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Sep 11, 2010

इडियट्स' को पीछे छोड़ देगी 'दबंग'!


त्‍यौहारों के मौके पर रिलीज हुई सलमान खान की फिल्‍म ‘दबंग’ शुरुआती दिन ही बॉक्‍स ऑफिस पर जबरदस्‍त हिट रही। करीब 18 करोड़ रुपए की लागत से बनी यह फिल्‍म 40 करोड़ रुपए में डिस्‍ट्रीब्‍यूटर्स के हाथों बिक गई। देश भर में 1300 सिनेमाघरों में रिलीज हुई दबंग शुक्रवार को रिलीज के दिन 97 फीसदी हाउसफुल रही।

ईद के मौके पर रिलीज दबंग को आमिर खान की 'थ्री इडियट्स' की तरह कामयाबी मिलने की उम्‍मीद की जा रही है। अगर पिछले कुछ समय में आई कुछ फिल्मों से तुलना करें तो दबंग की ओपनिंग थ्री इडियट्स के करीब रही। हालांकि खुद सलमान की ही ईद पर रिलीज हुई ‘वांटेड’ ने सफलता के झंडे गाड़े थे। दबंग फिल्म की हाइप और दर्शकों के क्रेज को देखते हुए सभी मल्टीप्लेक्सों ने इसे प्रमुखता दी और नंबर ऑफ शोज भी बढ़ा दिए। बावजूद इसके फिल्‍म के टिकटों के लिए मारामारी रही।

पिछले साल क्रिसमस के मौके पर रिलीज हुई थ्री इडियट्स ने 41 करोड़ रुपए की ‘वीकेंड ओपनिंग’ कर रिकार्ड बनाया था। जानकारों का कहना है कि सब कुछ ठीक रहा तो दबंग, थ्री इडियट्स को भी पीछे छोड़ देगी। ‘फिल्‍म इंफॉर्मेशन’ के एडिटर कोमल नाहटा कहते हैं, ‘फिल्‍म की वीकेंड ओपनिंग के अंतिम आंकड़ें आने तक यह संभव है।’

’ट्रेड गाइड’ के एडिटर तरण आदर्श कहते हैं कि दबंग पहले वीकेंड पर 45 करोड़ रुपए की कमाई करेगी और इस तरह कलेकशन के मामले में थ्री इडियट्स को पीछे छोड़ देगी। उन्‍होंने कहा, ‘निश्चित तौर पर यह इस साल की सबसे सुपरहिट फिल्‍म साबित होगी। सबसे बड़ी बात है कि यह फिल्‍म थ्री इडियट्स को तगड़ी टक्‍कर दे रही है। यह फिल्‍म सिनेमाघरों के साथ साथ मल्टीप्लेक्सों में भी धूम मचा रही है।

बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता शत्रुध्‍न सिन्‍हा की बेटी सोनाक्षी इस फिल्‍म के जिरए पहली बार फिल्‍मों पर कदम रख रही हैं। अन्‍य कलाकारों में मलाइका अरोड़ा खान आइटम गर्ल की भूमिका में हैं तो विनोद खन्‍ना, डिम्‍पल कपाडि़या, सोनू सूद जैसे कलाकार भी हैं। दिल्‍ली-एनसीआर में इस फिल्‍म के 250 प्रिंट बिके हैं। यह फिल्‍म मेट्रो से इतर छोटे शहरों में भी खूब धूम मचा रही है।

Aug 29, 2010

तीन ओवर, और लग गया शतक

नई दिल्ली. विश्व क्रिकेट में आज कितने भी रिकार्ड बन गए हों, पर ऑस्ट्रेलिया के डॉन ब्रेडमेन के इस कीर्तिमान को अब तक कोई खिलाड़ी नहीं छू सका है। घरेलू मैच खेलते हुए ब्रेडमेन ने महज तीन ओवरों में शतक जड़ दिया था। दुनिया के तेज से तेज बल्लेबाजी करने वाले बल्लेबाज भी ऐसा नहीं कर पाए हैं।

बात उस समय की है जब एक ओवर में 8 गेंदें हुआ करती थीं। लेकिन आज तक किसी बल्लेबाज ने महज 22 गेंदों में शतक नहीं लगाया है। 3 नवंबर, 1931 को ब्लैकहीथ (ऑस्ट्रेलियाई टीम) से खेलते हुए ब्रेडमेन ने लिथगो के खिलाफ तीन ओवर और दो गेंद मे 111 रन ठोक दिए थे।

पहला ओवर - 33 रन - 6,6,4,2,4,4,6,1

दूसरा ओवर - 40 रन - 6,4,4,6,6,4,6,4

तीसरा ओवर - 27 रन - 6,6,1,4,4,6

शायद इसलिए ब्रेडमेन की क्रिकेट का महानतम बल्लेबाज कहा जाता है। आज कोई बल्लेबाज कितने भी कीर्तिमान खड़े क्यों ना कर ले, लेकिन ब्रेडमेन की बराबरी कभी नहीं कर सकता। उन्होंने महज 20 साल के करियर में बल्लेबाजी के रिकार्डों का पहाड़ खड़ा कर दिया। सचिन तेंदुलकर ने भी 20 साल से अधिक क्रिकेट खेला है, लेकिन कम मैच खेलकर ब्रेड

Aug 27, 2010

ट्रांसप्लांट कराने का खर्च 35 रुपए

जयपुर. अब नेचुरल बालों से भी गंजेपन का इलाज संभव है। छह से आठ घंटे में माइक्रोस्कॉप से इन्हें ट्रांसप्लांट किया जा सकता है।

लुक में भी ये ऑरिजनल दिखाई देते हैं। जयपुर में लेटेस्ट टेक्निक माइक्रोहेयर फोलिक्यूलर यूनिट के जरिए हेयर ट्रांसप्लांट किए जा रहे हैं। मेडिस्पा लेजर एंड कॉस्मेटिक सर्जरी सेंटर के संचालक डॉ. सुनीत सोनी ने प्रेस वार्ता में बताया कि अभी तक आर्टिफिशियल हेयर से ट्रांसप्लांट किया जा रहा था। इसके साइड इफेक्ट्स होने के कारण लोगों को काफी परेशानी हो रही थी।

कई बार स्किन भी खराब हो जाती थी, लेकिन फ्रांस की इस टेक्निक से स्किन, आंखों और ब्रेन को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। छह से आठ घंटे में 15 से 20 हजार बालों का ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। एक ग्राफ्ट यानी एक बाल ट्रांसप्लांट करने का खर्च 35 रुपए है। ये बाल स्थायी होते हैं। इनकी नेचुरल ग्रोथ होती है। बिना साइड इफेक्ट्स के पूरी जिंदगी बढ़ते हैं। दिल्ली और मुंबई की तुलना में यहां एक तिहाई कम खर्च पर ट्रांसप्लांट होता है।

Aug 24, 2010

हैंडराइटिंग से माइंड रीडिंग?


पैरंट्स जब अपने नन्हे-मुन्ने के हाथ में पेंसिल थमाते हैं तो उनका मकसद होता है कि वह पढ़-लिखकर लायक बन जाए। बच्चा भी आड़े-तिरछे अक्षर बनाते-बनाते
कब मोटी-मोटी कॉपियां काली करने लगता है, पता ही नहीं चलता। लेकिन कॉपियों पर उकेरे गए ये अक्षर सिर्फ ज्ञान की कहानी बयां नहीं करते, बल्कि ये बताते हैं लिखनेवाले की पर्सनैलिटी, उनकी मनोदशा, उसकी सोच... और भी बहुत कुछ। अक्षरों की इसी दिलचस्प कहानी को बयां कर रही हैं प्रियंका सिंह :

मुंबई पुलिस ने एक केस के सिलसिले में एक मुलजिम को गिरफ्तार किया। पूरी कोशिशों और थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करने के बावजूद उसने मुंह नहीं खोला। इस केस से जुड़े पुलिस अधिकारी की मुलाकात एक हैंडराइटिंग एक्सपर्ट से हुई। उन्होंने मुलजिम के हस्ताक्षर देखकर बताया कि यह शख्स अपनी मां से बहुत जुड़ा होगा। पुलिस ने उसकी मां को उठा लिया। यह जानकर अपराधी ने फौरन अपना गुनाह कबूल कर लिया। है ना ताज्जुब की बात! जो काम थर्ड डिग्री न कर पाई, वह एक हस्ताक्षर ने कर दिखाया।

यह दावा है एक हैंडराइटिंग एक्सपर्ट का, जिनका मानना है कि हमारी लिखावट हमारे बारे में सब कुछ बयां कर देती है। दूसरी ओर, साइंटिफिक अप्रोच रखने वाले लोग इससे इत्तफाक नहीं रखते। उनका मानना है कि हैंडराइटिंग किसी के बारे में थोड़ा-बहुत ही बता सकती है। बाकी सारा काम अनुमान के आधार पर होता है।


क्या हैं हम, बताती है लिखावट
हमारी लिखावट हमारी पर्सनैलिटी का आईना होती है। हम जब पेपर पर कुछ लिखते हैं तो वह सिर्फ अक्षर या वाक्य नहीं होता, बल्कि हम क्या हैं, कैसे हैं, यह उन शब्दों से पढ़ा और समझा जा सकता है। लिखावट लिखनेवाले के इमोशंस, सोच, सेहत, गुण, नजरिए आदि के बारे में काफी कुछ बता सकती है। इंस्टिट्यूट ऑफ ग्राफॉलजी के डायरेक्टर अनल पंडित का दावा है कि लिखावट हमारे दिमाग और हाथ के बीच बांध का काम करती है। थोड़ा फिलॉसफिकल तरीके से ऐसे भी समझ सकते हैं कि हमारी सोच शब्दों के रूप में सामने आती है और शब्द एक्शन के रूप में। हम चाहे इग्नोर कर दें, लेकिन द्ब पर बिंदी लगाते हैं या नहीं, ह्ल को कहां से क्रॉस करते हैं, हिंदी में लिखते हुए ऊपर की लाइन कितना ऊपर या नीचे खींचते हैं, ये छोटी-छोटी बातें बेहद अहम होती हैं।

हम सब हैं जुदा-जुदा
किन्हीं दो लोगों की लिखावट एक जैसी नहीं होती क्योंकि हर किसी के दिमाग का स्तर, सोचने का तरीका, खुद को एक्सप्रेस करने का तरीका आदि अलग होता है। गौर करने वाली बात है कि पढ़े-लिखे लोगों की लिखावट अनपढ़ों या कम पढ़े-लिखों से बिल्कुल अलग बल्कि बेहतर होती है। इसी से पता चलता है कि हैंडराइटिंग हमारी शख्सियत के बारे में काफी कुछ बता सकती है। एक्सर्पट्स तो इससे और आगे जाकर ग्राफोथेरपी की भी बात करते हैं। अनल पंडित कहते हैं कि ग्राफॉलजी(हैंडराइटिंग का अनालिसिस)से किसी शख्स के बारे में जानकारी मिल सकती है, जबकि ग्राफोथेरपी (हैंडराइटिंग में सुधार) से उसकी पर्सनैलिटी को बदला जा सकता है।

