Aug 24, 2010

तिरंगा फहराने के कायदे-कानून

लासपुर हाई कोर्ट ने पिछले दिनों एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि रात को तिरंगा नहीं उतारे जाने को प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर
ऐक्ट-1971 का उल्लंघन नहीं माना जा सकता यानी अगर कोई रात को तिरंगा उतारकर नहीं रखता है तो वह कोई नियम नहीं तोड़ रहा है। तिरंगा फहराने को लेकर और भी कई नियम-कायदे हैं। पूरी जानकारी दे रहे हैं राजेश चौधरी :

रखरखाव के नियम
- आजादी से ठीक पहले 22 जुलाई, 1947 को तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया। तिरंगे के निर्माण, उसके साइज और रंग आदि तय हैं।
- फ्लैग कोड ऑफ इंडिया के तहत झंडे को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाएगा।
- उसे कभी पानी में नहीं डुबोया जाएगा और किसी भी तरह नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। यह नियम भारतीय संविधान के लिए भी लागू होता है।
- कानूनी जानकार डी. बी. गोस्वामी ने बताया कि प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 की धारा-2 के मुताबिक, फ्लैग और संविधान की इन्सल्ट करनेवालों के खिलाफ सख्त कानून हैं।
- अगर कोई शख्स झंडे को किसी के आगे झुका देता हो, उसे कपड़ा बना देता हो, मूर्ति में लपेट देता हो या फिर किसी मृत व्यक्ति (शहीद हुए आर्म्ड फोर्सेज के जवानों के अलावा) के शव पर डालता हो, तो इसे तिरंगे की इन्सल्ट माना जाएगा।
- तिरंगे की यूनिफॉर्म बनाकर पहन लेना भी गलत है।
- अगर कोई शख्स कमर के नीचे तिरंगा बनाकर कोई कपड़ा पहनता हो तो यह भी तिरंगे का अपमान है।
- तिरंगे को अंडरगार्मेंट्स, रुमाल या कुशन आदि बनाकर भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

फहराने के नियम
- सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच ही तिरंगा फहराया जा सकता है।
- फ्लैग कोड में आम नागरिकों को सिर्फ स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराने की छूट थी लेकिन 26 जनवरी 2002 को सरकार ने इंडियन फ्लैग कोड में संशोधन किया और कहा कि कोई भी नागरिक किसी भी दिन झंडा फहरा सकता है, लेकिन वह फ्लैग कोड का पालन करेगा।
- 2001 में इंडस्ट्रियलिस्ट नवीन जिंदल ने कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि नागरिकों को आम दिनों में भी झंडा फहराने का अधिकार मिलना चाहिए। कोर्ट ने नवीन के पक्ष में ऑर्डर दिया और सरकार से कहा कि वह इस मामले को देखे। केंद्र सरकार ने 26 जनवरी 2002 को झंडा फहराने के नियमों में बदलाव किया और इस तरह हर नागरिक को किसी भी दिन झंडा फहराने की इजाजत मिल गई।

राष्ट्रगान के भी हैं नियम
- राष्ट्रगान को तोड़-मरोड़कर नहीं गाया जा सकता।
- अगर कोई शख्स राष्ट्रगान गाने से रोके या किसी ग्रुप को राष्ट्रगान गाने के दौरान डिस्टर्ब करे तो उसके खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 की धारा-3 के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
- ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर अधिकतम तीन साल की कैद का प्रावधान है।
- प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 का दोबारा उल्लंघन करने का अगर कोई दोषी पाया जाए तो उसे कम-से-कम एक साल कैद की सजा का प्रावधान है।

