जापानी- हमारा सोना पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है.
अमेरिकन- हमारे हीरे पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है.
चीनी (Chinese)- हमारा खाना पूरी दुनिया मे प्रसिद्ध है.
...
तुम्हारे भारत मे क्या है?
भारतीय- हमारे पास सोना तो नही है, पर सोने जैसा दिल है,
हमारे पास हीरे तो नही है, पर हीरे जैसी Unity है,
हमारे पास खाना तो नही, पर एक महीने तक अनशन करके देश के लिए जान देने वाले लोग है.
भारतीय होने पर गर्व कीजिए.
Feb 11, 2013
Feb 10, 2013
MOVIE REVIEW: स्पेशल छब्बीस है बिल्कुल स्पेशल
कुछ फिल्मों से हमारी खासी अपेक्षाएं होने के बावजूद उनके प्रति हमारे मन में एक डर बना रहता है। इस डर को केवल वही समझता है, जिसने अपनी जिंदगी का एक खासा हिस्सा इस अभिनेता की बेसिर-पैर की फिल्में देखते हुए बिताया है। लेकिन यदि किसी फिल्म का प्रोमो आकर्षक होता हो और यदि कहानी में दम हो, तो हम सोच भी नहीं कर सकते कि कोई सितारा अपनी स्टार पावर से उस फिल्म् को कितनी कामयाबी दिला सकता है। फिल्म शुरू होते ही हम एक पंजाबी शादी का दृश्य देखते हैं, जिसमें परंपरागत रूप से भांगड़ा और गिद्दा चल रहा है और ‘मर जावां’ और ‘सोणिये’ जैसे शब्दों का इफरात से इस्तेमाल किया जा रहा है। हम मायूस होने लगते हैं, लेकिन मन में उम्मीद कायम रखते हैं। हीरोइन (काजल अग्रवाल) की नजर हीरो पर पड़ती है। उसका परिवार किसी और से उसकी शादी कर रहा है, लेकिन वह जानती है कि मंडप में कदम रखने से पहले ही हीरो उसे ले उड़ेगा। लेकिन मुझे आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है कि इस फिल्म का इस रोमांस कथा से कोई खास लेना-देना नहीं है। यह एक समझदार फिल्म है और लगभग पूरे समय वह अपनी समझदारी को बरकरार रखती है। फिल्म के प्रोमोज जाहिर हैं। वे हमें इस फिल्म के बारे में तमाम जरूरी जानकारियां दे देते हैं। लुटेरों का एक समूह है और अक्षय उनके कान्फिडेंट मास्टरमाइंड हैं। अनुपम खेर उनके बूढ़े और नर्वस सहयोगी हैं। ये सामान्य किस्म के लोग मालूम होते हैं, जो खुद को सीबीआई के इन्वेस्टिगेटर्स बताते हैं। वे लोकल पुलिस वालों को फुसला लेते हैं, सरकारी गाड़ी में सवार हो जाते हैं, लुटियंस दिल्लीं में एक मंत्री के घर पर जा धमकते हैं और घर में छुपाकर रखी गई नोटों की गड्डियां बरामद कर लेते हैं। वे इस तमाम रकम को मेटल के सूटकेस में बंद कर लेते हैं, अपनी कार के ट्रंक में पैक कर लेते हैं, और इससे पहले कि मंत्री यह समझ पाए कि उसे दिनदहाड़े लूट लिया गया है, वहां से रफूचक्कर हो जाते हैं। मंत्री पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं करता। वह कहता है कि यदि यह खबर फैल गई तो उसकी नेतागिरी पर सवालिया निशान लग जाएंगे। लेकिन इस फर्जी छापे की खबर पर चुप्पी साधे रखने की असल वजह दूसरी है। चुराया गया पैसा गैरकानूनी है। दो गलत मिलकर सही नहीं हो सकते। आखिर आप किसी ऐसी रकम की लूट की रिपोर्ट कैसे दर्ज करा सकते हैं, जो आपके पास होना ही नहीं चाहिए थी? यह बहुत शातिर प्लान था, जिसे बहुत सफाई के साथ अंजाम दिया गया। लुटेरों का यह समूह