इतिहास गवाह है
हितोपदेश के अलावा और भी ऐतिहासिक ग्रंथों में लिखावट की अहमियत और इसे एक तकनीक के रूप में स्वीकार किए जाने की बात कही गई है। शिवाजी महाराज के गुरु स्वामी रामदास ने 'दासबोध' में लिखा है कि लिखावट का हमारे व्यक्तित्व पर खासा असर होता है। उन्होंने एक चार्ट भी दिया, जिसमें अक्षरों को सही तरीके से बनाने की जानकारी दी गई थी। इससे भी बहुत पहले 1622 में एक इटैलियन स्कॉलर ने इस विषय पर किताब लिख दी थी। बाद में गोथे, डिकेंस, ब्राउनिंग्स जैसे लेखकों ने इसे एक आर्ट के रूप में स्थापित करने की कोशिश की। 1857 में पहली बार जिन मिकन इन ग्राफॉलजी शब्द ईजाद किया। यूरोप में आज भी लिखावट को एक असेसमेंट टूल के रूप में बहुत अच्छी तरह स्वीकार किया जाता है। फ्रांस, इसाइल और जर्मनी जैसे देशों में तो कई बार कंपनियां उच्च पदों पर अपॉइंटमेंट से पहले कैंडिडेट का हैंडराइटिंग असेसमेंट भी कराती हैं। एक स्टडी में फ्रांस में 80 फीसदी और इंग्लैंड में करीब 8 फीसदी कंपनियां अपॉइंटमेंट में इस तकनीक का सहारा लेती पाई गईं। इस्राइल में हाल में एक रिसर्च में कहा गया लिखावट से पता चल सकता है कि लिखनेवाला झूठ बोल रहा है या नहीं। हमारे देश में इस तकनीक का सहारा ज्यादातर क्रिमिनल केस सुलझाने में किया जाता है।

मन बदला तो लिखावट बदली
मन की दशा के मुताबिक ही लिखावट तय होती है। अगर मन उदास है, मन में उत्साह है, कुलबुलाहट है या फिर जल्दी है, इन सभी स्थितियों में लिखावट में अंतर नजर आएगा। बावजूद इसके, अक्षर बनाने का तरीका, झुकाव, बनावट आदि कभी नहीं बदलते और पैरामीटर व बेस एक जैसे ही रहते हैं। इसी आधार पर असली और नकली लिखावट की भी जांच की जाती है। हैंडराइटिंग एंड फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट अशोक कश्यप के मुताबिक अगर कोई किसी की लिखावट या साइन की कॉपी करता है तो मोटे तौर पर उनमें समानता ही नजर आती है लेकिन बारीकी से जांच करने पर कॉपी वाली लिखावट में रुकावट होगी, लिखने की स्पीड नॉर्मल नहीं होगी, पेन के निशान नजर आएंगे और अक्षरों का गठन भी सामान्य नहीं होगा। वैसे, कई बार लोग अपने फेवरेट शख्स की लिखावट की कॉपी भी करते हैं। ऐसे में उनकी लिखावट में उनकी अपनी और जिसकी कॉपी कर रहे हैं, उसकी पर्सनैलिटी का मिक्सचर आ सकता है।

मुमकिन है बदलाव!
जानकारों के मुताबिक ग्राफोथेरपी से हम अपना माइंडसेट बदल सकते हैं और जिंदगी में बेहतर रिजल्ट पा सकते हैं। यही वजह है कि आजकल हैंडराइटिंग अनालिसिस एक कोर्स के रूप में काफी पॉपुलर हो रहा है। इसके लिए बाकायदा कोर्स और क्लास कराई जा रही हैं। आमतौर पर 14 साल से कम उम्र के बच्चों की हैंडराइटिंग में बदलाव ज्यादा असरदार साबित नहीं होता क्योंकि इस उम्र तक उन पर ज्यादा असर अपने पैरंट्स और टीचर्स का होता है। इसके बाद जरूर आप पर्सनैलिटी में बदलाव कर सकते हैं। जानकारों का कहना है कि लिखावट का सही ज्ञान आपके अंदर की क्षमता को नहीं बदल सकता लेकिन आपको उसके टॉप लेवल तक जरूर पहुंचा सकता है। वैसे, हर शख्स को लिखावट में एक ही तरह के चेंज की सलाह नहीं दी जा सकती। हैंडराइटिंग एक्सपर्ट एस. पी. सिंह के मुताबिक लिखावट में बदलाव हर आदमी के लिए अलग होते हैं और ये सिर्फ सांकेतिक होते हैं। किसी की हैंडराइटिंग में बदलाव के लिए सही सलाह कोई अच्छा एक्सपर्ट ही दे सकता है।

एक नजरिया यह भी
साइंटिफिक अप्रोच वाले लोग ग्राफॉलजी को सूडो-साइंस मानते हुए इसे एस्ट्रॉलजी, पामिस्ट्री, न्यूमेरॉलजी की तरह ही मानते हैं। साइंस इस बात से भी इनकार करता है कि अवचेतन अवस्था में लोग सच ही बोलते या लिखते हैं, जबकि हैंडराइटंग में अवचेतन मन काफी अहम होता है। ब्रिटेन के मशहूर सायकॉलजिस्ट और लेखक एड्रियन फर्नहम के मुताबिक अगर लिखनेवाला खुद के विचार लिखने के बजाय कहीं से टेक्स्ट कॉपी करता है तो उस स्थिति में भी उसकी हैंडराइटिंग का सही अनालिसिस नहीं हो सकता। यही बात इस विधा के खिलाफ जाती है, यानी लिखनेवाला अपने मन की बात लिखता है तो उसमें उसके विचारों की झलक मिल ही जाती है। बकौल फर्नहम, नॉन एक्सपर्ट भी 70 फीसदी मामलों में जान लेते हैं कि लिखनेवाला पुरुष है या महिला। इससे तो यही लगता है कि ग्राफॉलजी में अनुमान के आधार पर ज्यादा काम होता है। उनका यह भी कहना है कि जो लोग साइंटिफिक सोच से दूर रहते हैं, लॉजिक और रीजन की बात नहीं करते, वही इसे मानते हैं। साइंस की बता करें तो भी हैंडराइटिंग पैटर्न और पर्सनैलिटी बिहेवियर के बीच कनेक्शन के कोई साइंटिफिक सबूत नहीं मिलते हैं। अभी तक की गईं रिसर्च या इसके खिलाफ रही हैं या फिर कोई फैसला नहीं कर पाई हैं। हालांकि कुछ लोग इसमें आगे रिसर्च की गुंजाइश मानते हैं।

मिलते हैं कुछ संकेत
अगर लिखते हुए आपके अक्षरों का झुकाव आगे यानी राइट को होता है, तो आप काफी इमोशनल शख्स हो सकते हैं। सीधा लिखते हैं तो इमोशंस के मामले में आपकी बैलेंस्ड अप्रोच होगी और अगर लेफ्ट की ओर झुकाव होता है तो हो सकता है कि इमोशंस आपके लिए खास मायने नहीं रखते हों।

लिखते हुए लाइन ऊपर को जाती है तो आप पॉजिटिव सोच और हाई एनर्जी वाले होंगे। लाइन का नीचे को जाना थकान, निगेटिव सोच और लो एनर्जी को दर्शाता है।

लिखावट में अगर सर्कुलर मूवमेंट ज्यादा हैं तो आप हंसमुख और आसानी से दूसरों की बातें मानने वाले होंगे। स्क्वेयर हैंडराइटिंग प्रैक्टिकल अप्रोच को बताती है। लिखावट में तीखापन आए तो आपमें हाई एनर्जी के साथ-साथ स्पष्टवादिता और आक्रमकता भी होगी। स्ट्रोक्स रेग्युलर न हों तो आपका मिजाज कलाकार वाला और कोई खास स्टैंड न लेने वाला हो।

अगर लिखते हुए आप पेपर पर प्रेशर ज्यादा डालते हैं तो यह भावनाओं की गहनता को बताता है। इससे आपके महत्वाकांक्षी होने का भी पता लगता है क्योंकि दबाव स्ट्रेस लेवल को जाहिर करता है। महत्वाकांक्षी लोगों में स्ट्रेस ज्यादा होता है।

सुंदर और बोल्ड लिखावट हो तो आप महत्वाकांक्षी हो सकते हैं।

फिजूलखर्च करनेवाले बड़ा-बड़ा लिखते हैं तो कंजूस इतना छोटा लिखते हैं कि स्पेस और पेपर भी खराब न हो।

शब्दों को खींचकर लिखते हैं तो आपके स्वभाव में आलस हो सकता है।

ह्ल में ऊपर की तरफ बार लगाते हैं तो आपके मकसद इतने ऊंचे होंगे कि उन्हें पाना मुश्किल होगा और बहुत नीचे लगाते हैं तो आप अपनी काबिलियत से कम गोल तय करके चलते हैं। अगर बार का साइज ठीक होता है तो यह अच्छी विल पावर को दिखाता है, जिससे चीजें आसानी से मिल जाती है और इससे आलस पैदा होता है।

द्ब पर या हिंदी में किसी भी अक्षर पर गोल और बड़ा बिंदु लगाते हैं तो आपका पार्टनर सुंदर होने की संभावना होती है और आपको घर भी बहुत करीने से सजाकर रखना पसंद होगा।

सिग्नेचर
अगर साइन स्पष्ट नहीं हैं तो हो सकता है कि लिखनेवाला कुछ कंफ्यूज्ड हो या फिर कुछ छुपाना चाहता हो। कई बार ये वजहें नहीं होतीं, बल्कि कोई अपने पसंदीदा शख्स के साइन को कॉपी करने की वजह से भी ऐसे साइन करने लगता है।

आमतौर पर लोग साइन के नीचे दो डॉट लगाते हैं (..), अगर डॉट साइन के शुरू में लगाते हैं तो ऐसे लोगों की लाइफ अपने पार्टनर और बच्चों के आसपास ही सिमटी होती है। अगर डॉट बीच में लगाते हैं तो ये लोग ग्रुप में रहना पसंद करते हैं। आखिर में डॉट लगानेवाले लोगों के लिए फ्रेंड्स ही सब कुछ होते हैं। परिवार से इन्हें खास सरोकार नहीं होता।

साइन के नीचे लाइन खींचना आपके अधिकार वाले रवैये को बताता है। ऐसे लोग खुद को सही साबित करना चाहते हैं और किसी का विरोध उन्हें बर्दाश्त नहीं होता।

भारतीय उद्योग जगत का रतन


टाटा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के नए उत्तराधिकारी की तलाश का काम जारी है। लेकिन पांचवें चेयरमैन के रूप में रतन नवल टाटा
ने इसे जिस ऊंचाइयों तक पहुंचाया है, वह बेमिसाल है। 1991 में ग्रुप की कमान संभालने के बाद से रतन टाटा ने लगातार साबित किया कि अगर आप में प्रतिभा है, तो आप देश में रहकर भी ऐसे शिखर पर पहुंच सकते हैं, जहां हर भारतीय आप पर नाज करे।

नहीं मिला पैरंट्स का साथ
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ। उनके दादा जमशेदजी टाटा थे। रतन को अपने पैरंट्स का प्यार नहीं मिल पाया। उनके माता-पिता बचपन में ही अलग हो गए थे। उस समय उनकी उम्र सात साल और उनके भाई जिम्मी की उम्र पांच साल थी। दादी मां ने ही दोनों भाइयों का पालन-पोषण किया।

प्यार भी छोड़ना पड़ा
वह पारसी समुदाय के हैं, जहां बच्चों की पढ़ाई पर खासा ध्यान दिया जाता है। यही वजह थी कि स्कूल के दिनों में उन्हें जबरदस्ती स्कूल और ट्यूशन भेजा जाता था। बाद में उन्होंने लंदन से आर्किटेक्चर एंड स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की डिग्री ली और फिर हॉर्वड यूनिवर्सिटी से एडवांस मैनेजमेंट प्रोग्राम कोर्स किया। वैसे, कैलिफॉर्निया से भी उन्हें बहुत लगाव है क्योंकि वहां का कैजुअल लाइफस्टाइल तो उन्हें पसंद था ही, उनका प्यार भी उन्हें पढ़ाई के दौरान वहीं मिला। हालांकि किसी वजह से उन्हें भारत आना पड़ा और उनका प्यार वहीं छूट गया।