अनचाही कॉल्स का जाल

ली मार्केटिंग कर रहे किसी बैंक कर्मचारी ने एफएम से फोन पर यह पूछ दिया कि क्या उन्हें लोन चाहिए? इससे वह झल्ला उठे। प्रणव मुखर्जी जैसे वरिष्ठ मंत्
री का नाराज होना महत्वपूर्ण है, इसलिए वह चर्चा का मुद्दा बना और टेलिकॉम मंत्री डी. राजा को तुरंत हरकत में आना पड़ा। अपने देश की डेमोक्रेसी की यही विडंबना है। अंदाजा लगाइए कि ऐसी अनचाही कॉल्स से रोजाना कितने करोड़ उपभोक्ता परेशान होते हैं। जंक मेल और एसएमएस की सफाई पर रोजाना कितना समय बर्बाद होता है। लेकिन सरकार के लिए वह इतना महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं रहा कि आनन-फानन में संचार मंत्री टेलिकॉम सेक्रेटरी को तुरंत कदम उठाने का निर्देश जारी करें।

मंत्रालय हरकत में तब आया जब एक वरिष्ठ मंत्री को असुविधा हुई। यह उलटा लोकतंत्र है जिसमें सरकार आम नागरिकों के परेशान होने पर समस्या का हल नहीं ढूंढती, बल्कि किसी मंत्री के परेशान होने पर जनता की परेशानी का अंदाजा लगाती है।

इसका दूसरा पहलू भी गौर करने लायक है। सरकार ने अनचाही कॉल्स रोकने के लिए 'डू नॉट कॉल रजिस्ट्री' का नियम बना रखा है। ट्राई को इससे जुड़े 6.58 करोड़ ग्राहकों से इस साल मार्च तक 3.4 लाख शिकायतें मिल चुकी हैं।



ज्यादातर तो अनसुनी रहीं, लेकिन जिन शिकायतों पर कार्रवाई की गई उनका भी कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि नियम तोड़ने पर कुल पांच सौ और हजार रुपये का जुर्माना होता है। ऐसे पनिशमेंट से क्या फायदा, जिससे किसी को डर ही न लगे। यह कुशासन है, जिसमें नियम-कानून तो बनाए जाते हैं, लेकिन यह निगरानी नहीं की जाती कि उनका पालन हो रहा है या नहीं। और नियम तोड़ने वालों को सजा भी नहीं मिलती।

बहरहाल इस घटना के बाद ट्राई 'डू कॉल रजिस्ट्री' की व्यवस्था पर विचार कर रही है। इस सिस्टम में टेली मार्केटिंग करने वाली कंपनियां सिर्फ उन्हीं कस्टमर्स को कॉल कर सकेंगी या मेल भेजेंगी, जिन्होंने अपना नंबर इसके लिए रजिस्टर करा रखा होगा कि हां, हमें कॉल करें और जानकारी दें। यह सिस्टम भी अच्छा है, लेकिन सवाल वही पुराना है कि इस पर अमल कितना होता है और निगरानी कैसी रहती है। लेकिन एफएम को गुस्सा क्यों आया? लगभग 75 अरब डॉलर का अपना बजट डेफिसिट पूरा करने के लिए उन्हें आखिर लोन तो चाहिए ही।

पूंजी बाजार में माइक्रोफाइनेंस

छले दिनों एक माइक्रोफाइनेंस कंपनी अपने आईपीओ को लेकर चर्चा में रही। माइक्रोफाइनेंस यानी क्या? ठेले पर सब्जी बेचने, पापड़-बड़ियां बन
ाने या सड़क किनारे पंक्चर जोड़ने जैसे छोटे-मोटे कारोबार करने वालों के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह होती है कि उनके पास बंधक रखने को कुछ होता नहीं और बैंक इसके बगैर उन्हें कर्ज देने को तैयार नहीं होते। सामान्य स्थितियों में तो उनका धंधा चलता रहता है, लेकिन किसी हारी-बीमारी में, किसी प्राकृतिक आपदा का शिकार हो जाने पर, घर बनाने या शादी-ब्याह जैसे बड़े खर्चों का बोझ उठाने के लिए वे साहूकार से बहुत ऊंची दर पर कर्ज लेते हैं और अक्सर ब्याज चुकाने में ही उम्र गंवा देते हैं।

