केंद्र सरकार गरीबों को केरोसीन पर 20 हजार करोड़ की सब्सिडी दे रही है। देश में हर साल 1116 करोड़ लीटर केरोसीन बिकता है। इसमें से 40 फीसदी यानी लगभग 450 करोड़ लीटर हर साल माफिया के पास पहुंच जाता है। तेल माफिया सस्ते केरोसीन को महंगे पेट्रोल-़डीजल में मिलाकर बेचते हैं और जमकर मुनाफा कमाते हैं। इस बेखौफ धंधे के बीच फिर जो भी आता है मारा जाता है। फिर चाहे षणमुगम मंजुनाथ हों या यशवंत सोनवणो। केरोसीन के काले बाजार, उसकी अर्थव्यवस्था और राजनीति पर देश भर से भास्कर संवाददाताओं की खोजपरक खबर- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा लगभग आधा केरोसीन कालाबाजारियों के पास चला जाता है। सरकार हर साल केरोसीन पर सब्सिडी के रूप में जो 20 हजार करोड़ रुपए देती है वह वही है जो हम टैक्स के रूप में सरकार को चुकाते हैं। चोरी, कालाबाजारी और तस्करी के कारण सरकार को हर साल 17 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। लेकिन फिर भी घाटे का यह सौदा जारी है।
मनमाड़ से आठ किलोमीटर दूर जिस पानेवाड़ी में यह घटना हुई वह महाराष्ट्र में केरोसीन की कालाबाजारी का गढ़ माना जाता है।सरकार सस्ता केरोसीन मुहैया कराने के लिए भारी भरकम राशि सब्सिडी पर खर्च कर रही है। नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकानॉमिक रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक इस छूट का सबसे ज्यादा फायदा तेल माफिया उठा रहे हैं। क्योंकि मात्र साढ़े 12 रुपए में मिलने वाला एक लीटर केरोसीन को वे कई गुना महंगे पेट्रोल-डीजल में मिलाकर भारी मुनाफा कमा लेते हैं। देश में हर महीने 93 करोड़ लीटर केरोसीन बिकता है। देश के हर व्यक्ति को करीब एक लीटर यानी साल में 12 लीटर। रिपोर्ट के मुताबिक सरकार द्वारा मुहैया 40 फीसदी केरोसीन कालाबाजारियों के हाथों में चला जाता है। नेपाल, पाकिस्तान व बांग्लादेश जैसे हमारे पड़ोसी देशों में केरोसीन की कीमतें पेट्रोल-डीजल की कीमतों के लगभग बराबर है। इसलिए सरकारी तेल डिपो व टैंकरों से चुराया गया केरोसीन तस्करी के जरिए इन देशों में महंगे दाम पर बेच दिया जाता है। एसोचेम के एक सर्वे के अनुसार हर साल सौ करोड़ लीटर केरोसीन की तस्करी हो रही है। इससे सरकार को हर साल 3395 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। कालाबाजारी इसलिए राशन की दुकानों से मिलने वाला केरोसीन 12.50 रुपए लीटर है। सरकार इसमें एक केमिकल मिलाकर नीला बनाती है। इसमें दस मिलीलीटर की मिलावट भी एक लीटर पेट्रोल या डीजल को नीला बना देती है। वहीं, सफेद केरोसीन का सरकारी रेट 30 रुपए से अधिक है। चूंकि सफेद केरोसीन खुले बाजार में मिलता ही नहीं है और इसकी मिलावट करने से मिलावटखोरों को ज्यादा मुनाफा नहीं होता इसलिए कालाबाजारी करने वाले नीले केरोसीन को हाइड्रोजन परॉक्साइड मिलाकर सफेद बना लेते हैं। इसे वह 35 से 45 रुपए प्रति लीटर में बेचकर जबरदस्त मुनाफा कमाते हैं। वहीं, सफेद केरोसीन को डीजल और पेट्रोल में मिलाने करने से उसका रंग नहीं बदलता और मिलावट का पता नहीं चलता। केंद्र सरकार में पेट्रोलियम सचिव रहे सुशील चंद्र त्रिपाठी के मुताबिक तेल कंपनियां केरोसीन का भंडारण जिला स्तर पर करती हैं और वहीं वह कालाबाजारियों के हाथ लग जाता है। त्रिपाठी कहते हैं कि कालाबाजारी रोकने का एक तरीका केरोसीन का भंडारण गांव या ब्लॉक स्तर पर करना हो सकता है जहां इसे डीलर के नहीं बल्कि पंचायत की निगरानी में रखा जाए। लेकिन परिवहन की कीमत बढ़ने के डर से तेल कंपनियां इसके लिए राजी नहीं होती। मिलावटखोरों का सबसे बड़ा अड्डा है मनमाड़ मुंबई : नासिक रोड पर तेल टैंकरों का ट्रैफिक कम करने के लिए 13 साल पहले मनमाड़ से आठ किलोमीटर दूर पानेवाड़ी गांव में भारत पेट्रोलियम कापरेरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) ने पाइपलाइन से पेट्रोलियम पदार्थ लाने की योजना शुरू की। वहां 225 एकड़ जमीन पर बड़ा सा डिपो भी बनाया गया। बाद में अन्य तेल कंपनियों ने भी अपने-अपने डिपो वहां बनाए। इससे आसपास के सात-आठ जिलों में पेट्रोलियम पदार्थो की सप्लाई शुरू हुई। पर इसके साथ ही केरोसीन की कालाबाजारी व मिलावटखोरी भी शुरू हो गई।
