मुंबई: शेयर बाजार के प्रत्येक कारोबारी सत्र के बाद कुछ शेयर सबसे अधिक चढ़ने वाले और कुछ सबसे अधिक नुकसान उठाने वालों की कतार में पहुंच जाते हैं। कोई भी व्यक्ति ऐसे शेयरों को पहले से खरीदकर लाखों रुपए कमा सकता है जो बाजार में सबसे अधिक लाभ कमाने वाले शेयरों में हों लेकिन सही समय पर उचित शेयर खरीदने के लिए आपकी किस्मत तेज होनी चाहिए। आप कारोबारी रणनीतियों आधार पर भी अच्छे और खराब शेयर पहचान सकते हैं।
ईटी आपको कुछ ऐसी ही कारोबारी रणनीतियों के बारे में जानकारी दे रहा है। लेकिन उससे पहले शेयरों की कीमतों का ट्रेंड समझना जरूरी है। यह ट्रेंड या तो कुछ दिनों तक जारी रहता है या फिर प्रत्येक दूसरे दिन बदल जाता है। शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के बारे में जानने के लिए अगला बटन पर क्लिक करें....
ये मुमकिन है: 3 महीने में 100 रुपए से बनाए जा सकते हैं 2 करोड़ रु
इन 10 शेयरों में काटी जा सकती है मलाई
बाजार की तेजी से धोखे न खा
हुत से मामलों में उतार या चढ़ाव का ट्रेंड कुछ दिनों तक चलता है। उदाहरण के लिए सुंदरम ब्रेक लाइनिंग्स दो जून, 2009 को एनएसई पर सबसे अधिक गिरने वाले शेयरों में शामिल था और अगले कुछ दिनों तक इसमें गिरावट जारी रही। यह चार जून को 165 रुपए पर बंद हुआ जबकि तीन दिन पहले इसका दाम 200 रुपए था। इसी तरह एसकेएम एग प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट 27 मई, 2009 को सबसे अधिक चढ़ने वाले शेयरों में शुमार था और इसमें तेजी 1 जून तक जारी रही। इस दिन यह 29 रुपए पर बंद हुआ।
टॉरस असेट मैनेजमेंट के एमडी आर के गुप्ता का कहना है कि ऐसे शेयरों को लंबी अवधि के नजरिए से नहीं खरीदना चाहिए। इनमें कम समय का निवेश बेहतर रहता है।...कीमत की चाल और वॉल्यूम का कैसे रखें ध्यान...
ये मुमकिन है: 3 महीने में 100 रुपए से बनाए जा सकते हैं 2 करोड़ रु
इन 10 शेयरों में काटी जा सकती है मलाई
किसी भी फैसले से पहले दो बातों- कीमत की चाल और ट्रेडिंग वॉल्यूम पर ध्यान देना चाहिए। अगर किसी शेयर का दाम ऊपर जा रहा है और इसमें कारोबार की मात्रा भी अधिक है तो यह चलन अगले कुछ दिनों तक जारी रह सकता है। इसी तरह दाम घटने और वॉल्यूम अधिक होने से कीमत और गिरने की संभावना रहती है। अगर आप किसी शेयर में ज्यादा वॉल्यूम देखते हैं तो उसमें पोजीशन ली जा सकती है। इसका मतलब है कि अगर दाम चढ़ रहा हो तो आप उसे खरीद सकते हैं।
अगर आपके पास किसी कंपनी का शेयर मौजूद है और दाम बढ़ने की वजह से आप इसमें मुनाफावसूली करना चाहते हैं तो आपको उस शेयर की वॉल्यूम पर नजर डालनी चाहिए। अगर कीमतें चढ़ने के साथ वॉल्यूम भी अधिक है तो सभी शेयर एक साथ न बेचें। आप इसमें धीरे-धीरे मुनाफावसूली कर सकते हैं। इसी तरह अगर दाम बहुत अधिक गिर रहे हैं तो आपको मूल्यांकन आकर्षक होने के बावजूद खरीदारी को लेकर जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। इसके लिए दाम और गिरने और ट्रेंड बदलने का इंतजार करना चाहिए।
हुत से मामलों में साइकल बहुत कम समय का होता है। एक कंपनी अगर आज सबसे अधिक चढ़ने वाले शेयरों में शामिल है तो अगले दिन सबसे नुकसान वाले शेयरों की सूची में आ सकती है। उदाहरण के लिए रैनबैक्सी लेबोरेटरीज का शेयर 25 मई, 2009 को 21 फीसदी चढ़ा था लेकिन अगले ही दिन इसमें आठ फीसदी की गिरावट दर्ज की गई और यह 244 रुपए पर बंद हुआ था। ऐसे मामलों से बचने के लिए स्टॉप लॉस का विकल्प रामबाण का काम करता है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सविर्सेज के सीएमडी मोतीलाल ओसवाल का कहना है, 'लगभग 90 फीसदी निवेशक स्टॉप लॉस नहीं लगाते। शेयर बाजार में वही विजेता होते हैं जो स्टॉप लॉस के विकल्प का इस्तेमाल करते हैं।'
शेयरों की कीमतों को लेकर फंडामेंटल और बाजार के असर को अलग रखना चाहिए। गुप्ता का कहना है, 'अगर कोई निवेशक कम अवधि में धन कमाना चाहता है तो उसे फंडामेंटल पर ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि फंडामेंटल के आधार पर लंबी अवधि में ही फायदा होता है।'
Oct 1, 2010
बीएसई पर शेयरों के कितने समूह हैं?