माइक्रोफाइनेंस ऐसे ही लोगों को कर्ज देने का एक उपाय है। इस धंधे के साथ कुछ मुश्किलें जुड़ी होती हैं। कर्ज बांटने और वसूली करने के लिए बड़ा स्टाफ रखना होता है।


बांटा गया कर्ज बट्टेखाते में चले जाने की आशंका ज्यादा होती है। इन मुश्किलों के चलते जल्दी कोई इसमें अपनी पूंजी लगाने की हिम्मत भी नहीं करता। बहरहाल, देश में पहली बार आए इस माइक्रोफाइनेंस कंपनी के आईपीओ की दो अलग-अलग नजरियों से आलोचना की गई। एक नजरिया नैतिकतावादियों का था, जिनके मुताबिक माइक्रोफाइनेंस छोटी आमदनी में गुजारा करने वालों को मदद पहुंचाने का जरिया है और इससे जुड़ी किसी कंपनी का पूंजी बाजार में उतरना देश को आधिकारिक रूप से साहूकार युग में ले जाने जैसा है।

दूसरा नजरिया खुद पूंजी बाजार के महारथियों का था। इनमें से कई यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि कोई माइक्रोफाइनेंस कंपनी अपने आम शेयरधारकों के प्रति जवाबदेह हो सकती है। इन दोनों नजरियों में कौन सही है कौन गलत, या फिर ये कहीं दोनों ही पूर्वाग्रह के शिकार तो नहीं हैं, इस बारे में अंतिम राय देने का समय अभी नहीं आया है। अलबत्ता एक बात तय है कि भारत में माइक्रोफाइनेंस के लिए जमीन बड़ी उपजाऊ है। यहां गुजारे के स्तर के कारोबारी कुछ बंधक रखे बगैर छोटे-मोटे कर्ज हासिल करने के लिए ऊंचा ब्याज चुकाने को भी तैयार रहते हैं। इस हकीकत को समझकर कुछ माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने इधर अपने लिए अच्छा कारोबार खड़ा किया है, हालांकि उनका असली इम्तहान सूखे, बाढ़ और भूकंप जैसी आपदाओं के दौर में होना है, जब उनमें पूंजी लगाने वाले मुनाफा चले जाने के डर से अपनी पूंजी खींचने लगते हैं और कर्ज लेने वाले उसे लौटाने की हालत में नहीं होते।

वेदांता को झटका,नहीं मिली बॉक्साइट खनन की मंजूरी

न्ट टेक्स्ट:
नई दिल्ली ।। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने वेदांता ग्रुप के बॉक्साइट माइनिंग प्रोजेक्ट की मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। यह
जानकारी वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने दी।

गौरतलब है कि सरकार द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों के एक पैनल ने वेदांता समूह के नियामगिरि हिल्स प्रॉजेक्ट को मंजूरी न देने की सिफारिश की थी। इसी सिफारिश के आधार पर वन मंत्रालय ने मंगलवार को सुबह इस बारे में अंतिम फैसला किया। सोमवार को उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने दिल्ली आकर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश से मुलाकात भी की थी। सूत्रों के मुताबिक उस मुलाकात में ही यह बात साफ हो गई थी कि सरकार पोस्को पर तो सहानुभूतिपूर्वक विचार कर सकती है, मगर वेदांता के प्रॉजेक्ट को मंजूरी मिलना मुश्किल है। विशेषज्ञों की समिति ने वेदांता द्वारा कानूनों के लगातार उल्लंघन की शिकायतों को सही पाया था।

सरकार के इस फैसले को वेदांता समूह के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। गौरतलब है कि माइनिंग क्षेत्र की इस प्रमुख कंपनी ने केयर्न इंडिया को खरीदने की कोशिशों के जरिए रिलायंस समूह के लिए बड़ी चुनौती पेश करने का इरादा जता दिया है। अब अपने-अपने क्षेत्र की इन दिग्गज कंपनियों को एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाने लगा है।

