसप्लांटेशन
क्या है
हेयर ट्रांसप्लांटेशन एक ऐसा आर्टिस्टिक और सर्जिकल मैथड है, जिसकी मदद से सिर के पिछले व साइड वाले हिस्से से, दाढ़ी, छाती आदि से बालों को लेकर सिर के गंजे भाग में इंप्लांट कर दिया जाता है। इंप्लांट किए गए ये बाल परमानेंट होते हैं। वजह यह कि सिर के पिछले और साइड वाले हिस्सों के बाल आमतौर पर नहीं झड़ते। इंप्लांट होने के तकरीबन दो हफ्ते बाद ये उगने शुरू हो जाते हैं और एक साल के बाद इनमें फुल इंप्रूवमेंट नजर आने लगता है और नेचरल बालों जैसे दिखने लगते हैं। इन बालों की खूबी यह है कि ये परमानेंट होते हैं और जिंदगी भर रहते हैं, हालांकि कुछ केस ऐसे भी देखे गए हैं, जिनमें ये बाल उम्र बढ़ने के साथ साथ खत्म हो जाते हैं। जिस एरिया से बाल लिए जाते हैं, उसे डोनर एरिया कहते हैं। बाल लेने के बाद वहां टांके लगा दिए जाते हैं। कुछ दिनों के बाद वह जगह सामान्य हो जाती है।
कैसे होता है
स्ट्रिप मैथड : पहले मरीज को लोकल एनास्थीसिया दिया जाता है। उसके बाद डोनर एरिया से आधे इंच की एक स्ट्रिप निकाल ली जाती है और उसे सिर के उस भाग में इंप्लांट कर दिया जाता है, जहां गंजापन है। आधे इंच की एक स्ट्रिप में आमतौर पर दो से ढाई हजार तक फॉलिकल हो सकते हैं और एक फॉलिकल में दो से तीन बालों की रूट्स होती हैं। इंप्लांट करने के बाद डोनर एरिया में खुद घुल जाने वाले टांके लगा दिया जाते हैं। यह जगह कुछ दिनों बाद सामान्य हो जाती है। जिस एरिया में बाल लगाए जाते हैं, उस पर एक रात के लिए पट्टियां लगा दी जाती हैं, जिन्हें अगले दिन क्लिनिक में जाकर पेशेंट हटवा सकता है या खुद भी हटा सकता है। जहां तक दर्द का सवाल है तो यह उतना ही होता है जितना इंजेक्शन (यहां सिर को सुन्न करने का) लगवाने में होता है। सिर का हिस्सा सुन्न हो जाने के कारण बाद में दर्द नहीं होता।
एसयूई मैथड : स्ट्रिप मैथड में जहां डोनर एरिया से एक स्ट्रिप लेकर उसे इंप्लांट किया जाता है, वहीं एसयूई मैथड में एक-एक फॉलिकल को लेकर इंप्लांट किया जाता है। एक सिटिंग में 6 से 8 घंटे का समय लग जाता है। इसमें 2000 तक फोलिकल इंसर्ट कर दिए जाते हैं। एडमिट होने की जरूरत नहीं होती। अगर इससे भी गंजापन दूर नहीं होता है तो मरीज को दूसरी सिटिंग के लिए बुलाया जा सकता है। दूसरी सिटिंग छह महीने से एक साल के बाद होती है।
खर्च
एसयूई मैथड में 120 से 150 रुपये प्रति फॉलिकल का खर्च आता है। महंगा होने की वजह यह है कि इसमें डॉक्टर को ही सारा काम करना होता है। एक-एक रूट को निकालकर रोपना पड़ता है, जबकि स्ट्रिप मैथड में काफी काम टेक्निशियन भी कर देते हैं। स्ट्रिप मैथड में प्रति फॉलिकल 60 से 65 रुपये का खर्च आता है।
देखभाल
- हेयर ट्रांसप्लांटेशन के बाद आनेवाले बाल बिल्कुल आपके नेचरल बालों की तरह ही होते हैं। ये बिल्कुल वैसे ही ग्रो करेंगे, जैसे नेचरल बाल करते हैं। ऐसे में जैसे नेचरल बालों की देखरेख होती है, ठीक वैसे ही इनकी भी होती है।
- आप इन्हें कटा सकते हैं, शैंपू कर सकते हैं, तेल लगा सकते हैं और कॉम्ब भी कर सकते हैं।