बीएसई पर कारोबार करने वाले शेयरों को ए, बी, टी, एस, टीएस और जेड समूहों में बांटा गया है। इनके अलावा
सिक्योरिटीज के वर्गीकरण के लिए कुछ समूह बनाए गए हैं, जिनमें एफ और जी शामिल हैं।
शेयरों को समूहों में क्यों बांटा जाता है?
आम तौर पर निवेशकों को हर शेयर के बारे पूरी जानकारी नहीं होती। उनकी मदद के लिए ही एक्सचेंज शेयरों को कुछ खास खूबियों या कमियों के आधार पर श्रेणियों में बांट देते हैं, ताकि निवेशकों को निवेश या ट्रेड करते समय उनके बारे में कुछ आधारभूत बातें समझ में आ जाएं।
समूहों में शेयरों का वर्गीकररण किस आधार पर किया जाता है?
शेयरों के वर्गीकरण के लिए उनकी बाजार पूंजी (एम कैप), ट्रेडिंग वॉल्यूम, नतीजे, इतिहास, मुनाफा, लाभांश, हिस्सेदारी और इसी तरह के कुछ मानकों का सहारा लिया जाता है। फरवरी 2008 में बीएसई ने शेयरों के वगीर्करण के लिए तय मानकों को अपडेट किया है।ए समूह के शेयरों को निवेशक और विश्लेषक सबसे भरोसेमंद मानते हैं। इस वर्ग में शामिल किए जाने के लिए जरूरी मानकों में सबसे महत्वपूर्ण बाजार पूंजीकरण है। इस समय ए समूह में कुल 216 शेयर शामिल हैं। एस समूह में बीएसई इंडोनेक्स्ट सूचकांक के शेयरों को शामिल किया गया है। इस सूचकांक का गठन बीएसई ने 7 जनवरी 2005 को किया था। एस ग्रुप में बी समूह के शेयर शामिल होते हैं और इसके अलावा 3 करोड़ रुपए से 30 करोड़ रुपए के बीच की पूंजी वाली कंपनियों, जो केवल क्षेत्रीय एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होती हैं, के शेयर भी एस का हिस्सा होते हैं।
जेड समूह में किस तरह के शेयर शामिल हैं?
जेड समूह के शेयर सबसे ज्यादा गैर भरोसेमंद होते हैं। बीएसई ने यह समूह 1999 में बनाया था। इसमें ऐसी कंपनियों के शेयरों को शामिल किया जाता है, जो सूचीबद्ध होते समय एक्सचेंज द्वारा तय नियमों का पालन करने में असफल रहती हैं। इसमें शेयरधारकों की समस्याओं के प्रति उदासीन और अपने शेयरों के डीमैटेरियलाइजेशन के लिए जरूरी प्रबंध करने में नाकाम रहने वाली कंपनियों को भी शामिल किया जाता है। जो शेयर ए, एस और जेड में शामिल नहीं होते, वे बी समूह में होते हैं। मार्च 2008 से पहले इस समूह के शेयर दो समूहों, बी1 और बी2 में बंटे थे, लेकिन अब इन्हें एक ग्रुप बना दिया गया है। टी समूह में वे शेयर होते हैं, जिन्हें ट्रेड-टू-ट्रेड आधार पर ही खरीदा-बेचा जा सकता है। टीएस समूह में उन्हें रखा गया है जो इंडोनेक्स्ट इंडेक्स में शामिल हैं और जिनमें ट्रेड-टू-ट्रेड आधार पर कारोबार होता है। एफ समूह के तहत तय आय वाले सिक्योरिटीज को रखा गया है और जी ग्रुप में सरकारी सिक्योरिटीज रखे जाते हैं।
सिक्योरिटीज के वर्गीकरण के लिए कुछ समूह बनाए गए हैं, जिनमें एफ और जी शामिल हैं।
शेयरों को समूहों में क्यों बांटा जाता है?
