गुड़िया दुखी थी। पास मे बैठी माँ भी चुप। बबलू ना जाने क्या सोच रहा था।
अभी-अभी पिताजी फरमान जो सुना गए थे की गुड़िया ने दसवीं कर ली है, आगे पढ़ने की जरूरत नहीं। “हमने कौन सा बेटी से नौकरी करवानी है ? देखा नहीं है आज-कल की पढ़ी-लिखी मेमों को। बस गिटर –पिटर अँग्रेजी बोली और आता- जाता कुछ नहीं। ये घर बसाती नहीं, बर्बाद करती है !! एक तो इनकी पढ़ाई-लिखाई पर पैसे लगाओ ऊपर से हमे ही ज्ञान देंगी। पैसे कोई पेड़ पर उगते है ? बस, अब गुड़िया की शादी कर देंगे, अच्छा लड़का देखकर।“
वैसे, बबलू का मोटरसाइकल का टेंडर पास हो गया था। “यही बुढ़ापे का सहारा है। आज इसको देखेंगे, कल ये हमे संभालेगा।“
बबलू की प्यारी बहन थी गुड़िया। और अच्छी तरह समझता था की पिताजी गलत कर रहे है।
... शाम को पिताजी से वह बोला,’ आप गुड़िया को पढ़ाइए, मुझे मोटरसाइकल नहीं चाहिए। पापा, कुछ लड़के भी पढ़-लिख कर गधे ही रहते है। इसमे पढ़ाई का दोष नहीं है। क्यूंकी परिवार, समाज, देश या विश्व मे अगर कोई जागृति और उन्नति हुई है तो वो पढे-लिखों की वजह से। और वैसे भी शिक्षा गुड़िया का अधिकार है। अगर आप, जन्मदाता हो कर उसके अधिकारों का सम्मान नहीं करेंगे तो दूसरे घरवालों से क्या अपेक्षा !! एक पढ़ी-लिखी लड़की परिवार की एक पूरी पीढ़ी को शिक्षा दे प्रग्रतिशील बना सकती है। अपने स्वाभिमान के लिए खड़ी हो सकती है और जरूरत पड़े तो आत्मनिर्भर भी हो सकती है। मेरी गुड़िया को अपने सपने पूरे करने दीजिये ..... में उसके टूटे सपनों पर मोटरसाइकल नहीं चला सकता।‘
पिताजी की स्वीकृति मे मुस्कान भी थी और गर्व भी। गुड़िया और माँ की आँखों मे वो अच्छे वाले आँसू।
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