गंजेपन से कैसे पाएं निजात

गंजेपन को दूर करने के लिए आजकल मार्केट में कई अडवांस तकनीक हैं। मोटे तौर पर इस पूरे प्रॉसेस को हेयर रेस्टोरेशन कहा जाता है। हेयर रेस्टोरेशन के दो
तरीके हैं। पहला सर्जिकल और दूसरा नॉन-सर्जिकल। सर्जिकल के तहत आता है हेयर ट्रांसप्लांटेशन और नॉन-सर्जिकल के तहत हेयर वीविंग, बॉन्डिंग, सिलिकॉन सिस्टम और टेपिंग आते हैं। सलमान खान ने फ्रंटल के लिए सर्जिकल तरीका अपनाया है और सिर के दूसरे हिस्सों के लिए नॉन-सर्जिकल। एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये तरीके बिल्कुल सेफ हैं। पूरी जानकारी दे रहे हैं प्रभात गौड़ ।

सर्जिकल मैथडः हेयर ट्रांसप्लांटेशन

क्या है
हेयर ट्रांसप्लांटेशन एक ऐसा आर्टिस्टिक और सर्जिकल मैथड है, जिसकी मदद से सिर के पिछले व साइड वाले हिस्से से, दाढ़ी, छाती आदि से बालों को लेकर सिर के गंजे भाग में इंप्लांट कर दिया जाता है। इंप्लांट किए गए ये बाल परमानेंट होते हैं। वजह यह कि सिर के पिछले और साइड वाले हिस्सों के बाल आमतौर पर नहीं झड़ते। इंप्लांट होने के तकरीबन दो हफ्ते बाद ये उगने शुरू हो जाते हैं और एक साल के बाद इनमें फुल इंप्रूवमेंट नजर आने लगता है और नेचरल बालों जैसे दिखने लगते हैं। इन बालों की खूबी यह है कि ये परमानेंट होते हैं और जिंदगी भर रहते हैं, हालांकि कुछ केस ऐसे भी देखे गए हैं, जिनमें ये बाल उम्र बढ़ने के साथ साथ खत्म हो जाते हैं। जिस एरिया से बाल लिए जाते हैं, उसे डोनर एरिया कहते हैं। बाल लेने के बाद वहां टांके लगा दिए जाते हैं। कुछ दिनों के बाद वह जगह सामान्य हो जाती है।

कैसे होता है
स्ट्रिप मैथड : पहले मरीज को लोकल एनास्थीसिया दिया जाता है। उसके बाद डोनर एरिया से आधे इंच की एक स्ट्रिप निकाल ली जाती है और उसे सिर के उस भाग में इंप्लांट कर दिया जाता है, जहां गंजापन है। आधे इंच की एक स्ट्रिप में आमतौर पर दो से ढाई हजार तक फॉलिकल हो सकते हैं और एक फॉलिकल में दो से तीन बालों की रूट्स होती हैं। इंप्लांट करने के बाद डोनर एरिया में खुद घुल जाने वाले टांके लगा दिया जाते हैं। यह जगह कुछ दिनों बाद सामान्य हो जाती है। जिस एरिया में बाल लगाए जाते हैं, उस पर एक रात के लिए पट्टियां लगा दी जाती हैं, जिन्हें अगले दिन क्लिनिक में जाकर पेशेंट हटवा सकता है या खुद भी हटा सकता है। जहां तक दर्द का सवाल है तो यह उतना ही होता है जितना इंजेक्शन (यहां सिर को सुन्न करने का) लगवाने में होता है। सिर का हिस्सा सुन्न हो जाने के कारण बाद में दर्द नहीं होता।