- इन बालों को आप कलर करा सकते हैं या फिर मनचाहा स्टाइल दे सकते हैं। आप इनकी कटिंग भी करवा सकते हैं। कुछ दिनों बाद ये फिर से आ जाएंगे।
- जो बाल ट्रांसप्लांट कराए गए हैं, वे ताउम्र बने रहते हैं। वे गिरते नहीं। हालांकि कुछेक मामलों में देखा गया है कि उम्र बढ़ने के साथ साथ ये बाल गिरने लगते हैं।
- बाल चूंकि नेचरली ग्रो करते हैं इसलिए बालों का लुक थिन ही रहता है। कई बार लोग सर्जिकल और नॉन-सर्जिकल दोनों तरीकों को अपना लेते हैं।
डॉक्टर को बताएं अगर
- डायबीटीज, हाइपरटेंशन, मेटाबॉलिक डिस्ऑर्डर्स जैसी कोई क्रॉनिक बीमारी हो।
- बॉडी में अगर पेसमेकर जैसा कोई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस हो।
- किसी खास ड्रग्स से एलर्जी हो।
- अगर किसी खास बीमारी के लिए कोई दवाएं ले रहे हों।
दूसरा पहलू
इसमें दिक्कत यह होती है कि आपके सिर के दूसरे हिस्सों के नॉर्मल बाल पहले की रफ्तार से गिरते रह सकते हैं। ऐसे में ट्रांसप्लांट कराने के बाद भी लगातार कुछ खास दवाएं लेते रहने की जरूरत है, जिससे बाकी के बालों को गिरने से बचाया जा सके या उनके गिरने की रफ्तार को कम किया जा सके। ट्रांसप्लांटेशन के बाद अगर बालों का गिरना जारी रहे तो मरीज के पास उस जगह पर दोबारा ट्रांसप्लांटेशन कराने का ऑप्शन है, लेकिन इसमें यह देखना होगा कि डोनर एरिया पर उसके लायक बाल बचे भी हैं कि नहीं। डोनर एरिया पर ज्यादा बाल न होने की हालत में दोबारा ट्रांसप्लांटेशन संभव नहीं हो पाता। अगर बाल हैं, तो करा सकते हैं।
नॉन-सर्जिकल मैथड : हेयर वीविंग, बॉन्डिंग, सिलिकॉन सिस्टम और टेपिंग
हेयर वीविंग
हेयर वीविंग एक ऐसी टेक्निक है, जिसके जरिए नॉर्मल ह्यूमन हेयर या सिंथेटिक हेयर को खोपड़ी के उस भाग पर वीव कर दिया जाता है, जहां गंजापन है। आमतौर पर हेयर कटिंग कराने के बाद जो बाल मिलते हैं, उन्हें हेयर मैन्युफैक्चरर को बेच दिया जाता है। उसके बाद इन्हीं बालों को वीविंग के काम में यूज किया जाता है। ये थोड़े महंगे होते हैं, जबकि दूसरी तरफ सिंथेटिक हेयर नॉर्मल हेयर के मुकाबले थोड़े सस्ते होते हैं। सिंथेटिक हेयर कई तरह के सिंथेटिक फाइबर के बने होते हैं। बॉलिवुड में अक्षय खन्ना, अमिताभ बच्चन, सनी देओल और सुरेश ओबेराय ने हेयर वीविंग कराई है।
कैसे होती है
जहां-जहां बाल नहीं हैं, वहां-वहां हेयर यूनिट लगाई जाती है। इसके लिए सिर पर मौजूद तीन साइड के बालों की मदद से मशीन और धागे के जरिए एक बेस बनाते हैं। इस बेस के ऊपर हेयर यूनिट को स्टिच कर दिया जाता है। इस पूरे प्रॉसेस में दो घंटे लगते हैं और एक ही सिटिंग में काम पूरा हो जाता है। डेढ़ महीने के बाद जब आपके ओरिजनल बाल ग्रो होते हैं तो बेस ढीला हो जाता है जिसके चलते स्टिच की गई यूनिट भी ढीली हो जाती हैं। इन्हें ठीक कराने के लिए एक्सपर्ट के पास जाना पड़ता है।
- ये बाल सेमी-परमानेंट होते हैं। हर 15 दिन के बाद इनकी सर्विसिंग करानी पड़ती है। सर्विसिंग के काम में दो घंटे का वक्त लग जाता है।
- जो लोग अच्छी तरह से मेनटेन कर लेते हैं, उन्हें दो महीने बाद सर्विस की जरूरत होती है।