कारोबार में मचा दी धूम
25 साल की उम्र में वह अपने पुश्तैनी कारोबार से जुड़ गए। शुरुआती दिनों में नेल्को और सेंट्रल इंडिया टेक्सटाइल जैसी घाटे की कंपनियों को संभाला और उन्हें कमाऊ बनाकर अपनी विलक्षण प्रतिभा का सबूत किया। इसके बाद उन्होंने मुड़कर नहीं देखा। टाटा गुप के पास अब 98 ऑपरेटिंग कंपनियां हैं, जिनका सालाना रेवेन्यू 71 बिलियन डॉलर है। इस ग्रुप में तकरीबन 3.57 लाख कर्मचारी काम करते हैं। टाटा इंडिया के रूप में पहली ऐसी कार, जिसके डिजाइन से लेकर निर्माण तक का काम भारत में ही हुआ, का श्रेय भी रतन टाटा को ही जाता है। लखटकिया कार नैनो लाकर आम आदमी का कार का सपना भी उन्होंने ही साकार किया। बहुआयामी व्यक्त्वि के मालिक रतन टाटा को देश के साथ-साथ विदेश में भी सशक्त उद्योगपति माना जाता है। यही वजह है कि मित्सुबिशी कॉरपोरेशन, अमेरिकन इंटरनैशनल ग्रुप, इंटरनैशनल इनवेस्टमेंट काउंसिल, न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज जैसे संगठनों ने भी उनकी प्रतिभा का लोहा मानते हुए उनकी सेवाएं लीं। 2000 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। उनकी उपलब्धियों में एक गौरवशाली आयाम उस वक्त जुड़ा, जब पूर्वी चीन के शहर हांगझाऊ ने उन्हें अपना आथिर्क सलाहकार मनोनीत किया ।

टैंगो और टीटो हैं चहेते
रतन टाटा के पास फरारी जैसी बेशकीमती गाडि़यां हैं, लेकिन उन्हें अपनी पुराने मॉडल की मर्सडीज को खुद ही ड्राइव करना पसंद है। इसके अलावा, उनके पास पसंदीदा प्राइवेट जेट फेलकॉन भी है, जिसे वे खुद ही ऑपरेट करते हैं। रतन टाटा को कुत्ते पालने का भी शौक है। उनके पास टैंगों और टीटो नाम के दो डॉग हैं।

तिरंगा फहराने के कायदे-कानून

लासपुर हाई कोर्ट ने पिछले दिनों एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि रात को तिरंगा नहीं उतारे जाने को प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर
ऐक्ट-1971 का उल्लंघन नहीं माना जा सकता यानी अगर कोई रात को तिरंगा उतारकर नहीं रखता है तो वह कोई नियम नहीं तोड़ रहा है। तिरंगा फहराने को लेकर और भी कई नियम-कायदे हैं। पूरी जानकारी दे रहे हैं राजेश चौधरी :

रखरखाव के नियम
- आजादी से ठीक पहले 22 जुलाई, 1947 को तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया। तिरंगे के निर्माण, उसके साइज और रंग आदि तय हैं।
- फ्लैग कोड ऑफ इंडिया के तहत झंडे को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाएगा।
- उसे कभी पानी में नहीं डुबोया जाएगा और किसी भी तरह नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। यह नियम भारतीय संविधान के लिए भी लागू होता है।
- कानूनी जानकार डी. बी. गोस्वामी ने बताया कि प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 की धारा-2 के मुताबिक, फ्लैग और संविधान की इन्सल्ट करनेवालों के खिलाफ सख्त कानून हैं।
- अगर कोई शख्स झंडे को किसी के आगे झुका देता हो, उसे कपड़ा बना देता हो, मूर्ति में लपेट देता हो या फिर किसी मृत व्यक्ति (शहीद हुए आर्म्ड फोर्सेज के जवानों के अलावा) के शव पर डालता हो, तो इसे तिरंगे की इन्सल्ट माना जाएगा।
- तिरंगे की यूनिफॉर्म बनाकर पहन लेना भी गलत है।
- अगर कोई शख्स कमर के नीचे तिरंगा बनाकर कोई कपड़ा पहनता हो तो यह भी तिरंगे का अपमान है।
- तिरंगे को अंडरगार्मेंट्स, रुमाल या कुशन आदि बनाकर भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

फहराने के नियम
- सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच ही तिरंगा फहराया जा सकता है।
- फ्लैग कोड में आम नागरिकों को सिर्फ स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराने की छूट थी लेकिन 26 जनवरी 2002 को सरकार ने इंडियन फ्लैग कोड में संशोधन किया और कहा कि कोई भी नागरिक किसी भी दिन झंडा फहरा सकता है, लेकिन वह फ्लैग कोड का पालन करेगा।
- 2001 में इंडस्ट्रियलिस्ट नवीन जिंदल ने कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि नागरिकों को आम दिनों में भी झंडा फहराने का अधिकार मिलना चाहिए। कोर्ट ने नवीन के पक्ष में ऑर्डर दिया और सरकार से कहा कि वह इस मामले को देखे। केंद्र सरकार ने 26 जनवरी 2002 को झंडा फहराने के नियमों में बदलाव किया और इस तरह हर नागरिक को किसी भी दिन झंडा फहराने की इजाजत मिल गई।

राष्ट्रगान के भी हैं नियम
- राष्ट्रगान को तोड़-मरोड़कर नहीं गाया जा सकता।
- अगर कोई शख्स राष्ट्रगान गाने से रोके या किसी ग्रुप को राष्ट्रगान गाने के दौरान डिस्टर्ब करे तो उसके खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 की धारा-3 के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
- ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर अधिकतम तीन साल की कैद का प्रावधान है।
- प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 का दोबारा उल्लंघन करने का अगर कोई दोषी पाया जाए तो उसे कम-से-कम एक साल कैद की सजा का प्रावधान है।

अनचाही कॉल्स का जाल

ली मार्केटिंग कर रहे किसी बैंक कर्मचारी ने एफएम से फोन पर यह पूछ दिया कि क्या उन्हें लोन चाहिए? इससे वह झल्ला उठे। प्रणव मुखर्जी जैसे वरिष्ठ मंत्
री का नाराज होना महत्वपूर्ण है, इसलिए वह चर्चा का मुद्दा बना और टेलिकॉम मंत्री डी. राजा को तुरंत हरकत में आना पड़ा। अपने देश की डेमोक्रेसी की यही विडंबना है। अंदाजा लगाइए कि ऐसी अनचाही कॉल्स से रोजाना कितने करोड़ उपभोक्ता परेशान होते हैं। जंक मेल और एसएमएस की सफाई पर रोजाना कितना समय बर्बाद होता है। लेकिन सरकार के लिए वह इतना महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं रहा कि आनन-फानन में संचार मंत्री टेलिकॉम सेक्रेटरी को तुरंत कदम उठाने का निर्देश जारी करें।

मंत्रालय हरकत में तब आया जब एक वरिष्ठ मंत्री को असुविधा हुई। यह उलटा लोकतंत्र है जिसमें सरकार आम नागरिकों के परेशान होने पर समस्या का हल नहीं ढूंढती, बल्कि किसी मंत्री के परेशान होने पर जनता की परेशानी का अंदाजा लगाती है।

इसका दूसरा पहलू भी गौर करने लायक है। सरकार ने अनचाही कॉल्स रोकने के लिए 'डू नॉट कॉल रजिस्ट्री' का नियम बना रखा है। ट्राई को इससे जुड़े 6.58 करोड़ ग्राहकों से इस साल मार्च तक 3.4 लाख शिकायतें मिल चुकी हैं।



ज्यादातर तो अनसुनी रहीं, लेकिन जिन शिकायतों पर कार्रवाई की गई उनका भी कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि नियम तोड़ने पर कुल पांच सौ और हजार रुपये का जुर्माना होता है। ऐसे पनिशमेंट से क्या फायदा, जिससे किसी को डर ही न लगे। यह कुशासन है, जिसमें नियम-कानून तो बनाए जाते हैं, लेकिन यह निगरानी नहीं की जाती कि उनका पालन हो रहा है या नहीं। और नियम तोड़ने वालों को सजा भी नहीं मिलती।

बहरहाल इस घटना के बाद ट्राई 'डू कॉल रजिस्ट्री' की व्यवस्था पर विचार कर रही है। इस सिस्टम में टेली मार्केटिंग करने वाली कंपनियां सिर्फ उन्हीं कस्टमर्स को कॉल कर सकेंगी या मेल भेजेंगी, जिन्होंने अपना नंबर इसके लिए रजिस्टर करा रखा होगा कि हां, हमें कॉल करें और जानकारी दें। यह सिस्टम भी अच्छा है, लेकिन सवाल वही पुराना है कि इस पर अमल कितना होता है और निगरानी कैसी रहती है। लेकिन एफएम को गुस्सा क्यों आया? लगभग 75 अरब डॉलर का अपना बजट डेफिसिट पूरा करने के लिए उन्हें आखिर लोन तो चाहिए ही।

वेदांता को झटका,नहीं मिली बॉक्साइट खनन की मंजूरी

न्ट टेक्स्ट:
नई दिल्ली ।। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने वेदांता ग्रुप के बॉक्साइट माइनिंग प्रोजेक्ट की मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। यह
जानकारी वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने दी।

गौरतलब है कि सरकार द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों के एक पैनल ने वेदांता समूह के नियामगिरि हिल्स प्रॉजेक्ट को मंजूरी न देने की सिफारिश की थी। इसी सिफारिश के आधार पर वन मंत्रालय ने मंगलवार को सुबह इस बारे में अंतिम फैसला किया। सोमवार को उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने दिल्ली आकर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश से मुलाकात भी की थी। सूत्रों के मुताबिक उस मुलाकात में ही यह बात साफ हो गई थी कि सरकार पोस्को पर तो सहानुभूतिपूर्वक विचार कर सकती है, मगर वेदांता के प्रॉजेक्ट को मंजूरी मिलना मुश्किल है। विशेषज्ञों की समिति ने वेदांता द्वारा कानूनों के लगातार उल्लंघन की शिकायतों को सही पाया था।

सरकार के इस फैसले को वेदांता समूह के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। गौरतलब है कि माइनिंग क्षेत्र की इस प्रमुख कंपनी ने केयर्न इंडिया को खरीदने की कोशिशों के जरिए रिलायंस समूह के लिए बड़ी चुनौती पेश करने का इरादा जता दिया है। अब अपने-अपने क्षेत्र की इन दिग्गज कंपनियों को एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाने लगा है।

गंजेपन से कैसे पाएं निजात

गंजेपन को दूर करने के लिए आजकल मार्केट में कई अडवांस तकनीक हैं। मोटे तौर पर इस पूरे प्रॉसेस को हेयर रेस्टोरेशन कहा जाता है। हेयर रेस्टोरेशन के दो
तरीके हैं। पहला सर्जिकल और दूसरा नॉन-सर्जिकल। सर्जिकल के तहत आता है हेयर ट्रांसप्लांटेशन और नॉन-सर्जिकल के तहत हेयर वीविंग, बॉन्डिंग, सिलिकॉन सिस्टम और टेपिंग आते हैं। सलमान खान ने फ्रंटल के लिए सर्जिकल तरीका अपनाया है और सिर के दूसरे हिस्सों के लिए नॉन-सर्जिकल। एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये तरीके बिल्कुल सेफ हैं। पूरी जानकारी दे रहे हैं प्रभात गौड़ ।