एसयूई मैथड : स्ट्रिप मैथड में जहां डोनर एरिया से एक स्ट्रिप लेकर उसे इंप्लांट किया जाता है, वहीं एसयूई मैथड में एक-एक फॉलिकल को लेकर इंप्लांट किया जाता है। एक सिटिंग में 6 से 8 घंटे का समय लग जाता है। इसमें 2000 तक फोलिकल इंसर्ट कर दिए जाते हैं। एडमिट होने की जरूरत नहीं होती। अगर इससे भी गंजापन दूर नहीं होता है तो मरीज को दूसरी सिटिंग के लिए बुलाया जा सकता है। दूसरी सिटिंग छह महीने से एक साल के बाद होती है।

खर्च
एसयूई मैथड में 120 से 150 रुपये प्रति फॉलिकल का खर्च आता है। महंगा होने की वजह यह है कि इसमें डॉक्टर को ही सारा काम करना होता है। एक-एक रूट को निकालकर रोपना पड़ता है, जबकि स्ट्रिप मैथड में काफी काम टेक्निशियन भी कर देते हैं। स्ट्रिप मैथड में प्रति फॉलिकल 60 से 65 रुपये का खर्च आता है।

देखभाल
- हेयर ट्रांसप्लांटेशन के बाद आनेवाले बाल बिल्कुल आपके नेचरल बालों की तरह ही होते हैं। ये बिल्कुल वैसे ही ग्रो करेंगे, जैसे नेचरल बाल करते हैं। ऐसे में जैसे नेचरल बालों की देखरेख होती है, ठीक वैसे ही इनकी भी होती है।
- आप इन्हें कटा सकते हैं, शैंपू कर सकते हैं, तेल लगा सकते हैं और कॉम्ब भी कर सकते हैं।
- इन बालों को आप कलर करा सकते हैं या फिर मनचाहा स्टाइल दे सकते हैं। आप इनकी कटिंग भी करवा सकते हैं। कुछ दिनों बाद ये फिर से आ जाएंगे।
- जो बाल ट्रांसप्लांट कराए गए हैं, वे ताउम्र बने रहते हैं। वे गिरते नहीं। हालांकि कुछेक मामलों में देखा गया है कि उम्र बढ़ने के साथ साथ ये बाल गिरने लगते हैं।
- बाल चूंकि नेचरली ग्रो करते हैं इसलिए बालों का लुक थिन ही रहता है। कई बार लोग सर्जिकल और नॉन-सर्जिकल दोनों तरीकों को अपना लेते हैं।

डॉक्टर को बताएं अगर
- डायबीटीज, हाइपरटेंशन, मेटाबॉलिक डिस्ऑर्डर्स जैसी कोई क्रॉनिक बीमारी हो।
- बॉडी में अगर पेसमेकर जैसा कोई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस हो।
- किसी खास ड्रग्स से एलर्जी हो।
- अगर किसी खास बीमारी के लिए कोई दवाएं ले रहे हों।

दूसरा पहलू
इसमें दिक्कत यह होती है कि आपके सिर के दूसरे हिस्सों के नॉर्मल बाल पहले की रफ्तार से गिरते रह सकते हैं। ऐसे में ट्रांसप्लांट कराने के बाद भी लगातार कुछ खास दवाएं लेते रहने की जरूरत है, जिससे बाकी के बालों को गिरने से बचाया जा सके या उनके गिरने की रफ्तार को कम किया जा सके। ट्रांसप्लांटेशन के बाद अगर बालों का गिरना जारी रहे तो मरीज के पास उस जगह पर दोबारा ट्रांसप्लांटेशन कराने का ऑप्शन है, लेकिन इसमें यह देखना होगा कि डोनर एरिया पर उसके लायक बाल बचे भी हैं कि नहीं। डोनर एरिया पर ज्यादा बाल न होने की हालत में दोबारा ट्रांसप्लांटेशन संभव नहीं हो पाता। अगर बाल हैं, तो करा सकते हैं।