- देखभाल बिल्कुल नेचरल बालों की तरह ही करनी है। ऑयल यूज नहीं करना है। मोटे दांतों वाले कंघे का यूज किया जाता है।
- हर 15 दिनों के बाद होनेवाली सर्विस में 500 से 1500 रुपये तक का खर्च आ जाता है।
- इनकी लाइफ कम होती है। छह महीने से एक साल तक चल जाते हैं। हालांकि अच्छी देखभाल की जाए तो चार साल तक चल जाते हैं। एक बार बाल खराब हो जाने के बाद वीविंग का पूरा प्रॉसिजर दोहराना पड़ता है।
- इसे प्रॉसिजर में कई पेशेंट्स को दर्द होता है और यह दर्द पूरे एक दिन रहता है, जिसे कम करने के लिए पेनकिलर्स दिए जाते हैं।
बॉन्डिंग
बॉन्डिंग भी नॉन-सर्जिकल मैथड है। इसे क्लिपिंग सिस्टम कहा जाता है।
इसमें हेयर यूनिट के तीन साइड में क्लिप लगाते हैं। यह क्लिप यूनिट के अंदर से लगाया जाता है। इस क्लिप की मदद से यूनिट को पहले से मौजूद बालों के साथ अटैच कर दिया जाता है। इन्हें दिन में लगा सकते हैं और रात को खोल कर रख सकते हैं, लेकिन यह आपकी सुविधा पर निर्भर है। ऐसा करना जरूरी नहीं है।
सर्विस कराने की जरूरत नहीं होती। हेयर कट करा सकते हैं, लेकिन हेयर ड्रेसर को यह पता होना चाहिए कि आपके ऑरिजनल और नकली बाल कौन से हैं। उसी के हिसाब से उसे कटिंग करनी होगी। इसमें प्रॉसिजर में 1 घंटे का वक्त लगता है और इसमें दर्द नहीं होता। खराब हो जाने के बाद इसे दोबारा करा सकते हैं।
सिलिकॉन सिस्टम
अगर आप दर्द भी नहीं चाहते और बॉन्डिंग भी नहीं चाहते तो आप इस सिस्टम को अपना सकते हैं।
इसमें आसपास के ऑरिजनल बालों को ट्रिम किया जाता है। इसके बाद उस पर ग्लू (सिलिकॉन जेल) लगाते हैं और फिर हेयर यूनिट को इस पर चिपका देते हैं।
यह एक से डेढ़ महीने तक फिक्स रहता है उसके बाद ढीला होने लगता है। ऐसे में सर्विस कराने की जरूरत होती है। सर्विस में डेढ़ घंटा लगता है और इसकी फीस होती है 1000 से 1500 रुपये।
टेपिंग
यह भी एक नॉन-सर्जिकल मैथड है जिसमें हेयर यूनिट का इस्तेमाल करते हैं। इस्तेमाल करने का तरीका अलग होता है।
इस प्रॉसिजर में एक टेप का इस्तेमाल किया जाता है, जो दो तरफ से स्टिकी होता है और ट्रांसपैरंट होता है। यह आम लोगों को नजर नहीं आता। दो स्टिकी सिरों में से एक सिर में लगती है और दूसरी यूनिट में।
इसमें भी 15 दिनों बाद सर्विस की जरूरत पड़ती है। लेकिन इसमें फायदा यह है कि कुछ फीस देकर सैलून में ही सर्विस करने का तरीका सीखा जा सकता है और फिर हर 15 दिन बाद खुद ही सर्विस की जा सकती है। जो लोग देश से बाहर ज्यादा रहते हैं, उनके लिए यह तरीका मुनासिब है।
नोट : इन चारों तरीकों का खर्च वीव किए जानेवाले बालों की क्वॉलिटी पर निर्भर करता है, गंजेपन की स्थिति या मैथड पर नहीं। बालों की क्वॉलिटी के हिसाब से आमतौर पर इसका खर्च पांच हजार से 80 हजार रुपये के बीच आता है।
विग
जिस तरह पहले विग यूज होती थी, उसी का अडवांस वर्जन आज भी यूज होता है, लेकिन हेयर वीविंग और विग में बहुत फर्क है। हेयर वीविंग सिर्फ उस जगह की जाती है, जहां गंजापन है, जबकि विग को फोरहेड लाइन से ईयर लाइन तक पूरा पहना जाता है, गंजापन भले ही कहीं पर भी हो। आजकल विग को लोग कम प्रेफर करते हैं क्योंकि पहनने के यह काफी टाइट लगती है।