आम तौर पर निवेशकों को हर शेयर के बारे पूरी जानकारी नहीं होती। उनकी मदद के लिए ही एक्सचेंज शेयरों को कुछ खास खूबियों या कमियों के आधार पर श्रेणियों में बांट देते हैं, ताकि निवेशकों को निवेश या ट्रेड करते समय उनके बारे में कुछ आधारभूत बातें समझ में आ जाएं।
समूहों में शेयरों का वर्गीकररण किस आधार पर किया जाता है?
शेयरों के वर्गीकरण के लिए उनकी बाजार पूंजी (एम कैप), ट्रेडिंग वॉल्यूम, नतीजे, इतिहास, मुनाफा, लाभांश, हिस्सेदारी और इसी तरह के कुछ मानकों का सहारा लिया जाता है। फरवरी 2008 में बीएसई ने शेयरों के वगीर्करण के लिए तय मानकों को अपडेट किया है।ए समूह के शेयरों को निवेशक और विश्लेषक सबसे भरोसेमंद मानते हैं। इस वर्ग में शामिल किए जाने के लिए जरूरी मानकों में सबसे महत्वपूर्ण बाजार पूंजीकरण है। इस समय ए समूह में कुल 216 शेयर शामिल हैं। एस समूह में बीएसई इंडोनेक्स्ट सूचकांक के शेयरों को शामिल किया गया है। इस सूचकांक का गठन बीएसई ने 7 जनवरी 2005 को किया था। एस ग्रुप में बी समूह के शेयर शामिल होते हैं और इसके अलावा 3 करोड़ रुपए से 30 करोड़ रुपए के बीच की पूंजी वाली कंपनियों, जो केवल क्षेत्रीय एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होती हैं, के शेयर भी एस का हिस्सा होते हैं।
जेड समूह में किस तरह के शेयर शामिल हैं?
जेड समूह के शेयर सबसे ज्यादा गैर भरोसेमंद होते हैं। बीएसई ने यह समूह 1999 में बनाया था। इसमें ऐसी कंपनियों के शेयरों को शामिल किया जाता है, जो सूचीबद्ध होते समय एक्सचेंज द्वारा तय नियमों का पालन करने में असफल रहती हैं। इसमें शेयरधारकों की समस्याओं के प्रति उदासीन और अपने शेयरों के डीमैटेरियलाइजेशन के लिए जरूरी प्रबंध करने में नाकाम रहने वाली कंपनियों को भी शामिल किया जाता है। जो शेयर ए, एस और जेड में शामिल नहीं होते, वे बी समूह में होते हैं। मार्च 2008 से पहले इस समूह के शेयर दो समूहों, बी1 और बी2 में बंटे थे, लेकिन अब इन्हें एक ग्रुप बना दिया गया है। टी समूह में वे शेयर होते हैं, जिन्हें ट्रेड-टू-ट्रेड आधार पर ही खरीदा-बेचा जा सकता है। टीएस समूह में उन्हें रखा गया है जो इंडोनेक्स्ट इंडेक्स में शामिल हैं और जिनमें ट्रेड-टू-ट्रेड आधार पर कारोबार होता है। एफ समूह के तहत तय आय वाले सिक्योरिटीज को रखा गया है और जी ग्रुप में सरकारी सिक्योरिटीज रखे जाते हैं।
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क्या है पीई रेश्यो?
मूल्य-आय अनुपात का मतलब प्राइस अर्निंग(पीई ) अनुपात से है । यह दरअसल किसी भी शेयर का वैल्यूएशन जानने के लिए सबसे प्राथमिक स्तर का मानक है। दूसरे शब्दों में इसे इस तरह समझा जा सकता है कि यह अनुपात बताता है कि निवेशक किसी शेयर के लिए उसकी सालाना आय का कितना गुना खर्च करने के लिए तैयार हैं। सीधे शब्दों में किसी शेयर का पीई अनुपात दरअसल वर्षों की संख्या है, जिनमें शेयर का मूल्य लागत का दोगुना हो जाता है। जैसे अगर किसी शेयर का मूल्य किसी खास समय में 100 रुपए है और उसकी आय प्रति शेयर 5 रुपए है, तो इसका मतलब यह है कि उसका पीई अनुपात 20 होगा। यानी अगर सारी परिस्थितियां समान हों तो 100 रुपए के शेयर का दाम 20 साल में दोगुना हो जाएगा। यानी उस शेयर का पीई अनुपात उस खास समय में 20 है।
किसी कंपनी के वैल्यूएशन में पीई का क्या महत्व है?