सर्जिकल मैथडः हेयर ट्रांसप्लांटेशन

क्या है
हेयर ट्रांसप्लांटेशन एक ऐसा आर्टिस्टिक और सर्जिकल मैथड है, जिसकी मदद से सिर के पिछले व साइड वाले हिस्से से, दाढ़ी, छाती आदि से बालों को लेकर सिर के गंजे भाग में इंप्लांट कर दिया जाता है। इंप्लांट किए गए ये बाल परमानेंट होते हैं। वजह यह कि सिर के पिछले और साइड वाले हिस्सों के बाल आमतौर पर नहीं झड़ते। इंप्लांट होने के तकरीबन दो हफ्ते बाद ये उगने शुरू हो जाते हैं और एक साल के बाद इनमें फुल इंप्रूवमेंट नजर आने लगता है और नेचरल बालों जैसे दिखने लगते हैं। इन बालों की खूबी यह है कि ये परमानेंट होते हैं और जिंदगी भर रहते हैं, हालांकि कुछ केस ऐसे भी देखे गए हैं, जिनमें ये बाल उम्र बढ़ने के साथ साथ खत्म हो जाते हैं। जिस एरिया से बाल लिए जाते हैं, उसे डोनर एरिया कहते हैं। बाल लेने के बाद वहां टांके लगा दिए जाते हैं। कुछ दिनों के बाद वह जगह सामान्य हो जाती है।

कैसे होता है
स्ट्रिप मैथड : पहले मरीज को लोकल एनास्थीसिया दिया जाता है। उसके बाद डोनर एरिया से आधे इंच की एक स्ट्रिप निकाल ली जाती है और उसे सिर के उस भाग में इंप्लांट कर दिया जाता है, जहां गंजापन है। आधे इंच की एक स्ट्रिप में आमतौर पर दो से ढाई हजार तक फॉलिकल हो सकते हैं और एक फॉलिकल में दो से तीन बालों की रूट्स होती हैं। इंप्लांट करने के बाद डोनर एरिया में खुद घुल जाने वाले टांके लगा दिया जाते हैं। यह जगह कुछ दिनों बाद सामान्य हो जाती है। जिस एरिया में बाल लगाए जाते हैं, उस पर एक रात के लिए पट्टियां लगा दी जाती हैं, जिन्हें अगले दिन क्लिनिक में जाकर पेशेंट हटवा सकता है या खुद भी हटा सकता है। जहां तक दर्द का सवाल है तो यह उतना ही होता है जितना इंजेक्शन (यहां सिर को सुन्न करने का) लगवाने में होता है। सिर का हिस्सा सुन्न हो जाने के कारण बाद में दर्द नहीं होता।

एसयूई मैथड : स्ट्रिप मैथड में जहां डोनर एरिया से एक स्ट्रिप लेकर उसे इंप्लांट किया जाता है, वहीं एसयूई मैथड में एक-एक फॉलिकल को लेकर इंप्लांट किया जाता है। एक सिटिंग में 6 से 8 घंटे का समय लग जाता है। इसमें 2000 तक फोलिकल इंसर्ट कर दिए जाते हैं। एडमिट होने की जरूरत नहीं होती। अगर इससे भी गंजापन दूर नहीं होता है तो मरीज को दूसरी सिटिंग के लिए बुलाया जा सकता है। दूसरी सिटिंग छह महीने से एक साल के बाद होती है।

खर्च
एसयूई मैथड में 120 से 150 रुपये प्रति फॉलिकल का खर्च आता है। महंगा होने की वजह यह है कि इसमें डॉक्टर को ही सारा काम करना होता है। एक-एक रूट को निकालकर रोपना पड़ता है, जबकि स्ट्रिप मैथड में काफी काम टेक्निशियन भी कर देते हैं। स्ट्रिप मैथड में प्रति फॉलिकल 60 से 65 रुपये का खर्च आता है।

देखभाल
- हेयर ट्रांसप्लांटेशन के बाद आनेवाले बाल बिल्कुल आपके नेचरल बालों की तरह ही होते हैं। ये बिल्कुल वैसे ही ग्रो करेंगे, जैसे नेचरल बाल करते हैं। ऐसे में जैसे नेचरल बालों की देखरेख होती है, ठीक वैसे ही इनकी भी होती है।
- आप इन्हें कटा सकते हैं, शैंपू कर सकते हैं, तेल लगा सकते हैं और कॉम्ब भी कर सकते हैं।
- इन बालों को आप कलर करा सकते हैं या फिर मनचाहा स्टाइल दे सकते हैं। आप इनकी कटिंग भी करवा सकते हैं। कुछ दिनों बाद ये फिर से आ जाएंगे।
- जो बाल ट्रांसप्लांट कराए गए हैं, वे ताउम्र बने रहते हैं। वे गिरते नहीं। हालांकि कुछेक मामलों में देखा गया है कि उम्र बढ़ने के साथ साथ ये बाल गिरने लगते हैं।
- बाल चूंकि नेचरली ग्रो करते हैं इसलिए बालों का लुक थिन ही रहता है। कई बार लोग सर्जिकल और नॉन-सर्जिकल दोनों तरीकों को अपना लेते हैं।

डॉक्टर को बताएं अगर
- डायबीटीज, हाइपरटेंशन, मेटाबॉलिक डिस्ऑर्डर्स जैसी कोई क्रॉनिक बीमारी हो।
- बॉडी में अगर पेसमेकर जैसा कोई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस हो।
- किसी खास ड्रग्स से एलर्जी हो।
- अगर किसी खास बीमारी के लिए कोई दवाएं ले रहे हों।

दूसरा पहलू
इसमें दिक्कत यह होती है कि आपके सिर के दूसरे हिस्सों के नॉर्मल बाल पहले की रफ्तार से गिरते रह सकते हैं। ऐसे में ट्रांसप्लांट कराने के बाद भी लगातार कुछ खास दवाएं लेते रहने की जरूरत है, जिससे बाकी के बालों को गिरने से बचाया जा सके या उनके गिरने की रफ्तार को कम किया जा सके। ट्रांसप्लांटेशन के बाद अगर बालों का गिरना जारी रहे तो मरीज के पास उस जगह पर दोबारा ट्रांसप्लांटेशन कराने का ऑप्शन है, लेकिन इसमें यह देखना होगा कि डोनर एरिया पर उसके लायक बाल बचे भी हैं कि नहीं। डोनर एरिया पर ज्यादा बाल न होने की हालत में दोबारा ट्रांसप्लांटेशन संभव नहीं हो पाता। अगर बाल हैं, तो करा सकते हैं।

नॉन-सर्जिकल मैथड : हेयर वीविंग, बॉन्डिंग, सिलिकॉन सिस्टम और टेपिंग
हेयर वीविंग
हेयर वीविंग एक ऐसी टेक्निक है, जिसके जरिए नॉर्मल ह्यूमन हेयर या सिंथेटिक हेयर को खोपड़ी के उस भाग पर वीव कर दिया जाता है, जहां गंजापन है। आमतौर पर हेयर कटिंग कराने के बाद जो बाल मिलते हैं, उन्हें हेयर मैन्युफैक्चरर को बेच दिया जाता है। उसके बाद इन्हीं बालों को वीविंग के काम में यूज किया जाता है। ये थोड़े महंगे होते हैं, जबकि दूसरी तरफ सिंथेटिक हेयर नॉर्मल हेयर के मुकाबले थोड़े सस्ते होते हैं। सिंथेटिक हेयर कई तरह के सिंथेटिक फाइबर के बने होते हैं। बॉलिवुड में अक्षय खन्ना, अमिताभ बच्चन, सनी देओल और सुरेश ओबेराय ने हेयर वीविंग कराई है।

कैसे होती है
जहां-जहां बाल नहीं हैं, वहां-वहां हेयर यूनिट लगाई जाती है। इसके लिए सिर पर मौजूद तीन साइड के बालों की मदद से मशीन और धागे के जरिए एक बेस बनाते हैं। इस बेस के ऊपर हेयर यूनिट को स्टिच कर दिया जाता है। इस पूरे प्रॉसेस में दो घंटे लगते हैं और एक ही सिटिंग में काम पूरा हो जाता है। डेढ़ महीने के बाद जब आपके ओरिजनल बाल ग्रो होते हैं तो बेस ढीला हो जाता है जिसके चलते स्टिच की गई यूनिट भी ढीली हो जाती हैं। इन्हें ठीक कराने के लिए एक्सपर्ट के पास जाना पड़ता है।

- ये बाल सेमी-परमानेंट होते हैं। हर 15 दिन के बाद इनकी सर्विसिंग करानी पड़ती है। सर्विसिंग के काम में दो घंटे का वक्त लग जाता है।
- जो लोग अच्छी तरह से मेनटेन कर लेते हैं, उन्हें दो महीने बाद सर्विस की जरूरत होती है।
- देखभाल बिल्कुल नेचरल बालों की तरह ही करनी है। ऑयल यूज नहीं करना है। मोटे दांतों वाले कंघे का यूज किया जाता है।
- हर 15 दिनों के बाद होनेवाली सर्विस में 500 से 1500 रुपये तक का खर्च आ जाता है।
- इनकी लाइफ कम होती है। छह महीने से एक साल तक चल जाते हैं। हालांकि अच्छी देखभाल की जाए तो चार साल तक चल जाते हैं। एक बार बाल खराब हो जाने के बाद वीविंग का पूरा प्रॉसिजर दोहराना पड़ता है।
- इसे प्रॉसिजर में कई पेशेंट्स को दर्द होता है और यह दर्द पूरे एक दिन रहता है, जिसे कम करने के लिए पेनकिलर्स दिए जाते हैं।

बॉन्डिंग
बॉन्डिंग भी नॉन-सर्जिकल मैथड है। इसे क्लिपिंग सिस्टम कहा जाता है।
इसमें हेयर यूनिट के तीन साइड में क्लिप लगाते हैं। यह क्लिप यूनिट के अंदर से लगाया जाता है। इस क्लिप की मदद से यूनिट को पहले से मौजूद बालों के साथ अटैच कर दिया जाता है। इन्हें दिन में लगा सकते हैं और रात को खोल कर रख सकते हैं, लेकिन यह आपकी सुविधा पर निर्भर है। ऐसा करना जरूरी नहीं है।

सर्विस कराने की जरूरत नहीं होती। हेयर कट करा सकते हैं, लेकिन हेयर ड्रेसर को यह पता होना चाहिए कि आपके ऑरिजनल और नकली बाल कौन से हैं। उसी के हिसाब से उसे कटिंग करनी होगी। इसमें प्रॉसिजर में 1 घंटे का वक्त लगता है और इसमें दर्द नहीं होता। खराब हो जाने के बाद इसे दोबारा करा सकते हैं।

सिलिकॉन सिस्टम
अगर आप दर्द भी नहीं चाहते और बॉन्डिंग भी नहीं चाहते तो आप इस सिस्टम को अपना सकते हैं।

इसमें आसपास के ऑरिजनल बालों को ट्रिम किया जाता है। इसके बाद उस पर ग्लू (सिलिकॉन जेल) लगाते हैं और फिर हेयर यूनिट को इस पर चिपका देते हैं।

यह एक से डेढ़ महीने तक फिक्स रहता है उसके बाद ढीला होने लगता है। ऐसे में सर्विस कराने की जरूरत होती है। सर्विस में डेढ़ घंटा लगता है और इसकी फीस होती है 1000 से 1500 रुपये।

टेपिंग
यह भी एक नॉन-सर्जिकल मैथड है जिसमें हेयर यूनिट का इस्तेमाल करते हैं। इस्तेमाल करने का तरीका अलग होता है।