इसी तरह कभी-कभी मिलता है और अनेक अन्य सरकारी एजेंट्स के यहां छापे मारता रहता है। फिल्म में हम उन्हें केवल दो बार हरकत में देखते हैं – एक बार नई दिल्ली में और दूसरी बार कलकत्ता में। तीसरी हरकत बंबई में होनी है, जहां फिल्म का क्लाइमेक्स होता है। साल है 1987, जब सफेद पगड़ी पहनने वाले ज्ञानी जैल सिंह भारत के राष्ट्रंपति हुआ करते थे। टाइम्स ऑफ इंडिया तब ब्लैक एंड व्हाइट अखबार हुआ करता था। फिल्मकार ने यह भी ध्यान रखा है कि 80 के दशक की दिल्ली को दिखाए। हमें कनॉट प्ले्स की सड़कों पर मारुति 800 और प्रीमियर पद्मिनी की कतारें नजर आती हैं। लेकिन शायद कलकत्ता आज से तीन दशक पहले भी ऐसा ही दिखता था, जैसा आज दिखता है। निर्देशक नीरज पांडे (ए वेडनेसडे फेम) ने ब्योरों पर बारीक नजर बनाए रखी है। तब रोटरी और लैंडलाइन फोन ही कम्यूनिकेशन का इकलौता साधन हुआ करते थे। यदि तब आज की तरह सेलफोन होते तो लुटेरों का यह समूह कामयाब नहीं हो सकता था। लेकिन इसके बावजूद सीबीआई का एक टॉप अधिकारी (एक धांसू रोल में मनोज बाजपेयी) इस मामले को अपने हाथ में लेकर उनकी जिंदगी मुश्किल बना देता है। उसे तीन लुटेरों को रंगे हाथों पकड़ना है। उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं। तब यह फिल्म चूहे-बिल्लीं की एक रोमांचक दौड़ बन जाती है और स्टीनवन स्पिलबर्ग की लाजवाब फिल्म 'कैच मी इफ यू कैन' (2002) की याद दिलाती है। फिल्म की कहानी तेज गति से आगे बढ़ती है और हमें सोचने तक का समय नहीं मिलता, जो अच्छा ही है। हम मुख्य किरदार के बैकग्राउंड के बारे में अब भी बहुत कम जानते हैं। हममें से बहुतेरे लोग आसानी से इन शातिर लुटेरों के शिकार बन सकते हैं और शायद किसी न किसी रूप में बने भी होंगे। फिल्म के इंटरवल के दौरान स्मोकिंग करते हुए दर्शक आपस में यही बतियाते पाए जाते हैं कि ऐसी ही कोई घटना उनके साथ बंबई में चेंबूर से झवेरी बाजार के दरमियान कहीं घटी थी। आखिर महाठग मिस्टर नटवरलाल को कभी कोई पकड़ नहीं सका था। यहां तक कि तब भी नहीं, जब वह अनेक बार ताजमहल को बेच चुका था। फिल्म 'बंटी और बबली' का एक दृश्य मिस्टर नटवरलाल के इस हुनर से ही प्रेरित था। इसमें कोई शक नहीं कि यह फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है।
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FILM REVIEW
1*सोनिया गांधी टाइप—ये वो बच्चे होते हैं............
हर कक्षा में अलग-अलग टाइप के बच्चे होते हैं,हमने गुणों के आधार पर कुछ टाइप्स ढूंढ निकले हैं..
1*सोनिया गांधी टाइप—ये वो बच्चे होते हैं जिनके माता-पिता स्कूल के प्रिंसिपल या चेयरमेन होते हैं और सिर्फ इसी वजह से इन्हें क्लास का मॉनीटर बना दिया जाता है,अमूमन इस तरह के हाई सोसायटी बच्चे ‘बाहर के बच्चो’ से ज्यादा संपर्क रखते हैं..!
2*राहुल गांधी टाइप—ये वो बच्चे होते है जो शारीरिक रूप से तो बड़े हो जा...ते हैं पर मानसिक तौर पर अभी भी छोटे होते हैं,इनमे निर्णय लेने की और परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता नहीं होती है,इनके घर वाले इनकी छोटी-छोटी उपलब्धियों पर खुश हो जाते हैं..!