पीई हमें केवल यह बताता है कि बाजार किसी शेयर पर कितना बुलिश या सकारात्मक है। पीई से अपने आप में कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। किसी भी नतीजे पर पहुंचने के लिए कुछ दूसरे पीई अनुपातों से इसकी तुलना जरूरी होती है। पहला, तो खुद उस कंपनी का पिछले 5-7 साल का ऐतिहासिक पीई। दूसरा, उसी के क्षेत्र में काम करने वाली दूसरी कंपनियों के पीई अनुपात और तीसरा, बेंचमार्क सूचकांक जैसे सेंसेक्स का पीई अनुपात। किसी कंपनी का पीई बहुत ज्यादा होने से दो निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। पहला, कंपनी को उसके सही मूल्य से बहुत ज्यादा भाव मिल रहा है और इसलिए शेयर महंगा है। दूसरा, बाजार को यह पता है कि आने वाले दिनों में इस कंपनी की वृद्घि दर काफी अधिक रहने वाली है और इसलिए उसके लिए ऊंचे भाव पर भी बोली लगाई जा रही है।
ट्रेलिंग पीई और अनुमानित पीई क्या हैं?
ट्रेलिंग पीई किसी शेयर की कीमत और पिछले 12 महीनों की उसकी आय के अनुपात को कहते हैं। इसी तरह अनुमानित पीई अगले 12 महीने की अनुमानित आय प्रति शेयर के आधार पर निकाला जाता है।
पीई से किसी शेयर की सही कीमत कैसे तय करें?
अक्सर किसी कंपनी के लिए सारी परिस्थितियां समान नहीं होतीं। कंपनी की आय हर साल या तो बढ़ती है या घटती है। इसके अलावा कंपनी अगर एफपीओ के जरिए नए शेयर बाजार में लाती है तो उससे शेयरों की कुल संख्या में भी बढ़ोतरी होती है। इन सभी का उसकी आय प्रति शेयर पर असर पड़ता है। अगर किसी कंपनी का ऐतिहासिक पीई पिछले पांच साल से 30 रहा हो और एकाएक बाजार की गिरावट के कारण वह 20 के पीई पर मिल रहा हो, तो वह शेयर सस्ता कहा जाएगा। लेकिन अगर वह कंपनी इंफोसिस हो जिसकी आय पर अमेरिका में संभावित मंदी के कारण असमंजस का माहौल बना हो, तो फिर एक नजर में आप 20 के पीई को सस्ता नहीं कह सकते।
किसी कंपनी के वैल्यूएशन में पीई का क्या महत्व है?
पीई हमें केवल यह बताता है कि बाजार किसी शेयर पर कितना बुलिश या सकारात्मक है। पीई से अपने आप में कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। किसी भी नतीजे पर पहुंचने के लिए कुछ दूसरे पीई अनुपातों से इसकी तुलना जरूरी होती है। पहला, तो खुद उस कंपनी का पिछले 5-7 साल का ऐतिहासिक पीई। दूसरा, उसी के क्षेत्र में काम करने वाली दूसरी कंपनियों के पीई अनुपात और तीसरा, बेंचमार्क सूचकांक जैसे सेंसेक्स का पीई अनुपात। किसी कंपनी का पीई बहुत ज्यादा होने से दो निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। पहला, कंपनी को उसके सही मूल्य से बहुत ज्यादा भाव मिल रहा है और इसलिए शेयर महंगा है। दूसरा, बाजार को यह पता है कि आने वाले दिनों में इस कंपनी की वृद्घि दर काफी अधिक रहने वाली है और इसलिए उसके लिए ऊंचे भाव पर भी बोली लगाई जा रही है।
ट्रेलिंग पीई और अनुमानित पीई क्या हैं?
ट्रेलिंग पीई किसी शेयर की कीमत और पिछले 12 महीनों की उसकी आय के अनुपात को कहते हैं। इसी तरह अनुमानित पीई अगले 12 महीने की अनुमानित आय प्रति शेयर के आधार पर निकाला जाता है।
पीई से किसी शेयर की सही कीमत कैसे तय करें?