नॉन-सर्जिकल मैथड : हेयर वीविंग, बॉन्डिंग, सिलिकॉन सिस्टम और टेपिंग
हेयर वीविंग
हेयर वीविंग एक ऐसी टेक्निक है, जिसके जरिए नॉर्मल ह्यूमन हेयर या सिंथेटिक हेयर को खोपड़ी के उस भाग पर वीव कर दिया जाता है, जहां गंजापन है। आमतौर पर हेयर कटिंग कराने के बाद जो बाल मिलते हैं, उन्हें हेयर मैन्युफैक्चरर को बेच दिया जाता है। उसके बाद इन्हीं बालों को वीविंग के काम में यूज किया जाता है। ये थोड़े महंगे होते हैं, जबकि दूसरी तरफ सिंथेटिक हेयर नॉर्मल हेयर के मुकाबले थोड़े सस्ते होते हैं। सिंथेटिक हेयर कई तरह के सिंथेटिक फाइबर के बने होते हैं। बॉलिवुड में अक्षय खन्ना, अमिताभ बच्चन, सनी देओल और सुरेश ओबेराय ने हेयर वीविंग कराई है।

कैसे होती है
जहां-जहां बाल नहीं हैं, वहां-वहां हेयर यूनिट लगाई जाती है। इसके लिए सिर पर मौजूद तीन साइड के बालों की मदद से मशीन और धागे के जरिए एक बेस बनाते हैं। इस बेस के ऊपर हेयर यूनिट को स्टिच कर दिया जाता है। इस पूरे प्रॉसेस में दो घंटे लगते हैं और एक ही सिटिंग में काम पूरा हो जाता है। डेढ़ महीने के बाद जब आपके ओरिजनल बाल ग्रो होते हैं तो बेस ढीला हो जाता है जिसके चलते स्टिच की गई यूनिट भी ढीली हो जाती हैं। इन्हें ठीक कराने के लिए एक्सपर्ट के पास जाना पड़ता है।

- ये बाल सेमी-परमानेंट होते हैं। हर 15 दिन के बाद इनकी सर्विसिंग करानी पड़ती है। सर्विसिंग के काम में दो घंटे का वक्त लग जाता है।
- जो लोग अच्छी तरह से मेनटेन कर लेते हैं, उन्हें दो महीने बाद सर्विस की जरूरत होती है।
- देखभाल बिल्कुल नेचरल बालों की तरह ही करनी है। ऑयल यूज नहीं करना है। मोटे दांतों वाले कंघे का यूज किया जाता है।
- हर 15 दिनों के बाद होनेवाली सर्विस में 500 से 1500 रुपये तक का खर्च आ जाता है।
- इनकी लाइफ कम होती है। छह महीने से एक साल तक चल जाते हैं। हालांकि अच्छी देखभाल की जाए तो चार साल तक चल जाते हैं। एक बार बाल खराब हो जाने के बाद वीविंग का पूरा प्रॉसिजर दोहराना पड़ता है।
- इसे प्रॉसिजर में कई पेशेंट्स को दर्द होता है और यह दर्द पूरे एक दिन रहता है, जिसे कम करने के लिए पेनकिलर्स दिए जाते हैं।

बॉन्डिंग
बॉन्डिंग भी नॉन-सर्जिकल मैथड है। इसे क्लिपिंग सिस्टम कहा जाता है।
इसमें हेयर यूनिट के तीन साइड में क्लिप लगाते हैं। यह क्लिप यूनिट के अंदर से लगाया जाता है। इस क्लिप की मदद से यूनिट को पहले से मौजूद बालों के साथ अटैच कर दिया जाता है। इन्हें दिन में लगा सकते हैं और रात को खोल कर रख सकते हैं, लेकिन यह आपकी सुविधा पर निर्भर है। ऐसा करना जरूरी नहीं है।

सर्विस कराने की जरूरत नहीं होती। हेयर कट करा सकते हैं, लेकिन हेयर ड्रेसर को यह पता होना चाहिए कि आपके ऑरिजनल और नकली बाल कौन से हैं। उसी के हिसाब से उसे कटिंग करनी होगी। इसमें प्रॉसिजर में 1 घंटे का वक्त लगता है और इसमें दर्द नहीं होता। खराब हो जाने के बाद इसे दोबारा करा सकते हैं।