बी केयरफुल
हेयर रेस्टोरेशन के ऊपर बताए गए तरीकों से वैसे तो कोई खास और स्थायी साइड इफेक्ट्स या नुकसान नहीं होता है, फिर भी कुछ पेशेंट्स को कई तरह की दिक्कतें आ सकती हैं। ये इस तरह हैं:
- हेयर रेस्टोरेशन के बाद पहले से मौजूद ओरिजनल बाल कुछ वक्त के लिए थिन हो सकते हैं। इस स्थिति को शॉक लॉस या शेडिंग के नाम से जाना जाता है। कुछ समय बाद यह स्थिति खुद-ब-खुद ठीक हो जाती है।
- खोपड़ी सुन्न हो सकती है या उसमें ढीलापन आ सकता है। यह भी कुछ महीनों में अपने आप ही ठीक हो जाता है।
- सिर में दर्द या खुजली की शिकायत हो सकती है।
- इंफेक्शन की भी आशंका होती है, जिसे एंटिबायोटिक्स के जरिए कुछ ही समय में ठीक कर दिया जाता है।
- कुछ दिनों के लिए आंखों और माथे पर सूजन आ सकती
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LATEST NEWS
Aug 23, 2010
मोनालिसा की रहस्यमयी मुस्कान का राज खुला
दन.मोनालिसा की विस्मयकारी मुस्कान लगभग 500 वर्षो से एक गहरा राज है। लियोनार्दो दा विंची की इस कृति को देखकर आज भी लोगों के जेहन में कई सवाल उठते हैं। आज भी यह रहस्य अनसुलझा ही है कि क्यों मोनालिसा पहले मुस्कुराती है, फिर उसकी मुस्कान फीकी हो जाती है और कहीं खो जाती है।
लेकिन, वैज्ञानिकों की मानें तो उन्होंने इस रहस्य को पूरी तरह सुलझा लिया है। उन्होंने दावा किया है कि उन प्रकाशकीय प्रभावों का पता लगा लिया गया है, जिससे दा विंची ने यह कृति बनाई थी। यूरोपीय वैज्ञानिकों के एक दल ने कहा है कि दा विंची ने स्मोकी प्रभाव से इसे बनाया। इसे स्फूमैटो के नाम से जाना जाता है। महान चित्रकार दा विंची ने इस चित्रकारी के लिए 40 बेहद बारीक परतों की कलई अपनी उंगलियों से चढ़ाई थी। इससे मोनालिसा के चेहरे पर चमक आई।
चेहरे की यह आभा विभिन्न वर्णकों का मिश्रण है, जो मोनालिसा के मुख के इर्द-गिर्द धुंधला प्रकाश और छाया प्रदान करती है। यह प्रकाश और छाया लुका-छिपी के खेल की तरह है यानी एक पल में यह नजर आती है तो दूसरे में गायब। वैज्ञानिकों ने इन रहस्यों का पता लगाने के लिए तस्वीर का अध्ययन किया और इसके लिए उन्होंने एक्स-रे का इस्तेमाल किया।
इससे उन्होंने आभा की विभिन्न परतों और चेहरे के विभिन्न हिस्से पर पेंट के बदलते स्तरों का पता लगाया। संग्रहालय के रखरखाव एवं अनुसंधान के संबंध में फ्रांस की प्रयोगशाला और यूरोपीय सिंक्रोट्रॉन केंद्र ने अध्ययन किया।
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Aug 21, 2010
जानिए क्या है ‘सिबिल’
आजकल आपको बहुत से लोग सिबिल की चर्चा करते मिल जाएंगे और बातएंगे की उनका नाम सिबिल में चला गया है। और अब उन्हें लोन वगैरह नहीं मिलेगा। आइए हम आपको बताते हैं कि सिबिल क्या है और उससे आप कैसे छुटकारा पा सकते हैं।