अक्सर किसी कंपनी के लिए सारी परिस्थितियां समान नहीं होतीं। कंपनी की आय हर साल या तो बढ़ती है या घटती है। इसके अलावा कंपनी अगर एफपीओ के जरिए नए शेयर बाजार में लाती है तो उससे शेयरों की कुल संख्या में भी बढ़ोतरी होती है। इन सभी का उसकी आय प्रति शेयर पर असर पड़ता है। अगर किसी कंपनी का ऐतिहासिक पीई पिछले पांच साल से 30 रहा हो और एकाएक बाजार की गिरावट के कारण वह 20 के पीई पर मिल रहा हो, तो वह शेयर सस्ता कहा जाएगा। लेकिन अगर वह कंपनी इंफोसिस हो जिसकी आय पर अमेरिका में संभावित मंदी के कारण असमंजस का माहौल बना हो, तो फिर एक नजर में आप 20 के पीई को सस्ता नहीं कह सकते।
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इक्विटी निवेशकों के लिए क्यों महत्वपूर्ण होते हैं तिमाही नतीजे?
कंपनियों के तिमाही नतीजे घोषित करने का समय फिर आ गया है। इस बार जनवरी से मार्च की चौथी तिमाही का बही-खाता पेश किया जाएगा। इस वित्त वर्ष की तीन तिमाहियां बीत चुकी हैं और इस बार के नतीजे 2008-09 में मंदी के दौरान कंपनियों की आर्थिक स्थिति का लेखा-जोखा होंगे। विश्लेषक और निवेशक इनकी बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं क्योंकि कॉरपोरेट जगत पर मंदी के असर की जानकारी इनसे मिलेगी। इसके साथ ही यह भी पता चलेगा कि चुनौती के समय में प्रबंधन ने कितनी कुशलता से कारोबार को आगे बढ़ाया है।
क्या होते हैं तिमाही नतीजे?
तिमाही नतीजों के जरिए कंपनियां तीन महीनों के अपने प्रदर्शन की रिपोर्ट पेश करती हैं। स्टॉक एक्सचेंजों के साथ लिस्टिंग समझौते के तहत नतीजों की घोषणा करना कंपनियों के लिए जरूरी होता है। ये नतीजे जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में सार्वजनिक किए जाते हैं।
तिमाही आमदनी की घोषणाओं में आमतौर पर गैर ऑडिटेड वित्तीय नतीजे, तिमाही में कारोबार की स्थितियां और भविष्य में कारोबारी संभावनाओं का जिक्र होता है। आमदनी की रिपोर्ट में शुद्ध आय, प्रति शेयर आय, जारी कारोबार से आमदनी और शुद्ध बिक्री जैसी मद शामिल होती हैं। इससे कंपनी की वित्तीय स्थिति और कारोबारी माहौल को समझने में मदद मिलती है।
अगली तिमाहियों के अनुमान
कुछ कंपनियां इन नतीजों के साथ भविष्य के लिए अपने अनुमान भी जाहिर करती हैं। इन्हें गाइडेंस कहा जाता है। यह अगली तिमाही और वित्त वर्ष के लिए कारोबार के बारे में प्रबंधन का अनुमान होता है। कंपनी से वित्तीय उम्मीदें तय करने के लिए गाइडेंस हत्वपूर्ण होती है। अगर कंपनी की पिछली गाइडेंस और तिमाही नतीजे मेल खाते हैं तो इससे प्रबंधन की कुशलता का पता चलता है। अगर कंपनी के अनुमान और उसके नतीजों में बड़ा अंतर होता है तो इसका मतलब है कि प्रबंधन पर आप आगे भी ज्यादा भरोसा नहीं कर सकते। इन्हीं अनुमानों के आधार पर छोटी अवधि के निवेशक कई बार किसी कंपनी के शेयर खरीदने या बेचने का फैसला भी करते हैं।
कंपनी के प्रदर्शन का अक्स
तिमाही नतीजे कंपनी के प्रदर्शन का बड़ा संकेत देते हैं। इसी वजह से विश्लेषक और निवेशक इनका इंतजार करते हैं। आमतौर पर विश्लेषक अनुमानों के आधार पर अपनी उम्मीदें जाहिर करते हैं। इन सभी अनुमानों को मिलाकर कंपनी के प्रदर्शन को देखा जाता है। सच्चाई यह है कि आमदनी का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल होता है। कंपनी की आय को लेकर ब्रोकरेज हाउस के अनुमान हकीकत से कुछ अधिक हो सकते हैं। कंपनियों के लिए खुद भी इनकी सही भविष्यवाणी करना आसान नहीं होता।