इस प्रॉसिजर में एक टेप का इस्तेमाल किया जाता है, जो दो तरफ से स्टिकी होता है और ट्रांसपैरंट होता है। यह आम लोगों को नजर नहीं आता। दो स्टिकी सिरों में से एक सिर में लगती है और दूसरी यूनिट में।

इसमें भी 15 दिनों बाद सर्विस की जरूरत पड़ती है। लेकिन इसमें फायदा यह है कि कुछ फीस देकर सैलून में ही सर्विस करने का तरीका सीखा जा सकता है और फिर हर 15 दिन बाद खुद ही सर्विस की जा सकती है। जो लोग देश से बाहर ज्यादा रहते हैं, उनके लिए यह तरीका मुनासिब है।

नोट : इन चारों तरीकों का खर्च वीव किए जानेवाले बालों की क्वॉलिटी पर निर्भर करता है, गंजेपन की स्थिति या मैथड पर नहीं। बालों की क्वॉलिटी के हिसाब से आमतौर पर इसका खर्च पांच हजार से 80 हजार रुपये के बीच आता है।

विग
जिस तरह पहले विग यूज होती थी, उसी का अडवांस वर्जन आज भी यूज होता है, लेकिन हेयर वीविंग और विग में बहुत फर्क है। हेयर वीविंग सिर्फ उस जगह की जाती है, जहां गंजापन है, जबकि विग को फोरहेड लाइन से ईयर लाइन तक पूरा पहना जाता है, गंजापन भले ही कहीं पर भी हो। आजकल विग को लोग कम प्रेफर करते हैं क्योंकि पहनने के यह काफी टाइट लगती है।

बी केयरफुल
हेयर रेस्टोरेशन के ऊपर बताए गए तरीकों से वैसे तो कोई खास और स्थायी साइड इफेक्ट्स या नुकसान नहीं होता है, फिर भी कुछ पेशेंट्स को कई तरह की दिक्कतें आ सकती हैं। ये इस तरह हैं:

- हेयर रेस्टोरेशन के बाद पहले से मौजूद ओरिजनल बाल कुछ वक्त के लिए थिन हो सकते हैं। इस स्थिति को शॉक लॉस या शेडिंग के नाम से जाना जाता है। कुछ समय बाद यह स्थिति खुद-ब-खुद ठीक हो जाती है।

- खोपड़ी सुन्न हो सकती है या उसमें ढीलापन आ सकता है। यह भी कुछ महीनों में अपने आप ही ठीक हो जाता है।

- सिर में दर्द या खुजली की शिकायत हो सकती है।

- इंफेक्शन की भी आशंका होती है, जिसे एंटिबायोटिक्स के जरिए कुछ ही समय में ठीक कर दिया जाता है।

- कुछ दिनों के लिए आंखों और माथे पर सूजन आ सकती

Aug 23, 2010

मोनालिसा की रहस्यमयी मुस्कान का राज खुला


दन.मोनालिसा की विस्मयकारी मुस्कान लगभग 500 वर्षो से एक गहरा राज है। लियोनार्दो दा विंची की इस कृति को देखकर आज भी लोगों के जेहन में कई सवाल उठते हैं। आज भी यह रहस्य अनसुलझा ही है कि क्यों मोनालिसा पहले मुस्कुराती है, फिर उसकी मुस्कान फीकी हो जाती है और कहीं खो जाती है।

लेकिन, वैज्ञानिकों की मानें तो उन्होंने इस रहस्य को पूरी तरह सुलझा लिया है। उन्होंने दावा किया है कि उन प्रकाशकीय प्रभावों का पता लगा लिया गया है, जिससे दा विंची ने यह कृति बनाई थी। यूरोपीय वैज्ञानिकों के एक दल ने कहा है कि दा विंची ने स्मोकी प्रभाव से इसे बनाया। इसे स्फूमैटो के नाम से जाना जाता है। महान चित्रकार दा विंची ने इस चित्रकारी के लिए 40 बेहद बारीक परतों की कलई अपनी उंगलियों से चढ़ाई थी। इससे मोनालिसा के चेहरे पर चमक आई।

चेहरे की यह आभा विभिन्न वर्णकों का मिश्रण है, जो मोनालिसा के मुख के इर्द-गिर्द धुंधला प्रकाश और छाया प्रदान करती है। यह प्रकाश और छाया लुका-छिपी के खेल की तरह है यानी एक पल में यह नजर आती है तो दूसरे में गायब। वैज्ञानिकों ने इन रहस्यों का पता लगाने के लिए तस्वीर का अध्ययन किया और इसके लिए उन्होंने एक्स-रे का इस्तेमाल किया।

इससे उन्होंने आभा की विभिन्न परतों और चेहरे के विभिन्न हिस्से पर पेंट के बदलते स्तरों का पता लगाया। संग्रहालय के रखरखाव एवं अनुसंधान के संबंध में फ्रांस की प्रयोगशाला और यूरोपीय सिंक्रोट्रॉन केंद्र ने अध्ययन किया।

Aug 21, 2010

एनटीसी का 8.3 एकड़ प्लॉट 1505 करोड़ में नीलाम

डियाबुल्स इन्फ्रा एस्टेट ने मुंबई में एनटीसी की 8.3 एकड़ जमीन 1,505 करोड़ रुपए में खरीद ली है। भारत मिल्स का यह प्लॉट ई ऑक्शन के जरिये बेचा गया। इस जमीन का स्वामित्व एनटीसी के पास था। इंडियाबुल्स इन्फ्रा ने एनटीसी का यह दूसरा प्लाट खरीदा है। इसके पहले उसने वरली स्थित पोद्दार मिल्स का 2.3 एकड़ का प्लाट 474 करोड़ रुपए में खरीदा था।

इंडियाबुल्स इन्फ्रा ने इस नीलामी में लोढ़ा समूह को पछाड़ा। लोढ़ा ने 1503 करोड़ रुपए की बोली लगाई थी। भारत मिल्स के इस प्लाट की रिजर्व प्राइस 750 करोड़ रुपए थी। इस जमीन को लेने के लिए जबर्दस्त होड़ लगी थी।

सरकारी कंपनी एनटीसी अपनी 24 बीमार मिलों के उद्धार के लिए अपने प्लॉट बेच रही है। इनके लिए उसे 3,875 करोड़ रुपए चाहिए। उसकी योजना 55 एकड़ जमीन बेचकर 5,000 करोड़ कमाने की है। जमीनों की बढ़ती दर को देखकर यह माना जा रहा है कि एनटीसी को 10,000 करोड़ रुपए से भी ज्यादा मिलेंगे। इन पैसों से वह अपनी बीमार कंपनियों का आधुनिकीकरण कर सकेगी।

मुंबई में बिका 875 करोड़ का प्लॉट

मुंबई के अंधेरी ईस्ट में मरोल स्थित बोरोसिल ग्लास वर्क्स का 18 एकड़ का एक प्लॉट 875 करोड़ रुपए में बिका। यह जमीन खरीदी शेठ डेवलपर्स के अशिवन शेठ ने। यह एक इंडस्ट्रियल प्लॉट है और अब इसके पंजीकरण की तैयारी चल रही है।

शेठ डेवलपर्स इस समय खरीदारी के अभियान में है। साल की शुरुआत में उन्होंने विले पार्ले में गोल्डन टोबैकोकंपनी की जमीन 591 करोड़ रुपए में खरीदी थी। उस जमीन पर कंपनी आवासीय परियोजना की तैयारी में है।

मरोल का प्लॉट बेचने के पहले बोरोसिल ने वहां पर अपना प्लांट बपंद कर दिया था और कामगारों को 18 करोड़ रुपया मुआवजा देकर बाहर कर दिया था। कंपनी जनवरी से ही इस प्लॉट को बेचना चाह रही थी। लेकिन इसने अपना 1000 करोड़ रुपए रखा था। इस जमीन को लेने के लिए कई बड़े डेवलपर बातचीत कर रहे थे लेकिन सफलता मिली अश्विन शेठ को।

इस जमीन की खासियत यह है कि इसमें 20 लाख वर्गफुट निर्माण किया जा सकता है। इस इलाके में फ्लैटों की अच्छी मांग भी है।

अमेरिका में 5 लाख लोग बेरोजगार


मेरिका में बेरोजगारी भत्ते के लिए दावा करने वालों की संख्या पांच लाख तक पहुंच गई है। यह संख्या पिछले नौ महीनों में सर्वाधिक
है। इससे अर्थव्यवस्था में सुधार आने की उम्मीदें एक बार फिर धराशायी होती दिखने लगी हैं। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सांसदों से एक स्थगित विधेयक को पारित करने की मांग करते हुए कहा कि बढ़ती संख्या हमें कारवाई के लिए मजबूर कर रही है। प्रस्तावित विधेयक के पारित होने के बाद छोटे मोटे व्यवसायों में होने वाले महत्वपूर्ण निवेश में कर समाप्त हो जाएंगे। माना जा रहा है कि देश में सृजित होने वाले प्रत्येक तीन नए रोजगारों में से दो लघु व्यवसायों से ही निकलते हैं।

श्रम विभाग के अनुसार 14 अगस्त को समाप्त सप्ताह में बेरोजगारी भत्ते के लिए दावा करने वालों की संख्या में 12,000 की वृद्धि हो गई और यह एक सप्ताह पहले के 4,88,000 से बढ़कर 5,00,000 तक पहुंच गई। ये आंकडे अर्थशास्त्रियों के अनुमान से एकदम उलट हैं। उन्होंने आंकडे 4,75,000 रहने का अनुमान व्यक्त किया था।

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बेरोजगारी के साप्ताहिक आंकड़ों के बजाय चार सप्ताह का औसत जो कि आमतौर पर कम घट-बढ़ वाला होता है। सप्ताह के दौरान इसमें भी 8,000 की वृद्धि दर्ज की गई और यह 4,82,500 तक पहुंच गया। यह लगातार तीसरा सप्ताह रहा जब बेरोजगारी भत्ता लेने वालों की संख्या में वृद्धि हुई। ओबामा प्रशासन के समक्ष बेरोजगारी सबसे बडी चिंता है। ओबामा की डेमोक्रेटिक पार्टी को खतरा है कि यदि स्थिति यही रही तो आगामी नवंबर के मध्यावधि चुनाव में पार्टी का कांग्रेस पर से नियंत्रण खत्म हो सकता है। बेरोजगारी के गुरुवार को जारी ताजा आंकडों के बाद राष्ट्रप्रति ओबामा ने विपक्षी रिपब्लिकन सांसदों की कटु आलोचना करते हुए कहा था कि उनकी वजह से 30 अरब डॉलर की वह योजना अटकी पड़ी है जिसमें सामुदायिक बैंकों के जरिए छोटे व्यवसायियों को कर्ज देने को बढावा दिया जाएगा।

ओबामा ने कहा कि मैंने इसी सप्ताह छोटे व्यवसायियों से मुलाकात की है, देशभर में ऐसे जितने भी लोगों से मैंने मुलाकात की है, उनके पास राजनीतिक खेल के लिए कोई समय नहीं है। उन्होंने सांसदों से अपील की कि अगले बैठक में वह प्रस्तावित विधेयक पर फिर से विचार करें। अमेरिकी बेरोजगारी के आंकडे जुलाई में 9. 5 प्रतिशत थे। अगस्त के आंकडे अगले दो सप्ताह में जारी किए जाएंगे।

फोर्थ इडियट को 'थ्री इडियट्स' का नोटिस

फिल्म 'थ्री इडियट' के प्रड्यूसर विधु विनोद चोपड़ा ने आने
वाली फिल्म द फोर्थ इडियड को कॉपीराइट ऐक्ट के उल्लंघन पर लीगल नोटिस भेजा है।