3*दिग्विजय सिंह टाइप—ये वो बच्चे होते हैं जो पढाई की बाते छोड़ कर हर तरह की बाते करते हैं,इनका सिर्फ एक ही काम होता है ज्यादा से ज्यादा बोल कर सबका ध्यान अपनी और आकृष्ट कराना,साफ़-सफाई पर ध्यान न देने से इनके मुंह से हमेशा दुर्गन्ध आती रहती है,कोई भी इनके पास बैठना पसंद नहीं करता ,इनमे कई बुरी आदते होती है जैसे हमेशा नाक में ऊँगली डालना,ये बड़े पूर्वाग्रही होती हैं मसलन अगर इनके किसी मित्र (राम सिंह शेरावाला-RSS) ने इनके चने चुरा कर खा लिए तो इनकी हर शिकायत में उसी का नाम आएगा..!
4*सुरेश कलमाडी टाइप--ये बच्चे पढाई में कमजोर होते हैं,चाक से लेकर डस्टर तक स्कूल में किसी भी चीज की चोरी होने पर इनका ही नाम आता है लेकिन तब भी स्कूल के हर तरह के आयोजन में सबसे आगे होते हैं,और ऐसे मौको पर विदाई में दी जाने वाली घड़ी से लेकर टेंट की कुर्सिओ और पानी की बोतल तक के पैसो में हेर-फेर का मौका कभी नहीं गंवाते..!
5*केजरीवाल टाइप—इस तरह के बच्चे पढाई मे अमूमन काफी अच्छे होते हैं पर इनका ध्यान अपने काम से ज्यादा #1 ,#6 और #7 की शिकायत में रहता है,क्योंकि ये बच्चे खुद ईमानदार होते हैं इसलिए #1 टाइप #7 टाइप के बच्चे इनसे काफी डरते हैं, #3 टाइप बच्चे इनको #6 टाइप से मिला हुआ मानते हैं जबकि #7 टाइप के बच्चे इन्हें #1 टाइप से मिला हुआ मानते हैं | इनका सबसे पसंदीदा काम होता है किसी भी बच्चे की सबके सामने पोल खोलना,खेल के मैदान में ये बच्चे ढेर सारी धूल सामने वाले पर फेंक के तू चोर-तू चोर कहते हुए भाग जाते हैं..!
6*नरेंद्र मोदी टाइप—ये बच्चे भी कुशाग्र बुद्धि के होते हैं और #1 टाइप के बच्चे इनसे काफी डरते हैं,ये खुद मोनीटर बनना चाहते हैं लेकिन इनपर सेक्शन-B के बच्चो से मारपीट के इल्जाम के कारण बात कुछ बनती नहीं,यूँ तो ये स्कूल में काफी लोकप्रिय बच्चे होते हैं पर कभी इनकी खुद के दोस्त के दोस्तो से नही बनती कभी ऑटो में आने वाले बच्चो से,शिक्षको की माने तो ये बच्चे इस साल टॉप भी कर सकते हैं बशर्ते इनके साथी B-सेक्शन के बच्चो को डराना बंद कर दे वर्ना प्रेक्टिकल्स में इनके नंबर कम किये जा सकते हैं..!
7*गडकरी टाइप—ये बच्चे निहायत ही पेटू किस्म के होते हैं इनके खुद के बैग में किताबो से ज्यादा टिफिन होते हैं पर फिर भी इनका पेट नहीं भरता तो ये अपने साथ पढने वाले ड्राइवर के बच्चो के बैग में भी टिफिन भर कर लाते हैं,अपनी उदर-‘पूर्ती’ के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं..!
8*DNA तिवारी टाइप—ये वो बच्चे होते हैं जो एक ही क्लास मेंकई साल फेल होते हैं और दिमाग बड़ा होने के कारन इनका ध्यान पढाई से कई-कई माशूकाओं पर होता है,कक्षा में इनका ध्यान ज्यादातर बगल की बेंच की छात्राओं पर होता है..!
9*अभिषेक मनु सिंघवी टाइप—ये बच्चे निहायत ही टुच्चे किस्म के होते हैं,आवारा बच्चो की संगत में रहने के कारण ये काफी बिगड़ जाते हैं,कुछ बच्चों का कहना ये भी है कि पेन्सिल का डिब्बा देने के बहाने पिछले साल ये कईयों को फुसलाते हुए भी देखे गए थे, क्लास में इनका ज्यादातर समय किताबो के भीतर मनोहर कथाएँ और सरस-सलिल पलटाते हुए बीतता है..!