नतीजों के सीजन के लिए निवेश की रणनीति
कंपनियों के नतीजे आने के साथ ही उनके शेयर के दाम पर भी इनका असर दिखने लगता है। अगर नतीजे उम्मीद से बेहतर रहते हैं तो शेयर की कीमत चढ़ती है लेकिन अगर ये अनुमानों से कम या करीब रहते हैं तो इनमें गिरावट भी आ सकती है। अगर किसी कंपनी के आंकड़े लगातार कई तिमाहियों तक उम्मीद से कम रहते हैं तो हो सकता है कि कंपनी समस्याओं का सामना कर रही हो। छोटी अवधि के निवेशक तिमाही नतीजों के आधार पर निवेश की रणनीति तैयार कर सकते हैं।
लंबी अवधि के निवेशक इन्हें देखकर यह अंदाजा लगा सकते हैं कि उनकी कंपनी कैसा कारोबार कर रही है। किसी शेयर को आंकने के लिए उसके पिछले नतीजों को देखना भी जरूरी होता है। अगर प्रबंधन ने वित्त वर्ष की अपनी कारोबारी योजना का खुलासा पहले ही कर दिया है तो तिमाही नतीजों से निवेशक को यह पता चलता है कि योजना किस दिशा में और कितनी गति से बढ़ रही है। निवेशकों को यह भी देखना चाहिए कि कहीं कंपनी ने आंकड़ों में कोई हेरफेर तो नहीं की है। उदाहरण के लिए कोई कंपनी मौजूदा तिमाही की आमदनी को जोड़कर उससे जुड़े खर्चों को अगली तिमाही में दिखाने के साथ अपना अधिक मुनाफा दिखाने की कोशिश कर सकती है। इसके अलावा वह अनुमानों पर पूरा उतरने के लिए तिमाही के अंत में उत्पादों को कम दाम पर भी बेच सकती है। ऐसा होने से कंपनी के वास्तविक प्रदर्शन का संकेत मिल पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
निवेशकों को तिमाही आंकड़ों की जानकारी समाचार पत्रों, बिजनेस चैनलों और कंपनी के वेबसाइट पर मिल सकती है।
क्या होते हैं तिमाही नतीजे?
तिमाही नतीजों के जरिए कंपनियां तीन महीनों के अपने प्रदर्शन की रिपोर्ट पेश करती हैं। स्टॉक एक्सचेंजों के साथ लिस्टिंग समझौते के तहत नतीजों की घोषणा करना कंपनियों के लिए जरूरी होता है। ये नतीजे जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में सार्वजनिक किए जाते हैं।
तिमाही आमदनी की घोषणाओं में आमतौर पर गैर ऑडिटेड वित्तीय नतीजे, तिमाही में कारोबार की स्थितियां और भविष्य में कारोबारी संभावनाओं का जिक्र होता है। आमदनी की रिपोर्ट में शुद्ध आय, प्रति शेयर आय, जारी कारोबार से आमदनी और शुद्ध बिक्री जैसी मद शामिल होती हैं। इससे कंपनी की वित्तीय स्थिति और कारोबारी माहौल को समझने में मदद मिलती है।
अगली तिमाहियों के अनुमान
कुछ कंपनियां इन नतीजों के साथ भविष्य के लिए अपने अनुमान भी जाहिर करती हैं। इन्हें गाइडेंस कहा जाता है। यह अगली तिमाही और वित्त वर्ष के लिए कारोबार के बारे में प्रबंधन का अनुमान होता है। कंपनी से वित्तीय उम्मीदें तय करने के लिए गाइडेंस हत्वपूर्ण होती है। अगर कंपनी की पिछली गाइडेंस और तिमाही नतीजे मेल खाते हैं तो इससे प्रबंधन की कुशलता का पता चलता है। अगर कंपनी के अनुमान और उसके नतीजों में बड़ा अंतर होता है तो इसका मतलब है कि प्रबंधन पर आप आगे भी ज्यादा भरोसा नहीं कर सकते। इन्हीं अनुमानों के आधार पर छोटी अवधि के निवेशक कई बार किसी कंपनी के शेयर खरीदने या बेचने का फैसला भी करते हैं।
कंपनी के प्रदर्शन का अक्स
तिमाही नतीजे कंपनी के प्रदर्शन का बड़ा संकेत देते हैं। इसी वजह से विश्लेषक और निवेशक इनका इंतजार करते हैं। आमतौर पर विश्लेषक अनुमानों के आधार पर अपनी उम्मीदें जाहिर करते हैं। इन सभी अनुमानों को मिलाकर कंपनी के प्रदर्शन को देखा जाता है। सच्चाई यह है कि आमदनी का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल होता है। कंपनी की आय को लेकर ब्रोकरेज हाउस के अनुमान हकीकत से कुछ अधिक हो सकते हैं। कंपनियों के लिए खुद भी इनकी सही भविष्यवाणी करना आसान नहीं होता।