सिबिल का पूरा फॉर्म है क्रेडिट इंफॉरमेंशन ब्यूरो( इंडिया) लिमिटेड। यह एक प्राइवेट संगठन है और इसके सद्स्य स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सहित भारत के सभी बड़े सरकारी और प्राइवेट बैंक हैं यह आईएसओ 27001:2005 प्राप्त संगठन है और इसका दावा है कि वह अपने डेटा को सिर्फ अपने सदस्यों को ही देता है। यह भारत का पहला इस तरह का संगठन है। और इसका रजिस्टर्ड कार्यालय नरीमन प्वाइंट मुंबई में है।
सिबिल अपने सदस्य बैंकों के लिखित आग्रह पर किसी व्यक्ति या फर्म या लिमिटेड कंपनी के कर्ज चुकाने का इतिहास आंकडे वगैरह उपलब्ध कराता है। इन आंकडों के सहारे वह बैंक या संस्था, किसी व्यक्ति या कंपनी की आर्थिक स्थिति और उसके लोन चुकाने की आदत जान लेती है। इससे वह बैंक अनावश्यक जोखिम से बच जाता है। ग्राहकों को भी इसका फायदा होता है। अगर उनका रिकार्ड क्लीन है तो उसे तुरंत लोन मिल जाता है जो ग्राहक लोन नहीं चुकाते या बराबर डिफॉल्ट करते रहते हैं उनके तमाम आंकडे सिबिल के पास जाते ही उसके सद्स्य य बैंक उसे शेयर कर लेते हैं। ज्यादातर मामलों में ऐसे लोगों को लोन या क्रेडिट कार्ड नहीं मिल पाता है।
सिबिल अपने सदस्य बैंकों को व्यक्तिगत ग्राहकों और फर्मों तथा कंपनियों वगैरह की लोन हिस्ट्री के अलावा अन्य तरह की सूचनाएं भी उपलब्ध कराता है मसलन पासपोर्ट नंबर, वोटर आईडी कार्ड, जन्मतिथि वगैरह। इसी तरह कंपनियों के मामले में उनका रजिस्ट्रेशन नंबर वगैरह उपलब्ध कराता है। इसके लिए सिबिल के पास दो सेगमेंट हैं। एक है कंज्यूमर क्रेडिट ब्यूरो और दूसरा कमर्शियल क्रेडिट ब्यूरो। ये बैंकों, वित्तीय संस्थाओं वगैरह से सूचनाएं एकत्र करते हैं और अपने सदस्यों को देते हैं।
अगर आपका नाम सिबिल में चला गया है और आपने तमाम कर्ज चुका दिए हैं तो आप कर्जदाता बैंक से कहे कि वह आपका नाम सिबिल से हटवाए। आपका नाम सिबिल में है या नहीं इसके लिए उनकी वेबसाइट डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट सिबिल डॉट कॉम पर लॉग करके जान सकते हैं। पूरी रिपोर्ट लेने के लिए आपको 142 रुपए खर्च करने होंगे। आम धारणा के विपरीत सिबिल किसी को डिफॉल्टर घोषित नहीं करता है। वह व्यक्ति या कंपनी की सिर्फ फाइनेशियल हिस्ट्री बताता है। वह किसी के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करता।
कौन कौन है सिबिल के शेयर होल्डर:- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया(10%),आईसीआईसीआई बैंक (10%) एचडीएफसी बैंक लि.(10%), स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक (5%), सैंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (5%) सिटीकार्प फाइनेंस इंडिया लि. (5%), यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (5%), पंजाब नेशनल बैंक (5%), इंडियन ओवरसीज बैंक (5%), बैंक ऑफ इंडिया 95%), बैंक ऑफ बड़ौदा (5%), जीई स्ट्रेटजिक इंवेस्टमेंट इंडिया (2.5%), सुंदरम फाइनेंस लि.(2.5%), इनऐंड ब्रैडस्ट्रीट इंफोरमेंशन सर्विसेज इंडिया प्रा. लि.(0.01) और ट्रांस इंटरनेशनल इंक (19.99%)।