इसमें तेल कंपनियों के अधिकारियों-कर्मचारियों से लेकर पुलिस तक शामिल है। इलाके के कई पुलिस अफसर तो ‘मिलावट माफिया’ तक कहलाते हैं। ऐसे होती है केरोसीन की चोरी ऑइल कंपनियां पीडीएस के तहत मिलने वाला केरोसीन जिला मुख्यालयों में बने डिपो में लाती हैं। फिर टैंकरों और ड्रमों के जरिए वह कस्बों व गांवों तक पहुंचता है। पुणो के ऑटोमोबाइल रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया में प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. एस जुट्टू के मुताबिक इन्हीं टैंकरों से चोरी की शुरुआत होती है जो गांव में राशन की दुकान तक चलती है। कहीं तो टैंकर के टैंकर ही मिलावट के लिए पेट्रोल पम्प पर लाए जाते हैं। कई बार डीलर ही टैंकर ब्लैक में बेच देता है। यशवंत सिन्हा पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री केरोसीन पर सब्सिडी खत्म कर बीपीएल परिवारों के खाते में पैसा जमा करे सरकार जब तक बाजार में किसी चीज की दो कीमते होंगी तो स्मगलिंग और कालाबाजारी तो होगी ही। एक जमाने में सोने की स्मगलिंग बहुत मुनाफे का सौदा होता था। उसे रोकने के लिए हमने उसका आयात आसान कर दिया। जब घरेलू बाजार में सोना सुलभ है तो उसकी स्मगलिंग बंद हो गई। आश्चर्य की बात है कि अभी तक हमने इससे कोई सबक नहीं लिया। पूरी व्यवस्था किसी ठेलेगाड़ी की तरह धक्का मार-मार कर चल रही र्है। सरकार को केरोसीन पर सब्सिडी खत्म कर बीपीएल परिवार के खाते में पैसा जमा कर देने चाहिए। न रहेगी सब्सिडी न होगी केरोसीन की कालाबाजारी। प्रोफे सर अरुण कुमार , दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक बैंक खातों में पैसा जमा कराने से तो भ्रष्टाचार और बढ़ेगा, सब्सिडी नहीं, प्रशासनिक तंत्र फेल हुआ है हमारा प्रशासनिक तंत्र फेल हुआ है न कि सब्सिडी की नीति। सरकार को सबसे पहले अमीर और गरीब को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है। सरकार इस जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रही है। सब्सिडी ऐसे लोगों के लिए है जिनके पास तन ढकने को कपड़े नहीं है और न ही रोटी और दवाई के पैसे। इसलिए रियायत तो जरूरी है।
लेकिन उनके बैंक खाते में पैसा देने से भ्रष्टाचार को और बढ़ावा मिलेगा। इसलिए सरकार को ऐसा तंत्र विकसित करना होगा कि सब्सिडी तो जारी रहे लेकिन केरोसीन की कालाबाजारी पर रोक लग जाए। इसी से मिलावटखोरों पर भी लगाम कसेगी। सार्थक बेहुरिया इंडियन ऑयल कारपोरेशन के पूर्व चेयरमैन हत्या की जड़ सब्सिडी है, पर फैसला सरकार को लेना है कि इसे जारी रखा जाए या नहीं? षणमुगम मंजुनाथ और यशवंत सोनवणो की हत्या की जड़ में केरोसीन और रसोई गैस पर दी जाने वाली भारी सब्सिडी है। इसी वजह से इनकी चोरी और कालाबाजारी होती है। चूंकि पेट्रोल और डीजल की कीमतें बाजार मूल्य के मुताबिक निर्धारित हो रही हैं इसलिए कालाबाजारी के बारे में कहीं सुनाई नहीं देता। केरोसीन और रसोई गैस की कालाबाजारी बड़ी समस्या है। लेकिन यह सरकार को ही तय करना है कि उसे सब्सिडी जारी रखनी है या खत्म कर देनी है। दिल्ली के लोनी, बिजवासन, असम में सिलीगुड़ी, गुजरात में कांडला, उत्तरप्रदेश में मथुरा में सबसे बड़े तेल डिपो हैं, जहां इस तरह के माफियाओं के सक्रिय होने की आशंका है। गुरुचरण दास जानेमाने अर्थशास्त्री सब्सिडी का दुरुपयोग होता ही है, इसे खत्म कर स्मार्ट कार्ड के जरिये गरीबों को मदद दी जाए सब्सिडी जहां भी दी जाती है उसका दुरुपयोग होता ही है। इसलिए हर क्षेत्र में सब्सिडी तुरंत खत्म कर दिया जाना चाहिए। हमारे सामने पंजाब में मुफ्त बिजली दिए जाने का अच्छा उदाहरण है। चूंकि बिजली मुफ्त मिल रही थी, इसलिए वहां दिन-दिन भर पंपसेट चलाए गए। फसल तो जरूर अच्छी हुई लेकिन अंधाधुंध पानी निकाले जाने के कारण वहां का भूजल स्तर इतना गिर गया है कि सिचांई की लागत बढ़ गई है और पैदावार गिर रही है। सब्सिडी के विकल्प के रूप में सरकार को किसानों को सीधे आर्थिक सहायता देनी चाहिए। वह चाहे उनके खाते में पैसा जमा कर हो या स्मार्ट कार्ड के जरिए हो।
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