नतीजों के सीजन के लिए निवेश की रणनीति
कंपनियों के नतीजे आने के साथ ही उनके शेयर के दाम पर भी इनका असर दिखने लगता है। अगर नतीजे उम्मीद से बेहतर रहते हैं तो शेयर की कीमत चढ़ती है लेकिन अगर ये अनुमानों से कम या करीब रहते हैं तो इनमें गिरावट भी आ सकती है। अगर किसी कंपनी के आंकड़े लगातार कई तिमाहियों तक उम्मीद से कम रहते हैं तो हो सकता है कि कंपनी समस्याओं का सामना कर रही हो। छोटी अवधि के निवेशक तिमाही नतीजों के आधार पर निवेश की रणनीति तैयार कर सकते हैं।
लंबी अवधि के निवेशक इन्हें देखकर यह अंदाजा लगा सकते हैं कि उनकी कंपनी कैसा कारोबार कर रही है। किसी शेयर को आंकने के लिए उसके पिछले नतीजों को देखना भी जरूरी होता है। अगर प्रबंधन ने वित्त वर्ष की अपनी कारोबारी योजना का खुलासा पहले ही कर दिया है तो तिमाही नतीजों से निवेशक को यह पता चलता है कि योजना किस दिशा में और कितनी गति से बढ़ रही है। निवेशकों को यह भी देखना चाहिए कि कहीं कंपनी ने आंकड़ों में कोई हेरफेर तो नहीं की है। उदाहरण के लिए कोई कंपनी मौजूदा तिमाही की आमदनी को जोड़कर उससे जुड़े खर्चों को अगली तिमाही में दिखाने के साथ अपना अधिक मुनाफा दिखाने की कोशिश कर सकती है। इसके अलावा वह अनुमानों पर पूरा उतरने के लिए तिमाही के अंत में उत्पादों को कम दाम पर भी बेच सकती है। ऐसा होने से कंपनी के वास्तविक प्रदर्शन का संकेत मिल पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
निवेशकों को तिमाही आंकड़ों की जानकारी समाचार पत्रों, बिजनेस चैनलों और कंपनी के वेबसाइट पर मिल सकती है।
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क्या होता है राइट्स इश्यू, शेयर विभाजन और ओपन ऑफर?
राइट्स इश्यू
राइट्स इश्यू के तहत कंपनी रकम जुटाने के लिए मौजूदा शेयरधारकों को नए शेयर जारी करती है। आम तौर पर ये शेयर डिस्काउंट (मौजूदा भाव से कम) पर दिए जाते हैं। शेयरधारकों को उनके पास पहले से मौजूद शेयरों के अनुपात में नए शेयर जारी किए जाते हैं। जैसे, अगर कोई कंपनी 2:5 में राइट्स इश्यू देने की घोषणा करती है, तो शेयरधारक को उस कंपनी के हर पांच शेयर पर दो शेयर खरीदने का अधिकार होगा। राइट्स इश्यू में जारी शेयर सूचीबद्ध होने के बाद आम शेयरों की तरह ही खरीदे-बेचे जा सकते हैं।
शेयर विभाजन
इस प्रक्रिया के तहत एक शेयर को कई शेयरों में विभाजित कर दिया जाता है, जिससे शेयरों का बाजार भाव विभाजन के अनुपात में कम हो जाता है। साथ ही उसका फेस वैल्यू भी उसी अनुपात में कम हो जाता है। जैसे 10 रुपए फेस वैल्यू वाले शेयर को कंपनी अगर 5:1 में शेयर विभाजित करने की घोषणा करती है और उसका बाजार भाव 2,000 रुपए चल रहा हो, तो एक्स स्प्लिट होने के बाद उसके शेयर का भाव लगभग 400 रुपए पर आ जाएगा और उसका फेस वैल्यू घटकर 2 रुपए हो जाएगा। आम तौर पर कंपनियां अपने शेयरों का कारोबार बढ़ाने के लिए ही शेयर विभाजन का सहारा लेती हैं।
शेयरों की पुनर्खरीद