गौरतलब है कि बिस्वरूप रॉय चौधरी ने कुछ दिन पहले 'द फोर्थ इडियट' नाम की फिल्म बनाने की घोषणा की थी। इस फिल्म के बारे में चौधरी ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया कि मेरी फिल्म का संदेश है कि सफलता के लिए भेजे का इस्तेमाल करना चाहिए।

एक तरह से फिल्म ऑल इज वेल में आमिर के दिल की आवाज सुनने वाली बात को काटती है। फिल्म में एक गाना 'कर भेजे का इस्तेमाल...' बोल पर ही बेस्ड हैं।

विधु के भेजे नोटिस में कहा गया है कि 'द फोर्थ इडियट' फिल्म कॉपीराइट ऐक्ट का उल्लंघन है। नोटिस में विधु ने बिस्वरूप पर आरोप लगाते हुए कहा गया है कि वह मेरी फिल्म का नाम, उसकी कहानी आदि को अपनी आने वाली फिल्म 'द फोर्थ इडियट' के प्रमोशन के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।

नोटिस में कहा गया है कि तत्कालिता से बिस्वरूप अपनी इस फिल्म के प्रमोशन/एडवर्टाइजिंग को बंद करें। द फोर्थ इडियट और उससे जुड़े इवेंट में थ्री इडियट का सहारा लेना गलत है। प्रिकॉशन के लिए नोटिस की एक कॉपी वर्ल्ड यूनिटी कंवेंशन सेंटर को भी भेज दी गई है। नोटिस बार बार उल्लेखित करता है कि कानूनी तौर पर कॉपीराइट राइट्स हमारे पास है और किसी भी तरह से इसका उल्लंघन करना गलत है

लेकिन फोर्थ इडियट के प्रड्यूसर और डायरेक्टर बिस्वरूप रॉय चौधरी ने इस नोटिस पर कहा है कि वह विधु को इस लीगल नोटिस का जवाब देंगे। साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी फिल्म का संडे को लखनऊ में वर्ल्ड प्रीमियर का आयोजन किया जा रहा है। बिस्वरूप कहते हैं, एक घंटे की अवधि वाली इस फिल्म को समर वैकेशंस में रिलोज करने का प्लान है।

मूवी के बारे में कहा गया था कि इस ऐनिमेटेड फिल्म की कहानी वहां से शुरू होती है, जहां से थ्री इडियट की कहानी खत्म होती है यानी फुंसुक वांगड़ू के स्कूल से। फिल्म दिखाती है कि जब फुंसुक उस स्कूल के प्रिंसिपल होंगे तो स्कूल किस तरह का हो जाएगा।

यह एक डफर लड़के पप्पू की कहानी है जो रनछोड़दास (आमिर का कैरक्टर) के सिखाई तकनीकों का प्रयोग कर असंभव से लगने वाले कामों को अंजाम देकर स्कूल का नंबन वन स्टूडेंट तो बनता ही है, साथ ही साथ चांद पर जाने के कठिन काम को भी सफलतापूर्वक अंजाम देता है।

फिल्म में चतुर की आवाज थ्री इडियट में चतुर रामालिंगम का कैरक्टर निभाने वाले ओमी वैद्य ने ही दी है। इस ऐनिमेशन फिल्म में दो गाने भी हैं। ओमी ने फिल्म में एंकरिंग के साथ-साथ गाना भी गाया है। दो करोड़ रुपये के बजट वाली इस फिल्म के प्रीमियर को लखनऊ के सिटी मोंटेसरी स्कूल में करीब एक लाख बच्चों के बीच किया जाएगा।

अरबपतियों का INDIA....

कितनी सच्चई है? क्या सचमुच हिंदुस्तान ने इतनी सारी संपदा पैदा कर दी है और अगर की है तो किस उद्देश्य से की है?

ऐसा दावा है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के पहले पूरी दुनिया में डॉलर अरबपतियों के मामले में भारत रूस के बाद दूसरे नंबर पर था। अब हमारे प्रधानमंत्री के एक आर्थिक सलाहकार कहते हैं कि संभवत: हम ऐसे देश हैं, जहां ऐसे अरबपतियों की संख्या सबसे ज्यादा है।

अचानक इतने सारे अरबपति कहां से पैदा हो गए? क्या वे सॉफ्टवेअर उद्यमी हैं? नहीं। क्या वे रचनात्मक व्यवसाय से ताल्लुक रखने वाले हैं? नहीं। क्या वे मीडिया के लोग हैं? नहीं। क्या हमने गूगल, फेसबुक या ट्विटर बनाया है? नहीं। विश्व के सर्वश्रेष्ठ १क्क् ब्रांडों में कितने हमारे हैं? टाटा और संभवत: एयरटेल को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा वैश्विक ब्रांड है।

प्रतिवर्ष हम कितने नए आविष्कार और वैश्विक स्तर के पेंटेंट रजिस्टर करते हैं? आप उनकी संख्या अपनी उंगलियों पर गिन सकते हैं। फिर इतनी विपुल धन-संपदा कहां से आ गई? बिल्कुल उसी तरह, जिस तरह रूसी अरबपतियों ने अपनी संपदा का निर्माण किया। सत्ता और जोड़गांठ के कामों में लगे हुए लोगों से नजदीकियां बनाकर, उन चीजों को हथियाकर जो दरअसल हमारी और आपकी हैं। हिंदुस्तान के समस्त नए धन का अधिकांश हिस्सा संदिग्ध जमीनों, रियल इस्टेट के धंधे, गैरकानूनी खनन, सरकारी ठेकों, विशेष आर्थिक क्षेत्रों, जो कभी अस्तित्व में आ ही नहीं सके, से आ रहा है।

दरअसल उन विशेष आर्थिक क्षेत्रों को अस्तित्व में लाना मकसद था भी नहीं, बल्कि उसका मकसद गरीब किसानों और उससे भी ज्यादा गरीब आदिवासियों को विस्थापित कर राज्य से मुनाफा वसूलना था। हम दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों से मुकाबला करने के लिए 117 मंजिल वाले ऊंचे टॉवर खड़े कर रहे हैं, जबकि हमारे शहरों में पर्याप्त बिजली, पानी, पार्क, सड़कें और सार्वजनिक परिवहन की भी कोई व्यवस्था नहीं है। इन ऊंचे-ऊंचे टॉवरों के फ्लैट कौन खरीद रहा है? ये फ्लैट वे लोग खरीद रहे हैं, जो कानूनों को तोड़ते-मरोड़ते हैं, जो मंजूरी देते हैं।

जो यह मुमकिन बनाते हैं कि ये ऊंचे टॉवर खड़े किए जा सकें। ये वे लोग हैं, जो ये सुनिश्चित करते हैं कि मुझसे और आपसे पानी और बिजली छीनकर इन टॉवरों तक पहुंचाई जा सके। नेता, बाबू, बिल्डर, सत्ता के दलाल उनके इर्द-गिर्द छाए हुए हैं। यह हिंदुस्तान का सबसे शांत और सुकूनदेह नेटवर्क है। सबसे अमीर है और सबसे ज्यादा भ्रष्ट भी। नहीं, ये बात मैं नहीं कह रहा हूं। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार ने यह बात कही। कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़ा अनैतिकता और लालच का हर कांड यही बता रहा है।

600 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट में ये लोग 36,000 करोड़ रुपए निगल गए और अभी तक निगलते जा रहे हैं। इस लूट का परिमाण और इसका आकार इतना बड़ा था कि पूरी दुनिया के सामने भारत ने अपनी प्रतिष्ठा खो दी। रूस का विनाशकारी तत्व चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद यहां भी आ पहुंचा है। इसने हिंदुस्तान में सच्चे अर्थो में और बड़ी मजबूती से अपनी जड़ें जमा ली हैं। बिना कहे चुपके-चुपके निजीकरण हो रहा है। सिर्फ मुंबई के बिल्डरों को पता है कि माल को किस तरह बांटना है।

किससे लेकर किसको देना है, किस चीज के बदले में देना है। वे अपना मुंह नहीं खोल रहे हैं क्योंकि माल पाने के लिए वे खुद कतार में लगे हुए हैं और वे भलीभांति जानते हैं कि अगर कोई इसके खिलाफ गुस्सा प्रकट करेगा तो यह व्यवस्था किस तरह उससे प्रतिशोध ले सकती है। हर कोई जानता है कि जो भी कीमत चुकाने को तैयार हो, मुंबई की जमीन का एक-एक कोना उसके हाथों बिकने को तैयार है। पार्क, भिखारियों के घर, बूढ़े लोगों के आशियाने, वक्फ की संपत्ति, सारी झुग्गी-झोपड़ियां, समंदर के आसपास की वो जमीनें जहां नमक बनता है, मैंग्रूव्स (एक किस्म की झाड़ी, जो समंदर किनारे बसे शहरों में उगाई जाती है), पुरानी विरासत वाली संपत्ति, पहाड़, जंगल, समुद्र तट की जमीनें सबकुछ बिकने के लिए तैयार है। अब कुछ भी पवित्र नहीं है।

सीआरजेड (कोस्टल रेगुलेशन जोन) का भी कोई अर्थ नहीं है। सबकुछ हथियाने, कब्जा करने के लिए तैयार है। इतनी बड़ी संख्या में घर बनाए जा रहे हैं, जितने खरीदने वाले लोग भी नहीं हैं। इतने ऑफिस बन रहे हैं, जितनी शहर को कभी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। एक के बाद एक बड़ी संख्या में मॉल उग रहे हैं, जहां बिक्री कम-से-कम होती जा रही है। फिर भी कीमतें कम नहीं हो रहीं क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो मुनाफाखोरों को नुकसान होगा और आम आदमी को फायदा। और आखिर कौन चाहता है कि आम आदमी को फायदा पहुंचे?

निश्चित ही सरकार तो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती। एक समय ऐसा था, जब 64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले के कारण 400 सांसदों के साथ सरकार गिर गई थी। आज हजारों करोड़ रुपयों के घोटाले हो रहे हैं, फिर भी किसी को कोई डर नहीं है क्योंकि विपक्ष भी मुनाफे के इस धंधे में दीवार नहीं बनना चाहता। हर कोई लूट में हिस्सेदार है और जब कोई पत्रकार या आरटीआई कार्यकर्ता इसके खिलाफ खड़ा होता है तो उसका मुंह बंद करने के लिए सिर्फ भाड़े के हत्यारों या झूठे मुकदमे की जरूरत होती है।

उसका मुंह बंद हो जाएगा। आप इसे जो कहना चाहें कहें - चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद, सरकारी खजाने की लूट या सीधे-सादे शब्दों में भ्रष्टाचार। लेकिन जो सरकार में बैठे हैं, वे इसे विकास कहते हैं। लेकिन यह कैसा विकास है, जिसमें मैं देख रहा हूं कि और-और लोग बेघर होते जा रहे हैं, और-और भिखारी बढ़ते जा रहे हैं, और-और बीमार लोग हैं, जो बिना इलाज के मर रहे हैं क्योंकि इलाज के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। और-और गरीब लोग और-और दरिद्रता और अभाव की हालत में जी रहे हैं? यह कैसा विकास है कि मैं और-और आत्महत्या कर रहे किसानों के बारे में पढ़ता हूं, और-और विद्यार्थी आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि आखिर उनका भविष्य क्या है।

और-और लोग अपनी नौकरियां खोते जा रहे हैं, वे बेरोजगार हो रहे हैं। क्या हम हिंदुस्तान को और ज्यादा कुंठाओं, अपराधों और हिंसा के लिए तैयार कर रहे हैं? अगर ऐसा हुआ तो फिर हमारे इतने सारे अरबपति कहां जाएंगे? - लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार हैंकितनी सच्चई है? क्या सचमुच हिंदुस्तान ने इतनी सारी संपदा पैदा कर दी है और अगर की है तो किस उद्देश्य से की है?

