Aug 24, 2010

अनचाही कॉल्स का जाल

ली मार्केटिंग कर रहे किसी बैंक कर्मचारी ने एफएम से फोन पर यह पूछ दिया कि क्या उन्हें लोन चाहिए? इससे वह झल्ला उठे। प्रणव मुखर्जी जैसे वरिष्ठ मंत्
री का नाराज होना महत्वपूर्ण है, इसलिए वह चर्चा का मुद्दा बना और टेलिकॉम मंत्री डी. राजा को तुरंत हरकत में आना पड़ा। अपने देश की डेमोक्रेसी की यही विडंबना है। अंदाजा लगाइए कि ऐसी अनचाही कॉल्स से रोजाना कितने करोड़ उपभोक्ता परेशान होते हैं। जंक मेल और एसएमएस की सफाई पर रोजाना कितना समय बर्बाद होता है। लेकिन सरकार के लिए वह इतना महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं रहा कि आनन-फानन में संचार मंत्री टेलिकॉम सेक्रेटरी को तुरंत कदम उठाने का निर्देश जारी करें।

मंत्रालय हरकत में तब आया जब एक वरिष्ठ मंत्री को असुविधा हुई। यह उलटा लोकतंत्र है जिसमें सरकार आम नागरिकों के परेशान होने पर समस्या का हल नहीं ढूंढती, बल्कि किसी मंत्री के परेशान होने पर जनता की परेशानी का अंदाजा लगाती है।

इसका दूसरा पहलू भी गौर करने लायक है। सरकार ने अनचाही कॉल्स रोकने के लिए 'डू नॉट कॉल रजिस्ट्री' का नियम बना रखा है। ट्राई को इससे जुड़े 6.58 करोड़ ग्राहकों से इस साल मार्च तक 3.4 लाख शिकायतें मिल चुकी हैं।



ज्यादातर तो अनसुनी रहीं, लेकिन जिन शिकायतों पर कार्रवाई की गई उनका भी कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि नियम तोड़ने पर कुल पांच सौ और हजार रुपये का जुर्माना होता है। ऐसे पनिशमेंट से क्या फायदा, जिससे किसी को डर ही न लगे। यह कुशासन है, जिसमें नियम-कानून तो बनाए जाते हैं, लेकिन यह निगरानी नहीं की जाती कि उनका पालन हो रहा है या नहीं। और नियम तोड़ने वालों को सजा भी नहीं मिलती।

बहरहाल इस घटना के बाद ट्राई 'डू कॉल रजिस्ट्री' की व्यवस्था पर विचार कर रही है। इस सिस्टम में टेली मार्केटिंग करने वाली कंपनियां सिर्फ उन्हीं कस्टमर्स को कॉल कर सकेंगी या मेल भेजेंगी, जिन्होंने अपना नंबर इसके लिए रजिस्टर करा रखा होगा कि हां, हमें कॉल करें और जानकारी दें। यह सिस्टम भी अच्छा है, लेकिन सवाल वही पुराना है कि इस पर अमल कितना होता है और निगरानी कैसी रहती है। लेकिन एफएम को गुस्सा क्यों आया? लगभग 75 अरब डॉलर का अपना बजट डेफिसिट पूरा करने के लिए उन्हें आखिर लोन तो चाहिए ही।

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