सिलिकॉन सिस्टम
अगर आप दर्द भी नहीं चाहते और बॉन्डिंग भी नहीं चाहते तो आप इस सिस्टम को अपना सकते हैं।

इसमें आसपास के ऑरिजनल बालों को ट्रिम किया जाता है। इसके बाद उस पर ग्लू (सिलिकॉन जेल) लगाते हैं और फिर हेयर यूनिट को इस पर चिपका देते हैं।

यह एक से डेढ़ महीने तक फिक्स रहता है उसके बाद ढीला होने लगता है। ऐसे में सर्विस कराने की जरूरत होती है। सर्विस में डेढ़ घंटा लगता है और इसकी फीस होती है 1000 से 1500 रुपये।

टेपिंग
यह भी एक नॉन-सर्जिकल मैथड है जिसमें हेयर यूनिट का इस्तेमाल करते हैं। इस्तेमाल करने का तरीका अलग होता है।

इस प्रॉसिजर में एक टेप का इस्तेमाल किया जाता है, जो दो तरफ से स्टिकी होता है और ट्रांसपैरंट होता है। यह आम लोगों को नजर नहीं आता। दो स्टिकी सिरों में से एक सिर में लगती है और दूसरी यूनिट में।

इसमें भी 15 दिनों बाद सर्विस की जरूरत पड़ती है। लेकिन इसमें फायदा यह है कि कुछ फीस देकर सैलून में ही सर्विस करने का तरीका सीखा जा सकता है और फिर हर 15 दिन बाद खुद ही सर्विस की जा सकती है। जो लोग देश से बाहर ज्यादा रहते हैं, उनके लिए यह तरीका मुनासिब है।

नोट : इन चारों तरीकों का खर्च वीव किए जानेवाले बालों की क्वॉलिटी पर निर्भर करता है, गंजेपन की स्थिति या मैथड पर नहीं। बालों की क्वॉलिटी के हिसाब से आमतौर पर इसका खर्च पांच हजार से 80 हजार रुपये के बीच आता है।

विग
जिस तरह पहले विग यूज होती थी, उसी का अडवांस वर्जन आज भी यूज होता है, लेकिन हेयर वीविंग और विग में बहुत फर्क है। हेयर वीविंग सिर्फ उस जगह की जाती है, जहां गंजापन है, जबकि विग को फोरहेड लाइन से ईयर लाइन तक पूरा पहना जाता है, गंजापन भले ही कहीं पर भी हो। आजकल विग को लोग कम प्रेफर करते हैं क्योंकि पहनने के यह काफी टाइट लगती है।

बी केयरफुल
हेयर रेस्टोरेशन के ऊपर बताए गए तरीकों से वैसे तो कोई खास और स्थायी साइड इफेक्ट्स या नुकसान नहीं होता है, फिर भी कुछ पेशेंट्स को कई तरह की दिक्कतें आ सकती हैं। ये इस तरह हैं:

- हेयर रेस्टोरेशन के बाद पहले से मौजूद ओरिजनल बाल कुछ वक्त के लिए थिन हो सकते हैं। इस स्थिति को शॉक लॉस या शेडिंग के नाम से जाना जाता है। कुछ समय बाद यह स्थिति खुद-ब-खुद ठीक हो जाती है।

- खोपड़ी सुन्न हो सकती है या उसमें ढीलापन आ सकता है। यह भी कुछ महीनों में अपने आप ही ठीक हो जाता है।

- सिर में दर्द या खुजली की शिकायत हो सकती है।

- इंफेक्शन की भी आशंका होती है, जिसे एंटिबायोटिक्स के जरिए कुछ ही समय में ठीक कर दिया जाता है।

- कुछ दिनों के लिए आंखों और माथे पर सूजन आ सकती