प्रमोटर कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए दो तरीके अपनाते हैं। या तो वे खुले बाजार से धीरे-धीरे कर अपनी कंपनी के शेयर खरीदते हैं या फिर मौजूदा शेयरधारकों को एक खास भाव पर अपने शेयर प्रमोटर को बेचने को कहते हैं। दूसरी प्रक्रिया को पुनर्खरीद यानी बाय बैक कहा जाता है। बाय बैक में प्रमोटर एक खास तारीख तक शेयरधारकों को अपने शेयर बेचने का प्रस्ताव करता है। इससे कंपनी में एक ओर तो प्रमोटर की हिस्सेदारी बढ़ती है और दूसरी ओर आम जनता की हिस्सेदारी घटती है। इससे शेयर के भाव पर सकारात्मक दबाव पड़ता है। आम तौर पर बाय बैक को कंपनी के लिए काफी अच्छा माना जाता है क्योंकि इससे पता चलता है कि उसके प्रमोटरों को अपनी योजनाओं और कंपनी के भविष्य पर पूरा भरोसा है।
ओपन ऑफर
यह राइट्स इश्यू की ही तरह किसी कंपनी के लिए रकम जुटाने का एक जरिया है, जिसमें कंपनी अपने शेयरधारकों को मौजूदा बाजार भाव से कम पर शेयरों की खरीद के लिए प्रस्ताव करती है। राइट्स इश्यू से यह इस मायने में अलग होता है कि शेयरधारक राइट्स में मिले शेयरों को तुरंत बाजार में बेच सकते हैं, लेकिन ओपन ऑफर में मिले शेयरों को तुरंत नहीं बेचा जा सकता
राइट्स इश्यू के तहत कंपनी रकम जुटाने के लिए मौजूदा शेयरधारकों को नए शेयर जारी करती है। आम तौर पर ये शेयर डिस्काउंट (मौजूदा भाव से कम) पर दिए जाते हैं। शेयरधारकों को उनके पास पहले से मौजूद शेयरों के अनुपात में नए शेयर जारी किए जाते हैं। जैसे, अगर कोई कंपनी 2:5 में राइट्स इश्यू देने की घोषणा करती है, तो शेयरधारक को उस कंपनी के हर पांच शेयर पर दो शेयर खरीदने का अधिकार होगा। राइट्स इश्यू में जारी शेयर सूचीबद्ध होने के बाद आम शेयरों की तरह ही खरीदे-बेचे जा सकते हैं।
शेयर विभाजन
इस प्रक्रिया के तहत एक शेयर को कई शेयरों में विभाजित कर दिया जाता है, जिससे शेयरों का बाजार भाव विभाजन के अनुपात में कम हो जाता है। साथ ही उसका फेस वैल्यू भी उसी अनुपात में कम हो जाता है। जैसे 10 रुपए फेस वैल्यू वाले शेयर को कंपनी अगर 5:1 में शेयर विभाजित करने की घोषणा करती है और उसका बाजार भाव 2,000 रुपए चल रहा हो, तो एक्स स्प्लिट होने के बाद उसके शेयर का भाव लगभग 400 रुपए पर आ जाएगा और उसका फेस वैल्यू घटकर 2 रुपए हो जाएगा। आम तौर पर कंपनियां अपने शेयरों का कारोबार बढ़ाने के लिए ही शेयर विभाजन का सहारा लेती हैं।
शेयरों की पुनर्खरीद
प्रमोटर कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए दो तरीके अपनाते हैं। या तो वे खुले बाजार से धीरे-धीरे कर अपनी कंपनी के शेयर खरीदते हैं या फिर मौजूदा शेयरधारकों को एक खास भाव पर अपने शेयर प्रमोटर को बेचने को कहते हैं। दूसरी प्रक्रिया को पुनर्खरीद यानी बाय बैक कहा जाता है। बाय बैक में प्रमोटर एक खास तारीख तक शेयरधारकों को अपने शेयर बेचने का प्रस्ताव करता है। इससे कंपनी में एक ओर तो प्रमोटर की हिस्सेदारी बढ़ती है और दूसरी ओर आम जनता की हिस्सेदारी घटती है। इससे शेयर के भाव पर सकारात्मक दबाव पड़ता है। आम तौर पर बाय बैक को कंपनी के लिए काफी अच्छा माना जाता है क्योंकि इससे पता चलता है कि उसके प्रमोटरों को अपनी योजनाओं और कंपनी के भविष्य पर पूरा भरोसा है।
ओपन ऑफर
यह राइट्स इश्यू की ही तरह किसी कंपनी के लिए रकम जुटाने का एक जरिया है, जिसमें कंपनी अपने शेयरधारकों को मौजूदा बाजार भाव से कम पर शेयरों की खरीद के लिए प्रस्ताव करती है। राइट्स इश्यू से यह इस मायने में अलग होता है कि शेयरधारक राइट्स में मिले शेयरों को तुरंत बाजार में बेच सकते हैं, लेकिन ओपन ऑफर में मिले शेयरों को तुरंत नहीं बेचा जा सकता
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