सिबिल का पूरा फॉर्म है क्रेडिट इंफॉरमेंशन ब्यूरो( इंडिया) लिमिटेड। यह एक प्राइवेट संगठन है और इसके सद्स्य स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सहित भारत के सभी बड़े सरकारी और प्राइवेट बैंक हैं यह आईएसओ 27001:2005 प्राप्त संगठन है और इसका दावा है कि वह अपने डेटा को सिर्फ अपने सदस्यों को ही देता है। यह भारत का पहला इस तरह का संगठन है। और इसका रजिस्टर्ड कार्यालय नरीमन प्वाइंट मुंबई में है।
सिबिल अपने सदस्य बैंकों के लिखित आग्रह पर किसी व्यक्ति या फर्म या लिमिटेड कंपनी के कर्ज चुकाने का इतिहास आंकडे वगैरह उपलब्ध कराता है। इन आंकडों के सहारे वह बैंक या संस्था, किसी व्यक्ति या कंपनी की आर्थिक स्थिति और उसके लोन चुकाने की आदत जान लेती है। इससे वह बैंक अनावश्यक जोखिम से बच जाता है। ग्राहकों को भी इसका फायदा होता है। अगर उनका रिकार्ड क्लीन है तो उसे तुरंत लोन मिल जाता है जो ग्राहक लोन नहीं चुकाते या बराबर डिफॉल्ट करते रहते हैं उनके तमाम आंकडे सिबिल के पास जाते ही उसके सद्स्य य बैंक उसे शेयर कर लेते हैं। ज्यादातर मामलों में ऐसे लोगों को लोन या क्रेडिट कार्ड नहीं मिल पाता है।
सिबिल अपने सदस्य बैंकों को व्यक्तिगत ग्राहकों और फर्मों तथा कंपनियों वगैरह की लोन हिस्ट्री के अलावा अन्य तरह की सूचनाएं भी उपलब्ध कराता है मसलन पासपोर्ट नंबर, वोटर आईडी कार्ड, जन्मतिथि वगैरह। इसी तरह कंपनियों के मामले में उनका रजिस्ट्रेशन नंबर वगैरह उपलब्ध कराता है। इसके लिए सिबिल के पास दो सेगमेंट हैं। एक है कंज्यूमर क्रेडिट ब्यूरो और दूसरा कमर्शियल क्रेडिट ब्यूरो। ये बैंकों, वित्तीय संस्थाओं वगैरह से सूचनाएं एकत्र करते हैं और अपने सदस्यों को देते हैं।
अगर आपका नाम सिबिल में चला गया है और आपने तमाम कर्ज चुका दिए हैं तो आप कर्जदाता बैंक से कहे कि वह आपका नाम सिबिल से हटवाए। आपका नाम सिबिल में है या नहीं इसके लिए उनकी वेबसाइट डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट सिबिल डॉट कॉम पर लॉग करके जान सकते हैं। पूरी रिपोर्ट लेने के लिए आपको 142 रुपए खर्च करने होंगे। आम धारणा के विपरीत सिबिल किसी को डिफॉल्टर घोषित नहीं करता है। वह व्यक्ति या कंपनी की सिर्फ फाइनेशियल हिस्ट्री बताता है। वह किसी के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करता।
कौन कौन है सिबिल के शेयर होल्डर:- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया(10%),आईसीआईसीआई बैंक (10%) एचडीएफसी बैंक लि.(10%), स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक (5%), सैंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (5%) सिटीकार्प फाइनेंस इंडिया लि. (5%), यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (5%), पंजाब नेशनल बैंक (5%), इंडियन ओवरसीज बैंक (5%), बैंक ऑफ इंडिया 95%), बैंक ऑफ बड़ौदा (5%), जीई स्ट्रेटजिक इंवेस्टमेंट इंडिया (2.5%), सुंदरम फाइनेंस लि.(2.5%), इनऐंड ब्रैडस्ट्रीट इंफोरमेंशन सर्विसेज इंडिया प्रा. लि.(0.01) और ट्रांस इंटरनेशनल इंक (19.99%)।
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