10*अमर सिंह या सी.डी.सिंह टाइप—ये बच्चे टुच्चे के साथ ही लुच्चे किस्म के भी होते हैं ये क्लास में छुपकर छात्राओं की फोटो खीचने के कारण बदनाम होते हैं खबर है पिछले साल स्टाफ रूम में कैमरा भी इसी ने छुपाया था ..!
11*राजीव शुक्ल टाइप—इन बच्चो का मन पढाई से ज्यादा खेल-कूद में लगता है,टीचरों के कान में खुसर-फुसर कर जल्द से जल्द क्लास से भागने की फिराक में रहते हैं..!
12*ममता बनर्जी टाइप—ये बच्चे शिकायतों से भरे होते हैं इन्हें हर बात में शिकायत रहती है,आज अगर टेस्ट है तो ये कहेंगे कल इन्हें बताया नहीं गया,ये अक्सर शिक्षको से पिछले चेप्टर पढ़ाने की जिद (रोल बैक ) लेकर बैठे रहते हैं..!
13* लालू यादव टाइप—ये मस्तमौला टाइप के बच्चे होते हैं इनके जो मन में आया वो करते हैं,गंभीर से गंभीर विषय को ये खिल्ली में उड़ाते रहते हैं और अपनी राय बना कर रखते हैं ,गाँव देहात से आये ये बच्चे क्लास में कभी-कभी सोते हुए भी पाए जाते हैं..अपनी इसी आदत के कारण कभी-कभी इन्हें उसी क्लास में कई साल गुजारने पड़ते हैं..!
14*शशि थरूर टाइप—ये बाहर की स्कूल से आये हुए बच्चे होते हैं जिन्हें यहाँ का माहौल ज्यादा रास नहीं आता,ये उस किस्म के बच्चे होते हैं जो स्कूल में मोबाईल,वीडीओगेम लाकर बाकी बच्चो के सामने इठलाते हैं, टेक्नोसेवी होने के कारन क्लास में ज्यादातर समय स्मार्टफोन पर खुटर-पिटर करते बिताते है,ये अपनी ‘गर्लफ्रेंडों’ के कारन भी चर्चा का विषय बने रहते हैं..!
15* मायावती टाइप—ये कुंठित किस्म के बच्चे होते हैं इनकी शिकायत होती है की शिक्षक इन पर ध्यान नहीं देते कोई इन्हें प्यार नहीं करता सब बहन-जी,बहन-जी कह कर चिढाते हैं ,ये अक्सर स्कूल की दीवारों और बाथरुम में अपना नाम लिखते हुए पाए जाते हैं..!
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BEST JOKES
प्र . कोग्रेस का चुनाव चिन्ह "हाथ" क्यों है।..
प्र . कोग्रेस का चुनाव चिन्ह "हाथ" क्यों है।
उ . ये बताने के लिए की भारतियों का भाग्य एक ही परिवार के हाथ में रहेगा।
प्र . डीएमके का चुनाव चिन्ह "सूर्य" क्यों है।
उ . ताकि करूणानिधि के कमरे में आप काला चश्मा पहन के जाए।
प्र . लालू का चुनाव चिन्ह "लालटेन "क्यों है
... उ . बचा हुआ चारा तलाश करने के लिए।
प्र . शिवसेना का चुनाव चिन्ह "तीर कमान" क्यों है।
उ . ये नहीं बताऊंगा भाई मेरी सुरक्षा का सवाल है।
उ . ये बताने के लिए की भारतियों का भाग्य एक ही परिवार के हाथ में रहेगा।
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उ . ताकि करूणानिधि के कमरे में आप काला चश्मा पहन के जाए।
प्र . लालू का चुनाव चिन्ह "लालटेन "क्यों है
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प्र . शिवसेना का चुनाव चिन्ह "तीर कमान" क्यों है।
उ . ये नहीं बताऊंगा भाई मेरी सुरक्षा का सवाल है।
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Feb 2, 2013
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