ऐसा दावा है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के पहले पूरी दुनिया में डॉलर अरबपतियों के मामले में भारत रूस के बाद दूसरे नंबर पर था। अब हमारे प्रधानमंत्री के एक आर्थिक सलाहकार कहते हैं कि संभवत: हम ऐसे देश हैं, जहां ऐसे अरबपतियों की संख्या सबसे ज्यादा है।

अचानक इतने सारे अरबपति कहां से पैदा हो गए? क्या वे सॉफ्टवेअर उद्यमी हैं? नहीं। क्या वे रचनात्मक व्यवसाय से ताल्लुक रखने वाले हैं? नहीं। क्या वे मीडिया के लोग हैं? नहीं। क्या हमने गूगल, फेसबुक या ट्विटर बनाया है? नहीं। विश्व के सर्वश्रेष्ठ १क्क् ब्रांडों में कितने हमारे हैं? टाटा और संभवत: एयरटेल को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा वैश्विक ब्रांड है।

प्रतिवर्ष हम कितने नए आविष्कार और वैश्विक स्तर के पेंटेंट रजिस्टर करते हैं? आप उनकी संख्या अपनी उंगलियों पर गिन सकते हैं। फिर इतनी विपुल धन-संपदा कहां से आ गई? बिल्कुल उसी तरह, जिस तरह रूसी अरबपतियों ने अपनी संपदा का निर्माण किया। सत्ता और जोड़गांठ के कामों में लगे हुए लोगों से नजदीकियां बनाकर, उन चीजों को हथियाकर जो दरअसल हमारी और आपकी हैं। हिंदुस्तान के समस्त नए धन का अधिकांश हिस्सा संदिग्ध जमीनों, रियल इस्टेट के धंधे, गैरकानूनी खनन, सरकारी ठेकों, विशेष आर्थिक क्षेत्रों, जो कभी अस्तित्व में आ ही नहीं सके, से आ रहा है।

दरअसल उन विशेष आर्थिक क्षेत्रों को अस्तित्व में लाना मकसद था भी नहीं, बल्कि उसका मकसद गरीब किसानों और उससे भी ज्यादा गरीब आदिवासियों को विस्थापित कर राज्य से मुनाफा वसूलना था। हम दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों से मुकाबला करने के लिए 117 मंजिल वाले ऊंचे टॉवर खड़े कर रहे हैं, जबकि हमारे शहरों में पर्याप्त बिजली, पानी, पार्क, सड़कें और सार्वजनिक परिवहन की भी कोई व्यवस्था नहीं है। इन ऊंचे-ऊंचे टॉवरों के फ्लैट कौन खरीद रहा है? ये फ्लैट वे लोग खरीद रहे हैं, जो कानूनों को तोड़ते-मरोड़ते हैं, जो मंजूरी देते हैं।

जो यह मुमकिन बनाते हैं कि ये ऊंचे टॉवर खड़े किए जा सकें। ये वे लोग हैं, जो ये सुनिश्चित करते हैं कि मुझसे और आपसे पानी और बिजली छीनकर इन टॉवरों तक पहुंचाई जा सके। नेता, बाबू, बिल्डर, सत्ता के दलाल उनके इर्द-गिर्द छाए हुए हैं। यह हिंदुस्तान का सबसे शांत और सुकूनदेह नेटवर्क है। सबसे अमीर है और सबसे ज्यादा भ्रष्ट भी। नहीं, ये बात मैं नहीं कह रहा हूं। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार ने यह बात कही। कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़ा अनैतिकता और लालच का हर कांड यही बता रहा है।

600 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट में ये लोग 36,000 करोड़ रुपए निगल गए और अभी तक निगलते जा रहे हैं। इस लूट का परिमाण और इसका आकार इतना बड़ा था कि पूरी दुनिया के सामने भारत ने अपनी प्रतिष्ठा खो दी। रूस का विनाशकारी तत्व चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद यहां भी आ पहुंचा है। इसने हिंदुस्तान में सच्चे अर्थो में और बड़ी मजबूती से अपनी जड़ें जमा ली हैं। बिना कहे चुपके-चुपके निजीकरण हो रहा है। सिर्फ मुंबई के बिल्डरों को पता है कि माल को किस तरह बांटना है।

किससे लेकर किसको देना है, किस चीज के बदले में देना है। वे अपना मुंह नहीं खोल रहे हैं क्योंकि माल पाने के लिए वे खुद कतार में लगे हुए हैं और वे भलीभांति जानते हैं कि अगर कोई इसके खिलाफ गुस्सा प्रकट करेगा तो यह व्यवस्था किस तरह उससे प्रतिशोध ले सकती है। हर कोई जानता है कि जो भी कीमत चुकाने को तैयार हो, मुंबई की जमीन का एक-एक कोना उसके हाथों बिकने को तैयार है। पार्क, भिखारियों के घर, बूढ़े लोगों के आशियाने, वक्फ की संपत्ति, सारी झुग्गी-झोपड़ियां, समंदर के आसपास की वो जमीनें जहां नमक बनता है, मैंग्रूव्स (एक किस्म की झाड़ी, जो समंदर किनारे बसे शहरों में उगाई जाती है), पुरानी विरासत वाली संपत्ति, पहाड़, जंगल, समुद्र तट की जमीनें सबकुछ बिकने के लिए तैयार है। अब कुछ भी पवित्र नहीं है।

सीआरजेड (कोस्टल रेगुलेशन जोन) का भी कोई अर्थ नहीं है। सबकुछ हथियाने, कब्जा करने के लिए तैयार है। इतनी बड़ी संख्या में घर बनाए जा रहे हैं, जितने खरीदने वाले लोग भी नहीं हैं। इतने ऑफिस बन रहे हैं, जितनी शहर को कभी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। एक के बाद एक बड़ी संख्या में मॉल उग रहे हैं, जहां बिक्री कम-से-कम होती जा रही है। फिर भी कीमतें कम नहीं हो रहीं क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो मुनाफाखोरों को नुकसान होगा और आम आदमी को फायदा। और आखिर कौन चाहता है कि आम आदमी को फायदा पहुंचे?

निश्चित ही सरकार तो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती। एक समय ऐसा था, जब 64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले के कारण 400 सांसदों के साथ सरकार गिर गई थी। आज हजारों करोड़ रुपयों के घोटाले हो रहे हैं, फिर भी किसी को कोई डर नहीं है क्योंकि विपक्ष भी मुनाफे के इस धंधे में दीवार नहीं बनना चाहता। हर कोई लूट में हिस्सेदार है और जब कोई पत्रकार या आरटीआई कार्यकर्ता इसके खिलाफ खड़ा होता है तो उसका मुंह बंद करने के लिए सिर्फ भाड़े के हत्यारों या झूठे मुकदमे की जरूरत होती है।

उसका मुंह बंद हो जाएगा। आप इसे जो कहना चाहें कहें - चोर-चोर मौसेरे भाई वाला पूंजीवाद, सरकारी खजाने की लूट या सीधे-सादे शब्दों में भ्रष्टाचार। लेकिन जो सरकार में बैठे हैं, वे इसे विकास कहते हैं। लेकिन यह कैसा विकास है, जिसमें मैं देख रहा हूं कि और-और लोग बेघर होते जा रहे हैं, और-और भिखारी बढ़ते जा रहे हैं, और-और बीमार लोग हैं, जो बिना इलाज के मर रहे हैं क्योंकि इलाज के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। और-और गरीब लोग और-और दरिद्रता और अभाव की हालत में जी रहे हैं? यह कैसा विकास है कि मैं और-और आत्महत्या कर रहे किसानों के बारे में पढ़ता हूं, और-और विद्यार्थी आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि आखिर उनका भविष्य क्या है।

और-और लोग अपनी नौकरियां खोते जा रहे हैं, वे बेरोजगार हो रहे हैं। क्या हम हिंदुस्तान को और ज्यादा कुंठाओं, अपराधों और हिंसा के लिए तैयार कर रहे हैं? अगर ऐसा हुआ तो फिर हमारे इतने सारे अरबपति कहां जाएंगे? - लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार हैं

Aug 20, 2010

लालू लखपती, पर परिवार करोड़पति

वेतन वृद्धि नहीं होने से नाराज राजद प्रमुख लालू यादव के पास चल संपत्ति तो नहीं है, लेकिन उनकी पत्नी राबड़ी देवी और नौ बच्चों के पास 1.2 करोड़ रुपए मूल्य की चल संपत्ति है। राबड़ी देवी का बैंक बैलेंस भी 24 लाख रुपयों का है, जबकि लालू के नाम बैंक में कुल 12.11 लाख रुपए ही जमा हैं।

पिछले साल चुनाव लड़ने के वक्‍त दायर शपथपत्र के मुताबिक लालू-राबड़ी के बच्चों के नाम बैंक में 39.58 लाख रुपए जमा हैं। बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के पास 34.5 लाख रुपए मूल्य की कृषि भूमि और 28.5 लाख मूल्य की गैर कृषि भूमि है।

544 में 315 सांसद करोड़पति

अपनी तनख्‍वाह तीन गुनी किए जाने की तैयारी कर रहे सांसदों का हाल यह है कि आधे से ज्‍यादा सांसद पहले से करोड़पति हैं। 2004 में लोकसभा में करोड़पति सांसदों की संख्या 156 थी, जो मौजूदा लोकसभा में 315 हो गई है। यानी करीब 58 प्रतिशत सांसद करोड़पति हैं।

निचले सदन के इन सदस्यों की औसत संपत्ति पिछले पांच सालों में 1.86 करोड़ रुपए से बढ़कर 5.33 करोड़ रुपए हो गई है। 20 फीसदी सांसदों की संपत्ति पांच करोड़ से ज्‍यादा की है। 294 सदस्‍यों के पास 50 लाख रुपए से पांच करोड़ रुपए तक की संपत्ति है। 10 लाख रुपए मूल्य की संपत्ति वाले केवल 17 सांसद हैं।करोड़पति सांसद सबसे ज्यादा (146) सत्ताधारी कांग्रेस में हैं। बीजेपी में 59, समाजवादी पार्टी में 14 और बीएसपी व डीएमके में करोड़पति सांसदों की संख्या 13-13 है। यदि प्रदेश के हिसाब से देखें तो उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा (52) करोड़पति सांसद हैं। महाराष्ट्र में 38, आंध्रप्रदेश में 32, तमिलनाडु और कर्नाटक में 25-25, बिहार में 17, मध्य प्रदेश में 15, राजस्थान में 14, पंजाब में 13, गुजरात में 12, पश्चिम बंगाल में 11 और हरियाणा में 9 सांसद करोड़पति हैं। दिल्ली के सभी 7 सांसद करोड़पति हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) ने सदस्यों द्वारा चुनाव लड़ते समय दाखिल शपथ पत्र के आधार पर जो जानकारी जुटाई है, उसके मुताबिक तेलुगु देसम के नागेश्वर राव, जो खम्मम से सांसद हैं, सबसे रईस हैं। उनकी कुल घोषित संपत्ति 173 करोड़ रुपए की है। इसके बाद कांग्रेस के नवीन जिंदल (131 करोड़ रुपए) और एल राजगोपाल (122 करोड़ रुपए) का नंबर है।

प्रस्ताव के विरोधी मंत्रियों की संपत्ति

कैबिनेट की बैठक में सोमवार को कम से कम तीन मंत्रियों ने सांसदों के वेतन में बढ़ोतरी के प्रस्ताव का विरोध किया। इनमें से गृह मंत्री पी चिदंबरम के पास कुल 27 करोड़ रुपए की चल और अचल संपत्ति है। सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी के पास 17.7 करोड़ रुपए की और सुरक्षा मंत्री एके एंटनी के पास 16.64 लाख रुपए की कुल संपत्ति है।

हर दूसरा सांसद करोड़पति....

5वीं लोकसभा में हर दूसरा सांसद करोड़पति है। सांसदों में से 315 की संपत्ति करोड़ों में हैं। वहीं 150 सांसद ऐसे हैं, जिनके एक या एक से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं।

करोड़पति सांसदों में यूपी आगे

करोड़पति सांसदों में भी उत्तरप्रदेश (52) यूपी सबसे आगे है। इसके बाद महाराष्ट्र (37) व आंध्र प्रदेश (31) का स्थान है। मध्यप्रदेश के 15, राजस्थान के 14, पंजाब के 13, गुजरात के 12, हरियाणा के 9, दिल्ली के 7, हिमाचल प्रदेश के 3 और छत्तीसगढ़ के 2 व चंडीगढ़ का एक सांसद करोड़पति है। सबसे धनवान सांसद खम्मम से टीडीपी के नामा नागेश्वर राव (173 करोड़ रुपए) हैं। दूसरा स्थान हरियाणा के कुरुक्षेत्र से नवीन जिंदल (131 करोड़ रुपए) का है।

करोड़पति सांसद

कांग्रेस : 138

भाजपा : 58

सपा : 14

आवाज में है दम

फारुख अब्दुल्ला की तत्काल टिप्पणी- कि उनका बेटा जूते-वाले ‘इलीट समूह’ का हिस्सा बन गया- प्रकारांतर से जॉर्ज बुश की इराक में सामरिक नीतियों को सही ठहराती है और यह बताने का प्रयत्न करती है कि कश्मीर में सब ठीक-ठाक है।

हाल के वर्षो में जूता फेंकना राजकीय दमनात्मक कार्रवाई के खिलाफ प्रतिरोध के नए प्रतीक के रूप में विकसित हुआ है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर 15 अगस्त के दिन एक निलंबित पुलिसवाले ने जूता फेंका। हर बार ऐसी घटना के बाद राज्य की तरफ से यह कोशिश की जाती है कि इसे लोकप्रिय जनभावना के तहत देखे जाने से टाला जाए।

इसके लिए कुछ आसान तर्क भी जुटा लिए जाते हैं, कि विरोध का यह तरीका ‘छिछला’ है और सभ्य समाज में ऐसी हरकत व्यापक आबादी का सच नहीं हो सकती। या फिर ऐसी ‘अलोकतांत्रिक और अमर्यादित हरकत’ कुछ सनकी दिमागों द्वारा सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए की गई कवायद है।

लेकिन उमर अब्दुल्ला प्रकरण में फारुख अब्दुल्ला की तत्काल टिप्पणी- कि उनका बेटा जूते-वाले ‘इलीट समूह’ का हिस्सा बन गया- का संदेश शायद यही है कि महान लोगों के विरोधी हर समाज में पैदा होते हैं और अगर महानता को हासिल करना है, तो यह इस बात पर निर्भर करता है कि विरोधी अनिवार्य तौर पर समाज के भीतर मौजूद हो।

इस तरह प्रकारांतर से वे जॉर्ज बुश की इराक में सामरिक नीतियों को भी सही ठहरा गए और यह बताने का भरसक प्रयत्न भी कर गए कि कश्मीर में सब ठीक-ठाक है। याद रहे कि जॉर्ज बुश पर भी इराक में एक पत्रकार ने जूता फेंका था।

बहुत साफ है कि कश्मीर के मौजूदा राजनीतिक हालात में नेशनल कांफ्रेंस को लेकर घाटी के भीतर असंतोष व्याप्त है। युवाओं के एक बड़े हिस्से को सामान्य स्वतंत्र जीवन जीने का शीघ्र कोई विकल्प चाहिए। यह विकल्प अगर उमर अब्दुल्ला सरकार नहीं मुहैया करा रही है, तो वे इसके जवाब में अलगाववादी धड़ों के साथ खुद को सहज महसूस करते हैं।

लगभग बीस साल बाद घाटी में इस तरह का दृश्य बन रहा है, जब सरकार के विरोध में उग्र और अंतहीन दिखने वाले प्रदर्शन हो रहे हैं। हुर्रियत के दोनों धड़े जोर देकर कह रहे हैं कि युवाओं का यह स्वत:स्फूर्त आंदोलन है जिसको वे केवल समर्थन दे रहे हैं।

पिछले एक साल में कश्मीर की राजनीति बेहद उठा-पटक भरे दौर से गुजरी है। शोपियां में दो युवतियों की बलात्कार के बाद हत्या के मामले पर जांच समितियों की परस्पर-विरोधी रिपोर्ट और सरकार द्वारा उस मामले पर नाटकीय तरीके से लिए गए फैसलों से आंदोलन शुरू हुआ।

बीते सप्ताह सईद फारुख बुखारी नामक एक 19 वर्षीय छात्र के कथित तौर पर पुलिसिया उत्पीड़न से मारे जाने के बाद हजारों लोग उसके अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने के लिए कफ्यरू को तोड़ कर निकल आए। पीडीपी अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती ने सईद की मौत के लिए सरकार को दोषी ठहराते हुए इस घटना की निंदा की। ऐसी प्रत्येक घटना के बाद मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को लेकर असंतोष और भड़का है।

मीरवाइज उमर फारुख ने भारत सरकार को कश्मीर से सैन्य बल वापस बुलाने, सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम खत्म करने और कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मामला न मानते हुए इसमें कश्मीर को शामिल कर त्रिपक्षीय तरीके से हल किए जाने की अपील करने के साथ-साथ स्थानीय कश्मीरियों की भावना को समझने के लिए ‘कश्मीर की दीवारों पर लिखी इबारत’ को पढ़ने को कहा है।

कश्मीरी लोगों ने पिछले चुनाव में सहभागिता के जिस स्तर को दिखाते हुए 60 फीसदी से अधिक मतदान किया और उमर अब्दुल्ला की पार्टी को बहुमत के साथ विधानसभा में ले आए, उसके जवाब में उनके बरसों पुराने आत्मनिर्णय के अधिकार के संकट का खात्मा कहीं से भी होता नजर नहीं आया। जाहिर है, ऐसे में यहां की जनता को प्रतिरोध के रूप में पत्थर और जूते दिखते हैं, तो हर्ज क्या है?

100 में 18 आईटी ग्रेजुएट ही जॉब के काबिल

नई दिल्‍ली. आईटी के क्षेत्र में सुपरपावर बनने का सपना देख रहे भारत के लिए यह तथ्‍य बेहद चौंकाने वाला है कि तकनीकी संस्‍थानों से पढ़ाई कर निकले छात्रों में से केवल 18 फीसदी ही जॉब के काबिल होते हैं। ‘एस्‍पाइरिंग माइंड्स’ नामक कंपनी के एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि अधिकतर तकनीकी ग्रेजुएट ऐसे होते हैं जिन्‍हें आईटी सेक्‍टर में जॉब के काबिल बनाने के लिए अतिरिक्‍त ट्रेनिंग की जरूरत होती है।

हाल में हुए इस सर्वे में देश के 12 राज्‍यों के 40 हजार से अधिक तकनीकी ग्रेजुएट्स को शामिल किया गया। इसमें ऐसे छात्रों के कम्‍प्‍यूर आधारित टेस्‍ट लिए गए जो इंजीनियरिंग या एमसीए अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे। सर्वे के मुताबिक आईटी प्रोडक्‍ट कंपनियों के हिसाब से इन छात्रों की ‘एम्‍प्‍लॉयबिलिटी’ महज 4.22 फीसदी थी।

सर्वे के मुताबिक 62 फीसदी छात्रों को किसी आईटी कंपनी में जॉब के काबिल होने के लिए ट्रेनिंग की जरूरत है। इसके अलावा आईटी सेक्‍टर के लिए एम्‍प्‍लॉएबल छात्रों में से 70 फीसदी ऐसे होते हैं जिन्‍होंने देश के चोटी के 100 कॉलेजों में पढ़ाई नहीं की होती है।

क्‍या होगा असर

देश में हर साल 30 लाख से ज्‍यादा ग्रेजुएट तैयार होते हैं जिसमें एक चौथाई इंजीनियरिंग ग्रेजुएट होते हैं। ऐसे में बेरोजगारी की दर भी हर साल बढ़ रही है। एक अनुमान के मुताबिक देश में बेरोजगारी की दर 2008 में 7.8 प्रतिशत की तुलना में 2010 में बढ़कर 10.7 फीसदी हो गई है।

हमारे यहां मानव श्रम की संख्‍या हर साल 2.5 फीसदी की दर से बढ़ रही है जबकि ‘जॉब ग्रोथ रेट’ 2.3 फीसदी है। इस तरह बेरोजगार युवकों की संख्‍या हर साल तेजी से बढ़ रही है।

Jul 11, 2009

लुभावना हुआ क्रिकेट पर गिर रही गरिमा: सनी


मुंबई। क्रिकेट जगत में भारत को बुलंदी तक पहुंचाने वाले महान क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने शुक्रवार को अपना 60वां जन्मदिन बेंगलूर के पास पुट्टपर्थी में सत्य साई बाबा के आश्रम में मनाया। जन्मदिन के मौके पर लिटिल मास्टर ने कहा कि आज के तारीख में क्रिकेट बहुत लुभावना हो गया है लेकिन इसकी गरिमा में गिरावट आ रही है।
टेस्ट क्रिकेट में दस हजार का आंकड़ा छूने वाले दुनिया के पहले क्रिकेटर गावस्कर ने कहा, मैं सोचता हूं कि इस खेल की रुमानियत खत्म हो रही है जो कि खुद की अपनी टीम या विपक्षी टीम के द्वारा होता था अब ऐसा नहीं होता। उन्होंने कहा, आपको मुश्किल से दिखेगा कि किसी बल्लेबाज के शानदार प्रदर्शन करने के बाद भी कोई क्षेत्ररक्षक उसे प्रोत्साहित करता हो। खिलाडि़यों का ध्यान टीवी कैमरों की ओर होता है। इसलिए वे सिर्फ एक बार ताली बजाकर औपचारिकता पूरी कर देते हैं। अब कहा जाने लगा है कि विपक्षी खिलाडि़यों के लिए दो या तीन बार ताली बजाना कमजोरी की निशानी है। मैं नहीं समझता कि यह सही है।
गावस्कर के साथ सत्य साई बाबा के आश्रम में उनका पूरा परिवार और बहनोई गुंडप्पा विश्वनाथ भी थे। भारत के पूर्व कप्तान गावस्कर भी सचिन तेंदुलकर की ही तरह सत्य साई बाबा के भक्तों में शुमार हैं। गावस्कर ने अपने कैरियर में कई उपलब्धियों को छुआ। उन्होंने 125 टेस्ट में 34 शतक के साथ 10,122 रन बनाए। विश्वनाथ के साथ भारतीय बल्लेबाजी की रीढ रहे गावस्कर ने उस जमाने में रनों का अंबार लगाया जब बल्लेबाज हेलमेट नहीं पहनते थे और एक ओवर में फेंके जाने वाले बाउंसरों की संख्या पर भी कोई अंकुश